Wednesday, July 25, 2018

भाग – 22 ईसाइयत का सत्य : धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी



भाग – 22 ईसाइयत का सत्य :
धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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चर्च, कलीसिया और गिरजाघर
हालाँकि भारत में, आजकल, "चर्च" नाम प्रचलित है, जिसे लोग सामान्यतः एक धार्मिक भवन समझते हैं, मगर ऐसा नहीं है, वास्तविक रूप में, चर्च, उस विशेष ईसाई समुदाय को अथवा उस लोगों के समूह को कहते हैं, इसके लिए सटीक हिंदी शब्दावली कलीसिया है। अंग्रेजी में, कलिसिया और गिरजाघर, दोनों को "चर्च" ही कहा जाता है। कलीसिया और गिरजाघर में अंतर समझने के लिए आप किसी देश के सांसद और संसद भवन का उदाहरण ले सकते हैं: "संसद", कुछ निर्वाचित सांसदों के समूह को कहा जाता है, जबकि संसद भवन, एक इमारत है, जिसमें संसद की बैठकें आयोजित होती हैं। उसी तरह से कलीसिया, लोगों के समूह को कहा जाता है, जबकि गिरजाघर एक भवन है, जिसमें धार्मिक गतिविधियाँ होती हैं। अंग्रेजी में, कलीसिया और गिरजाघर, दोनों को चर्च  ही कहा जाता है, हालाँकि, अधिकांश बार जब "चर्च" शब्द का उल्लेख होता है, तो संकेत, भवन पर नहीं, बल्कि कलीसिया पर होता है। उदाहरण के लिए, "कैथोलिक चर्च" का मतलब किसी कैथोलिक गिरजाघर से नहीं, कैथोलिक कलीसिया से है।

 
इस बात से सहमत हैं कि ईसा ने केवल एक ही कलीसिया की स्थापना की थी, किंतु अनेक कारणों से ईसाइयों की एकता अक्षुण्ण नहीं रह सकी। फलस्वरूप आजकल ईसाई धर्म के बहुत से कलीसिया अथवा संगठन वर्तमान हैं जो एक दूसरे से पूर्णतया स्वतंत्र हैं। उनका वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है : 


वैटिकन सिटी का संत पीटर्स बसिलिका, विश्व का मौजूद सबसे विशाल चर्च भवन(गिरजा), तथा रोमन कैथोलिक कलीसिया का मुख्यालय। इसका संगठन सबसे सुदृढ़ है एवं विश्व भर के अधिकांश ईसाई इसके सदस्य हैं। रोमन कैथोलिक रोम के पोप को सर्वोच्च धर्मगुरु मानते हैं। ये स्वयं ही एक चर्च है।

 
प्राच्य कलीसिया पूर्व यूरोप के प्राय: सभी ईसाई जो शताब्दियों पहले रोम से अलग हो गए हैं, अधिकांश आर्थोदोक्स (Orthodox) कहलाते हैं। ऑर्थोडॉक्स रोम के पोप को नहीं मानते, पर अपने-अपने राष्ट्रीय धर्मसंघ के पैट्रिआर्क को मानते हैं और परम्परावादी होते हैं। हर राष्ट्र का सामान्यतः अपना अलग ही चर्च होता है।
प्रोटेस्टैंट कलीसिया यह 16वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ था। प्रोटेस्टेंट किसी पोप को नहीं मानते और इसके बजाय बाइबिल में पूरी श्रद्धा रखते हैं। इस साम्प्रदाय में कई चर्च आते हैं।
ऐंग्लिकन कलीसिया यद्यपि प्रारंभ ही से ऐंग्लिकन चर्च पर प्रोटेस्टैंट धर्म का प्रभाव पड़ा, फिर भी अधिकांश ऐंग्लिकन ईसाई अपने को प्रोटेस्टैंट नहीं मानते।
चर्च (अंग्रेज़ी: Church) शब्द यूनानी विशेषण का अपभ्रंश है जिसका शाब्दिक अर्थ है "प्रभु का"। हिन्दी बोलचाल में, इस विदेशज शब्द को अंग्रेज़ी से लिया गया है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में, ईसाई धर्मस्थल के भवन के लिए उपयोग किया जाता है। वास्तव में, ईसाई समुदाय में, "चर्च" शब्द को दो अर्थों में प्रयुक्त किया जाता है:
  1. प्रभु का भवन, यानी धर्मस्थल, अर्थात् जिसे हिंदी में गिरजाघर कहा जाता है।
  2. तथा दूसरा अर्थ है, कुछ विशेष ईसाइ विश्वासियों का संगठन या समूह, जिसे हिंदी में कलीसिया कहा जाता है।
यह यूनानी बाइबिल के 'एक्लेसिया' शब्द का विकृत रूप है; बाइबिल में इसका अर्थ है - किसी स्थानविशेष अथवा विश्व भर के ईसाइयों का समुदाय। बाद में यह शब्द गिरजाघर के लिये भी प्रयुक्त होने लगा। यहाँ पर संस्था के अर्थ में चर्च पर विचार किया जायगा।


यीशु या यीशु मसीह (इब्रानी :येशुआ; अन्य नाम:ईसा मसीह, जीसस क्राइस्ट), जिन्हें नासरत का यीशु भी कहा जाता है, ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। ईसाई लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर का तृतीय सदस्य मानते हैं। ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल के नये नियम (ख़ास तौर पर चार शुभसन्देशों: मत्ती, लूका, युहन्ना, मर्कुस पौलुस का पत्रिया, पत्रस का चिट्ठियां, याकूब का चिट्ठियां, दुनिया के अंत में होने वाले चीजों का विवरण देने वाली प्रकाशित वाक्य) में दिये गये हैं। यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है।

 
बाइबिल के अनुसार ईसा की माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाज़रेथ गाँव की रहने वाली थीं। उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी यूसुफ नामक बढ़ई से हुई थी। विवाह के पहले ही वह कुँवारी रहते हुए ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गईं। ईश्वर की ओर से संकेत पाकर यूसुफ ने उन्हें पत्नीस्वरूप ग्रहण किया। इस प्रकार जनता ईसा की अलौकिक उत्पत्ति से अनभिज्ञ रही। विवाह संपन्न होने के बाद यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम नामक नगरी में जाकर रहने लगे, वहाँ ईसा का जन्म हुआ। शिशु को राजा हेरोद के अत्याचार से बचाने के लिए यूसुफ मिस्र भाग गए। हेरोद 4 ई.पू. में चल बसे अत: ईसा का जन्म संभवत: 4 ई.पू. में हुआ था। हेरोद के मरण के बाद यूसुफ लौटकर नाज़रेथ गाँव में बस गए। ईसा जब बारह वर्ष के हुए, तो यरुशलम में तीन दिन रुककर मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया। लूका 2:47 और जिन्होंने उन को सुना वे सब उनकी समझ और उनके उत्तरों से चकित थे। तब ईसा अपने माता पिता के साथ अपना गांव वापिस लौट गए। ईसा ने यूसुफ का पेशा सीख लिया और लगभग 30 साल की उम्र तक उसी गाँव में रहकर वे बढ़ई का काम करते रहे। बाइबिल (इंजील) में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई ‍ज़िक्र नहीं मिलता। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली। डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा आया। 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे।

 
तीस साल की उम्र में ईसा ने इस्राइल की जनता को यहूदी धर्म का एक नया रूप प्रचारित करना शुरु कर दिया। उस समय तीस साल से कम उम्र वाले को सभागृह मे शास्त्र पढ़ने के लिए और उपदेश देने के लिए नही दिया करते थे। उन्होंने कहा कि ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है और उस वक़्त के वर्त्तमान यहूदी धर्म की पशुबलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता। यहूदी ईश्वर की परमप्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी मुल्कों को प्यार करता है। इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिए और क्षमा करना सीखना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं। यहूदी धर्म में क़यामत के दिन का कोई ख़ास ज़िक्र या महत्त्व नहीं था, पर ईसा ने क़यामत के दिन पर ख़ास ज़ोर दिया - क्योंकि उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलेगा। ईसा ने कई चमत्कार भी किए।


यहूदियों के कट्टरपन्थी रब्बियों (धर्मगुरुओं) ने ईसा का भारी विरोध किया। उन्हें ईसा में मसीहा जैसा कुछ ख़ास नहीं लगा। उन्हें अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था। ख़ुद को ईश्वरपुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था। इसलिये उन्होंने उस वक़्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को इसकी शिकायत कर दी। रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर रहता था। इसलिये कट्टरपन्थियों को प्रसन्न करने के लिए पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मौत की दर्दनाक सज़ा सुनाई।

 
बाइबल के मुताबिक़, रोमी सैनिकों ने ईसा को कोड़ों से मारा। उन्हें शाही कपड़े पहनाए, उनके सर पर कांटों का ताज सजाया और उनपर थूका और ऐसे उन्हें तौहीन में "यहूदियों का बादशाह" बनाया। पीठ पर अपना ही क्रूस उठवाके, रोमियों ने उन्हें गल्गता तक लिया, जहां पर उन्हें क्रूस पर लटकाना था। गल्गता पहुंचने पर, उन्हें मदिरा और पित्त का मिश्रण पेश किया गया था। उस युग में यह मिश्रण मृत्युदंड की अत्यंत दर्द को कम करने के लिए दिया जाता था। ईसा ने इसे इंकार किया। बाइबल के मुताबिक़, ईसा दो चोर के बीच क्रूस पर लटकाया गया था।

 
ईसाइयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय ईसा मसीह ने सभी इंसानों के पाप स्वयं पर ले लिए थे और इसलिए जो भी ईसा में विश्वास करेगा, उसे ही स्वर्ग मिलेगा। मृत्यु के तीन दिन बाद ईसा वापिस जी उठे और 40 दिन बाद सीधे स्वर्ग चले गए। ईसा के 12 शिष्यों ने उनके नये धर्म को सभी जगह फैलाया। यही धर्म ईसाई धर्म कहलाया।


 
हेरोदेस राजा के दिनों में जब यहूदिया के बैतलहम में यीशु का जन्म हुआ, तो देखो, पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे। कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है? क्योंकि हम ने पूर्व में उसका तारा देखा है और उस को प्रणाम करने आए हैं। यह सुनकर हेरोदेस राजा और उसके साथ सारा यरूशलेम घबरा गया। और उस ने लोगों के सब महायाजकों और शास्त्रियों को इकट्ठे करके उन से पूछा, कि मसीह का जन्म कहाँ होना चाहिए? उन्होंने उस से कहा, यहूदिया के बैतलहम में; क्योंकि भविष्यद्वक्ता के द्वारा यों लिखा है। कि हे बैतलहम, जो यहूदा के देश में है, तू किसी रीति से यहूदा के अधिकारियों में सब से छोटा नहीं; क्योंकि तुझ में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल की रखवाली करेगा। तब हेरोदेस ने ज्योतिषियों को चुपके से बुलाकर उन से पूछा, कि तारा ठीक किस समय दिखाई दिया था। और उस ने यह कहकर उन्हें बैतलहम भेजा, कि जाकर उस बालक के विषय में ठीक ठीक मालूम करो और जब वह मिल जाए तो मुझे समाचार दो ताकि मैं भी आकर उस को प्रणाम करूं। वे राजा की बात सुनकर चले गए और देखो, जो तारा उन्होंने पूर्व में देखा था, वह उन के आगे आगे चला और जंहा बालक था, उस जगह के ऊपर पंहुचकर ठहर गया॥ उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। और उस घर में पहुंचकर उस बालक को उस की माता मरियम के साथ देखा और मुंह के बल गिरकर उसे प्रणाम किया; और अपना अपना यैला खोलकर उसे सोना और लोहबान और गन्धरस की भेंट चढ़ाई। और स्वप्न में यह चितौनी पाकर कि हेरोदेस के पास फिर न जाना, वे दूसरे मार्ग से होकर अपने देश को चले गए॥ उन के चले जाने के बाद देखो, प्रभु के एक दूत ने स्वप्न में यूसुफ को दिखाई देकर कहा, उठ; उस बालक को और उस की माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझ से न कहूं, तब तक वहीं रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूंढ़ने पर है कि उसे मरवा डाले। वह रात ही को उठकर बालक और उस की माता को लेकर मिस्र को चल दिया। और हेरोदेस के मरने तक वहीं रहा; इसलिये कि वह वचन जो प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था कि मैं ने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया पूरा हो। जब हेरोदेस ने यह देखा, कि ज्योतिषियों ने मेरे साथ ठट्ठा किया है, तब वह क्रोध से भर गया; और लोगों को भेजकर ज्योतिषियों से ठीक ठीक पूछे हुए समय के अनुसार बैतलहम और उसके आस पास के सब लड़कों को जो दो वर्ष के, वा उस से छोटे थे, मरवा डाला। तब जो वचन यिर्मयाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा गया था, वह पूरा हुआ, कि रामाह में एक करूण-नाद सुनाई दिया, रोना और बड़ा विलाप, राहेल अपने बालकों के लिये रो रही थी और शान्त होना न चाहती थी, क्योंकि वे हैं नहीं॥ हेरोदेस के मरने के बाद देखो, प्रभु के दूत ने मिस्र में यूसुफ को स्वप्न में दिखाई देकर कहा। कि उठ, बालक और उस की माता को लेकर इस्राएल के देश में चला जा; क्योंकिं जो बालक के प्राण लेना चाहते थे, वे मर गए। वह उठा और बालक और उस की माता को साथ लेकर इस्राएल के देश में आया। परन्तु यह सुनकर कि अरिखलाउस अपने पिता हेरोदेस की जगह यहूदिया पर राज्य कर रहा है, वहां जाने से डरा; और स्वप्न में चितौनी पाकर गलील देश में चला गया। और नासरत नाम नगर में जा बसा; ताकि वह वचन पूरा हो, जो भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा कहा गया था, कि वह नासरी कहलाएगा॥


 
और बालक बढ़ता और बलवन्त होता और बुद्धि से परिपूर्ण होता गया; और परमेश्वर का अनुग्रह उस पर था। उसके माता-पिता प्रति वर्ष फसह के पर्व में यरूशलेम को जाया करते थे। जब वह बारह वर्ष का हुआ, तो वे पर्व की रीति के अनुसार यरूशलेम को गए। और जब वे उन दिनों को पूरा करके लौटने लगे, तो वह लड़का यीशु यरूशलेम में रह गया; और यह उसके माता-पिता नहीं जानते थे। वे यह समझकर, कि वह और यात्रियों के साथ होगा, एक दिन का पड़ाव निकल गए: और उसे अपने कुटुम्बियों और जान-पहचानों में ढूंढ़ने लगे। पर जब नहीं मिला, तो ढूंढ़ते-ढूंढ़ते यरूशलेम को फिर लौट गए। और तीन दिन के बाद उन्होंने उसे मन्दिर में उपदेशकों के बीच में बैठे, उन की सुनते और उन से प्रश्न करते हुए पाया। और जितने उस की सुन रहे थे, वे सब उस की समझ और उसके उत्तरों से चकित थे। तब वे उसे देखकर चकित हुए और उस की माता ने उस से कहा; हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे। उस ने उन से कहा; तुम मुझे क्यों ढूंढ़ते थे? क्या नहीं जानते थे, कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है? परन्तु जो बात उस ने उन से कही, उन्होंने उसे नहीं समझा। तब वह उन के साथ गया और नासरत में आया और उन के वश में रहा; और उस की माता ने ये सब बातें अपने मन में रखीं॥ और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया॥


 
छठवें महीने में परमेश्वर की ओर से जिब्राईल स्वर्गदूत गलील के नासरत नगर में एक कुंवारी के पास भेजा गया। जिस की मंगनी यूसुफ नाम दाऊद के घराने के एक पुरूष से हुई थी: उस कुंवारी का नाम मरियम था। और स्वर्गदूत ने उसके पास भीतर आकर कहा; आनन्द और जय तेरी हो, जिस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ है, प्रभु तेरे साथ है। वह उस वचन से बहुत घबरा गई और सोचने लगी, कि यह किस प्रकार का अभिवादन है? स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवती होगी और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना। वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा। मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरूष को जानती ही नहीं। स्वर्गदूत ने उस को उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा और परमप्रधान की सामर्थ तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।


 
यीशु ने और भी बहुत चिन्ह चेलों के साम्हने दिखाए, जो इस पुस्‍तक (बाईबल) में लिखे नहीं गए।  परन्तु ये इसलिये लिखे गए हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास कर के उसके नाम से जीवन पाओ।( यूहन्ना 20:30,31) यह बहुत अच्‍छे इंसान थे जिसके सिर पर हाथ वह धन्य हो जाता था येशु ने अपने जीवन में अनगिनत चमत्कार किये जो पृथ्वी पर  किसी और के लिए नामुमकिन थे

 
इस्लामी में यीशु
इस्लाम बाइबिल में ईसा मसीह को एक आदरणीय नबी (मसीहा) माना जाता है, जो ईश्वर ने इस्राइलियों को उनके संदेश फैलाने को भेजा था। क़ुरान में ईसा के नाम का ज़िक्र मुहम्मद से भी ज़्यादा है और मुसुल्मान ईसा के कुंआरी द्वारा जन्म में मानते हैं।

 
इस्लाम में ईसा मसीह महज़ एक नश्वर इंसान माना जाता है, सब नबियों की तरह और ईश्वर-पुत्र या त्रिमूर्ति का सदस्य नहीं, और उनकी पूजा पर मनाही है। उन्हें चमत्कार करने की क्षमता ईश्वर से मिली थी और ख़ुद ईसा मसीह में ऐसी शक्तियां नहीं मौजूद थीं। यह भी नहीं माना जाता है कि वे क्रूस पर लटके। इस्लामी परंपरा के मुताबिक़, क्रूस पर मरने के ब-वजूद, ईश्वर ने उन्हें सीधे स्वर्ग में उठाया गया था। सब नबियों की तरह, ईसा मसीह भी क़ुरान में एक मुस्लिम कहलाता है। क़ुरान के मुताबिक़, ईसा मसीह ने अपने आप को ईश्वर-पुत्र कभी नहीं माना और वे क़यामत के दिन पर इस बात का इंकार करेंगे। मुसुल्मानों की मान्यता है कि क़यामत के दिन पर, ईसा मसीह पृथ्वी पर लौटएगा और न्याय क़ैयाम करेगा।

 
क़ुरान में इसा का नाम 25 बार आया है। सुराह मरियम में इनके जन्म की कथा है और इसी तरह सुराह अलि इमरान में भी।
मुहम्मद के हदीसों में है कि "तमाम नबी भाई है और ईसा मसीह मेरे सबसे करीबी भाई है क्यूंकि मेरे और ईसा मसीह के दरमियान कोई नबी नही आया है"।

 
ईसा मसीह उनसे कहा, यों लिखा है; कि मसीह दु:ख उठाएगा और तीसरे दिन मरे हुओं में से जी उठेगा। और यरूशलेम से लेकर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी के नाम से किया जाएगा। तुम इन सब बातें के गवाह हो। और देखो, जिस की प्रतिज्ञा मेरे पिता ने की है, मैं उस को तुम पर उतारूंगा और जब तक स्वर्ग से सामर्थ न पाओ, तब तक तुम इसी नगर में ठहरे रहो॥ तब वह उन्हें बैतनिय्याह तक बाहर ले गया और अपने हाथ उठाकर उन्हें आशीष दी। और उन्हें आशीष देते हुए वह उन से अलग हो गया और स्वर्ग से उठा लिया गया। और वे उस को दण्डवत करके बड़े आनन्द से यरूशलेम को लौट गए। और लगातार मन्दिर में उपस्थित होकर परमेश्वर की स्तुति किया करते थे॥

 
यहूदी ईसा मसीह को न तो मसीहा मानते हैं न ईश्वर-पुत्र। वे अपने मसीहा का आज भी इंतज़ार करते हैं।

 
मसीही धर्म से निकला “ईसाई धर्म”—क्या परमेश्‍वर को स्वीकार है?
मान लीजिए कि आप अपनी एक तस्वीर बनवाते हैं। और जब आप देखते हैं कि चित्रकार ने आपकी तस्वीर हू-ब-हू आपकी तरह ही बनाई है तो आप खुशी से फूले नहीं समाते। फिर आप सोचने लगते हैं कि आपके मरने के बाद जब आपके बच्चे, पोते और पर-पोते आपकी तस्वीर देखेंगे तो फख्र से कहेंगे ‘यह हमारे पूर्वज की तस्वीर है।’


लेकिन ज़रा सोचिए कि आपकी तस्वीर का तब क्या हाल होगा जब आपका कोई पोता सोचने लगे कि तस्वीर में आपके बाल ठीक नहीं दिख रहे, और वह अपनी मर्ज़ी से बाल ठीक कर देता है। फिर कोई पर-पोता सोचता है कि आपकी नाक थोड़ी टेढ़ी है और वह उसे सीधी कर देता है। इसके बाद आपके पर-पोतों के पोते भी अपनी मन-मरज़ी से आपकी तस्वीर में ऐसे ही ढेरोंफेर-बदल” करते रहते हैं। क्या आखिर में ऐसी तस्वीर को देखकर आप कह सकेंगे कि यह मेरी ही तस्वीर है? अगर आपको पहले से ही पता होता कि आपकी तस्वीर की यह गत बननेवाली है तो आपको कैसा लगता? बेशक आपको बहुत गुस्सा आता।
दुख की बात है कि मसीही धर्म के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। इतिहास बताता है कि यीशु के प्रेरितों की मौत के बादमसीही धर्म” की तस्वीर ही बदल गई और आज का “ईसाई धर्म” इसी का बिगड़ा रूप है। बाइबल में पहले से ही बताया गया था कि धर्मत्यागी लोग सच्चे मसीही धर्म में घुसकर उसे भ्रष्ट कर देंगे।


इसाई लोग मानते हैं कि बाइबल के सिद्धांत कभी पुराने नहीं होते और इन्हें ज़िंदगी में लागू करना एकदम सही है। लेकिन दुनिया की पसंद को देखकर बाइबल की शिक्षाओं को बदलना सही नहीं। मगर ईसाई धर्म ने बाइबल की शिक्षाओं को बदलकर गलत काम किया है। कैसे? यह जानने के लिए आइए कुछ मिसालों पर ध्यान दें।


यीशु ने कहा था कि उसकी सरकार स्वर्ग में होगी और आनेवाले समय में दुनिया की सभी सरकारों को चूर-चूर करके उनका अंत कर देगा, और पूरी दुनिया पर हमेशा तक राज करेगी। (दानिय्येल 2:44; मत्ती 6:9, 10) उसने यह भी बताया था: “मेरा राज्य इस जगत का नहीं।” (यूहन्‍ना 17:16; 18:36) इसका मतलब है कि उसके राज्य का दुनिया की राजनीति से कोई ताल्लुक नहीं था। इसीलिए पहली सदी में उसके चेले राजनीति से एकदम दूर रहते थे, हालाँकि वे सरकारी कानूनों को मानते थे।


मगर चौथी सदी के आते-आते कुछ मसीही सोचने लगे, ना जाने यीशु मसीह कब दोबारा वापस आएगा और अपना राज शरू करेगा। किताब यूरोप—एक इतिहास (अंग्रेज़ी) कहती है “सम्राट कॉन्सटनटाइन से पहले मसीहियों ने राजनीति का सहारा लेकर अपना धर्म फैलाने के बारे में सोचा तक नहीं था। लेकिन बाद में झूठे मसीही, राजाओं के पक्के दोस्त बन गए।” उन्होंने राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। जी हाँ, ऐसे लोगों ने ही सच्चे मसीही धर्म की तस्वीर बिगाड़ दी। इन लोगों ने विश्‍वशक्‍ति रोम से दोस्ती करके झूठे मसीही धर्म (ईसाई धर्म) कोरोमन कैथोलिक” धर्म संगठन का रूप दे दिया।


ईसाई धर्म और राजनीति की इस दोस्ती का नतीजा क्या हुआ, इसके बारे में इनसाइक्लोपीडिया ग्रेट ऐजस्‌ ऑफ मैन बताती है: “एक वक्‍त था जब मसीहियों को सताया जाता था लेकिन सा.यु. 385 से (झूठे मसीही) ईसाई धर्म में रोमन कैथोलिक चर्च के पादरियों ने उनके धर्म का विरोध करनेवालों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। अब इनके पास उतना ही अधिकार आ गया था जितना सम्राटों के पास।” इसी के साथ ईसाई धर्म के ज़ुल्मों का दौर शुरू हुआ। अब वे शास्त्र से दलील देकर लोगों को यकीन दिलाने के बजाय तलवार की नोक पर कैथोलिक बनाने लगे। जगह-जगह घूमकर लोगों को प्रचार करनेवाले भोले-भाले, मसीही प्रचारकों की जगह, अब ताकत के नशे में चूर, खूँखार पादरी नज़र आने लगे। (मत्ती 23:9, 10; 28:19, 20) इतिहासकार एच. जी. वेल्स ने लिखा कि चौथी सदी के ईसाई धर्म (झूठे मसीहियों) की शिक्षाओं में और “यीशु नासरी की शिक्षाओं” के बीचज़मीन-आसमान का फर्क था।” ईसाई धर्म ने तो परमेश्‍वर और यीशु मसीह के बारे में बाइबल की शिक्षा को ही बदलकर रख दिया।


यीशु मसीह और उसके चेलों ने सिखाया था कि “एक ही परमेश्‍वर है: अर्थात्‌ पिता” और उसका नाम, यहोवा है। यह नाम बाइबल की प्राचीन हस्तलिपियों में करीब 7,000 बार आता है। (कुरिन्थियों 8:6; भजन 83:18) और जहाँ तक यीशु का सवाल है, उसे परमेश्‍वर ने बनाया था। कुलुस्सियों 1:15 में कैथोलिक डूए वर्शन बाइबल कहती है कि यीशु “सारे प्राणियों में पहलौठा है।” खुद यीशु ने भी कहा था: “पिता मुझ से बड़ा है।”—यूहन्‍ना 14:28.


लेकिन तीसरी सदी के आते-आते कुछ जाने-माने पादरी त्रियेक की शिक्षा देने लगे। क्योंकि उन्हें यूनानी तत्त्वज्ञानी प्लेटो की त्रिदेव की शिक्षा बहुत पसंद थी। नतीजा यह हुआ कि यीशु को, परमेश्‍वर यहोवा के बराबर दर्जा दिया जाने लगा और परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति या सामर्थ को त्रियेक का तीसरा व्यक्‍ति बना दिया गया।
ईसाई धर्म में त्रियेक की शिक्षा जोड़ने के बारे में न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया कहती है: “तीसरी सदी के अंत तक न तो मसीहियों को यह शिक्षा मिली थी कि ‘तीन ईश्‍वर मिलकर एक परमेश्‍वर बना है।’ ना ही वे इसे मानते थे। लेकिन चौथी सदी की शुरूआत में यह शिक्षा मशहूर होने लगी थी।”


इसी तरह दी इनसाक्लोपीडिया अमैरिकाना कहती है: “चौथी सदी में ईसाई धर्म में जो त्रियेक की शिक्षा दी जा रही थी वह शिक्षा पहली सदी के मसीहियों ने कभी नहीं दी थी। असल में यह बाइबल की शिक्षा के एकदम खिलाफ थी।” दी ऑक्सफर्ड कम्पैनियन टू द बाइबल कहती है कि त्रियेक की शिक्षा उन शिक्षाओं में से एक है जिसे “ईसाई धर्म में जोड़ दिया” गया था। लेकिन ईसाई धर्म में सिर्फ त्रियेक की शिक्षा ही जोड़ी नहीं गई, बल्कि और भी कई झूठी शिक्षाओं को जोड़ दिया गया था।


ईसाइत के अनुसार आज दुनिया में हर कहीं लोग यही मानते हैं कि इंसान मर जाता है लेकिन उसकी आत्मा ज़िंदा रहती है। लेकिन क्या आपको पता है कि चर्च की यह शिक्षा भी बाइबल की शिक्षा नहीं है बल्कि बाद की सदियों में ईसाई धर्म की शिक्षाओं में जोड़ी गई थी? बाइबल बताती है किमरे हुए कुछ भी नहीं जानते,” वे अचेतन हैं, वे मौत की गहरी नींद में सो रहे हैं और खुद यीशु भी इस बात को मानता था। (सभोपदेशक 9:5; यूहन्‍ना 11:11-13) एक मरा हुआ इंसान, सिर्फ पुनरुत्थान के ज़रिए ही दोबारा ज़िंदगी पा सकता है। यह मौत की नींद से ‘जाग उठने’ जैसा होगा। (यूहन्‍ना 5:28, 29) इसलिए, अगर अमर आत्मा जैसी कोई चीज़ होती तो बाइबल पुनरुत्थान की बात ही ना करती, क्योंकि जो अमर है वह तो मर ही नहीं सकता।


यीशु,  पुनरुत्थान में सिर्फ विश्‍वास ही नहीं करता था बल्कि उसने मरे हुओं का पुनरुत्थान करके भी दिखाया। अब लाजर के किस्से को ही लीजिए। उसे मरे हुए चार दिन बीत चुके थे। जब यीशु ने उसे जिलाया तो उसके शरीर में जान आ गई और वह कब्र से बाहर आ गया। चार दिन तक वह पूरी तरह मरा हुआ था। ऐसा नहीं हुआ कि उसके शरीर में से आत्मा जैसी कोई चीज़ निकलकर स्वर्ग चली गई थी। अगर ऐसा होता तो यीशु उसकी आत्मा को स्वर्ग में ही रहने देता। अगर यीशु उसकी आत्मा को दुःख उठाने के लिए वापस उसके शरीर में भेज देता तो क्या यीशु के इस काम को लाजर की भलाई करना कहा जाता?—यूहन्‍ना 11:39, 43, 44.
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(तथ्य कथन इंडिया साइट्स, गूगल, बौद्ध, ईसाई  साइट्स, वेब दुनिया इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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