Friday, December 7, 2018

शक्तिपात में क्रिया क्या होती है


शक्तिपात में क्रिया क्या होती है 
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 
  विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी, 
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि 
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi

प्रायः लोग मनुष्य और प्रकृति के स्वभाव को क्रिया समझ लेते है। व्याकरण के अनुसार यह सही है।
योग के अनुसार क्रिया संस्कार नष्ट करने हेतु होती है।
यदि जगत के प्राकृतिक कर्म को क्रिया माने तो हम पाते है।
इसमें हमारी संलिपता होती है यानि भोजन अच्छा बुरा खट्टा मीठा यह भाव उदित होकर निष्काम कर्म की व्याख्या में फिट नही बैठता।
अतः यह क्रिया नही हुए।

क्रिया तब होती है जब कुण्डलनी जागृत हो आप ध्यान में सिर्फ आसन पर बैठे जिसे साधन कहते हैं साधना नहींउस समय आपके साथ आपके शरीर के आंतरिक या वाहीक जो घटित होता है वह क्रिया है। मतलब आपके संस्कार को नष्ट करने हेतु जो स्वतः कर्म इस शरीर द्वारा हो वह क्रिया है। बाकी नही।
क्रिया बन्द आंख या खुली आंख से भी होती है।
आप सिर्फ यह देखते है अरे यह क्या हो रहा है मैं कुछ नही करता हूँ।  
यह अपने आप हो रहा है।
उस अवस्था मे मनुष्य का कर्ताभिमान नष्ट होता है। 
कर्म से कर्ताभिमान बढ़ता है क्रिया में नष्ट होता है।

शिष्यों पर शक्तिपात होने के लक्षणों का वर्णन परम पूज्य गुलवर्णी महाराज ने किया है।

देहपातस्तथा कम्प: परमानन्दहर्षणे।  स्वेदो रोमाञ्च इत्येच्छक्तिपातस्य लक्षणम् ॥

शरीर का गिरना, कंपन, अतिआनंद, पसीना आना, कंपकंपी आना यह शक्तिसंचारण के लक्षण हैं।

प्रकाश दिखना, अंदर से आवाज सुनाई देना, आसन से शरीर ऊपर उठना इत्यादि बातें भी हैं । वैसे ही कुछ समय पश्चात प्राणायाम की अलग अलग अवस्था अपने आप शुरु होती हैं ।

साधकों को शक्ति मूलाधार चक्रसे ब्रह्मरंध्र तक जानेका अनुभव तुरंत होता हैं और मन को पूर्ण शांती मिलती हैं । वैसे ही साधक को उसके शरीर में बहुत बडा फ़र्क महसूस होता हैं । प

पहले दिन आनेवाले सभी अनुभव कितने भी घंटे रह सकते हैं । किसी को सिर्फ़ आधा घंटा तो किसी को तीन घंटे तक भी होकर बाद में ठहरते हैं ।

जब तक शक्ति कार्य करती हैं, तब तक साधक की आँखे बंद रहती हैं और उसे आँखे खोलने की इच्छा ही नहीं होती ।

अगर स्वप्रयत्न से आँख खोलने का प्रयास किया तो आपत्ती हो सकती हैं । परंतु शक्ति का कार्य रुकने पर अपने आप आँखे खुल जाती है । आँख का खुलना और बंद होना आदि बातें ‘शक्ति का कार्य चालू हैं’ यारुक गया है’ ये बताती हैं ।

साधक की आँखे बंद होते ही अपने शरीर में अलग अलग प्रकार की हलचल शुरु होने जैसा अहसास होने लगता हैं । उसे अपने आप होनेवाली हलचल का विरोध करना नहीं चाहिये । या फ़िर उसके मार्ग में बाधा ना लाये ।

उसे सिर्फ़ निरीक्षक की भाँती बैठकर क्रियाओं को नियंत्रित करने की जबाबदारीसे दूर रहना चाहिए । क्योंकि यह क्रियाएँ दैवी शक्ति द्वारा विवेक बुद्धिसे अंदरसे स्वत: प्रेरित होती हैं ।

इस स्थिती में उसे अध्यात्मिक समाधान मिलेगा और उसका विश्वास स्थिर एवं प्रबल होगा ।

अभ्यास होने के साथ आप जगत का व्यवहार करते हुए भी दृष्टा भाव ला सकते है। उस वक्त आसन इत्यादि गौण हो जाता है। तब आप जगत कर्म करते हुए भी साधन रूप में आ जाते है तब आपके कर्म और क्रिया एक हो जाते है।
संस्कार जो पैदा होते है। वह तुंरन्त कर्म रूपी क्रिया द्वारा नष्ट हो जाते है।
यही निष्काम कर्म है।
आप उस वक्त कर्मयोग में हो जाते है।

जैसे आप देखे। जब मैं बेंगलोर में बेटी दामाद के साथ सिद्धार बेट्टी पहाड़ी पर गया तब अभ्यास न होने कारण मोटापे और कुछ आयु के कारण मात्र 10 सीढी में हांफ गया। तब मैने माँ भगवती की प्रार्थना की गुरू महाराज गुरू शक्ति को याद किया। और साधन के भाव मे आने की प्रार्थना की। जिस कारण मेरा चढ़ना एक क्रिया बन गया मेरा शरीर दृष्टा। अतः मैं बिना थकान ऊपर जाकर आराम से लौट आया।
मुझे स्वयं आश्चर्य हुआ जब लौटकर आने के बाद भी थकान रहित था।
यह उदाहरण था कर्म और क्रिया का।
यही अभ्यास करना है। 


हा बेहद कम या नगण्य लोग ही जगत के कर्म करते हुए लिप्त नही होते उनके लिए वह कर्म तुंरन्त क्रिया रूप में परिणित होकर नष्ट हो जाता है।
क्रिया वह जिसमे हम कुछ न करे स्वतः हो और वह क्रिया।
इस हिसाब से हम क्रिया को दो भागों बांट सकते है।
पहली प्राकृतिक क्रिया जैसे भूख नीद प्यास इत्यादि।
इसको करने में संस्कार पैदा नहीं होते है और हमारा भाव दृष्टा नही रहता।
यह कर्ताभिमान के साथ हो सकता है।


दूसरी यौगिक क्रिया जो स्वतः हो और प्राकृतिक न हो। इसके होने में संस्कार नष्ट होते है। दृष्टा भाव रहता है। इसमें कर्ताभाव नष्ट होता है।
प्रायः जगत में लोग प्राकृतिक क्रिया को समझ पाते है।
यौगिक क्रिया हेतु कुण्डलनी जागरण अनिवार्य है।

अब कुण्डलनी कितने कम लोग जागृत कर पाते है।
बस उससे कम संख्या में लोग यौगिक  क्रिया को समझ पाते है। 
क्योकि यह मात्र अनुभव है शाब्दिक नही।


कुछ सम्प्रदाय जैसे आर्यसमाज, ब्रह्मा बाबा और जहाँ तक राधा स्वामी सहित  तमाम लोग कुण्डलनी को मानते ही नही तो वह यौगिक क्रिया को मात्र नेति द्योति कुंजर या जन नेति ही समझेंगे। पर यह वाहीक यौगिक क्रिया है। आंतरिक नही।

 MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

5 comments:

  1. अति सुंदर ,,राम जी राम

    ReplyDelete
  2. धन्यवाद । श्रीमान जी और भी लेख पढे और टिप्प्णी दें।

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर। और सत्य। 🙏🙂

    ReplyDelete
  4. Bahut achha lekh hai... 🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete