आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 13
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 13
Bhakt
Shyam Sunder Mishra: मननीय संजीव जी,हरिॐ।।आपके कथनानुसार आप जिस दर्शन
की बात कर रहे है,उसको मान लेते हैं, तब तो हमें भगवान श्रीकृष्ण की
श्रीमदभगवद्गीता तो व्यर्थ है, सिर्फ वही नही श्रीराम चरित्र मानस, श्री
दुर्गा सप्तशती इत्यादि यह सभी जो हमारे धर्म ग्रंथ हैं उसका हम सनातनियों
को कदापि अनुसरण नही करना चाहिए। क्यूँ की उन ग्रंथों में सन्निहित जो
संदेश हैं वह तो इस परिप्रेक्ष्य में आपके इस कथित दर्शन से सर्वथा भिन्न
और आज के युग में भी प्रासंगिक हैं। कही आप सतयुग से तो नही आ गये मान्यवर।
Bhakt Brijesh Singer: भगवान श्री कृष्ण कहते है
*दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।*
*मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।*
मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ और विजयेच्छुओं की नीति हूँ; मैं गुह्यों में मौन हूँ और ज्ञानवानों का ज्ञान हूँ।।
+1
(913) 302-8535: There is a difference between reaction and response. I
have already written that I will give a calm response. I did not
elaborate what that calm response would be. If I give my response in a
haste then it would be a reaction.
If
I am in a position to make a decision, I will make decision for the
severity of punishment to the deserving person(s) who has / have
committed this crime against humanity. First, I will gather the facts
and the credibility of facts. This may take some time. That is I used
the word "response" which is very well thought of, calculated, and
exemplary. I did not use the word "reaction" because reaction reflects
upon lack of self-control.
Lord Rama
is "Maryada Prushottam." He has shown us the way to conduct ourselves
under any circumstances. Lord Rama gave a well-measured, calm response
to Ravana. We all know how much time Lord Rama took to deliver the
justice to Ravana. I follow Lord Rama to conduct my self on day to day
basis. My answer was based on Lord Rama's conduct rather than Shree
Laxman's conduct.
+1 (913) 302-8535:
Very true. However, first I would do sincerest effort to figure who
deserves the punishment. That will take some time to gather the facts
surrounding this crime.
Justice must be delivered to person(s) who deserve it. No innocent person should be punished.
Will you be able to fight alone।
How will you gather others to help you।
Bhakt Lokeshanand Swami: भरत जी ने सुबह होते ही-
"बिप्र जेवाँइ देहिं दिन दाना।
सिव अभिषेक करहिं बिधि नाना॥
मागहिं हृदयँ महेस मनाई।
कुसल मातु पितु परिजन भाई॥"
दु:स्वप्न आया तो अनिष्ट की आशंका से भरतजी ने कर्मकाण्ड प्रारंभ किया। सकाम अनुष्ठान किया।
माँगा क्या? चार की कुशलता माँगी, किनकी? क्रम देखें, सबसे पहले माँ की, फिर पिता, पुनः सुहृदजन और अंत में भाई की, माने रामजी की।
फल
क्या मिला? जो माँगा था वो नहीं ही मिला। माँ की कुशलता माँगी थी, विधवा
हो गई, पिता की कुशलता माँगी थी, पिता मर गए, पुरजनों की कुशलता माँगी, सब
पाँच दिनों से बेहाल हैं, किसी के घर चूल्हा तक नहीं जला। और भाई? उनकी
कुशल का तो कहना ही क्या?
तो इस लीला से क्या संकेत मिल रहा है?
"यद्धात्रा निज भाल पट लिखितम्"
"कर्म प्रधान विश्व करि राखा"
"काहु ना कोउ सुखदुखकर दाता"
तो
क्या कर्मकाण्ड निष्फल है? नहीं! पर उसका वो फल नहीं जिसकी कामना की गई
हो। वह तो कभी कभी प्रारब्धवश संयोग बैठ जाए, और ऐसा लगने लगे, पर क्या
अनन्त बार कामना निष्फल होती देखी नहीं जाती?
देखें,
भरतजी को अनुपम फल मिला। मेरेपन का क्रम उलट गया, नियम यह है कि मन में
ममता जिससे अधिक होती है, कामना उसी के लिए पहले की जाती है। पहले जहाँ माँ
थी अब वहाँ रामजी आ गए, माँ अंतिम स्थान पर खिसक गईं। दृष्टि
परमात्मोन्मुख हो गई, भगवान के चरणों में अनुराग हो गया।
यही ममता का केन्द्र बदल जाना ही कर्मकाण्ड का एकमात्र फल है।
अब विडियो देखें- कर्मकाण्ड का फल
https://youtu.be/bUfx4a2-Uh8
http://shashwatatripti.wordpress.com
Hb 87 lokesh k verma bel banglore:
*न देवा दण्डमादाय*
*रक्षन्ति पशुपालवत्,*
*यं तु रक्षितुमिच्छन्ति*
*बुद्ध्या संविभजन्ति तम् ।।*
देवता किसी भी मनुष्य की , स्वयं हाथ मे शस्त्र लेकर रक्षा नही करते।
जिनका रक्षण करने की इच्छा करते है, उन्हे "बुध्दि" प्रदान करने का मार्ग प्रशस्त करते है।
God
don't protect any body like we protect our animals ; I.e by stick or
sword because God has given us "BUDHI",( Intellect) to protect our self.
*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
Bhakt
Lokeshanand Swami: यूनान में एक संत हुए हैं डायोजनीज। एक कुत्ते को सागर
से निकल कर, रेत में लोटते हुए देखकर, डायोजनीज ने अपना लंगोट और कटोरा
गिरा दिया था, कि कुत्ता इनके बिना मस्त रह सकता है तो मैं क्यों नहीं? तब
से वह सागर किनारे ही रहने लगे।
उधर सिकंदर ने विश्व विजय के लिए निकलने से पहले, उसके दर्शन करने का विचार किया।
डायोजनीज रेत में लेटा था। सिकंदर आया और बोला- मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ।
डायोजनीज ने कहा- दर्शन हो गए हों, तो सामने से हट जाओ। तुम मेरी धूप में बाधा बन रहे हो।
सिकंदर- तुमने मुझे पहचाना नहीं? मैं सिकंदर हूँ।
डायोजनीज- ओह! तो तुम हो सिकंदर? यहाँ से रोज जो लाव लश्कर निकलते हैं, वे तुम्हारे हैं?
"हाँ!" सिकंदर मुस्कुराया।
डायोजनीज- इतनी तैयारी किसलिए चल रही है?
सिकंदर- मैं विश्व विजय के लिए जा रहा हूँ।
डायोजनीज- अच्छा? पर किसलिए?
सिकंदर- यह मेरी इच्छा है। जब तक मैं पूरा विश्व न जीत लूं मेरे मन को चैन नहीं पड़ता।
डायोजनीज- लेकिन तुम विश्व को जीत कर करोगे क्या?
सिकंदर- तब करने को कुछ बचेगा ही कहाँ? तब तो मैं आराम करूंगा।
डायोजनीज-
जो करना हो करो। मेरा कोई आग्रह नहीं है, पर अगर तुम आखिर आराम ही करना
चाहते हो, तो उसके लिए पूरी दुनिया का चक्कर लगाने की क्या जरूरत है? देखते
हो? कितना सुंदर मौसम है? कितनी प्यारी धूप है? कितनी नर्म रेत है? कितनी
मस्त हवा चल रही है?
छुट्टी कर सब की, तूं भी सबसे छूट जा। ये ताज गिरा दे, कपड़े उतार, और यहीं लेट जा। यहाँ बहुत आराम है। आराम ही आराम है।
पर सिकंदर को आराम कहाँ? और आप जानते ही होंगे, वह कभी यूनान न लौट सका, कभी आराम न कर सका। वह रास्ते में ही मर गया।
लोकेशानन्द कहता है कि सिकंदर तो सिकंदर की कहानी नहीं जानता था। पर अब आप तो जानते हैं? 'आप' कब आराम करेंगे?
Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
यस्मात्परतरं नास्ति नेति नेतीति वै श्रुतिः।
मनसा वचसा चैव नित्यमाराधयेद्गुरुम्॥८२॥
गुरोः कृपा प्रसादेन ब्रह्म विष्णु सदाशिवाः।
समर्थाः प्रभवादौ च केवलं गुरुसेवया॥८३॥
अर्थ:
जिन से बढ़कर और कुछ नहीं है, श्रुतियां भी यह- नहीं, यह नहीं कह कर मौन
हो जाती हैं।अतः मन और वाणी से नित्य गुरुदेव की आराधना करनी चाहिए।।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव केवल गुरु सेवा के प्रसाद से ही सृष्टि, पालन, संहार प्रक्रिया में समर्थ होते हैं।।
व्याख्या:
गुरु तत्व सर्वोपरि है। श्रुतियां भी अर्थात वेद भी उस गुरु तत्व का
प्रतिपादन करने का प्रयत्न करते हैं, किंतु अंत में यह नहीं, यह भी नहीं कह
कर मौन हो जाते हैं। गुरु तत्व का विश्लेषण शास्त्रों के द्वारा नहीं हो
सकता। वह, गुरु शरीर के माध्यम से ही प्रकाशित हो सकता है। ऐसे गुरुदेव की
मन, वाणी से नित्य आराधना करनी चाहिए- अर्थात मन से चिंतन एवं वाणी से
प्रार्थना (स्तुति) करते हुए उनकी कृपा प्राप्त करने का प्रयत्न करना
चाहिए।।
यहां गुरु सेवा के विशेष महत्व
का प्रतिपादन हुआ है, ब्रह्म में जो, सृजन सकती है, वह गुरु सेवा से
प्राप्त हुई है। विष्णु की पालन शक्ति भी उसी का प्रताप है, तथा महेश्वर की
संहार लीला भी उसी का फल है। अर्थात गुरुतत्व की शक्ति के द्वारा ही यह
त्रिदेव अपने अपने नियत कर्मों को कर पाते हैं।।
Swami
Pranav Anshuman Jee: बड़े मंगल की हार्दिक शुभकामानायें। श्रीहनुमानजी को
समर्पित आडियो समय निकालकर सुनें ।जय श्रीराम ।🙏🙏🙏
Bhakt
Anjana Dixit Mishra: *एक बार मध्यप्रदेश के इन्दौर नगर में एक रास्ते से
‘महारानी देवी अहिल्यावाई होल्कर के पुत्र मालोजीराव’ का रथ निकला तो उनके
रास्ते में हाल ही की जनी गाय का एक बछड़ा सामने आ गया।*
*गाय अपने बछड़े को बचाने दौड़ी तब तक मालोरावजी का ‘रथ गाय के बछड़े को कुचलता’ हुआ आगे बढ़ गया।*
*किसी ने उस बछड़े की परवाह नहीं की। गाय बछड़े के निधन से स्तब्ध व आहत होकर बछड़े के पास ही सड़क पर बैठ गई।*
*थोड़ी देर बाद अहिल्यावाई वहाँ से गुजरीं। अहिल्यावाई ने गाय को और उसके पास पड़े मृत बछड़े को देखकर घटनाक्रम के बारे में पता किया।*
*सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनावाई से पूछा-*
*यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने ही उसके बेटे की हत्या कर दे, तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए?*
*मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया- उसे प्राण दंड मिलना चाहिए।*
*देवी
अहिल्यावाई ने मालोराव को हाथ-पैर बाँध कर मार्ग पर डालने के लिए कहा और
फिर उन्होंने आदेश दिया मालोजी को मृत्यु दंड रथ से टकराकर दिया जाए। यह
कार्य कोई भी सारथी करने को तैयार न था।*
*देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थी। अत: वे स्वयं ही माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए भी रथ पर सवार हो गईं।*
*वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी।*
*वही गाय फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गई, उसे जितनी बार हटाया जाता उतनी बार पुन: अहिल्याबाई के रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती।*
*यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद् ने देवी अहिल्यावाई से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की, जिसका आधार उस गाय का व्यवहार बना।*
*उस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को द्रौपदी की तरह क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की।*
*इन्दौर में जिस जगह यह घटना घटी थी, वह स्थान आज भी गाय के आड़ा होने के कारण ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जाना जाता है।*
*उसी
स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की थी। ‘अक्रोध से क्रोध को, प्रेम
से घृणा का और क्षमा से प्रतिशोध की भावना का शमन होता है’।*
*भारतीय
ऋषियों ने यूँ ही गाय को माँ नहीं कहा है, बल्कि इसके पीछे गाय का
ममत्वपूर्ण व्यवहार, मानव जीवन में, कृषि में गाय की उपयोगिता बड़ा आधारभूत
कारण है।*
*गौसंवर्धन करना हर भारतीय का संवैधानिक कर्तव्य भी है*
+1 (913) 302-8535: I can pray alone with the purest heart. God will help. With God's help everything is possible.
Duryodhan chose army; Arjun chose Lord Shree Krishna. Rest is the story.
Good।
I did it with whole group for पालघर brutal murder of 2 sadhus।
Even few members started साधना for।
Bhakt
Brijesh Singer: अगर हम धर्म का साथ न दे और तटस्थ बने रहे तो ये भी एक
प्रकार से अधर्म का साथ देना हुआ। क्या धर्म है औरक्या अधर्म इसका निर्णय
केवल सतगुणी ही कर सकता है। इसलिए अगर हम सतगुणी नही है तो जो सतगुणी है और
वो जैसा कह रहा है वैसा मानना चाहिए ।
कर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये और अकर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये तथा विकर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये; क्योंकि कर्मकी गति गहन है।
+1 (913) 302-8535: No innocent should be punished. Likewise no criminal should be left unhooked.
It takes sometime to understand the qualities or weaknesses of a person.
Having a sadguru in life is a blessing. Guru teaches to be humble, be respectful, and be fearless.
Bhakt Brijesh Singer: महाभारत के युद्घ मे 45 लाख लोग मारे गए, कौन निर्णय करेगा कि कौन सैनिक दोषी था और कौन नही?
श्री कृष्ण जी ने स्वभाव और गुण की भी बात करी है। आप अपने स्वभाव के अनुसार कर्म करो।
+1
(913) 302-8535: Lord Krishna gave a final call to Kauravas and their
army just before Mahabharat started. Five brothers of Duryodhan changed
the side because they were righteous and noble.
Those who took the side of Kauravas, whether Guru Dronacharya or Bhishm Pitamah lost.
It is better to die for Dharma then to took the side of Adharma.
Thinking suggestion and talking are most easiest jobs।
But practicals are most difficult।
Every one is looking that what is the condition of India।
You can teach them who wants to listen you।
In fact in last 70 years the rulers always tried to split Hindus by provoking dalits and backwards।
On the other hand they funded others to get strength। Accordingly they twisted the laws also।
All possible efforts were done to break Hindus and Hindustan
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