Monday, October 8, 2018

मैं निर्रथक शब्द गुरुवर (काव्य)



मैं निर्रथक शब्द गुरुवर
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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तुम ही सार्थक शब्द हो।।

वाणी तेरी मौन रहती।
तुम ही सार्थक शब्द हो।।

मैं व्यथित होकर गिरा था।
तुमने मुझको रोका था।।
संग करुणा व्यथा को।
तुमने ही तो टोका था।।
मैं तुम्हारी ही शरण मे।
कुछ तो बोलो निशब्द हो।।
मैं निर्रथक शब्द गुरुवर।
तुम ही सार्थक शब्द हो।।


कितने युग बीते मेरे ।
बीता यह जीवन मेरा।
किंतु मुझको मिल सका ना।।
शीषम दीपक तेरा।।
मैं तिमिर का राही प्रभुवर।
ज्ञान ज्वाला प्रशस्त हो।।
मैं निर्रथक शब्द गुरुवर।
तुम ही सार्थक शब्द हो।।


नाम मेरा विपुल चाहे।
अनिल अंशु या पर्व हो।।
किंतु मैं मूरख हूँ गुरुवर।
कृपा मुझे वरद हस्त हो।।
मैं मिटा दो गुरुवर मेरे।
मैं का मार्ग प्रशस्त हो।।
मैं निर्रथक शब्द गुरुवर।
तुम ही सार्थक शब्द हो।।


जय गुरुदेव। जय महाकाली। जय महाकाल



"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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