Tuesday, June 19, 2018

भाग- 7: एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा



एक वैज्ञानिक के विज्ञान और आध्यात्म पर अविश्वसनिय अनुभवों की स्वकथा भाग- 7  
 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल"खोजी" 



आपने भाग 1 से 6  में पढा किस प्रकार मां काली ने दर्शन देकर और सीने पर लात मारकर दीक्षा दे दी। जिसके बाद मैं रोज मरता रहा जीता रहा पर पाठ और जाप बंद न किया। मुरारी बापू ने भी हाथ जोडकर मुझे संभालने से इंकार कर दिया। बाद में एक तांत्रिक ने मुझे अपना चेला बनाने के चक्कर में कितने तंत्र किये पर बेइज्जत होकर भागा। अब यह सिद्द हो गया था कि कोई तंत्र शक्ति मेरा अहित तो नहीं कर सकती हैं। सब मां काली की देन थी। भटकते भटकते मैं स्वप्न और ध्यान के माध्यम और एक संत की भभूत के सहारे अपने गुरू तक पहुंचा। दीक्षा के पूर्व किस प्रकार ईश ने वाराणसी की अद्भुत यात्रा कराई। शिव दर्शन के साथ मस्ती में लखनऊ लौटा। बचपन की यादों में पिता जी का पिटाई उत्सव और कीडे मकोडे की भुनाई पर मुझे महामकडे के दर्शन। कैसे मैंनें अपना नाम देवीदास विपुल कर दिया। दीक्षा के बाद गुरू महाराज मेरी क्रिया पर विचलित होते थे। दो माह बाद जब बडे गुरू महाराज ने सर पर तीन बार हाथ मार कर भीषण शक्तिपात किया तो मेरी क्रिया बन्द हो गई। पर उनका आशीर्वाद भजान के रूप में दिखता रहा। एक सन्यासी का भी पुत्र प्राप्ति का प्रण टूट गया।

अब आगे .......................

शोध निष्कर्ष 

 

आगे बढने के पूर्व मैं अपने अनुभवो से निम्न निष्कर्ष निकालता हूं।

पहला सत्य - सनातन पूर्णतया: सत्य है। ग़ीता की वाणी को अनुभव किया जा सकता है। तुलसी की नवधा भक्ति “मंत्र जाप मोही दृढ विस्वासा।“ सत्य है। मंत्र जप सबसे सरल और सहज मार्ग है। नवार्ण मंत्र की महिमा और देवी पाठ की लीला अपार है जिसको प्रत्यक्ष देख सकते हैं। मैनें सन 1984 में हवन के साथ जाप आरम्भ किया और 7 वर्षों में मां ने कृपा की। बजरंग बली किसी की भी पूजा करो हमेशा सहायक होते हैं। बस उनको पुकारो तो। 

 

अत: मित्रों आप भी प्रभु प्राप्ति हेतु मंत्र जाप में जुट जाइये। हो सकता है इस ही जन्म में प्रभु कृपा कर दें। 

मेरे अनुभव से सिद्द हो गया है कि ईश्वर है है और है। हलांकि कुछ मूर्ख और उल्टी बुद्दी के तर्कशास्त्री बोलेगें यह मन का भ्रम है कल्पना है मनोविज्ञान है। तो उन गधों को मैं बोलना चाहता हूं कि आज की तारीख में मैं तुमको सनातन के शक्ति के अनुभव की चुनौती देता हूं कि ब्लाग पर दी समवैध्यावि अपने घर पर करो पर ईमानदारी से। यदि तुमको अनुभव न हो तो मुझे जो सजा देना चाहते हो दे देना। जीवन के हर कार्य हेतु समय तो देना ही पडता है। ईश अनुभव कोई फालतू नही कि तुमको बिना समय दिये बिना इच्छा के हो जायेगा।

 

वैज्ञानिकों को चुनौती  

 

वैज्ञानिकों तुम दुनिया के सबसे बडे मूर्ख हो। इंसान की बनाई वस्तु उपकरण और यंत्रों पर यकीन करते हो पर इंसान पर नहीं। कोई प्रयोग करने हेतु वर्षों दे सकते हो पर ईश प्राप्ति के अनुभव हेतु समय नहीं है। इस वैज्ञानिक की दुनिया के वैज्ञानिक और मूर्ख हाफकिन जो मर गया उसके प्रयोगों को चुनौती। उसको आवाज और बोलने का जरिया इस भारत की भूमि के एक धार्मिक सनातन साफ्ट्वेयर इंजिनियर ने दी थी। प्राय: जो अपंग़ होता है वह जानते हुये भी ईश को नहीं मानता है। 

 

बडे महाराज की तौलिया 

 

बडे गुरूदेव स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज मुम्ब्रा आश्रम से जा रहे थे। लोगों का रूदन ह्रदय विदारक था। मैंनें महाराज जी को कातर नेत्रों से देखा। महाराज जी ने अपनी हाथ की छोटी तौलिया मुझे प्रदान कर दी। लगभग 24 वर्ष हो गये वह तौलिया मेरे पास आज भी पूजा स्थल पर सुरक्षित है। कई बार धोना पडता है पर आज भी उसको सर पर रखकर साधन करूं तो तीव्र क्रिया होने लगती है। सर भारी और नशा आ जाता है। महाराज जी अब सूक्ष्म रूप में हैं। वर्ष 2008 में देह त्याग दी थी पर उनका तेज आज भी विद्यमान है। 

 

मां वैष्णो देवी ने 5 सेकेंड से बचाया। 

 

इसके बाद मई माह में मन किया वैष्णों देवी जाने का। लखनऊ से जाना था। छोटे भाई साहब भी अपनी पत्नी के साथ चलने को तैयार थे। मैं अवकाश भत्ता लेकर आया था। सर्कुलर बनाया था सेकेण्ड ए सी का। लखनऊ में त्रैन खचाखच पर मुझे जुगाड लगाने पर दो बर्थ जो केवल ऐलाट थी लखनऊ कोटे से। वो मुझे मिल गई। अब यह अंदर की बात है कैसी मिलीं। ऐसे ही लौटते पर मिल गई थी। 

 

 

बच्ची को पिठ्ठू पर बैठा कर 80 किलो की काया के साथ भाई जी “बस वह ऊपर है”  बहकाते हुये ले गये। मां के दर्शन के बाद सोंचा काल भैरव के दर्शन भी जरूरी हैं। पत्नि, पुत्री और छोटे भाई की बहू को छोड कर हम दोनों रात को दूसरी पहाडी की ओर चल दिये। जय माता दी नारा लगाते बढे। होता यह है कि लोग माता जी के मंदिर जाते जाते इतना थक जाते हैं कि भैरव के दर्शन नही करते हैं। यानी यात्रा अधूरी। क्योकिं भैरव को मां का आशीर्वाद मिला था कि जब तक देवी दर्शन के बाद भैरव के दर्शन न होंगे। फल पूरा न होगा। अत: हर देवी मंदिर में काल भैरव जरूर होते हैं। 

 

आगे बढे। अचानक तीव्र वारिश और बिजली गुल। अंधेरी रात कुछ दिखाई न दे पर माता जी का नाम ले भाई का हाथ पकदे चलते रहे। रूकने का सवाल ही नहीं बीबी बच्चे नीचे चल रहे है। उनका मोह। लोग भी इक्का दुक्का। अचानक बिजली आई। सामने देखा मात्र 5 फीट की दूरी पर खाई। जिसपर हम चल रहे थे। रूह कांप गई पर:

जाको राखे साईंया। मार सके न कोय॥

बाल न बांका कर सके। जो जग बैरी होय॥

मां ने फिर एक बार बचा लिया। नहीं तो यह कहानी सुनानेवाला कौन था। 

 

 

ट्रेन में गिरा पर चोट नहीं 

 

दिन चलते रहे कवि सम्मेलन मिलते रहे। 2004 में फिर लखनऊ गये। किसी बात पर पिता जी ने छोटे भाई को रात को घर से निकलने को बोल दिया। पिता जी को शक था छोटा भाई हमारे घर को हडप जायेगा। क्योकिं मां का स्कूल जब उनको दिया गया था तो यह वायदा था कि मां को हर महीने कुछ रुपये देंगे जेब खर्च हेतु पर ऐसा न हुआ था। अत: पिता जी कुछ दिनों से जिसके लिये हम सबको बचपन में पीटते थे। उसी को आज घर से निकलने को कह रहे है। मैंनें भाई का पक्ष लिया। पिता जी से लड गया। पता नहीं यह गलत था या सही वह तो देव जाने। फिर रात को पत्नि के साथ गोरखपुर निकल गया। बाद में पिता जी की म्रृत्यु 2006 में हो गई। पता नहीं उन्होने छोटे भाई में क्या देखा था कि फिर अक्सर निकलने को कह देते थे। सेकेंड ऐ.सी. में मोटे आदमी को चढना मुशकिल होता है। रात को घर की सोंचते सोंचते उतरते समय गिर गया। पर फिर मां का चमत्कार इतनी पतली साइड वाली चलने वाली पैसेज में बराबर फिट होता हुआ गिरा। कोई चोट नहीं। पिता जी अपने मन की बात किसी को बताते नहीं थे। मन ही मन घुटते रहते थे। 

 

अन्न से मन में विकार 

 

2005 में मैं अकेले एक गोष्ठी में शिलांग गया जहां भोजन की अपवित्रता हो गई। वहां का वातावरण कुछ ऐसा था कि मैं इतना सब ज्ञान होते हुये। जाप करते हुये भी मन में स्त्री को लेकर कलुष को बढते हुये देखता रहा। यह महा माया की लीला थी कि मैं मन में कलुष रहते हुये कभी फिसल न पाया। माता जी ने हमेशा बचाया। 

 

दार्जलिंग बंद 

 

इसी उहापोह में वर्ष 2008 में पुत्री ने बी.टेक. कर लिया। भयंकर मंदी के दौर में भी उसको कैपजेमिनी में नौकरी लग गई। उसके साथ वाले बिना नौकरी के कई दिनों तक रहे। हुआ यूं मैं परीक्षा लेने के बाद अवकाश यात्रा भत्ता लेकर नार्थ ईस्ट बागडोगरा सहित कई स्थानों पर होते हुये दार्जिलिंग पहुंचा कि पुत्री का ज्वाइनिंग का पोन संयोग वश मोबाइल पर मिल गया। किसी प्रकार 15 दिन बढाया। वह भी कहानी है। पर अचानक दार्जिलिंग बंद किसी प्रकार हम लोग एक गाडी में ठूसकर बाहर निकले। 

 

 राजकुमार का अपहरण 

 

ऐसे ही मैं 2004 या 5 में बंग्लोर गया। सुबह प्रसन्नता से विश्वेरैय्या साइस म्यूजिम गया। कोई भीद नहीं पूछा तो पता चला कि राजकुमार फिल्म एक्टर का अपहरण वीरप्पन ने कर लिया। जगह जगह आगजनी, प्रदर्शन, कोई सवारी न रूके। सब भागे जायें। किसी प्रकार पैदल कितने किलोमीटर डर के मारे पत्नि और बच्ची के साथ स्टेशन स्थित अपने होटल पहुंचा। यहां भी एक देवदूत मिल गया जो मुझे गलियों से गुजार कर ले आया। मैसोर की टीपू सुल्तान ट्रेन पर पथराव के बीच मैसूर के रेलवे गेस्ट हाउस के रूम नम्बर 2 में 2 दिन ठहरा। यहां भी एक कहानी हुई क्योकिं रूम नम्बर 1 से 6 पहले महल थे। जिनकी 22 फीट की ऊंची छत पर 10 फीट की राड से लटके पंखे और 19 फीट की खिडकी पर रात को फहराते परदे। कुल मिलाकर भुतहा महौल। मेरा सुझाव है आप कभी मैसूर जाये तो रेलवे गेस्ट हाउस के इन कमरों में अवश्य ठहरें। यहां भी संयोग देखे वर्ष 1978-79 में लखनऊ विश्वविद्यालय के मेरे क्लास मेट शर्मा जी मिल गये। पहिचान हुई और मुझे वह अपने घर ले गये। जहां मैं 2 दिन रूका। 

जय मां जगदम्बे। 

 

 मुम्बई की ऐतिहासिक वारिश 

 

26 जुलाई, 2005 की मुम्बई की बरसात जब एक मीटर बरसात लगातार हुई। कितने मरे। कार में घुटे। पर प्रभु कृपा से मेरी बिटिया सांताक्रुज से पैदल चेम्बूर पहुंची। जहां से एक वरिष्ठ अपनी बेटी के साथ उसको बचाकर अणुशक्ति नगर स्थित निवास पर रात 2 बजे लेकर आये। इस कार्य हेतु मैं श्री विनय कुमार कटियार और मित्र विनय पाठक (दोनों एन.पी.सी.) का शुक्रगुजार हूं। आजीवन ऋणी रहूंगा। 

 

कुछ इसी प्रकार दिन बीतते गये। माता जी की भी मृत्यु 2011 में हो गई। जीवन का एक पडाव और बीत गया। 

 

बेटी की बंगलौर में नौकरी 

 

बंगलौर में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा संचालित एक इकाई सितार, जो माइक्रो चिप्स बनाते हैं। वहां पर इंजीनियर की नौकरी निकली। मेरा विचार था कि महिलाओं के लिये सरकारी नौकरी दी बेस्ट। पुत्री ने विरोध के बावजूद मेरी बात मानकर आवेदन कर दिया। काल लेटर आ गया। क्या करें। कोई जानता नही। अचानक मुझे याद आया कि जब मैं नासिक में अखिल भारतीय एच.ए.एल. राजभाषा अधिकारी सम्मेलन में 10 जनवरी, 2010 को बतौर मुख्य अतिथि गया था तो वहां मेरी घनिष्ठ मुलाकात किसी श्री तेजस्वी प्रसाद गोस्वामीं से हुई थी। वे अकाउंट्स आफिसर हैं। उनको फोन किया। बोले स्वागत है। वहां के गेस्ट हाउस में आपका इंतजाम है। मैं वहीं मिलूंगा। खैर बंगलोर पहुंचे तो पता चला वह जरूरी काम से दिल्ली गये हैं। पर गेस्ट हाउस में ठहरने को मिल गया। दूसरे दिन साक्षात्कार हुआ। और फिर मुम्बई वापिस।

 

संयोग से मोबाइल खोला तो नौकरी 


इधर मेरी बेटी का मोबाइल के बटन खराब हो गये थे। अत: मोबाइल ऐसे ही चल रहा था, कभी बंद कभी चालू। सितार में साक्षात्कार के एक साल हो रहे थे। कोई संदेश नहीं। एक दिन बेटी ने मोबाइल आन किया तो देखा सितार से एस एम एस आया हुआ है कि क्या आप ज्वाइन करेंगी। किस्मत से ज्वाइनिंग पीरियड नहीं बीता था। सितार फोन किया। ईमेल से सब फार्म मिले। जवाइनिंग में मात्र 15 दिन। क्योकिं 15 दिन ऐसे ही निकल गये। इन 15 दिनों में मुख्य अस्पताल से मेडिकल फिटनेस लेना है। मुम्बई में राज्य सरकार का अस्पताल जे.जे. है वहां से मिलेगी फिटनेस, यही मालूम पडा महापालिका के अस्पताल से। 3 दिन और बीते। बिना मेडिकल ज्वाइनिंग नहीं होगी। क्या करें। अपने मित्र नवाब मलिक की याद आई। वे पूर्व राज्य मंत्री और एन.सी.पी. के प्रवक्ता। यानि कद्दावर नेता शरद पवार के आदमी। वहां पहुंचे। उन्होने जे जे के डीन डाक्टर लहाने को फोन लगाया और बोला मेरे आदमी को मेडिकल फिटनेस चाहिये। वहां डाक्टर लहाने ने चीफ सर्जन डा पाटिल से कहा और 3 दिन बाद 7 मेडिकल यूनिटस से फिटनेस मिलकर प्रमाण पत्र हाथ में। 

 

खैर बंगलौर गये। वहां श्री गोस्वामी की सुपर आवभगत से दिल प्रसन्न हुआ और वे मेरी बेटी के लोकल गार्जियन के रूप में दर्ज हो गये। आप सोंचे एक अंजान जगह पर गोस्वामी जी कैसे मिले। जैसे माता जी ने एक साल पहले रूप रेखा बनाकर जैसे रख दी थी। 

 

 जब भगवान से मिलने घर से निकला 

 

 मुझे याद आती है जब मैं करीबन 5 साल का था। स्वभाव से पेटू। हमारे साथ एक मामा रहा करते थे। राकेश जौहरी, सबसे छोटे मामा, जो बहन से कुछ बडे थे। पढने लिखने में मन नहीं लगता। दिन भर आवारा गर्दी और लफ्फाजेबाजी। पिता जी से बहुत डरते थे। अब नहीं है अत: उनके चर्चे करना ठीक नहीं। बस हमेशा बोला करते थे वह दूर चांद देखो जमीन पर हैं। वहां काशमीर है जहां चारो तरफ कमल के फूल है। बस फूल तोडो उसके नीचे चिलगोजा लगा होता है बस खाओ। एक जानवर होता है चमरोर चमर गिद्धा उसका रूप बताया करते थे। हाथी चिंघाड धोतडू भयंकर होता है। आसमान से पानी तब बरसता है जब देवता और राक्षस लडते हैं तो उनके पंजो से आसमान में छेद हो जाता है तब उसमें से पानी टपकता है। वगैरह। 

 

आखिर एक दिन मैं दोपहर को मैं घर से निकल पडा। आज आसमान को पकड कर रहूंगा। इधर घर से बच्चा गायब माता जी ने चूल्हे पर पानी डाल दिया रोवा राई मच गई। हाय मेरा बच्चा कौन ले गया। उधर मैं चला जा रहा था। घर से कई किलोमीटर आगे पहुंच गया शाम होने लगी। मुझे याद है तब किसी ने पूछा टिल्लू कहां जा रहे हैं। मैं बोला आसमान पकड कर भगवान से मिलने। वह बोला चलो हम भी चले और मुझे फुसला कर घर वापिस ला कर छोड दिया। तब माता जी ने चिपटा लिया। मामा को खूब डांट पडी बच्चों को बहकाते हो। 

 

कुछ ऐसे ही दिन बीतते गये। कब पढाई पूरी की और मुम्बई आकर मुम्बईकर हो गया। जिसने मुझे नाम. दाम. शोहरत के साथ अमूल्य वस्तु दी। जो मेरे गुरू महाराज।

 

क्या यह संयोग था। 

 

वर्ष 1995 में सेक्टर 4, वाशी के मकान मालिक डा. अनुराग श्याम भटनागर ने मकान बेचने की सोंची। मेरी हैसियत न थी। करीबन 75 हजार कम पद रहे थे। मैंने उनको सलाह दी थी। सर यह मकान सिद्ध हो चुका है। यह नहीं बताया कि देव दर्शन हो चुके हैं। आप इसे किसी धार्मिक आदमी को बेंचे। किसी मुस्लिम को बिल्कुल नहीं इसकी पवित्रता नष्ट हो जायेगी। क्योकिं मुस्लिम यानि बकरीद यानि खून खच्चर। पर नियति ऐसी उन्होने पडोस के शायद बंगला देशी था। कोई शाह मुस्लिम को बेच दिया। दो वर्ष के भीतर संयोगवश उनकी एक मात्र पुत्री को कैंसर हो गया और वह चल बसी। हो सकता है न भी हो पर मुझे यह मकान बिकने से जुडा दिखाई देता है। बाद में उनकी पत्नि जो एक बैक में हिंदी अधिकारी थीं। नौकरी छोडकर बडोदा इत्यादि चली गईं। शायद उनकी भी तबियत बिगड गई थी। अभी मालूम नहीं कहां हैं।


इसी तरह बढते गये। पहिचान होती गई और एक दिन एक पुलिस अधिकारी डा सत्यपाल सिंह से एक कार्यक्रम में मुलाकात हुई। उनका भाषण श्रीमदभग्वदगीता पर सुना। मंत्र मुग्ध हुआ। उनसे दोस्ती हो गई। वर्तमान में वे सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। भारतीयता के सच्चे पुजारी, सादा जीवन उच्च विचार वाले ऐसे पुलिस अधिकारी कम ही मिलते हैं। 

 

 

.............................. क्रमश: ........................

 

भाग 8 का लिंक



"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

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