Thursday, September 27, 2018

प्रेम से है ईश और जगत (काव्य)




प्रेम से है ईश और जगत 

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले।  
प्रेम से दुनिया बनी ये प्रेम पग पग पर मिले॥
प्रेम की परिभाषा इतनी न तनिक मुझको मिले।  
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले॥

प्रेम न हो गर जहाँ में सृष्टि यह मिट जायेगी।
दानवी असुरों के संग यह धरा मिट जायेगी॥
आंख खोलो और देखो प्रेम से ही सब मिले।
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले॥

प्रेम बिन गर सोंचते हो कुछ ख़ुदाई मिल गई।  
कतल कर इक जीव को कुछ रहनुमाई मिल गई॥
यह भरम बस भरम ही शैतान की राहों चले।   
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले॥

मिट जाओ तुम इस जहाँ से पर न कुछ मिल पायेगा।
ये भरम भरमाता है अल्लाह यूं मिल जायेगा॥   
प्रेम कर लो सृष्टि से तुम प्रेम से अल्लाह मिले।
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ही यह चले॥   

चाहे पूजा कितनी कर कर अता कुछ नमाजें।
और ऊंचे से पढे बाग दे कितनी अजाने॥  
पर खुदा न मिल सकेगा चाहे कुछ भी कर ढले।
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले॥

कोई मानव जीव हो चाहे न अपना पराया।।
इक प्रभु सबमें छुपा न कोई है जीव जाया।।
प्रेम करना सीख पगले प्रेम से खुद को मिले।
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले॥

प्रेम करना श्रेष्ठ सबसे कह रहा कविवर विपुल।
प्रेम से ऊंचा न कुछ भी प्रेम ईशु बनता कुल॥
प्रेम की वाणी लिखी है प्रेम से वाणी खिले।।
प्रेम से उपजा जहाँ यह प्रेम से ये जग चले।

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