Monday, July 30, 2018

भाग – 26 इस्लाम: धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी


भाग – 26  इस्लाम:
धर्म ग्रंथ और संतो की वैज्ञानिक कसौटी
संकलनकर्ता : सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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पिछले अंको मे आपने विश्व के सबसे पुराने सनातन धर्म को पढा। जहां से हिंदुत्व, जैन, बौद्ध धर्म भारत में पैदा हुये। बौद्ध धर्म ने इसाइयत को यीशु के माध्यम से इजरायल में जन्म दिया और फिर यह पूरी दुनिया में रक्तपात और धन प्रलोभन के सहारे चमत्कारों की जादूगरी से पूरी दुनिया में फैल गया। इस अंक से दुनिया के सबसे नये धर्म पर चर्चा आरम्भ करते है। सोंचने की बात है कि आखिर क्यों  यूनेस्को ने 7 नवम्बर 2004 को वेदपाठ को मानवता के मौखिक एवं अमूर्त विरासत की श्रेष्ठ कृति घोषित किया है।


इस्‍लाम धर्म से जुड़े महत्‍वपूर्ण तथ्‍य:
(1) इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद थे.

(2) हजरत मुहम्मद का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था.

(3) हजरत मुहम्मद को 610 ई. में मक्का के पास हीरा नाम की गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

(4) 24 सिंतबर को पैगंबर की मक्का से मदीना की यात्रा इस्लाम जगत में मुस्लिम संवत के नाम से जानी जाती है.

(5) हजरत मुहम्मद की शादी 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की विधवा से हुई.

(6) हजरत मुहम्मद की बेटी का नाम फतिमा और दामाद का नाम अली हुसैन है.

(7) देवदूत ग्रैब्रियल ने पैगम्‍बर मुहम्मद को कुरान अरबी भाषा में संप्रेषित की.

(8) कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है.

(9) पैगंबर मुहम्मद ने कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया.

(10) हजरत मुहम्मद की मृत्यु 8 जून 632 ई. को हुई. इन्हें मदीना में दफनाया गया.

(11) हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम शिया और सुन्नी दो पंथों में बंट गया.

(12) सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं. सुन्ना हजरत मुहम्मद के कथनों और कार्यों का विवरण है.

(13) शिया अली की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उन्हें हजरत मुहम्मद का उत्तराधिकारी मानते हैं. अली, हजरत मुहम्मद के दामाद थे.

(14) अली की सन 661 में हत्या कर दी गई थी. अली के बेटे हुसैन की हत्या 680 में कर्बला में की गई थी. इन हत्याओं ने शिया को निश्चित मत का रूप दे दिया.

(15) हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए.

(16) इस्लाम जगत में खलीफा पद 1924 ई. तक रहा. 1924 में इसे तुर्की के शासक मुस्तफा कमालपाशा ने खत्म कर दिया.

(17) इब्‍न ईशाक ने सबसे पहले हजरत मुहम्मद का जीवन चरित्र लिखा था.

(18) हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाया जाता है.
मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वे अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में ईश्वर को मानव की समझ से परे माना जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय-जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार ईश्वर अद्वितीय है - उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर बल दिया गया है और यह भी माना जाता कि उसका सम्पूर्ण विवरण करना मनुष्य से परे है। कहो:  ईश्वर एक और अनुपम, सनातन, सदा से सदा तक जीने वाला है, न उसे किसी ने जना और न ही वो किसी का जनक है। एवं उस जैसा कोई और नहीं है।”
(कुरान, सूरत 112, आयत 1-4)

नबी (दूत) और रसूल

इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। लगभग सन्सार मे 124,000 नबी (दूत) एक खुदा को पूजने का सन्देश देने के लिये भेजे गये थे। यह दूत भी इंसानों में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखता था। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को ईश्वर ने स्वयं, शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहब भी इसी कड़ी का भाग थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में अल्लाह के 25 अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है।

कुरान अरबी भाषा में रची गई और इसी भाषा में विश्व की कुल जनसंख्या के 25% हिस्से, यानी लगभग 1.6 से 1.8 अरब लोगों, द्वारा पढ़ी जाती है; इनमें से (स्रोतों के अनुसार) लगभग 20 से 30 करोड़ लोगों की यह मातृभाषा है। हजरत मुहम्मद साहब के मुँह से कथित होकर लिखी जाने वाली पुस्तक और पुस्तक का पालन करने के निर्देश प्रदान करने वाली शरीयत ही दो ऐसे संसाधन हैं जो इस्लाम की जानकारी स्रोत को सही करार दिये जाते हैं।

सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वीकार करते हैं और मुसलमान, मुहम्मद को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं। अहमदिय्या समुदाय मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानता तथापि स्वयं को इस्लाम का अनुयायी कहता है और संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्वीकारा भी जाता है हालांकि कई इस्लामी राष्ट्रों में उसे मुस्लिम मानना प्रतिबंधित है। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है।  

मुसलमानों के लिये अल्लह् द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक पुस्तकें वैध हैं। मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है। कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है:

 
सहूफ़ ए इब्राहीमी जो कि हजरत इब्राहीम को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
तौरात (तोराह) जो कि हजरत मूसा को प्रदान की गयी।
ज़बूर जो कि दाउद को प्रदान की गयी।
इंजील (बाइबल) जो कि हजरत ईसा को प्रदान की गयी।

मुसलमान यह मानते हैं कि ईसाइयों और यहूदियों ने अपनी पुस्तकों के सन्दशों में बदलाव कर दिये हैं। वे इन चारों के अलावा अन्य धार्मिक पुस्तकों का ईश्वरीय होने की सम्भावना से मना नहीं करते हैं।

देवदूत

मुसलमान देवदूतों (अरबी में मलाइका/ उर्दु मे "फ़रिश्ते") के अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार देवदूत स्वयं कोई विवेक नहीं रखते और ईश्वर की आज्ञा का यथारूप पालन ही करते हैं। वह केवल रोशनी से बनीं हूई अमूर्त और निर्दोष आकृतियाँ हैं जो कि न पुरुष हैं न स्त्री, बल्कि मनुष्य से हर दृष्टि से अलग हैं। हालांकि देवदूत अगणनीय हैं, पर कुछ देवदूत कुरान में प्रभाव रखते हैं:

जिब्राईल जो नबीयों और रसूलों को ईश्वर का सन्देश ला कर देता है।
इज़्राईल जो ईश्वर के समादेश से मृत्यु का दूत जो मनुषय की आत्मा ले जाता है।
मीकाईल जो ईश्वर के समादेश पर मौसम बदलनेवाला देवदूत।
इस्राफ़ील जो ईश्वर के समादेश पर प्रलय के दिन के आरम्भ पर एक आवाज़ देगा।

किरामन कातिबीन (हिंदी में "प्रतिष्ठित लेखक") जो मनुष्य के कर्मों को लिखते हैं। इस्लामिक मान्यता अनुसार प्रत्येक मनुष्य के साथ दो देवदूत लगे होते हैं जो उसके कर्मों को लिखते रहते हैं(कुरआन -82-9 10)
मुनकिर नकीर या नकीरैन - मनुष्य के मरणोपरान्त उसकी कब्र में आ कर उससे तीन प्रशन पूछने वाले।

अब यहां पर गौर करनेवाली बात है कि देवदूत अवतार नहीं होते हैं और न ही नबी। वे छायाहैं जो अल्ल्ह के सम्पर्क में रहते हैं। सनातन वेद इनको देव या देवी कहते है। ऋषि वे  होते  जो ईश से साक्षात्कार कर चुके होते हैं और जिनका आत्म गुरु जागृत हो चुका हो। यानी जिसे अल्ल्ह की बोली या गाड वाइस सुनाई देती हो देवी देवता जिंको निर्देश  देते  हो।


मध्य एशिया के अन्य धर्मों (ईसाई और यहूदी) के समान इस्लाम में भी ब्रह्मांड का अंत प्रलय के दिन द्वारा माना जाता है। इसके अनुसार ईश्वर एक दिन संसार को समाप्त करेगा। यह दिन कब आयेगा इसकी सही जानकारी केवल ईश्वर को ही है। इस्लाम के अनुसार सभी मृत लोगों को उस दिन पुनर्जीवित किया जाएगा और अल्लाह के आदेशानुसार अपना जीवन व्यतीत करने वालों को स्वर्ग भेजा जाएगा और उसका आदेश न मनाने वालों को नर्क में जलाया जाएगा।

भाग्य (तक़दीर)

मुसलमान भाग्य को मानते हैं। भाग्य का अर्थ इनके लिये यह है कि ईश्वर बीते हुए समय, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब जानता है। कोई भी घटना उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी इच्छा से जीने की स्वतन्त्रता तो है पर इसकी अनुमति भी ईश्वर ही के द्वारा उसे दी गयी है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं उत्तरदाई इसलिए है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान ईश्वर को होता है।


इस्लाम के दो प्रमुख वर्ग हैं, शिया और सुन्नी। दोनों के अपने अपने इस्लामी नियम हैं लेकिन आधारभूत सिद्धान्त मिलते-जुलते हैं। बहुत से सुन्नी, शियाओं को पूर्णत: मुसलमान नहीं मानते। सुन्नी इस्लाम में हर मुसलमान के ५ आवश्यक कर्तव्य होते हैं जिन्हें इस्लाम के ५ स्तम्भ भी कहा जाता है। शिया इस्लाम में थोड़े अलग सिद्धांतों को स्तम्भ कहा जाता है।

सुन्नी इस्लाम के ५ स्तंभ हैं


साक्षी होना (शहादा )- इस का शाब्दिक अर्थ है गवाही देना। इस्लाम में इसका अर्थ में इस अरबी घोषणा से हैः ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह
हिन्दी: अल्लाह के सिवा और कोई परमेश्वर नहीं है और मुहम्मद अल्लाह के रसूल (प्रेषित) हैं।

इस घोषणा से हर मुसलमान ईश्वर की एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है। यह इस्लाम का सबसे प्रमुख सिद्धांत है। हर मुसलमान के लिये अनिवार्य है कि वह इसे स्वीकारे
प्रार्थना (सलात)


इसे फ़ारसी में नमाज़ भी कहते हैं। यह एक प्रकार की प्रार्थना है जो अरबी भाषा में एक विशेष नियम से पढ़ी जाती है। इस्लाम के अनुसार नमाज़ ईश्वर के प्रति मनुष्य की कृतज्ञता दर्शाती है। यह मक्का की ओर मुँह कर के पढ़ी जाती है। हर मुसलमान के लिये दिन में ५ बार नमाज़ पढ़ना अनिवार्य है। विवशता और बीमारी की हालत में (शरीयत में आसान नियम बताये गए हैं ) इसे नहीं टाला जा सकता है।


व्रत (रमज़ान) (सौम)


इस के अनुसार इस्लामी कैलेंडर के नवें महीने में सभी सक्षम मुसलमानों के लिये सूर्योदय (फरज) से सूर्यास्त (मग़रिब) तक व्रत रखना (भूखा रहना) अनिवार्य है। इस व्रत को रोज़ा भी कहते हैं। रोज़े में हर प्रकार का खाना-पीना वर्जित (मना) है। अन्य व्यर्थ कर्मों से भी अपनेआप को दूर रखा जाता है। यौन गतिविधियाँ भी वर्जित हैं। विवशता में रोज़ा रखना आवश्यक नहीं होता। रोज़ा रखने के कई उद्देश्य हैं जिन में से दो प्रमुख उद्देश्य यह हैं कि दुनिया के बाकी आकर्षणों से ध्यान हटा कर ईश्वर से निकटता अनुभव की जाए और दूसरा यह कि निर्धनों, भिखारियों और भूखों की समस्याओं और परेशानियों का ज्ञान हो।


दान (ज़कात)


यह एक वार्षिक दान है जो कि हर आर्थिक रूप से सक्षम मुसलमान को निर्धन मुसलमानों में बांटना अनिवार्य है। अधिकतर मुसलमान अपनी वार्षिक आय का 2.5% दान में देते हैं। यह एक धार्मिक कर्तव्य इस लिये है क्योंकि इस्लाम के अनुसार मनुष्य की पून्जी वास्तव में ईश्वर की देन है। और दान देने से जान और माल कि सुरक्षा होती हे।


तीर्थ यात्रा (हज)
हज उस धार्मिक तीर्थ यात्रा का नाम है जो इस्लामी कैलेण्डर के 12वें महीने में मक्का में जाकर की जाती है। हर समर्पित मुसलमान (जो हज का खर्च‍‍ उठा सकता हो और विवश न हो) के लिये जीवन में एक बार इसे करना अनिवार्य है।


शरीयत और इस्लामी न्यायशास्त्र


मुसलमानों के लिये इस्लाम जीवन के हर पहलू पर अपना प्रभाव रखता है। इस्लामी सिद्धान्त मुसलमानों के घरेलू जीवन, उनके राजनैतिक या आर्थिक जीवन, मुसलमान राज्यों की विदेश निति इत्यादि पर प्रभाव डालते हैं। शरीयत उस समुच्चय नीति को कहते हैं जो इस्लामी कानूनी परम्पराओं और इस्लामी व्यक्तिगत और नैतिक आचरणों पर आधारित होती है। शरीयत की नीति को नींव बना कर न्यायशास्त्र के अध्य्यन को फिक़ह कहते हैं। फिक़ह के मामले में इस्लामी विद्वानों की अलग अलग व्याख्याओं के कारण इस्लाम में न्यायशास्त्र कई भागों में बट गया और कई अलग अलग न्यायशास्त्र से सम्बन्धित विचारधारओं का जन्म हुआ। इन्हें पन्थ कहते हैं। सुन्नी इस्लाम में प्रमुख पन्थ हैं




इसके अनुयायी दक्षिण एशिया और मध्य एशिया में हैं।
मालिकी पन्थ-इसके अनुयायी पश्चिम अफ्रीका और अरब के कुछ भागों में हैं।
शाफ्यी पन्थ-इसके अनुयायी अफ़्रीका के पूर्वी अफ्रीका, अरब के कुछ भागों और दक्षिण पूर्व एशिया में हैं।


हंबली पन्थ- इसके अनुयायी सऊदी अरब में हैं।
अधिकतर मुसलमानों का मानना है कि चारों पन्थ आधारभूत रूप से सही हैं और इनमें जो मतभेद हैं वह न्यायशास्त्र की बारीक व्याख्याओं को लेकर है।

............क्रमश:...............

(तथ्य कथन इंडिया साइट्स, गूगल, बौद्ध, ईसाई  साइट्स, वेब दुनिया इत्यादि से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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