Monday, February 11, 2019

होते रहेंगे बुराड़ी कांड, इसका कारण



होते रहेंगे बुराड़ी कांड, इसका कारण 



सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 
 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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एक समाचार: शनिवार, 15 सितम्बर 2018

नई दिल्ली। जुलाई में बुराड़ी में एक ही परिवार की 11 मौतों के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। भाटिया परिवार के 11 सदस्यों की सामूहिक मौत आत्महत्या के कारण नहीं, बल्कि दुर्घटना के कारण हुई थी। सीएफएसएल द्वारा सौंपी गई सॉइकोलॉजिकल ऑप्टोमेसी रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि धार्मिक अनुष्ठान के दौरान भाटिया परिवार के सभी सदस्य दुर्घटनावश मारे गए थे। जांच में यह भी सामने आया है कि धार्मिक अनुष्ठान करने वालों ने आत्महत्या करने के इरादे से फांसी नहीं लगाई थी। उन्हें विश्वास था कि मरने के बाद वे सभी फिर से जिंदा हो जाएंगे।

दिल्ली पुलिस ने बुराड़ी कांड में 1 जुलाई को मृत पाए गए 11 लोगों की मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी कराने का फैसला किया था। पुलिस ने जुलाई में मृतकों की साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी कराने के लिए सीबीआई को पत्र लिखा था। सीबीआई ने इस मामले में पुलिस की जांच से सहमति जताई है। सीबीआई को परिवार द्वारा लिखी गई उन सभी डायरियों को सौंपा गया था।

इस घटना में आत्महत्या भी कारण हो सकती है। चलिये आध्यात्मिक पहलू पर जो ब्रह्म का भ्रम होने के कारण हो जाता है। 


मैंनें अपने ब्लाग freedhyan.blogspot.com पर कई लेखों में आत्म गुरू और मन गुरू की बात की है। परम आदरणीय परम गुरू  शक्तिपाताचार्य ब्रह्मलीन स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने भी आत्म गुरू पर प्रकाश डाला है। मैं उसी आत्म गुरू के माध्यम से घटना पर प्रकाश डालूंगा।  


क्या होता है कि जब हम अंतरमुखी होने का प्रयास करते हैं। और हमारी साधना परिपक्व हो जाती है। तो हमारी शक्ति जागृत हो जाती है। वास्तव में यह शक्ति सर्व व्यापी है जो हमारे शरीर के भीतर कुंडलनी शक्ति के रूप में और बाहर ब्रह्म शक्ति के रूप में सर्व व्यापी है। कुंडलनी शक्ति को शक्तिपात द्वारा समर्थ गुरू जागृत कर सकते हैं। कभी कभी यह स्वत: भी जाग जाती है। यानी कुंडलनी शक्ति गुरू के आधीन रहती है। कभी कभी विभिन्न बीज मंत्रों के सतत जाप से ब्रह्म शक्ति भी साकार रूप में जो इष्ट या मंत्र देव हो सकता है। उस रूप में दर्शन देकर मानव को छूकर अथवा स्पर्श कर शक्ति का अनुभव करा देती है। यानि दीक्षा दे देती है। लेकिन मानव का शरीर अशुद्ध कार्यों के कारण इस शक्ति को सहन नहीं कर पाता है। अत: उसकी मृत्यु तक हो सकती है। किंतु साकार इष्ट देव ऐसा नहीं होने देता है। हां निराकार उपासक किसी को मानता ही नहीं तो उसकी सहायता किस रूप में की जाये। यद्यपि ब्रह्म का अंतिम रूप निराकार निर्गुण अद्वैत ही है। किंतु वह साकार भी है अत: बिना गुरू के मानव को साकार द्वैत सगुण से ही साधना आरम्भ करनी चाहिये। कारण भक्ति मार्ग और द्वैत आनन्ददायक सुखद और नम्रता से परिपूर्ण होता है। प्रेमाश्रुओं का आनंद विरह और प्रेम का वास्तविक रूप दिखाता है। रामरस का नशा दुनिया के तमाम नशों से अधिक नशा देकर आनन्दमग्न रखता है। किंतु ज्ञान योग नीरस होने के साथ निरंकुश और अहंकारी भी बना सकता है। जिसके कारण मानव का पतन हो जाता है। 


यही इष्ट मानव को उस शक्तिशाली गुरू के पास स्वप्न ध्यान या अन्य माध्यम से भेज देता है जो शिष्य की आंतरिक शक्ति यानि कुंडलनी जगाकर बैंलेस कर देता है। कभी कभी समर्थ गुरू इस ब्रह्म शक्ति को दबाकर भी शिष्य को बचाता है। इसी लिये कहा है कि शिव यानि ब्रह्म रूष्ट  तो गुरू बचा सकता है किंतु गुरू रूष्ट जो आपकी आंतरिक कुंडलनी शक्ति है वह रुष्ट तो शिव भी नहीं बचा सकते। 


देव दर्शन के साथ प्रभु कृपा से योग की अनुभुति इत्यादि भी स्वत: हो जाती है। जिनके साथ हमारा आत्म गुरू भी जागृत हो जाता है जो हमें हमारे प्रश्नों, जिज्ञासाओं के उत्तर और सही मार्ग दिखाकर कभी कभी भविष्य को बताकर निर्देशित करते हैं। यहां पर ध्यान देने वाली बात है कि इन अनुभवों के बाद मनुष्य के अंदर ज्ञान प्रसार की तीव्र इच्छा होती है। जिसके कारन अपनी इच्छपूर्ती हेतु वह बिना परम्परा गुरू तक बनने का प्रयास करता है। जहां से उसका पतन होने की पूरी सम्भावना हो जाती है। क्योकिं फिर वह जहां एक तरफ बिना परम्परा के अपनी शक्ति को  शिष्यों पर लुटाता है वहीं शिष्य संख्या इत्यादि गिनने लगता है। इन भावों के कारण बुद्धि स्थितिप्रज्ञ नही रह पाती। स्थिर बुद्धि न होने कारन उसका पतन होने लगता है। आस पास के लोग उस अहंकार रहित मानव की प्रशंसा कर उसे और तेजी से नीचे गिराते हैं। अचानक एक दिन सब लुट जाने पर उसकी समझ में आता है पर तब तक देर हो चुकी होती है। 


इसी के साथ मनुष्य का मनगुरू भी जागृत होकर समझाने लगता है। प्राय: जो गलत और उल्टा होता है। पर साधक समझ नहीं पाता। अक्सर अंतरमुखी होने पर ही मन गुरू जागृत होकर भटकाने लगता है। जो बुराडी केस में हुआ। अत: स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज ने कहा “ जब तक तुम्हे आदेश ध्यान में स्पष्ट  सुनाई न दे। लिखा दिखाई न दे। तब तक उस को मन की चालबाजियां ही मानना" । किंतु अज्ञान वश मानव मन गुरू के आदेशानुसार चलने की भूल कर बलि दे बैठता है, शेर के पिंजरे में कूद जाता है। अजीब अजीब हरकतें कर जान से हाथ तक धो बैठता है। आपने पढा होगा कि आल्लह के कहने पर हत्या कर दी। जीसस ने कहा तो गोली मार दी। यह सब मन गुरू जिसे शैतान की टीप कहते हैं। अत: बचने के लिये मुस्लिम टोपी पहनते है। पोप टोपी। जालीदार से हवा जाती रहती है। पसीना नहीं आता। 


अत: मानव को चाहिये वह आध्यात्म में अंध विश्ववासी न बनें। व्यहारिक बुद्धि का भी प्रयोग करे। क्योकि उसका एक भी गलत कार्य उसको समाज में परिवार में हास्यादपक बनाने के साथ पीडाये भी दे सकता है। 


इस लेख का कोई संदर्भ नहीं। मात्र अपने अनुभव से लिखा है। आप कुछ भी सोंचने के लिये स्वतंत्र है। 

 MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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