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Thursday, July 4, 2019

मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र


                     मातृ शक्ति इच्छापूर्ती बीज मंत्र 

 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 फोन : (नि.) 022 2754 9553  (का) 022 25591154   
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

 



इच्छापूर्ति के लिए श्री दुर्गा सप्तशती से बड़ा कोई ग्रंथ नहीं है। इसे पांचवां वेद कहा गया है। ऐसी कोई कामना नहीं, जिसकी पूर्ति इसके मंत्रों के प्रयोग से पूर्ण न हो। कुछ विशेष मंत्र नीचे दिए गए हैं तथा उनका प्रयोग भी साथ है।

1. हैजा-प्लेग जैसी महामारी नाश के लिए-
'ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।।'



2. रोग नाश के लिए -
'रोगान शेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा, तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वांमाश्रितानां न विपन्नराणां, त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।' 



3. दु:ख-दारिद्रय नाश के लिए -
'दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:, स्वस्थै: स्मृता मतिमअतीव शुभां ददासि।
दारिद्रय-दु:ख-भयहारिणी का त्वदन्या, सर्वोपकार करणाय सदाऽर्द्रचित्ता:।।'



4. कार्य की सफलता हेतु -
'धर्म्याणि देवि सकलानि सदैव कर्मा, एत्यादृतः प्रतिदिनं सुकृती करोति।
स्वर्गं प्रयाति च ततो भवती प्रवीती प्रसादात्, लोकत्रयेपि फलदा ननु देवि/ तेन।।'



6. समस्त कार्यों की सिद्धि तथा देवी कृपा प्राप्ति के लिए-
'शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे, सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोस्तुते।'



उपरोक्त मंत्रों का प्रयोग यथाशक्ति 11-21-51 माला प्रतिदिन देवी का पूजन करने के पश्चात रुद्राक्ष की माला से कर अंत में प्रचलित पदार्थों के प्रयोग से हवन करें। कन्या तथा ब्राह्मण भोजन अवश्य कराएं। कामनापूर्ति होगी।

1)    ज्ञान वैराग्य के लिए - 'ॐ ऐं नम:' स्फटिक माला से सरस्वतीजी का चित्र श्वेत वस्त्र पर स्‍थापित कर 11 माला नित्य करें। यथासंभव घी की आहुति दें। मंत्र के आगे 'स्वाहा' का प्रयोग करें।


(2)  ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए - 'ॐ ह्रीं नम:' लाल चंदन की मा‍ला, रक्त वर्ण वस्त्र आसनादि पुष्प लेकर 11 माला नित्य करें। घृत-मधु-शर्करा मिश्रण कर आहुति दें। रुद्राक्ष की माला भी ले सकते हैं। 


 (3)  शत्रु बाधा दूर करने हेतु - 'ॐ क्लीं नम:' काले हकीक की माला या रुद्राक्ष माला, रक्त वर्ण पुष्प, आसन, वस्त्रादि तथा महाकाली के चित्र को स्थापित कर 11 माला नित्य करें। अंत में घृत की आहुति दें।


(4) धन प्राप्ति हेतु - 'ॐ श्रीं नम:' तथा कमल पर बैठी लक्ष्मी का चित्र, गुलाबी आसन, वस्त्र, कमल गट्टे की माला, गुलाब-कमल के पुष्प से अर्चन कर घृत-मधु-शर्करा से अंत में यथाशक्ति आहुति दें।




 (5) शत्रु शांति - कर्जमुक्ति इत्यादि के लिए- श्री दुर्गाजी के चित्र को रक्तवर्ण आसन, वस्त्र, पुष्पादि से पूजन कर 'ॐ दुर्गेरक्षिणि-रक्षिणि' स्वाहा की 9 माला रुद्राक्ष माला से नित्य करें तथा गौघृत-मधु-शर्करा से आहुति दें।



(6) वशीकरण करने के लिए 'ॐ क्रीं ॐ' की 11 माला नित्य करें तथा घृत-मधु-शर्करा की आहुति दें। विशेष आहु‍ति कटु तेल, लाल चंदन, राई, मधु और अशोक पुष्प की दें।
 

 
(7) जमीन-जायदाद, मकान इत्यादि की प्राप्ति के लिए -'ॐ लं ॐ' का जप करें। 11 माला नित्य करें। 



(8) पुत्र प्राप्ति के लिए - 'ॐ क्रीं नम:' की 11 माला नित्य कर गौघृत की आहुति दें।

नवरात्रि में केवल माता दुर्गा, काली, लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए कार्य नहीं किए जाते, वरन किसी भी देवता, सम्प्रदाय के देवता की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रशस्त समय होता है, जैसे माता पद्मावती, जो हमारे धर्म तथा जैन धर्म में एक-सी ही पूजित है तथा कार्यों के अवरोध दूर कर दर्शन भी शीघ्र देती हैं। इनका मंत्र निम्न है -
'ॐ पद्मावती पद्मनेत्रे ह्रीं श्रीं लक्ष्मी प्रदायिनी मम् सर्व कार्य सिद्धि कुरु-कुरु ॐ पद्मावत्यै नमो नम:।'



चित्रादि उपलब्ध न होने पर माता दुर्गा, लक्ष्मी, काली आदि का चित्र रखकर पूजन कर नव‍रात्रि में नित्य 11 माला करें तथा नित्य 1 माला करें। कहीं भी किसी भी कार्य के रुकने पर माला जप कर जाएं, कार्य होगा।

जो व्यक्ति विदेश जाना चाहते हैं, लेकिन रुकावटें पीछा नहीं छोड़तीं, उन्हें महायक्षिणी के मंत्र के जप करने पर मनोकामना शीघ्र पूर्ण होगी। मंत्र निम्न है- 
 

'ॐ श्रीं क्लीं, ह्रीं ऐं आं श्रीं महायक्षिणी सर्वैश्वर्य प्रदर्ण्ड नम:।'  काली हकीक की माला से लोभान से धूपित वातावरण में जप करें।

 
जिन व्यक्तियों को भविष्य में रास्ता नजर न आ रहा हो, वे इस मंत्र  का जप करें।
'ॐ गं गणपतये नम:'



भय सता रहा हो, ‍चिंताएं बढ़ रही हों, आत्मशक्ति क्षीण हो रही हो तो नित्य मूंगे की माला से 'ॐ हं हनुमतये नम:' की एक माला नवरात्रि से करें, साथ ही हनुमान चालीसा, बजरंग बाण तथा 'हरे राम, हरे राम' का जप करें। बजरंग बली की कृपा शीघ्र ही होगी। किसी भी मंत्र, जप आदि में आवश्यक सावधानी रखें।

किसी भी प्रकार का रोग, जो सारे इलाज कराने पर भी ठीक न हो रहा हो, तो नवरात्रि में निम्न मंत्र की 1 माला रोज करें व रोगी को जल अभिमंत्रित कर पिला दें।
 मंत्र : ॐ कालि-कालि महाकाली नमोस्तु। ते हत हत हन हन दह दह शूलम् त्रिशूलेट हुं फट स्वाहा।


शांति व मोक्ष प्राप्ति के लिए नवरात्रि में निम्न शिव मंत्र की एक माला 9 दिनों तक करें। 
 मंत्र : ॐ नम: शिवाय

 
तान की शादी तय नहीं हो रही हो तो निम्न मंत्र का जाप नवरात्रि में नवमी तक 21 माला रोज करें, जल्द ही शादी तय हो जाएगी।  मंत्र : ॐ ह्रीं हं स:
 

पेट संबंधी तकलीफ निवारण के लिए निम्न मंत्र की रोज 1 माला करें।  मंत्र : ॐ हंस: हंस: विशेष- किसी का पेट दर्द कर रहा हो तो 21 बार जल अभिमंत्रित करके पिला दें, आराम मिलेगा।

जो स्त्रियां संतान प्राप्त करना चाहती हैं वे नवरात्रि के प्रथम दिन से 21 दिन तक निम्नलिखित मंत्र की 1 माला रोज करें। मंत्र : ॐ नम: शक्तिरूपाय मम गृहे पुत्रं कुरु-कुरु स्वाहा।


मां दुर्गा को तुलसी दल और दूर्वा चढ़ाना निषिद्ध है।
- अपने घर के पूजा स्थान में भगवती दुर्गा, भगवती लक्ष्मी और मां सरस्वती के चित्रों की स्थापना करके उनको फूलों से सजाकर पूजन करें।
- नौ दिनों तक माता का व्रत रखें। अगर शक्ति न हो तो पहले, चौथे और आठवें दिन का उपवास अवश्य करें। मां भगवती की कृपा जरूर प्राप्त होगी।
- नौ दिनों तक घर में मां दुर्गा के नाम की ज्योत अवश्‍य जलाएं।
- अधिक से अधिक नवार्ण मंत्र 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै' का जाप अवश्‍य करें।
- इन दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्‍य करें।

पूजन में हमेशा लाल रंग के आसन का उपयोग करना उत्तम होता है। आसन लाल रंग का और ऊनी होना चाहिए।
- लाल रंग का आसन न होने पर कंबल का आसन इतनी मात्रा में बिछाकर उस पर लाल रंग का दूसरा कपड़ा डालकर उस पर बैठकर पूजन करना चाहिए।
- पूजा पूरी होने के पश्‍चात आसन को प्रणाम करके लपेटकर सुरक्षित जगह पर रख दीजिए।
- पूजा के समय लाल वस्त्र पहनना शुभ होता है। लाल रंग का तिलक भी जरूर लगाएं। लाल कपड़ों से आपको एक विशेष ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
- मां को प्रात: काल के समय शहद मिला दूध अर्पित करें। पूजन के पास इसे ग्रहण करने से आत्मा व शरीर को बल प्राप्ति होती है। यह एक उत्तम उपाय है।
-  आखिरी दिन घर में रखीं पुस्तकें, वाद्य यंत्रों, कलम आदि की पूजा अवश्य करें।
- अष्‍टमी व नवमी के दिन कन्या पूजन करें।

1. शैलपुत्री - ह्रीं शिवायै नम:।
2. ब्रह्मचारिणी ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:।  

3. चन्द्रघण्टा ऐं श्रीं शक्तयै नम:।  
4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:। 
5. स्कंदमाता ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:।
6. कात्यायनी क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:। 

7. कालरात्रि  क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:।
8. महागौरी श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:। 
9. सिद्धिदात्री  ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:।


निम्नलिखित मं‍त्रों में से अपनी रुचि के अनुसार कोई एक मंत्र का प्रयोग करें। श्रद्धा व विश्वास से कार्यसिद्धि होगी। नवरात्र में माता सरस्वती का चित्र श्वेत वस्त्र पर स्थापित कर यथाशक्ति पूजन करें। नैवेद्य में दूध की बनी मिठाई का भोग लगाएं। अंत में दुर्गाजी से क्षमा-प्रार्थना व आरती करें। 


 
1. 'ॐ ऐं नम:' नित्य स्फटिक की माला से 21-51-101 माला करें।
2. 'ॐ ऐं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा' की यथाशक्ति माला जपें।
3. 'ॐ ह्रीं श्रीं ऐं वाग्वादिनी भगवति अर्हन्मुख निवासिनी सरस्वति मासस्ये प्रकाश कुरु कुरु ऐं नम:' की 11 माला नित्य करें। समय प्रात: या अर्द्धरात्रि शुभ रहेगा।
4. 'ॐ ऐं सरस्वत्यै नम:' की 51 माला नवरात्र में नित्य करें।
5. 'ॐ ऐं नम: भगवति वद वद वाग्दे‍वि स्वाहा' की 51 माला नवरात्र में नित्य करें।



उपरोक्त प्रयोग श्रद्धा व विश्वास के साथ करें। अंत में स्वाहा लगाकर गौघृत से हवन करें। नवरात्र के पश्चात नित्य एक माला करें।
गणपति साधना बुद्धि तथा ज्ञान प्राप्ति के लिए सरल व उपयुक्त मानी गई है। अत: गणेशजी के मंत्र कर सकते हैं।



1. 'ॐ गं गणपतये नम:' की 21 माला नित्य करें। 
2. 'ॐ वक्रतुण्डाय हूं' की 21 माला मूंगे की नित्य करें।


कीलक स्तो‍त्र के निम्न मंत्र का मात्र 31 दफा जप करें। पहले गणेशजी के मंत्र की एक माला अवश्य करे

मंत्र - 'ॐ विशुद्धज्ञान देहाय त्रिवेदी दिव्य चक्षुषे। श्रेय: प्राप्तिनिमित्ताय नम: सोमार्ध धारिणे।।'


ज्ञान, भक्ति, शांति तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए रात्रि 10 से 12 बजे तक रुद्राक्ष की माला से कमर तक जल में बैठकर 'ॐ नम: शिवाय' जपें। दिन में आशुतोष शिव का यथाशक्ति पूजन-अभिषेक करें। दुग्ध धारा से अभिषेक करने से ज्ञान व शांति तथा तीर्थ जल से अभिषेक करने से मोक्ष मिलता है।





MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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Wednesday, July 3, 2019

रुद्राक्ष: रुद्र के आंसू

                          रुद्राक्ष: रुद्र के आंसू

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
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रुद्राक्ष संस्कृत भाषा का एक यौगिक शब्द है जो रुद्र (संस्कृत: रुद्र) और संस्कृत: का अक्ष शब्दों से मिलकर बना है।“रुद्र” भगवान शिव के वैदिक नामों में से एक है और “अक्ष” का अर्थ है ' अश्रु की बूँद' अत: इसका शाब्दिक अर्थ भगवान रुद्र (भगवान शिव) के आंसू से है।


वास्तव में रुद्राक्ष एक फल की गुठली ऐसा माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। रुद्राक्ष शिव का वरदान है, जो संसार के भौतिक दु:खों को दूर करने के लिए प्रभु शंकर ने प्रकट किया है।


रुद्राक्ष हिंदू देवता भगवान शिव से जुड़ा हुआ हैं एवं आमतौर पर भक्तों द्वारा सुरक्षा कवच के तौर पर या ओम नमः शिव मंत्र के जाप के लिए पहने जाते हैं।ये बीज मुख्य रूप से भारत और नेपाल में कार्बनिक आभूषणों और माला के रूप में उपयोग किए जाते हैं एवं अर्द्ध कीमती पत्थरों के समान मूल्यवान होते हैं।


भारत और नेपाल में रुद्राक्ष के माला पहनने की एक पुरानी परंपरा है विशेष रूप से शैव मतालाम्बियों में जो उनके भगवान शिव के साथ उनके सम्बन्ध को दर्शाता है । भगवान शिव खुद रुद्राक्ष माला पहनते हैं एवं ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप भी रुद्राक्ष माला का उपयोग करके दोहराया जाता है। यद्यपि महिलाओं के रुद्राक्ष पहनने पर कोई विशिष्ट प्रतिबंध नहीं है, लेकिन महिलाओं के लिए मोती जैसे अन्य सामग्रियों से बने मोती पहनना आम बात है। यह माला हर समय पहना जा सकता है, केवल स्नान करते समय इसको उतार देते हैं पानी रुद्राक्ष बीज को हाइड्रेट कर सकते हैं।

संस्कृत में मुखी (संस्कृत: मुखी) का मतलब चेहरा होता है इसलिए मुखी का अर्थ रुद्राक्ष का मुख है, एक मुखी रुद्राक्ष का अर्थ एक मुंह वाला रुद्राक्ष या एक मुह खोलने के साथ, ४ मुखी रुद्राक्ष का मतलब रुद्राक्ष ४ मुंह या खोलने के साथ है। रुद्राक्ष १ से २१ मुख के साथ आता है।


कभी-कभी रुद्राक्ष को मूल्यवान बनाने या अधिक मूल्य पर बेचने के लिए मानवीय प्रक्रिया द्वारा अपूर्ण रुद्राक्ष को पूर्ण किया जाता है। इस तरह के कार्य को करने के लिए ब्लेड, फाइल इत्यादि उपकरण की जरुरत पड़ती है।


आकार


रुद्राक्ष का आकार हमेशा मिलीमीटर में मापा जाता है। वे मटर के बीज के रूप में छोटे से बड़े होते हैं एवं कुछ लगभग अखरोट के आकार तक पहुंचते हैं।


सामान्तया एक रुद्राक्ष की सतह कठिन होनी चाहिए एवं इनका उभार उचित होना चाहिए जैसा ज्यादातर नेपाली रुद्राक्षों में होता है। इंडोनेशियन रुद्राक्ष की एक अलग उपस्थिति है।



रुद्राक्ष से माला का निर्माण होता है जो मंत्र जाप के लिए प्रयोग में आता है। हिंदू धर्म (विशेष रूप से शैववाद) और अन्य मतों में जप/पूजा करने के लिए एक आमतौर पर उपयोग में लाया जाता है। पारंपरिक भारतीय चिकित्सा में विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए रुद्राक्ष का भी उपयोग किया जाता है।


एक सामान्य प्रकार के रुद्राक्ष में ५ चेहरे होते हैं, और इन्हें शिव के पांच चेहरे का प्रतीक माना जाता है। इन्हें केवल काले या लाल धागे या शायद ही कभी सोने की चेन पर पहना जाना चाहिए।



श्री गणेश व गौरी-शंकर नाम के रुद्राक्ष भी होते हैं।

एकमुखी रुद्राक्ष: एकमुखी रुद्राक्ष भगवान शिव हेतु। ऐसा रुद्राक्ष जिसमें एक ही आँख अथवा बिंदी हो। स्वयं शिव का स्वरूप है जो सभी प्रकार के सुख, मोक्ष और उन्नति प्रदान करता है।

द्विमुखी रुद्राक्ष:  द्विमुखी श्री गौरी-शंकर हेतु। सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा करने वाला तथा दांपत्य जीवन में सुख, शांति व तेज प्रदान करता है।

त्रिमुखी रुद्राक्ष:  त्रिमुखी तेजोमय अग्नि हेतु।  समस्त भोग-ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है।

चतुर्थमुखी रुद्राक्ष: चतुर्थमुखी श्री पंचदेव हेतु। धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाला होता है।

पंचमुखी रुद्राक्ष: पन्चमुखी सर्वदेव्मयी हेतु। सुख प्रदान करने वाला।

षष्ठमुखी रुद्राक्ष: , षष्ठमुखी भगवान कार्तिकेय हेतु।  पापों से मुक्ति एवं संतान देने वाला होता होता है।

सप्तमुखी रुद्राक्ष: सप्तमुखी प्रभु अनंत सुख हेतु। दरिद्रता को दूर करने वाला होता है।

अष्टमुखी रुद्राक्ष: अष्टमुखी भगवान श्री गणेश हेतु। आयु एवं सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है।

नवममुखी रुद्राक्ष: , नवममुखी भगवती देवी दुर्गा मृत्यु के डर से मुक्त करने वाला होता है।

दसमुखी रुद्राक्ष: , दसमुखी श्री हरि विष्णु हेतु।  शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है।

ग्यारह मुखी रुद्राक्ष: विजय दिलाने वाला, ज्ञान एवं भक्ति प्रदान करने वाला होता है।

बारह मुखी रुद्राक्ष: धन प्राप्ति कराता है।

तेरह मुखी रुद्राक्ष: तेरहमुखी श्री इंद्र हेतु। शुभ व लाभ प्रदान कराने वाला होता है।

चौदह मुखी रुद्राक्ष: चौदहमुखी स्वयं हनुमानजी का रूप माना जाता है। संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है।


MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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इस ब्लाग पर प्रकाशित साम्रगी अधिकतर इंटरनेट के विभिन्न स्रोतों से साझा किये गये हैं। जो सिर्फ़ सामाजिक बदलाव के चिन्तन हेतु ही हैं। कुलेखन साम्रगी लेखक के निजी अनुभव और विचार हैं। अतः किसी की व्यक्तिगत/धार्मिक भावना को आहत करना, विद्वेष फ़ैलाना हमारा उद्देश्य नहीं है। इसलिये किसी भी पाठक को कोई साम्रगी आपत्तिजनक लगे तो कृपया उसी लेख पर टिप्पणी करें। आपत्ति उचित होने पर साम्रगी सुधार/हटा दिया जायेगा।

यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि


                    यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
  सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा हिंदू धर्म में शुद्धीकरण का एक कर्मकांड है हवन यानि यज्ञ वैसे तो ये हमारे घर में शांति बनाये रखने के लिए या कोई मनोकामना पूरी हो जाने पर किया जाता है।

वैसे अपने अक्सर देखा होगा हवन कुण्ड में हमेशा तीन सिद्धिया होती है इसका भी मतलब है क्योंकि इन तीनो सिद्धियो में तीन देवता निवास करते है :

हवन कुंड की पहली सीढि में विष्णु भगवान का वास होता हैं।

दूसरी सीढि में ब्रह्मा जी का वास होता हैं।

तीसरी तथा अंतिम सीढि में शिवजी का वास होता हैं| 


कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया को 'यज्ञ' कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वे पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो अग्नि में डाले जाते हैं।)


हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास स्थान। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है।


ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आसपास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।

यज्ञ दो प्रकार के होते है- श्रौत और स्मार्त।

श्रुति पति पादित यज्ञो को श्रौत यज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्त यज्ञ कहते है। श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है

और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है।

वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। 



किन्तु उनमें पांच यज्ञ ही प्रधान माने गये हैं:


1. अग्नि होत्रम, 2. दर्शपूर्ण मासौ, 3. चातुर्म स्यानि, 4. पशुयांग, 5. सोमयज्ञ, ये यह श्रुति प्रतिपादित है।


वेदों में श्रौत यज्ञों की अत्यन्त महिमा वर्णित है। श्रौत यज्ञों को श्रेष्ठतम कर्म कहा है कुल श्रौत यज्ञो को १९ प्रकार से विभक्त किया जा सकता  है।

1. स्मार्त यज्ञः-

विवाह के अनन्तर विधिपूर्वक अग्नि का स्थापन करके जिस अग्नि में प्रातः सायं नित्य हनादि कृत्य किये जाते है। उसे स्मार्ताग्नि कहते है। गृहस्थ को स्मार्ताग्नि में पका भोजन प्रतिदिन करना चाहिये।


2. श्रोताधान यज्ञः-

दक्षिणाग्नि विधिपूर्वक स्थापना को श्रौताधान कहते है। पितृ संबंधी कार्य होते है।


3. दर्शभूर्णमास यज्ञः-

अमावस्या और पूर्णिमा को होने वाले यज्ञ को दर्श और पौर्णमास कहते है। इस यज्ञ का अधिकार सपत्नीक होता है। इस यज्ञ का अनुष्ठान आजीवन करना चाहिए यदि कोई जीवन भर करने में असमर्थ है तो 30 वर्ष तक तो करना चाहिए।


4. चातुर्मास्य यज्ञः-

चार-चार महीने पर किये जाने वाले यज्ञ को चातुर्मास्य यज्ञ कहते है इन चारों महीनों को मिलाकर चतुर्मास यज्ञ होता है।


5. पशु यज्ञः-

प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में या दक्षिणायन या उतरायण में संक्रान्ति के दिन एक बार जो पशु याग किया जाता है। उसे निरूढ पशु याग कहते है।

6. आग्रजणष्टि (नवान्न यज्ञ) :-

प्रति वर्ष वसन्त और शरद ऋतुओं नवीन अन्न से यज्ञ गेहूॅं, चावल से जो यज्ञ किया जाता है उसे नवान्न कहते है।


7. सौतामणी यज्ञ (पशुयज्ञ) :-

इन्द्र के निमित्त जो यज्ञ किया जाता है सौतामणी यज्ञ इन्द्र संबन्धी पशुयज्ञ है यह यज्ञ दो प्रकार का है। एक वह पांच दिन में पुरा होता है। सौतामणी यज्ञ में गोदुग्ध के साथ सुरा (मद्य) का भी प्रयोग है। किन्तु कलियुग में वज्र्य है। दूसरा पशुयाग कहा जाता है। क्योकि इसमें पांच अथवा तीन पशुओं की बली दी जाती है।


8. सोम यज्ञः-

सोमलता द्वारा जो यज्ञ किया जाता है उसे सोम यज्ञ कहते है। यह वसन्त में होता है यह यज्ञ एक ही दिन में पूर्ण होता है। इस यज्ञ में 16 ऋत्विक ब्राह्मण होते है।


9. वाजपये यज्ञः-

इस यज्ञ के आदि और अन्त में वृहस्पति नामक सोम यग अथवा अग्निष्टोम यज्ञ होता है यह यज्ञ शरद रितु में होता है।


10. राजसूय यज्ञः-

राजसूय या करने के बाद क्षत्रिय राजा समाज चक्रवर्ती उपाधि को धारण करता है।

11. अश्वमेघ यज्ञ:-

इस यज्ञ में दिग्विजय के लिए (घोडा) छोडा जाता है। यह यज्ञ दो वर्ष से भी अधिक समय में समाप्त होता है। इस यज्ञ का अधिकार सार्वभौम चक्रवर्ती राजा को ही होता है।


12. पुरूष मेघयज्ञ:-

इस यज्ञ समाप्ति चालीस दिनों में होती है। इस यज्ञ को करने के बाद यज्ञकर्ता गृह त्यागपूर्वक वान प्रस्थाश्रम में प्रवेश कर सकता है।


13. सर्वमेघ यज्ञ:-

इस यज्ञ में सभी प्रकार के अन्नों और वनस्पतियों का हवन होता है। यह यज्ञ चैंतीस दिनों में समाप्त होता है।


14. एकाह यज्ञ:-

एक दिन में होने वाले यज्ञ को एकाह यज्ञ कहते है। इस यज्ञ में एक यज्ञवान और सौलह विद्वान होते है।

15. रूद्र यज्ञ:-

यह तीन प्रकार का होता हैं रूद्र महारूद्र और अतिरूद्र रूद्र यज्ञ 5-7-9 दिन में होता हैं महारूद्र 9-11 दिन में होता हैं। अतिरूद्र 9-11 दिन में होता है। रूद्रयाग में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। महारूद्र में 31 अथवा 41 विद्वान होते है। अतिरूद्र याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। रूद्रयाग में हवन सामग्री 11 मन, महारूद्र में 21 मन अतिरूद्र में 70 मन हवन सामग्र्री लगती है।

16. विष्णु यज्ञ:-

यह यज्ञ तीन प्रकार का होता है। विष्णु यज्ञ, महाविष्णु यज्ञ, अति विष्णु योग- विष्णु योग में 5-7-8 अथवा 9 दिन में होता है। विष्णु याग 9 दिन में अतिविष्णु 9 दिन में अथवा 11 दिन में होता हैं विष्णु याग में 16 अथवा 41 विद्वान होते है। अति विष्णु याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। विष्णु याग में हवन सामग्री 11 मन महाविष्णु याग में 21 मन अतिविष्णु याग में 55 मन लगती है।


17. हरिहर यज्ञ:-

हरिहर महायज्ञ में हरि (विष्णु) और हर (शिव) इन दोनों का यज्ञ होता है। हरिहर यज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। हरिहर याग में हवन सामग्री 25 मन लगती हैं। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में होता है।


18. शिव शक्ति महायज्ञ:-

शिवशक्ति महायज्ञ में शिव और शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और श शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और मध्याहन में होता है। इस यज्ञ में हवन सामग्री 15 मन लगती है। 21 विद्वान होते है। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।


19. राम यज्ञ:-

राम यज्ञ विष्णु यज्ञ की तरह होता है। रामजी की आहुति होती है। रामयज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।


20. गणेश यज्ञ:-

गणेश यज्ञ में एक लाख (100000) आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। गणेशयज्ञ में हवन सामग्री 21 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।


21. ब्रह्म यज्ञ (प्रजापति यज्ञ):-

प्रजापत्ति याग में एक लाख (100000) आहुति होती हैं इसमें 16 अथवा 21 विद्वान होते है। प्रजापति यज्ञ में 12 मन सामग्री लगती है। 8 दिन में होता है।

22. सूर्य यज्ञ:-

सूर्य यज्ञ में एक करोड़ 10000000 आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। सूर्य यज्ञ 8 अथवा 21 दिन में किया जाता है। इस यज्ञ में 12 मन हवन सामग्री लगती है।

23. दूर्गा यज्ञ:-

दूर्गा यज्ञ में दूर्गासप्त शती से हवन होता है। दूर्गा यज्ञ में हवन करने वाले 4 विद्वान होते है। अथवा 16 या 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 9 दिन का होता है। हवन सामग्री 10 मन अथवा 15 मन लगती है।


24. लक्ष्मी यज्ञ:-

लक्ष्मी यज्ञ में श्री सुक्त से हवन होता है। लक्ष्मी यज्ञ (100000) एक लाख आहुति होती है। इस यज्ञ में 11 अथवा 16 विद्वान होते है। या 21 विद्वान 8 दिन में किया जाता है। 15 मन हवन सामग्री लगती है।

25. लक्ष्मी नारायण महायज्ञ:-

लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में लक्ष्मी और नारायण का ज्ञन होता हैं प्रात लक्ष्मी दोपहर नारायण का यज्ञ होता है। एक लाख 8 हजार अथ्वा 1 लाख 25 हजार आहुतियां होती है। 30 मन हवन सामग्री लगती है। 31 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 दिन 9 दिन अथवा 11 दिन में पूरा होता है।


26. नवग्रह महायज्ञ:-

नवग्रह महायज्ञ में नव ग्रह और नव ग्रह के अधिदेवता तथा प्रत्याधि देवता के निर्मित आहुति होती हैं नव ग्रह महायज्ञ में एक करोड़ आहुति अथवा एक लाख अथवा दस हजार आहुति होती है। 31, 41 विद्वान होते है। हवन सामग्री 11 मन लगती है। कोटिमात्मक नव ग्रह महायज्ञ में हवन सामग्री अधिक लगती हैं यह यज्ञ ९ दिन में होता हैं इसमें 1,5,9 और 100 कुण्ड होते है। नवग्रह महायज्ञ में नवग्रह के आकार के 9 कुण्डों के बनाने का अधिकार है।


27. विश्वशांति महायज्ञ:-

विश्वशांति महायज्ञ में शुक्लयजुर्वेद के 36 वे अध्याय के सम्पूर्ण मंत्रों से आहुति होती है। विश्वशांति महायज्ञ में सवा लाख (123000) आहुति होती हैं इस में 21 अथवा 31 विद्वान होते है। इसमें हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 9 दिन अथवा 4 दिन में होता है।


28. पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ):-

पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ) वर्षा के लिए किया जाता है। इन्द्र यज्ञ में तीन लाख बीस हजार (320000) आहुति होती हैं अथवा एक लाख 60 हजार (160000) आहुति होती है। 31 मन हवन सामग्री लगती है। इस में 31 विद्वान हवन करने वाले होते है। इन्द्रयाग 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।


29. अतिवृष्टि रोकने के लिए यज्ञ:-

अनेक गुप्त मंत्रों से जल में 108 वार आहुति देने से घोर वर्षा बन्द हो जाती है।


30. गोयज्ञ:-

वेदादि शास्त्रों में गोयज्ञ लिखे है। वैदिक काल में बडे-बडे़ गोयज्ञ हुआ करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने भी गोवर्धन पूजन के समय गौयज्ञ कराया था। गोयज्ञ में वे वेदोक्त दोष गौ सूक्तों से गोरक्षार्थ हवन गौ पूजन वृषभ पूजन आदि कार्य किये जाते है। जिस से गौसंरक्षण गौ संवर्धन, गौवंशरक्षण, गौवंशवर्धन गौमहत्व प्रख्यापन और गौसड्गतिकरण आदि में लाभ मिलता हैं गौयज्ञ में ऋग्वेद के मंत्रों द्वारा हवन होता है। इस में सवा लाख 250000 आहुति होती हैं गौयाग में हवन करने वाले 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 अथवा 9 दिन में सुसम्पन्न होता है।


सामान्य तैयारी हेतु एक लकड़ी की चौकी, एक नारियल, चावल, आम के पत्ते, हल्दी मिश्रित अक्षत, चंदन, कुमकुम या सिंदूर, मौली, गंगाजल, पुष्प, तुलसीदल, दूर्वा, बिल्वपत्र, अगरबत्ती, दीपक (सरसों के तेल या घी से जलायें। तंत्र हेतु तेल और अर्चन हेतु घी) , रूई, माचिस, कपूर, सफ़ेद, पीला, लाल या काला कपड़ा( सामान्य यज्ञ हेतु सफेद, देवी पूजन हेतु लाल, विष्णु रूप हेतु पीला, काली पूजा या अन्य तंत्र हेतु काला), कुछ फल, प्रसाद, दोना (सामग्री डालने के लिए )।


नवरात्रि के पावन पर्व पर अष्टमी-नवमी तिथि को हवन करने का विशेष महत्व है अत: अगर आप घर पर ही सरल रीति से हवन करना चाहते है तो आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हम आपके लिए लेकर आए हैं आसान तरीके हवन करने की विधि। इस सरल हवन विधि द्वारा आप अपने पूरे परिवार के साथ यज्ञ-हवन करके नवरात्रि पूजन को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।


कितना बड़ा हो हवन कुंड ?


प्राचीनकाल में कुंड चौकोर खोदे जाते थे। उनकी लंबाई, चौड़ाई समान होती थी। यह

यह भी पढते हैं लोग: यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि

इसलिए कि उन दिनों भरपूर समिधाएं प्रयुक्त होती थीं। घी और सामग्री भी बहुत-बहुत होमी जाती थी, फलस्वरूप अग्नि की प्रचंडता भी अधिक रहती थी। उसे नियंत्रण में रखने के लिए भूमि के भीतर अधिक जगह रहना आवश्यक था। उस‍ स्थिति में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करती पड़ती है। में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करती पड़ती है।


ऐसी दशा में चौकोर कुंडों में थोड़ी ही अग्नि जल पाती है और वह ऊपर अच्‍छी तरह दिखाई भी नहीं पड़ती। ऊपर तक भरकर भी वे नहीं आते तो कुरूप लगते हैं। अतएव आज की स्थिति में कुंड इस प्रकार बनने चाहिए कि बाहर से चौकोर रहें। लंबाई-चौड़ाई, गहराई समान हो।


हवन के धुएं से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।


हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानी कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे तथा घी, शकर जौ, तिल, गुगल, लोभान, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का बूरा उपयोगी होता है।


हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियां या उपले घी में डुबोकर डाले जाते हैं। हवन से हर प्रकार के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है, अत: घर की शुद्धि तथा सेहत के लिए प्रत्येक घर में हवन करना चाहिए। हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है अत: कोई भी मंत्र सुविधानुसार बोला जा सकता है।


हवन करने से पूर्व स्वच्छता का ख्याल रखें। सबसे पहले रोज की पूजा करने के बाद अग्नि स्थापना करें फिर आम की चौकोर लकड़ी लगाकर, कपूर रखकर जला दें। उसके बाद इन मंत्रों से हवन शुरू करें।

ॐ आग्नेय नम: स्वाहा (ॐ अग्निदेव ताम्योनम: स्वाहा), ॐ गणेशाय नम: स्वाहा, ॐ गौरियाय नम: स्वाहा, ॐ नवग्रहाय नम: स्वाहा, ॐ दुर्गाय नम: स्वाहा, ॐ महाकालिकाय नम: स्वाहा, ॐ हनुमते नम: स्वाहा, ॐ भैरवाय नम: स्वाहा, ॐ कुल देवताय नम: स्वाहा, ॐ स्थान देवताय नम: स्वाहा, ॐ ब्रह्माय नम: स्वाहा, ॐ विष्णुवे नम: स्वाहा, ॐ शिवाय नम: स्वाहा, ॐ जयंती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा, स्वधा नमस्तुति स्वाहा, ॐ ब्रह्मामुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: क्षादी: भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शक्रे शनि राहु केतो सर्वे ग्रहा शांति कर: स्वाहा, ॐ गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा, ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम्/ उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् मृत्युन्जाय नम: स्वाहा, ॐ शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।


हवन के बाद गोला में कलावा बांधकर फिर चाकू से काटकर ऊपर के भाग में सिन्दूर लगाकर घी भरकर चढ़ा दें जिसको वोलि कहते हैं। फिर पूर्ण आहूति नारियल में छेद कर घी भरकर, लाल तूल लपेटकर धागा बांधकर पान, सुपारी, लौंग, जायफल, बताशा, अन्य प्रसाद रखकर पूर्ण आहुति मंत्र बोले- 'ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा।'


पूर्ण आहुति के बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें, फिर परिवार सहित आरती करके अपने द्वारा हुए अपराधों के लिए क्षमा-याचना करें, क्षमा मांगें। तत्पश्चात अपने ऊपर किसी से 1 रुपया उतरवाकर किसी अन्य को दें दें। इस तरह आप सरल रीति से घर पर हवन संपन्न कर सकते हैं। 


जो आर्य प्रतिदिन यज्ञ करते है, उनके लिए महर्षि ने संस्कारविधि में दैनिक अग्निहोत्र विधि इस प्रकार लिखी है

आचमन मंत्र

ओं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शंयोरभिस्त्रवन्तु न:।।


अग्न्याधान-मन्त्र

 ओं भूर्भुव: स्वः ।।

ओं भूर्भुवः स्वर्धौरिव भूम्ना पृथिवीव वरिम्णा ।

तस्यास्ते पृथिवी देवयजनि पृष्ठेऽग्निमन्नादमन्नाधायादधे ।।


इस मंत्र में दो उपमालडकार हैं। हे मनुष्य लोगों ! तुम ईश्वर से तीन लोकों के उपकार करने वा आपनी व्याप्ति से सूर्य प्रकाश के समान, तथा उत्तम गुणों से पृथ्वी के समान अपने-अपने लोकों में निकट रहनेवाले रचे हुए अग्नि को कार्य की सिद्धि के लिए यत्न के साथ उपयोग करो ।


ओम् उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते संसृजेथामयं च ।

आस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।।


इस मंत्र से जब अग्नि समिधाओं में प्रविष्ट होने लगे तब चन्दन की अथवा आम, पलाश आदि की तीन लकड़ी आठ-आठ अंगुल की घृत में डूबो उनमें से नीचे लिखे एक-एक मंत्र से एक-एक समिधा को अग्नि में चढ़ावें। वे मंत्र ये हैं –

आचमन-मंत्र

इस मंत्र से एक समिधा अग्नि में चढ़ाएं ।

ओम् अयं त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्धस्व चेद्ध वर्धय चास्मान् प्रजया पशुभिर्ब्रह्मवर्चसेनान्नाद्येन समेधय स्वाहा ।

इदमग्नये जातवेदसे-इदन्न मम ।

इससे और अगले अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा अग्नि में चढ़ावें ।

ओं समिधाग्निं दुवस्यत घृतैर्बोधयतातिथिम् ।

आस्मिन् हव्या जुहोतन, स्वाहा ।।

पूर्वोक्त मंत्र से तथा इस मंत्र से अर्थात् दोनों मन्त्रों से दूसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन । अग्नये जातवेदसे स्वाहा ।। इदमग्नये जातवेदसे-इदं न मम ।।

इस मंत्र से तीसरी समिधा की आहुति देवें ।

ओं तं त्वां समिदि्भरड़ि्गरो घृतेन वर्द्धयामसि ।

बृहच्छोचा यविष्ठय स्वाहा ।। इदमग्नयेऽड़ि्रसे-इदन्न मम ।।

जलप्रोक्षण-मन्त्र

ओम् आदितेऽनुमन्यस्व । इससे पूर्व दिशा में

ओम् अनुमतेऽनुमन्यस्व । इससे पश्चिम दिशा मे

ओं सरस्त्वयनुमन्यस्व ।  इससे उत्तर दिशा मेन जल छिड़कावे ।

तत्पश्चात अंजलि में जल लेके वेदी के पूर्व दिशा आदि चारों ओर छिड़कावें । इसके मंत्र है :-

ओं देव सवित: प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञोपतिं भगाय ।

दिव्यो गन्धर्व: केतपू: केतं न: पुनातु वाचस्पतिर्वाचं न: स्वदतु ।।

आघारावाज्यभागाहुति

इस मन्त्र से वेदी के उत्तर भाग में ,

ओम् अग्नये स्वाहा ।। इदमग्नये-इदं न मम ।।

विधि: यज्ञकुंड के उत्तर भाग में एक आहुति और दक्षिण भाग में एक दूसरी आहुति देनी होती है उनको ‘आघारावाज्याहुती’ कहते है । और जो कुंड के मध्य में आहुतियां दी जाती हैं उनको ‘आज्याभागाहुती’ कहते हैं सो घृतपात्र में से स्रुवा भर, अंगूठा, मध्यमा, अनामिका से स्रुवा को पकड़ के इस मंत्र से वेदी के दक्षिण भाग में प्रज्वलित समिधा पर आहुति देवे। 

इन दो मंत्रो से वेदी के मध्य में दो आहुति देवे ।

ओं प्रजापतये स्वाहा ।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।

ओं इन्द्राय स्वाहा ।। इदमिन्द्राय-इदं न मम ।।

नीचे लिखे हुए मन्त्रोन से प्रात: काल अग्निहोत्र करे-हवन की विधि


प्रात:काल होम करने के मन्त्र

ओं सूर्यो ज्योतिर्ज्योति: सूर्य: स्वाहा ।।१।।

ओं सूर्यो वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

ओं ज्योति: सूर्य: सूर्यो ज्योति: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूदेर्वेन सवित्रा सजूरुषसेन्द्रवत्या ।

जुषाण: सूर्यो वेतु स्वाहा ।।४।।



सायंकाल होम करने के मन्त्र

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।१।।

ओं अग्निर्वर्चो ज्योतिर्वर्च: स्वाहा ।।२।।

इस मन्त्र से तिसरी आहुति मौन करके करनी चाहिये ।हवन की विधि

ओं अग्निर्ज्योतिरग्नि: स्वाहा ।।३।।

ओं सजूर्देवेन सवित्रा सजू रात्र्येन्द्रवत्या ।

जुषाणो अग्निर्वेतु स्वाहा ।।४।।

अब निम्नलिखित मन्त्रो से प्रात: सायं आहुति देनी चाहिये –

प्रात: सायं होम करने के मन्त्र

ओं भूरग्नये प्राणाय स्वाहा । इदमग्नये प्राणाय-इदं न मम ।१।

ओं भुवर्वायवेऽपानाय स्वाहा । इदं वायवेऽपानाय-इदं न मम ।२।

ओं स्वरादित्याय व्यानाय स्वाहा । इदमादित्याय व्यानाय-इदं न मम ।३।

ओं भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य: स्वाहा ।।

इदमग्निवाय्वादित्येभ्य: प्राणापानव्यानेभ्य:- इदं न मम ।।४।।

ओं आपो ज्योति रसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरों स्वाहा ।।५।।

ओं या मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते ।हवन की विधि

तया मामद्य मेद्याऽग्ने मेधाविंन कुरु स्वाहा ।।६।।

ओं विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव । यद्भद्रं तन्न आ सुव स्वाहा ।।७।।

ओं अग्ने नय सुपथा राये अस्मान् विश्वानि देव वयुनानि विद्वान् ।

युयोध्यसंज्जुहुराणमेनो भूयिष्ठां ते नम उक्तिं विधेम स्वाहा ।।८।।

इस मन्त्र से तीन पूर्णाहुति अर्थात एक-एक बार पढके एक-एक करके तीन आहुति देवे ।

पूर्णाहुति मन्त्र

ओं सर्वं वै पूर्णं स्वाहा ।

स्थालीपाक की आहुति पूर्णिमा के दिन

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं अग्निषोमाभ्यां  स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।

अमावस्या के दिन

ओं अग्नये स्वाहा ।

ओं इन्द्राग्नीभ्यां स्वाहा ।

ओं विष्णवे स्वाहा ।

यज्ञ को बढाया जा सकता है । आप यज्ञ को बढाने के लिए गायत्री मंत्र, विश्वानि देव मंत्र, ईश्वरस्तुति  प्रार्थना, महामृत्युंजय मंत्र  आदि के मंत्रो द्वारा यज्ञ को बढ़ाया जा सकता है ।



MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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Tuesday, July 2, 2019

ॐ श्री गणेश स्तोत्र: हिंदी काव्यात्मक

ॐ श्री गणेश स्तोत्र: हिंदी काव्यात्मक

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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नारद उवाच:

पार्वतीनन्दन देवदेवता,  श्री गणेश नमस्कार।

करूं प्रणाम तुम्हे शीश नवाऊं विनती बारम्बार॥

आयु की कामना अर्थ की सिद्धि भक्त स्मरण करे।

जय जय गणपति गणेश जी विघ्न सभी पल दूर करे॥


प्रथम वक्रतुण्ड नाम तुम्हारा एकदंत दूजा।

कृष्णपिंगाक्ष, गजवक्त्र चतुर्थ लम्बोदर पूजा॥

छठा विकट विघ्नराजेंद्र सप्तम ध्रूमवर्ण आंठवा।

भालचंद्र, विनायक, गणपति गजानन बारहवां॥  


इन नामों का पाठ करे जो त्रिसंध्या निशदिन।

हे प्रभु उसे कभी कष्ट न होवे दूर करो दुर्दिन॥

विद्याभिलाषी विद्या दे दो धनाभिलाषी धन।

पुत्र की इच्छा पुत्र मिले मोक्ष मुमुक्षु मन॥


जो जन गणपति स्तोत्र जपे छह माह पूरित मना।

एक वर्ष जपे सिद्धि मिलती नहीं संदेह तना॥

जो जन लिखकर अष्ट ब्राह्मण इसको अरिपित करे।

मिले कृपा गणपति गणेश की विद्या सभी वो वरे॥


नारद मुख जो हस्त लिखित वाणी श्री गणेश।

इति गणेश स्तोत्र पूरित संकटनाशन गणेश॥

दास विपुल स्तोत्र काव्य में गाया अब तो कृपा करो।

हे गणेश रिद्धि सिद्धि के दाता भक्तन दया करो॥


Monday, July 1, 2019

बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार

बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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मित्रो एक प्रश्न है कि क्या हम अलग अलग बीज मंत्रो को मिला सकते है? और अगर यदि मिला सकते है तो कौन कौन सा बीज मंत्र है जिसको हम एक साथ जप सकते है। 

 

बीज मंत्रो की ऊर्जा अनन्त है और रहस्यो से भरी है। परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो या फिर मनुष्य योनी।  बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है। बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है।  हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है।  सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है।  हिन्दू धरम में सबसे बड़ा बीज मंत्र ” ॐ ” है।  अन्य शब्दों में बीज मंत्र किसी भी वैदिक मंत्र का वह लघु रूप है जिसे मंत्र के साथ प्रयोग करने पर वह उत्प्रेरक का कार्य करता है। | बीज मंत्रोंको सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है। 

 

बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है |

 

बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है :- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं ,  ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है।  उपरोत्क सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है। अब यह प्रमाणित हो चुका है कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान की अनेक नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं। अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान क्रियाशील रहते हैं। मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं जिन्हें 'धी' ऊर्जा कहते हैं। जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है।

 

आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है। मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है तथा मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है। मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है। मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है। रोग निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है। मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है। शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है। मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं। मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं


ह्रीं बीज मंत्र: ह्रीं माया बीज है जिसमे की ह से शिव , र से प्रकृति , ईकार से महामाया , नाद से विश्वमाता , बिंदु से दुख हर्ता। अतः इस बीज मंत्र का ऊर्जा विचार और आह्वान हुआ कि हे शिव युक्त प्रकृति रूप में महामाया मेरे दुख का हरण कीजिये। 


श्रीं बीज मंत्र: यह महालक्ष्मी का बीज मंत्र है। यह सौम्य ऊर्जा से सम्बंधित है । इसमें श से महालक्ष्मी र से धन ऐशवर्य ईकार से तुष्टि और बिंदु से दुखहरन की ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह बीज मंत्र सिर्फ यही तक सीमित नही है अपितु हमारे लिए एक अत्यंत रहस्यमयी महाविद्या श्री विद्या के द्वार तक ले जाता है । 

 


ह्रौं बीज मंत्र: यह शिव बीज है इसमें ह से शिव का आहवान होता है औ से सदाशिव जो कि शिव का अत्यंत शक्तिशाली रूप है।और  अनुस्वार है दुख हरण । यह बीज मंत्र जितना सामान्य लिखने में है। वास्तव में उतना ही ऊर्जा क्षमता और रेहजयो से भरा भी है। यह बीज मंत्र हमारे लिए बहुत ही उच्च विद्या महामृत्युंजय विद्या के द्वार खोलता है जिसे कहा जाता है मृत संजीवनी महामृत्युंजय विद्या। वह विद्या जिसका अंश भी यदि प्राप्त हो जाये तो साधक को  किसी भी तरह की समस्या से ऊपर ऊथकर किसी भी प्रकार की मृत स्थिति चाहे वह रिश्ता हो या जीवन की कोई और स्थिति, को पुनः स्थापित करने का सामर्थ्य देता है।

 

भं बीज मंत्र: भं बीज भैरव बीज है। भ से भैरव और अनुस्वार से दुख हरण। इसकी ऊर्जा उग्र है और तँत्र में इसका बहुत प्रयोग भी होता है।

 

क्रीं बीज मंत्र:यह बीज काली बीज है। इस बीज मंत्र में क से काली र से ब्रह्म ईकार से महामाया आदिशक्ति और बिंदु से दुखहरन अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ ब्रह्मशक्ति सम्पन्न महामाया काली मेरे दुखो के हरण करें। यह बीज मंत्र अत्यंत ही उग्र ऊर्जा से भरा है इसके प्रयोग भी बहुत है बहुत से मानसिक विकारों को पूर्ण रूपेण डोर करने की क्षमता है इस बीज में। और तँत्र में तो यह बहुत ही उच्च स्थान रखता है। मारण कर्म तक इससे सम्पन्न किये जाते है।

 

ऐं बीज मंत्र:यह सरस्वती बीज मंत्र है। इसमे ए से सरस्वती का आह्वान होता है और अनुस्वार दुख हरण है।  इस बीज मंत्र सृष्टी ज्ञान को समाहित किए हुए है।

क्लीं बीज मंत्र: यह कामदेव बीज है।और वशीकरण सम्मोहन और अनन्त सौंदर्य भोग और उच्चता स्वयम में लिए हुए है। इसमे क से कामदेव ल से इंद्र ईकार से तुष्टि और  अनुस्वार सुख दाता है।

 

गं बीज मंत्र:यह गणेश बीज है इसमे ग से गणपति और बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।

 

हुम् बीज मंत्र:  यह अत्यंत शक्ति शाली अत्यंत ही उग्र प्रभावी बीज है। क्रीम की तरह ही इसका प्रयोग भी तँत्र कर्मो में बहुत होता है और मानसिक विकार दूर करने के लिए भी प्रयोग होता है। ह से शिव उ से भैरव और अनुस्वार से दुखहर्ता का आह्वान होता है।

 

ग्लौं बीज मंत्र: यह भी गणेश बीज है और अत्यंत प्रभावी भी। इसमें ग से गणेश ल से सृष्टी औ से तेज ओज और ऊर्जा बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।


स्त्रीं बीज मंत्र: स्त्रीं बीज मंत्र को माँ तारा का बीज मंत्र भी कहा जाता है  और इसका प्रयोग कई अन्य प्रयोगों में भी होता है। यह उग्र और सौम्य दोनो प्रकार से प्रयोग होता है। इसका अर्थ है स से मा दुर्गा का आह्वान त से तारन शक्ति  र से मोक्ष या मुक्ति और ईकार से महामाया आदिशक्ति का आह्वान होता है और अनुस्वार दुखहरन। अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ है माँ दुर्गा तारिणी रूप में अर्थात माँ तारा के रूप में आदिशक्ति की शक्ति से मेरे कष्टों से मुक्ति हो। और मेरे दुखो का हरण हो। यह मन्त्र तँत्र प्रयोगों में कष्ट मुक्ति के लिए अत्यधिक प्रयोग होता है।


क्ष्रौं बीज मंत्र:यह नरसिंह बीज है वे नृसिंह जो कि विष्णु का उग्र रूप है अतः इसकी ऊर्जा भी अत्यंत शीघ्र प्रभावी है और उग्र प्रभावी है। सौम्य हृदय वालो को बिना गुरु कृपा के उग्र प्रभावी प्रयोग नही करने चाहिए। इस बीज में क्ष से नृसिंह भगवान र से ब्रह्मशक्ति औ से शक्तिशाली और उर्ध्वकेशी भयानक रूप  और बिंदु से दुखहरण का आह्वान है। अर्थ हुआ नरसिंह भगवान जो कि उर्ध्वकेशी और उग्र रूप वाले है वे ब्रह्मशक्ति से युक्त हो मेरे दुखो का नाश करे। सामान्य साधक को इस बीज मंत्र के जाप से दूर रहना चाहिए।

 

शं बीज मंत्र : यह शंकर बीज है  श से शिव के शंकर रूप और बिंदु से  दुखहरन का आह्वान होता है| 


फ्रॉम बीज मंत्र: यह बीज मंत्र कलयुग के प्रत्यक्ष देवता भगवान हनुमान का बीज मंत्र है। इस मंत्र को उनकी कृपा प्राप्ति के लिए ध्यान किया जाता है। परन्तु इसकी विधियां अत्यंत गोपनीय है अतः गुरु कृपा से ही प्राप्त कर के जाप करे।

 


क्रोम बीज मंत्र :  यह भी काली बीज ही है  इसमें क काली  र ब्रह्म और औ  से भैरव रूपी शिव और बिंदु से दुखहरण शक्ति का आह्वान होता है यह मन्त्र बहुत ही ज़्यादा उग्र प्रभावी है अतः इसे तुच्छ कामनाओ या फिर किसी के नुकसान के लिए दुरुपयोग नही करना चाहिए और उत्कीलन कर के शुद्ध विचारो से कष्ट मुक्ति के लिए गुरु कृपा से ही प्रयोग करना चाहिए अन्यथा अर्थ के साथ साथ अनर्थ की भी संभावना प्रबल होती है दुरूपयोगो में।

 

दं बीज मंत्र: यह भी अत्यंत गोपनीय और रहस्यमयी बीज मंत्रो में से एक है अतः इसके बारे में गुरु ही शिष्य को बताने का अधिकारी है।


हं बीज मंत्र: यह आकाश बीज है । हमारे पंचतत्वों में से आकाशतत्व का शक्ति रूप है। इस बीज को हनुमान जी के मंत्रो में भी प्रयोग किया जाता है  और अकेले भी। इसको कई बीमारियो के इलाज मानसिक विकारों के इलाज डर भय आदि के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है।

 

यं बीज मंत्र: यह अग्नि बीज है। अभी प्रकार की अग्नि के आह्वान के लिए इस बीज का प्रयोग मान्य है ।  जैसे कि कालाग्नि, जठराग्नि इत्यादि।

 

रं बीज मंत्र: यह जल बीज है।

लं बीज मंत्र:  यह पृथ्वी बीज है।

भ्रं बीज मंत्र: यह भैरव बीज है।

 

सृष्टि-देवी माँ के बीज मंत्रो से उपचार!

खं*– हार्ट-टैक कभी नही होता है | उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), निम्न रक्तचाप (लो बी.पी.) कभी नही होता | * ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है। 

 

बीज मंत्रो से उपचार! * कां, * गुं, * शं

 कां*– पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आंतों की सूजन में लाभकारी।  *गुं*– मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी। 

*शं*– वाणी दोष, स्वप्न दोष, महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार औेर हर्निया आदि रोगों में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * घं, * ढं

घं* – काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के दुष्प्रभाव के कारण जनित रोग-विकार को शांत करने में सहायक।

ढं*– मानसिक शांति देने में सहायक। अप्राकृतिक विपदाओं जैसे मारण, स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * पं, * बं, * यं, * रं

पं*– फेफड़ों के रोग जैसे टी.बी., अस्थमा, श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी।

बं*– शूगर, वमन, कफ, विकार, जोडों के दर्द आदि में सहायक।

यं*– बच्चों के चंचल मन के एकाग्र करने में अत्यत सहायक।

रं* – उदर विकार, शरीर में पित्त जनित रोग, ज्वर आदि में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * लं, * मं, * घं, * एं

लं*– महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म, उनके अनेक गुप्त रोग तथा विशेष रूप से आलस्य को दूर करने में उपयोगी।

मं*– महिलाओं में स्तन सम्बन्धी विकारों में सहायक।

धं* – तनाव से मुक्ति के लिए मानसिक संत्रास दूर करने में उपयोगी ।

ऐं*– वात नाशक, रक्त चाप, रक्त में कोलेस्ट्राॅल, मूर्छा आदि असाध्य रोगों में सहायक।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * द्वान्, * ह्रीं, * एं, * वं, * शुं

द्वां*– कान के समस्त रोगों में सहायक।

ह्रीं*– कफ विकार जनित रोगों में सहायक।

ऐं*– पित्त जनित रोगों में उपयोगी।

वं*– वात जनित रोगों में उपयोगी।

शुं*– आंतों के विकार तथा पेट संबंधी अनेक रोगों में सहायक।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * हुं, * अं, *

हुं*– यह बीज एक प्रबल एन्टीबॉयटिक सिद्ध होता है। गाल ब्लैडर, अपच, लिकोरिया आदि रोगों में उपयोगी।

अं* – पथरी, बच्चों के कमजोर मसाने, पेट की जलन, मानसिक शान्ति आदि में सहायक इस बीज का सतत जप करने से शरीर में शक्ति का संचार उत्पन्न होता है।

 

सावधानियां...

बीज मंत्रों से अनेक रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण करने की है। पौराणिक, वेद, शाबर आदि मंत्रों में बीज मंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं उठते-बैठते, सोते-जागते उस मंत्र का सतत् शुद्ध उच्चारण करते रहें। आपको चमत्कारिक रुप से अपने अन्दर अन्तर दिखाई देने लगेगा। यह बात सदैव ध्यान रखें कि बीज मंत्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को एक निश्चित लय और ताल से करने में है। बीज मंत्र में सर्वाधिक महत्व उसके बिन्दु में है और यह ज्ञान केवल वैदिक व्याकरण के सघन ज्ञान द्वारा ही संभव है। आप स्वयं देखें कि एक बिन्दु के तीन अलग-2 उच्चारण हैं। गंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है। गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है। गंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है। अर्थात इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्चारण हो रहा है।

 

सावधानियां...

कौमुदी सिद्धांत के अनुसार वैदिक व्याकरण को तीन सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है-:

1 - मोनुस्वारः

2 - यरोनुनासिकेनुनासिको तथा

3- अनुस्वारस्य ययि पर सवर्णे।

बीज मंत्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अन्तर को स्पष्ट किए बिना शुद्ध जाप असम्भव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता। इसलिए सर्वप्रथम किसी बौद्धिक व्यक्ति से अपने अनुकूल मंत्र को समय-परख कर उसका विशुद्ध उच्चारण अवश्य जान लें। अपने अनुरूप चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते-फिरते उठते-बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इसका उद्देश्य केवल शुद्ध उच्चारण एक निश्चित ताल और लय से नाड़ियों में स्पदन करके स्फोट उत्पन्न करना है।

नौ देवियाँ हमारी सर्व रोग रक्षक!

 भय दूर करने बाली शैलपुत्री ।

 स्मरण शक्ति बढ़ाने बाली ब्रह्मचारिणी ।

 हृदय रोग देवी चंद्रघंटा।

 रक्त शोधन देवी कुष्माण्डा।

 कफ रोग-नाशक देवी स्कंदमाता।

 कंठ रोग- शमन देवी कात्यायनी।

 मस्तिष्क विकार-नाशक देवी कालरात्रि।

 रक्त शोधक देवी महागौरी।

 बलबुद्धि बढ़ाने बाली देवी सिद्धिदात्री।

 

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...