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Monday, May 13, 2019

पूर्ण नवार्ण मंत्र के अर्थ: जो कहीं नहीं मिलेगें !



पूर्ण नवार्ण मंत्र के अर्थ: जो कहीं नहीं मिलेगें !
सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी" 


 


एक बात याद रखें  कि लगभग सभी मंत्र, नाम या शब्द कितने सिद्धों द्वारा जपित होकर सिद्ध हो चुके हैं। अत: सब बराबर ही हैं। न कोई आगे न कोई पीछे। जैसे राम नाम को कितने लोगों को तार दिया। अब आप कहें यह बेकार। ठीक है यह मंत्र नही पर यह प्रचलित सिद्ध मंत्र है। जिसको स्वयं हनुमान जपते हैं। अत: यह कमजोर कैसे हुआ। वहीं बिठठल तो तुकाराम नामदेव गोरा कुभार, राखू बाई सहित कितनों को तारने वाला तो यह राम से छोटा क्यों। मेरा मानना है छोटी आपकी सोंच है जो संकुचित होकर सनातन की धरोहर को निम्न बनाती है।कितने नारायण बोलकर तर गये। 

ऋग्वेद, (१०।१२५।३) में आदिशक्ति का कथन है-'मैं ही निखिल ब्रह्माण्ड की ईश्वरी हूँ, उपासकगण को धन आदि इष्टफल देती हूँ। मैं सर्वदा सबको ईक्षण (देखती) करती हूँ, उपास्य देवताओं में मैं ही प्रधान हूँ, मैं ही सर्वत्र सब जीवदेह में विराजमान हूँ, अनन्त ब्रह्माण्डवासी देवतागण जहां कहीं रहकर जो कुछ करते हैं, वे सब मेरी ही आराधना करते हैं।'

सूक्तं १२५
अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ॥१॥
अहं सोममाहनसं बिभर्म्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम् ।
अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते ॥२॥
अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् ।
तां मा देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयन्तीम् ॥३॥
मया सो अन्नमत्ति यो विपश्यति यः प्राणिति य ईं शृणोत्युक्तम् ।
अमन्तवो मां त उप क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धिवं ते वदामि ॥४॥
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥५॥
अहं रुद्राय धनुरा तनोमि ब्रह्मद्विषे शरवे हन्तवा उ ।
अहं जनाय समदं कृणोम्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश ॥६॥
अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे ।
ततो वि तिष्ठे भुवनानु विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृशामि ॥७॥
अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा ।
परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सं बभूव ॥८॥


नवार्ण/नवाक्षर मन्त्र
इसका स्वरूप है- 'ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।'

नवार्ण मन्त्र में तीन बीज मन्त्र
मां दुर्गा के तीन चरित्र हैं। प्रथम चरित्र में दुर्गा का महाकाली रूप है। मध्यम चरित्र में महालक्ष्मी तथा उत्तर चरित्र में वह महासरस्वती हैं। इन तीन चरित्रों से बीज वर्णों को चुनकर नवार्ण मन्त्र का निर्माण हुआ है।

नवार्ण मन्त्र में तीन बीज मन्त्र हैं-
'ऐं'-यह सरस्वती बीज है। '' का अर्थ सरस्वती है और 'बिन्दु' का अर्थ है दु:खनाशक। अर्थात् सरस्वती हमारे दु:ख को दूर करें।

अब यहां देखें सरस्वती ब्रह्मा के साथ सत्व गुणी होकर सृष्टि का निमार्ण करती हैं। मतलब हमारे जन्म के पहले का जीवन जो इस बीज मंत्र द्वारा रक्षित होता है।

'ह्रीं'-भुवनेश्वरी बीज है महामाया का जिसमें महालक्ष्मी का बीज मन्त्र श्रीं भी समाहित है।

अब यहां देखें आप जब इस शरीर में तब ही तक आपको लक्ष्मी की आवश्यकता है और महामाया के अज्ञान का पर्दा भी आप इस शरीर में रहकर हटा सकते हैं और ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। लक्ष्मी विष्णु के साथ आपके जीवन का पालन करती हैं।

'क्लीं'-यह कृष्णबीज, महाकालीबीज एवं कामबीज माना गया है। परंतु यहां यह सिर्फ महाकाली से अर्थित है।

अब यहां देखें महाकाली शिव की शक्ति श्मशान विहारिणी मतलब मृत्यु की अधिष्ढात्री। मतलब यह आपके जीवन के पश्चात आपकी रक्षित शक्ति।

चामुन्डा इन सबकी सम्मिलित शक्ति जो दुर्गा है।

मतलब इस मंत्र में आप जन्म, जीवन और मृत्यु तीनों की शक्तियों की आराधना करते हैं।
यानि आप पूर्ण रूपेण सुरक्षित होने की प्रार्थना करते हैं

वैसे नवार्ण मन्त्र का वैदिक भावार्थ
'हे चित्स्वरूपिणी महासरस्वती! हे सद्रूपिणी महालक्ष्मी! हे आनन्दरूपिणी महाकाली! ब्रह्मविद्या पाने के लिए हम हर समय तुम्हारा ध्यान करते हैं। हे महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वतीस्वरूपिणी चण्डिके! तुम्हे नमस्कार है। अविद्यारूपी रज्जु की दृढ़ ग्रन्थि खोलकर मुझे मुक्त करो।'


सरल शब्दों में-महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती नामक तीन रूपों में सच्चिदानन्दमयी आदिशक्ति योगमाया को हम अविद्या (मन की चंचलता और विक्षेप) दूरकर प्राप्त करें।


एक बात और देखें
नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है। 
दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है। 

तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पांचवां अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवां अक्षर यै, आठवां अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है। 

मतलब आप सकल विश्व की शक्तियों की आराधना इस मंत्र से करते हैं।
सवाल है अब फिर बचा क्या?? यह आप बतायें।

अब आप पूरा मंत्र छंद देखें।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ ग्लौ हूं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।'

इस पूरे मंत्र के अर्थ कहीं नहीं दिये हैं। यहां तक कुछ सिद्ध पुरुष जान गये थे पर उन्होने दुनिया को नहीं बताया क्योकि गलत लोग इसका दुरूपयोग कर सकते हैं। इसके कुछ सामान्य अर्थ जो मैं समझ पाया वह दे रहा हूं।   

ग्लौं—– ग=गणेश ल=व्यापक औ =तेज बिंदु=दुःख हरण मतलब व्यापक रूप विध्नहर्ता अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें!

हूँ—- ह=शिव ऊ=भैरव अनुस्वार=दुःख हर्ता यह कूर्च यानी कुंजी है बीज है! इसका तात्पर्य यह है असुर-संहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें!

क्लीं — क= कृष्ण या काली ल=इंद्र ई=तुष्टिभाव अनुस्वार=सुखदाता कामदेव रूप श्रीकृष्ण / काली मुझे सुख-सौभाग्य दें!

जूं एक कुंजी है। स: श्वास प्रक्रिया है। मतलब तुम सब खुलो। कार्यशील हो।

ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल । मतलब जो बाधायें हैं और सिद्धियों के पुष्पदल हमारे चक्रों पर अनाहत है वह जले। तीव्र जलें और तीव्रतम तरीके से प्रकाशित हो।

अब दुबारा आपकी अराधना आपके जो अन्य अर्थ हों बीज मंत्र हों वह इसमें समाहित हो।
हं–आकाश बीज । मतलब आकाश तत्व। सं, स =दुर्गा यानि शक्ति, बिंदु=दुःख हर्ता । लं–पृथ्वी बीज । क्षं, क्ष= नृसिंह, बिंदु=दुःख हरण । नृसिंह मतलब जानवर जो शेर है और मानव की शक्ति। फ़ट : विस्फोटक रूप में बिखरो स्वाहा : जल कर खाक हो।  

अब आप इस भीषण शक्तिशाली मंत्र के अर्थ स्वयं लगा लें। पर चलिये कुछ यूं होगे सीधे अर्थ।
'हे चित्स्वरूपिणी महासरस्वती! हे सद्रूपिणी  महालक्ष्मी, आनन्दरूपिणी महाकाली! महासरस्वती ब्रह्मविद्या पाने के लिए हम हर समय तुम्हारा ध्यान करते हैं। हे महाकाली महालक्ष्मी स्वरूपिणी चण्डिके! तुम्हे नमस्कार है। अविद्यारूपी रज्जु की दृढ़ ग्रन्थि खोलकर मुझे मुक्त करो।'  
मेरे दुखों का नाश करें जो गणेश है। असुर-संहारक शिव है। शक्तिदाताकाली, इच्छा पूर्ति कर्ता कृष्ण और कामदेव आप सब जब तक मुझमें श्वांस है सदैव क्रियाशील रहें। पुन: हे  महासरस्वती महालक्ष्मी महाकाली स्वरूपिणी चण्डिके! तुम्हे नमस्कार है। और आप तीनों पृथ्वी से आकाश तक, मेरे जीवन के पहले और बाद में, मेरे मूलाधार से आकाश तत्व के चक्र सिंह की भांति दहाडकर वीर भद्र की भांति शक्तियुक्त हों और बाधायें दूर हो, सिद्धियों के पुष्पदल हमारे चक्रों पर अनाहत है वह जले। तीव्र जलें और तीव्रतम तरीके से प्रकाशित हो। अनन्त शक्ति के साथ विस्फोटक रूप में बिखरे और जल कर खाक हो। (यानि मुझे सर्व सिद्धियां प्रदान करें)। 

यह अर्थ मैनें लगाये हैं। इसके अर्थ कहीं दिये नहीं हैं। आप भी अर्थ बताने का प्रयास करें।

अब आप स्वयं देखें क्या इससे शक्तिशाली कोई प्रार्थना है???  

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/ 

1 comment:

  1. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏👏👏👏👏👏bahut achha samjaya prabhu...

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