Monday, April 23, 2018

भारत का सनातन या सनातन विज्ञान का भारत


भारत का सनातन या सनातन विज्ञान का भारत 

                                सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
                                                         

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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यह लेख उनके लिये है जो कहते हैं कि भारत में विज्ञान था ही नहीं, सनातन रूढीवादी और आज का विज्ञान विदेशियों की देन है। यह बात कुछ समय के सत्य दिखती है क्योकि विदेशी षडयंत्रों के कारण भारत के सब मूल विज्ञान की धरोहर जो संस्कृत में थी उसको नष्ट करने का पूरा प्रयास किया गया। हमारे सारे ग्रंथ विदेशी चुरा ले गये। सामान्य विज्ञान से लेकर गणित तक के सूत्र विदेशियों के नाम हो गये। क्या कारण है कि यूरोपियन देशों की सारी खोज तब आरम्भ होकर प्रकाश मे आई जब ब्रिटिश भारत में आये। 
यदि जरा सा भी दिमाग लगाओ तो पाओगे भारतीय मंदिर हजारों साल पुराने अभी तक खडे है। जबकि आधुनिक विज्ञान की देन एफिल टावर या शांति की देवी को नष्ट होने बचाने के लिये पूरी दुनिया जुटी है। दिल्ली का मेहरोली स्तम्भ जो 2000 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने बनवाया था। आज भी बिना जंग खडा है। बडे बडे विज्ञानी भी कुछ जान न पाये।  

चलिये इस पर कुछ वार्ता हो जाये। भारतीय भू भाग को सर्वप्रथम मानव की उत्पत्ति का स्थान माना जा सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं। भारतीय सनातन में वर्णित देवी देवताओ में शिवलिंग के और मंदिरों के अवशेष जो 9 हजार साल तक पुराने हैं अफ्रीका में पाये गये। जबकि आधुनिक विज्ञान मानव सभ्यता का जन्म 10,000 साल पूर्व ही मानता है। पूरी दुनिया पर विजय पानेवाली अमेरिकन एयरोनाटिकल साइंस एजेंसी (नासा) भी आज तक कितने भारतीय रहस्य नहीं सुलझा पाई है। कैलाश पर्वत की तो थाह तक नहीं ले पाई है। एवरेस्ट पर 7000 से अधिक लोग चढ गये पर उस से कितना नीचा कैलाश आज भी अजेय है। बुंदेलखंड के छतरपुर से 80 किमी दूर बाजना गांव के पास बने भीम कुंड की गहराई कोई नाप न पाया। जब कभी कोई संकट आता है तो इसका जल स्तर बढने लगता है। सुनामी के समय इसमें 15 मी ऊंची लहर उठी थी। उत्तराखंड राज्य अल्मोड़ा जिले के निकट कसार देवी” एक गाँव है | जो अल्मोड़ा क्षेत्र से 8 km की दुरी पर काषय (कश्यप) पर्वत में स्थित है | यह स्थान कसार देवी मंदिर” के कारण प्रसिद्ध है | यह मंदिर, दूसरी शताब्दी के समय का है । यह जगह अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र भी है। नासा के वैज्ञानिक चुम्बकीय रूप से इस जगह के चार्ज होने के कारण और प्रभावों पर जांच कर रहे है | पर अभी तक सिर्फ सिर पीट रहे हैं। ऐसे हवा में बिना आधार के खम्भों का मंदिर, कैलाश मंदिर सहित अनेको स्थान है जो नासा को मुंह चिढा रहे हैं। पर हम भारतीय अपने सामर्थ्य को न समझ कर अंधाधुंध बुराई देख्नें में व्यस्त हैं।

अरे अब मैं खुद चुनौती देता हूं कि यदि तुम पागल नहीं, हठी और शठ नहीं हो और किसी भी वर्ग जाति के मानव हो। चाहे कितने बडे वैज्ञानिक अथवा तर्क शास्त्री हो, चाहे नास्तिक हो, ईश से घृणा करते हो, आस्तिक हो तुमको उसकी शक्ति का अनुभव होकर रहेगा। सनातन विधि से विकसित सचल मन ध्यान विधियों मे से अपने मन की एक विधि को करना होगा बस। तुमको समय देना होगा। बिना समय कुछ नहीं। बीबी के साथ क्षणिक सुख लेते हो समय देते हो तब बच्चे पैदा होते हैं। कुछ भी कर्म करते हो समय देते हो। तो ईश के अनुभव हेतु समय तो देना ही होगा। किसी वैज्ञानिक प्रयोग हेतु 50 साल प्रतीक्षा कर सकते हो तो क्या ईश के अनुभव हेतु कुल 50 घंटे भी नहीं। आदमी के बनाये यंत्रो को विज्ञान की आंख कहते हो पर आदमी को नहीं।    

 अब अपने शरीर के सनातन विचार को देखो। यह विचार और ज्ञान एकदम सत्य और वैज्ञानिक है। आप अपने शरीर को वैज्ञाधात्मिक (वैज्ञानिक धन आद्यात्मिक), यह शब्द मैंने निर्मित किया है, तरीके से भी समझ सकते है। 
पहले आपने भोजन किया, वह कहाँ गया पेट मे जिसे हम अन्नमय कोष कहते हैं। यहाँ यह पचता है। 
पचने से क्या होता है हमको ऊर्जा मिलती है। तो इसे कहा अग्निमय कोष।
इस अग्नि से क्या होता है हमारे प्राण बचते है यानी ऊर्जा कहा गई। इसे प्राणमय कोष कहा।
जब प्राण बचे रहते है तो मनुष्य जगत के व्यवहार करता है। यानी मनोमय कोष। मन से भृमण और कर्म करता है।
मन जब मनमाना कार्य करता है तो उसको हमारी बुद्दी समझाती है कैसे कर्म करो। यानी बुद्दिमय कोष।
यह बुध्दि जिससे प्रेरित होती है और सदैव सत्य सलाह देती है। वह होता है आत्ममय कोष।
बौध्द इसके पर शून्य और दुःख मानते है। 
पर सनातन कहता है आनन्दमय कोष।
यहाँ पहुचकर मनुष्य स्वतः मस्त हो जाता है। सदैव आनन्दित रहता है। योगी का निवास सदा आनन्दमय कोष में ही रहता है।
          प्रायः मनुष्य की बुद्दी मन के नीचे रहती है तो मनुष्य मनमाना व्यवहार करता है पर कृष्ण के रथ के प्रतीक की भांति बुद्दी द्वारा मन को कस कर नियंत्रित करना चाहिए। अर्जुन और कृष्ण का रथ क्या समझाता है। अपनी दसो घोडे रूपी इंद्रियों को मन रुपी लगाम लगा कर बुद्धि रुपी कृष्ण द्वारा संचालित कर अर्जुन रूपी प्रयास के द्वारा लक्ष्य को संधान करो।

           हर छोटी छोटी बातों में विज्ञान जीवन रहस्य और संदेशो से भरा इस भारत की देन सनातन विश्व गुरू ऐसे ही नहीं बना। मैं कहता हूं आज भी है। विश्व की आधुनिक खोजों में प्रयोगशालायों मे कितने भारतीय ही अपना योगदान देते रहते हैं।
अत: मित्रों अपने देश अपनी संस्कृति (इसका मतलब पूर्व - मध्यकाल भारत या पोंगा होना न समझ लेना) और विज्ञान पर विश्वास करो। तब ही भारत देश प्रगति के मार्ग पर और तेजी से बढ सकेगा। 

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल
 

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