Thursday, September 10, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 3

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 3  

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

लगता है चण्डिका ने अपना मुख और बड़ा किया

हे मां चंडी अपना मुख और विशाल करो और उन निर्दोष साधुयों के हत्यारों को षड़यंत्रकारिओं को मृत्युदंड दो।

जय मां चंडिका

https://hindi.news18.com/news/maharashtra/palghar-mob-lynching-accused-found-corona-positive-3073024.html?utm_medium=WEBNOTINEWS18HINDI&utm_source=WEBNOTI

हे मां चंडी अपना मुख और विशाल करो और उन निर्दोष साधुयों के हत्यारों को षड़यंत्रकारिओं को मृत्युदंड दो।

जय मां चंडिका

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: एक पथिक जो जगत की यात्रा पर निकला था, वो यात्रा अपने अश्व पर कर रहा है। जोकि अनेको सुखमय और दुष्कर मार्गो से यात्रा करते करते बहुत दूर निकल आया था। वह भूल गया था कि उसका घर कहा है। उसने न केवल अश्व पर अपितु स्वयं को भी अनेकों अलंकारों से सुसज्जित किया था तो उसे राह के कीचड़ और धूल ने भी बदरंग किया था। अश्व और अश्वारोही दोनों को बहुत आनंद था। एक दिन अचानक उसे किसी मोड़ पर सन्देश वाहक मिल गया और उसने परिजनों का संदेश दिया कि उसे गृह वापसी हेतु आदेश हुआ है। उसे कुछ भी अर्जन करके नही आना है बहुत समय व्यतीत हो चुका है इसलिये पिता उससे मिलने को अधीर है। पर उसे कुछ भी नही लाना है अर्थात जैसे गया था वैसे आना है।
पथिक सन्देश पाते ही बेचैन हो उठता है। वो वापस घर की ओर मुड़ता है। पर यह क्या, अश्व वापस नही मुड़ता। वो उसी राह पर चलता है। राही बेचैन हो उठता है, वो अश्व को प्यार से समझाता है लेकिन वो नही समझता, राही बहुत लगाम खिंचता है और उसे जोर भी दिखलाता है। लेकिन अश्व नही मुड़ता। वो पहले की दिशा में बड़ा जा रहा है। उसकी गति अब ओर भी तीव्र हो गई है जिससे पथिक स्वयं को कलुषित और कलंकित भासता है। पथिक सोच रहा है पिता ने तुरंत आने को कहा है पर अश्व नही चल रहा। बिना अश्व इतना लंबा सफर भी नही होगा। अश्व तो पिता का है उनको लौटना होगा। पर यह अश्व अब बागी हो चुका है। निरन्तर दौड़े जा रहा है।
मैंने इस यात्रा में जो अर्जन किया वो सब निस्तरित हो जाएगा वापसी के मार्ग में। पर अश्व तो अब अनावश्यक अर्जन की यात्रा कर रहा है। यह मेरी इच्छा कदापि नही है।
कोई मुझे बताएगा कि जब अश्व, राही के नियंत्रण से बाहर है तो उसके कर्म का प्रारब्ध किसे भोगना होगा। जबकि अंकुश भी निरर्थक और अश्व चंचल है तो राही कैसे उसे नियंत्रित करें क्योंकि अश्व बहुत लंबी यात्रा करते हुए आदी हो गया। कैसे अश्व को भी अपने गृह का स्मरण हो। पथिक अधीर है और ऊपर से विडम्बना यह कि अश्व अर्जन कर रहा है।

 
Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: आज गंगा जल एक गिलास पिया इतना मीठा जल सही में जल।में बहुत शुद्धता आ गयी है घर मे सब ने पीया गुरुजी

 
Bhakt Sanjay Singh: एक दिव्य स्थान जहाँ सभी धार्मिक पुस्तकें, प्रवचन, आरती, भजन, कीर्तन, लेख आदि नि:शुल्क उपलब्ध हैं। 

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यह कथा मैं जानता हूं किंतु प्रस्तुति बहुत अच्छी है आनंददायक है और यह सत्य बात है जो मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं और मुझे लगता है ईश्वर को गधा बुद्धि पसंद है मतलब तुम्हारी सरलता और सज्जनता।
कुटिलता से कभी ईश्वर को नहीं प्राप्त कर सकते छल कपट से नहीं प्राप्त कर सकते तुमको सरल होना होगा और समर्पण करना होगा।
हालांकि सरल होना यह हमारे हाथ में नहीं है और समर्पण करना भी हमारे हाथ में नहीं है वह भी सब प्रभु के हाथ में है जैसी उसकी इच्छा होती है वैसा ही मनुष्य बन भी जाता है।
कुछ समझ में नहीं आता की किसी को क्या बोले क्योंकि जा पर कृपा राम की होई ता पर कृपा करे सब कोई।
राम की कृपा उसकी मर्जी किसको दे इसको ना दे।
4 मई को जिनशासन महावीर स्वामी का 2576वां वर्ष है।
आप सभी को एडवांस में इस शुभ दिवस की शुभकामनाएं और बधाई।
🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

 
Hb 96 A A Dwivedi: कौन है घुड़सवार😊👏🙏🌹
Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रश्न पूछा है उत्तर प्रस्तुत कीजिये। प्रभु।
सुंदर संकेत कथा।
Bhakt Parv Mittal Hariyana: कथा मत जानिये प्रश्न है। कथा तो प्रश्न की जटिलता को समझाने के लिये है
Bhakt Parv Mittal Hariyana: कोई भी उत्तर प्रस्तुत कर सकता है। उत्तर अनुभव गम्य हो, सीधे जिसका अश्व मुड़ चुका हो। वरना शब्दो के जाल बेकार है।

 

राही तो मनुष्य है।
चाबुक तो इंद्रियां है।
अश्व समय है
यह मार्ग हमारा जीवन है
हमारे पिता हमारे प्रभु है आत्मा है
हमारा घर जहां से हम आए हैं
प्रश्न यह है घोड़े को चलने की आदत है तो उस घोड़े को मोड़ने के लिए उसको आप दिशाहीन मत दौड़ने दीजिए उसको एक गोलाई में घुमा कर कि उसको महसूस भी नहीं होगा उसको पुनः अपने घर की ओर मोड़ लीजिए।
क्योंकि आप घोड़े को रोक नहीं सकते यह सामर्थ के बाहर है घोड़ा तो चलता ही रहेगा क्योंकि यह उसकी आदत है यह स्वभाव है।

 
Bhakt Sundram Shukla: हमारे लिये समर्पण ही पुरुषार्थ है, इसके अतिरिक्त और कर भी क्या सकते हैं...
+91 96726 33273: Ashv hamara Mann jo Hamare niyantran se baahar h. Ghudswar h hum swayam... Or Ashv k karm Hume bhogne honge... Kyuki sawari humne ki thi to fal Bhi hum hi bhogenge.. Hum apne ghar ka raasta bhool chuke h😣😣😣

 
Bhakt Lokeshanand Swami: भक्ति रूपी सीता, इसी मनुष्य शरीर रूपी पृथ्वी से प्रकट होकर, भगवद्प्रेम रूपी लव और अंतःकरण की जड़ता का नाश रूपी कुश, भगवान को सौंप कर, पुनः इसी शरीर रूपी पृथ्वी में समा ही जाती है।
इसमें हैरानी परेशानी क्या है?
Bhakt Lokeshanand Swami: रामजी के वनवास काल में, घोर घने वन में चलते हुए, रामजी आगे चलते, सीताजी बीच में और लक्ष्मणजी सबसे पीछे चलते।
सीताजी रामजी के चरणचिन्हों पर पैर नहीं रखतीं, लक्ष्मणजी दोनों के ही चरणचिन्हों पर पैर नहीं धरते, थोड़ा हट कर चलते हैं, कि कहीं भगवान और माँ के चरणचिन्ह मिट न जाएं।
जहाँ पगडंडी पतली आ जाए तो लक्ष्मणजी को पगडंडी से उतर कर झाड़ झंझाड़ में चलना पड़े, और पैरों में काँटे चुभ जाएं।
पर वे उफ ना करें, शिकायत ना करें। यों चलते चलते पैर में काँटे ही काँटे हो गए, पैर धरते हैं तो पैर भूमि को छूता ही नहीं, काँटे ही छूते हैं, उन्होंने तो कहा नहीं, पर दर्द असहनीय हो गया तो भगवान ने सहसा ही यात्रा रोक दी।
लक्ष्मणजी को गोद में उठाकर एक शिला पर बिठाया, स्वयं नीचे बैठकर पैरों से काँटे निकालने लगे, और अपने आँसुओं से धोकर पैरों को स्वस्थ कर दिया।
अब रामजी ने चलने का क्रम उलट दिया, लक्ष्मणजी को आगे कर दिया, सीताजी बीच में ही रहीं और रामजी पीछे पीछे चलने लगे।
समझे? अरे मुसाफिरों! कष्ट तो प्रारब्ध का है। भगवान के मार्ग पर चलो या ना चलो, आएगा ही। पर अगर भगवान के मार्ग पर चले, कष्ट सहते चले गए, उफ न की, रुके नहीं, लौटे नहीं, तो वह दिन आता है जब भगवान स्वयं आपके कष्ट दूर कर देते हैं।
और फिर आपको उनके पीछे नहीं चलना पड़ता, वे ही आपके पीछे पीछे चलने लगते हैं।
यह बात ध्यान रखना॥

 
Swami Toofangiri Bhairav Akhada: जिस कार्य से अपना और दूसरों का अहित हो , वह पाप है और जिस कार्य से सभी का हित हो , वह पुण्य है । जब तक "दूसरों का भला नहीं होगा" तब तक "स्वयं का भला भी नहीं हो सकता" और *जिससे दूसरों का हित होता है उससे अपना अहित कभी नहीं होगा । *जानबूझकर दूसरों का बुरा करने की इच्छा से किया गया कर्म पाप है ।
स्वामी तूफान गिरी जी महाराज मां बगलामुखी उपासक सिद्ध शक्तिपीठ ज्वालामुखी हिमाचल प्रदेश

 
Swami Pranav Anshuman Jee: https://www.facebook.com/372279763585667/posts/660614711418836/


Bhakt Lokeshanand Swami: एक राज्य में राजवंश समाप्त हो गया था, राज्य का उत्तराधिकार किसे मिलता? तो दशकों से एक बड़ी विचित्र व्यवस्था चली आ रही थी। वे जन सामान्य में से ही किसी को राजा चुनते और पाँच वर्ष बाद उसे दूर घने जंगल में छोड़ देते, जहाँ जंगली जानवर उसे फाड़ कर खा जाते थे।
कौन मरना चाहेगा? इसीलिए अपनी खुशी से कोई राजा न बनता, और जो बनता, वह खाने पीने और मौज करने में ही समय बिता देता था।
एक बार एक संतसेवी युवक को राजा बनाया गया। वह तो लोक में ही परलोक का चिंतन करने का अभ्यासी था। उसने गद्दी संभालते ही, मंत्रिमंडल का गठन किया। राज्य को चार भागों में बाँटा, और अपने पाँच योग्य मित्रों को मंत्री चुना।
चार मंत्रियों को राज्य के एक एक भाग का, और पाँचवें मंत्री को उस घने जंगल का दायित्व सौंपा गया।
पाँचों ही पूरी कर्तव्यनिष्ठा से कार्य करने लगे। राजा भी निरंतर संपर्क में रहता और गुरू जी से विचार विमर्श करता हुआ, सारी व्यवस्था पर दृष्टि रखता।
पाँचों ही स्थानों पर सड़कों का जाल बिछ गया, भवन और पुल बन गए, सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद हो गई। राज्य तो चमक ही गया, जंगल भी कोई कम नहीं रहा।
योंही पाँच वर्ष बीत गए। राजा को जब जंगल की सीमा पर छोड़ा गया, तब वह अपने गुरूजी, अनेकानेक मित्रों और उनके संबंधी परिजनों के साथ सहर्ष जंगल में प्रवेश कर गया। जहाँ पहले से ही नगर बसा दिया गया था।
शीघ्र ही इसी संतसेवी युवक को पुनः पूरा राज्य सौंप दिया गया।
लोकेशानन्द कहता है कि हमें भी यह मनुष्य शरीर रूपी राज्य कुछ ही समय के लिए मिला है। मृत्यु के भय से, इसे विषय भोग में ही नष्ट मत करो। अभी से परलोक संवारने का प्रयास करो। तब मृत्यु होगी ही नहीं, तब तो अमरता प्राप्त हो जाती है।
लोक भी मिलता है, परलोक भी संवर जाता है।

 
Bhakt Sundram Shukla: 

*श्री "गुरुचरित्र"   अध्याय : १ (श्लोक 57-69 )*
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जो गुरु चरित्र का पठन करेगा उसके घर में अखंड लक्ष्मी देवी का वास रहेगा, पुत्र-पौत्री प्राप्ति की सभी मनोकामना पूर्ण होंगी ।। ५७ ।।
गुरुचरित्र का पठन जिनके घर में नित्य होगा जो प्रेम से इसका पठन करेगा उन्हें पुत्र, स्त्री सहित निरंतर लक्ष्मी देवी का आशीर्वाद मिलेगा ।। ५८ ।।
रोग आदि समस्या उनके घर में कदापि नहीं होंगी और गुरु कृपा से वह सदा संतुष्ट और सुखी रहेंगे । जो सातों दिन गुरुचरित्र का पठन करेगा वो ऐहिक बंधन से मुक्त हो जाएगा ।। ५९ ।।
ऐसी पुण्य कारक कथा मैं विस्तार से कथन करुंगा । इस कथा का जो भी पठन करेगा उसे विनासायास तुरंत फल प्राप्ति होगी ।। ६० ।।
अगर बिना प्रयास इच्छित फल की प्राप्ति हो रही हो तो आप व्यर्थ कष्ट क्यूँ करेंगे । विश्वास रखे सभी श्रोतागण आपकी सभी इच्छित इच्छाए गुरुचरित्र पठन से पूर्ण होंगी ।। ६१ ।।
स्वयं के अनुभव से मैं छोटा बालक आपको विनती कर रहा हूं कि श्री सद्गुरु स्मरण सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है । मेरी ये प्रार्थना आप सभी से की आप सभी खुद अनुभव कीजिए ।। ६२ ।।
मैं अपने खुद के अनुभव से कहता हूँ कि, जिस प्रकार मधुर और सुंदर भोजन से मन को और शरीर को तृप्ति मिलती है उसी प्रकार गुरुचरित्र श्रवण और पठन से आपको तृप्ति अनुभव होंगी ।। ६३ ।।
छोटी सी मधुमक्खी, उसके मुख से निकला हुआ मधु कितना सुंदर और मधुर होता है, है न । भले मैं छोटा सा सामान्य व्यक्ति हूँ लेकिन मेरे वचन से आप उदास न होना ये वचन भी सर्वार्थ से ग्राह्य ही है ।। ६४ ।।
कौन सीप में मोती निर्माण करता है । कौन केली वृक्ष में कपूर उत्पन्न करता है । अश्वत्थ वृक्ष का मूल कौन निर्मित करता है ।। ६५ ।।
दिखने में, टेडे मेडे और काले से दिखने वाले गन्ने से अमृत समान मधुर रस निकलता है । भले ही मेरा कथन आपको सामान्य लगे इसकी आप उपेक्षा नहीं करना ।। ६६ ।।
जिन्हें गुरु स्मरण प्रिय है वह सभी मेरा यह कथन अनुभव करेंगे और एकचित्त से स्वीकार करेंगे ।। ६७ ।।
जिन्हें परमात्मा से प्रेम है वह सभी यह कथन सुनते ही उसका अनुभव भी करेंगे ।। ६८ ।।
गुरुचरित्र कामधेनु के समान है । जो भी इसे सुनेगा उसे महाज्ञान की प्राप्ति होगी । इसी कारण श्रोता जन हो, आप एकचित्त हो कर गुरुचरित्र का पठन करना ।। ६९ ।।
क्रमशः ...

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रतिदिन सुख की चर्चा चलती है जिसके लिये सभी ललायित रहते है।
प्रभु जी यह सुख क्या है?
क्या इंद्रियों से भोग सुख है यदि नही तो इन्द्रियॉ क्योंकर सुख का  आभास करती है?
यदि सुख प्रीतम है तो दुख का प्रकाट्य क्यों? जबकि विभिन्न प्रयत्नों का प्रतिफल सुख है तो दुख हेतु जब प्रयास ही नही किया गया तो दुख क्यों?
अक्षुण्ण सुख क्या है? वो सहज प्राप्त क्यों नही होता?, यदि जीव परमात्मा का अंश है तो पिता की सम्पत्ति पुत्र को हस्तांतरित क्यों नही होती?
जब अक्षुण्ण सुख सबको जानकार है तो जीव क्योंकर और किस की कल्पना और कामना  करता है?


Bhakt Vikas Sharms: मेने आज विपुल सर की बताई MMSM ध्यान विधि की। में एकांत में बैठ गया ओर विधि फॉलो करने लगा। कुछ समय बाद कोई वस्तु गिरने की आवाज़ से में थोड़ा डर गया था। फिर मेरे पेट के ऊपर वाला हिस्सा  अत्यधिक तीव्र जलने लगा। फिर मुझे सर के ऊपर वाले हिस्से में भारीपन लगा और कुछ समय बाद सर का हिस्सा  ठंडा हो गया। उसके बाद में पूरी तरह स्थिर हो गया। उसके बाद करीब 25-30 munit में रख जगह स्थिर रहा फिर में वापस सामान्य स्थिति में आ गया।
धन्यवाद विपुल सर।
✨🙏🏻✨

 
Swami Triambak giri Fb: 4 दिन के भूखे व्यक्ति को चार दिन की बासी रोटी मिल जाती है तो सुखी हो जाता|


 सुख-दुख का समाधान है बस केवल |
यानी कि जो आदमी किसी अवस्था व्यवस्था में दुखी रहता है उस अवस्था व्यस्था में वृद्धि हो जाने से वह अवस्था ठीक हो जाने से सुखी हो जाता है |
और जिस सुख की आप बात कर रहे हो यह सुख नहीं या आनंद है और आनंद जब व्यक्ति को प्राप्त हो जाता है तो हर अवस्था व्यवस्था में वह आनंदित रहता है|
और आनंद को प्राप्त करने का एक ही उपाय है परमात्मा की पहचान |
इस विधि में न किसी को गुरु बनाना है न कुछ पैसा खर्च करना है सिर्फ अपने घर में कुछ समय देना है वह भी आदमी नहीं दे पाता है। क्योंकि आदमी इतना आलसी और कामचोर है कि उसको जैसे टीवी ऑन किया दृश्य दिखाई दिया वैसे ही उसको सब कुछ दिखना चाहिए।
यहां तक कि इस विधि के द्वारा विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति के भी मार्ग निकलते हैं लेकिन आदमी करना ही नहीं चाहता है अभी हम क्या बोले।
यह सब प्रभु कृष्ण की लीला है उन्होंने यह विधि निर्मित कराई थी लेकिन लोगों को लगता है विपुल भाई झूठ बोलते हैं ठीक है भैया हम झूठ बोल रहे हैं।
जब इतनी पकी पकाई चीज उसनमें काम चोरी है। शंका है तो फिर यह भूल जाओ कि तुमको प्रभु प्राप्त होगा यह सद्गुरु प्राप्त होगा।
जय गुरुदेव जय महाकाली।
💐💐🙏🏻🙏🏻💐💐

 
Hb 96 A A Dwivedi: पर्व जी आपके सवाल का जवाब😊🌹👏🙏
Hb 96 A A Dwivedi: विस्तार से जानकारी दे इस विधि से कौन कौन लोगों ने लाभ उठाया और आज उनकी स्थिति क्या है और जो भी लोग लिखना चाहता है लिखे ताकि लोगों को लाभ होगा🌹👏😊🙏


प्राय ये ही समझा जाता है कि इंद्रियों द्वारा द्वारा किसी वस्तु की प्राप्ति के उपभोग के पश्चात होने वाला अनुभव सुख है।

कुछ अधिक आगे बढ़े तो यह महसूस होता है कि मानसिक शांति मिली तो सुख है।

प्रत्येक मनुष्य के लिए सुख और दुख यह अलग अलग है क्योंकि यह सापेक्ष हैं। एक करोड़ पति को 100000 मिल जाए वह भी नहीं होगा लेकिन एक दरिद्र को एक हजार मिल जाए तो सुखी हो जाएगा।

तो प्रश्न यह है कि सुख क्या है।

सुख मनुष्य के मन की अवस्था है।

लेकिन यह भी समझ में नहीं आती।

इसके लिए हमारे वहां संतो ने बताया है शास्त्रों ने समझाया है कि यदि तुम को स्थाई सुख प्राप्त हो जाए तो तुम सुख-दुख से ऊपर हो जाओगे।

 प्रश्न है कि स्थाई सुख कैसे मिले।

लौट कर एक ही बात आती है पहले अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करो लक्ष्य निर्धारित होने के बाद ही स्थाई सुख की कल्पना की जा सकती है।

एक बार स्थाई सुख प्राप्त हो गया तो जीवन आनंद में हो जाता है।

दुख सुख का विपरीत है दोनों ही मन के भाव है।

वस्तु प्राप्त तो सुख नहीं प्राप्त दुख।

जीव परमात्मा का अंश है वेद महावाक्य कहता है। अयम आत्मा ब्रह्म।

अंश की बात नहीं कर रहे हम ब्रह्म ही हैं किंतु हम अपने मूल रूप को नहीं जानते हैं।

जब मनुष्य का पहला जीवन हुआ तब नर और नारायण एक ही समान थे बल्कि ब्रह्म के दोनों समान रूप थे।

पालन की जिम्मेदारी विष्णु की यानी नारायण की और कर्म की जिम्मेदारी नर की। अब यह क्यों की गई इसका उत्तर नहीं क्योंकि यह उस्मा शक्ति की मर्जी।

फिर मनुष्य यानी न उसको अपनी संख्या बढ़ानी है जिसके लिए आदम और हव्वा वाली सिद्धांत।

नारायण ने नर की हड्डी से स्त्री का निर्माण किया यह सही है वैज्ञानिक है क्योंकि मनुष्य में एक्स और वाई क्रोमोसोम होते हैं जबकि स्त्री में केवल एक्स एक्स होते हैं।

यानी नर के क्रोमोसोम द्वारा स्त्री का निर्माण हो सकता है।

अब मनुष्य से बोला भाई तुम अब संसर्ग करो जनसंख्या बढ़ाओ लेकिन याद रखना तुम्हारा वास्तविक रूप नारायण ही है।

लेकिन मनुष्य उसको मात्र जनसंख्या बढ़ाने हेतु जो कार्य करना था उसमें वह आनंद लेने लगा यानी उसने संस्कार पैदा किए कर्मफल पैदा किए जिनको भोगने के लिए नारायण ने कहा चलो भाई एक जन्म और लो लेकिन इसमें गलती मत करना।

नर ने कहा भाई ठीक है हम नहीं करेंगें गलती। लेकिन वह जो अगले जन्म में आया तो सब भूल गया इसी भांति वह अपने नारायण के वास्तविक रूप से अलग होता गया दूर होता गया।

जब उसके संस्कारों का कर्म फल का बोझ इतना अधिक हो गया कि एक मानव जीवन में उसको नष्ट करना संभव नहीं है तो उसको भोग योनि दे दिया गया यानी जानवर पशु पक्षी बना दिया गया।

फिर जब वो इस लायक हो की भोग भोगने के पश्चात मनुष्य के एक जन्म में वह संस्कार विहीन हो सकता है तो उसको फिर मानव जन्म दे दिया गया।

हमारे दुख और सुख यह हमारे खुद के कर्म फल है ईश्वर किसी को भी ना सुख देता है ना दुख देता है।

वह सदैव मानव के कल्याण हेतु प्रेरित रहता है परम दयालु और कृपालु हैं।

वेदों में उपनिषद में हमको जीने की कला दिखाने का प्रयास किया गया किंतु हम सीख ना सके।

जीव का जो मस्तिष्क है वह अनंत है एक कंप्यूटर की भांति वह स्वतंत्र है कुछ भी सोचे कुछ भी करें उसमें शक्ति तो ईश्वर की होती है और क्षमता भी अपने प्रारब्ध से कर्मफल से आती है।

लेकिन क्या करें क्या ना करें यह तो स्वयं मानव की मर्जी है।

लेकिन इस सारे वक्तव्य भी गलत है क्योंकि एक अवस्था के बाद यही लगता है कि ईश्वर ही सब कर रहा है दास मलूका का दोहा याद आता है अजगर करे ना अजगर पंछी करे न काम दास मलूका कह गए सबके दाता राम।

यानी यह स्तर की बात है कि हम किस भाव में रहते हैं और हमारी सोच क्या है।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

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आत्म अवलोकन

मैंने प्राय: यह देखा है कि लोग अपनी फोटो लेने के लिए तरह तरह के पोज बनाकर कोई भी छोटे-मोटे कार्य हो बड़े कार्य हो कोई भी हो उनकी फोटोएं लेकर एक नहीं अनेक लेकर विभिन्न सोशल नेटवर्क पर डालते हैं।

यदि हम सूक्ष्म रूप में देखें तो यह हमारे मन की और मानसिक स्तर पर अव्यवस्थित होने का संकेत है।

आध्यात्मिक स्तर पर यह हमारे अहंकार का प्रतीक है।

यह हमारे अंदर प्रशंसा की भावना का प्रतीक है।

यह हमारे अंदर दिखावा का भी प्रतीक है।

यह हमारे अंदर प्रचार करने की प्रवृत्ति का प्रतीक है।

यदि आपको किसी व्यापार का या बात का प्रचार करना है तो यह आपकी बाध्यता है। क्योंकि आपको अपनी बात को अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाना है। आप चाहते हैं और लोग भी प्रेरित हो धर्म की ओर। तो भी ठीक है।

एक ही विषय के अनेक फोटो डाल कर क्या प्राप्त होता है।

किसी भी वस्तु का अनावश्यक उपयोग करने से हम स्वयं अपने आप से दूर भागते।

साथ ही हम पर्यावरण प्रदूषण भी करते हैं।

मेरा तो इस विषय में यही आत्म अवलोकन है।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली

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