आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 30 (कबीर की उलटवासियां)
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 30
(कबीर की उलटवासियां)
Jb Lokesh Sharma: *KINDLY READ YOU WILL ENJOY.*
👌🏻👌🏻 *_( अक्षर ढाई )_* 👌🏻👌🏻
*ज्ञान मार्ग जब ,खोजने निकला,*
*मार्ग मिला ,अलबेला।*
*जहां भी जाऊं ,जिधर भी देखूं,*
*मिले ढाई अक्षर ,का मेला।*
*सोचा इक पल ,ध्यान लगा कर*
*क्या होता है ,अक्षर ढाई*
*आया मेरी ,समझ में जो*
*बतलाता हूं ,मैं वो भाई*
*रह जाता सब ,ज्ञान अधूरा*
*जो ना मिलता ,उत्तर भाई।*
*ढाई अक्षर का वक्र,*
*और ढाई अक्षर का तुंड।*
*ढाई अक्षर की रिद्धि,*
*और ढाई अक्षर की सिद्धि।*
*ढाई अक्षर का शंभु,*
*और ढाई अक्षर की सत्ति*
*ढाई अक्षर का ब्रम्हा*
*और ढाई अक्षर की सृष्टि।*
*ढाई अक्षर का विष्णु*
*और ढाई अक्षर की लक्ष्मी*
*ढाई अक्षर का कृष्ण*
*और ढाई अक्षर की कांता।(राधा रानी का दूसरा नाम)*
*ढाई अक्षर की दुर्गा*
*और ढाई अक्षर की शक्ति*
*ढाई अक्षर की श्रद्धा*
*और ढाई अक्षर की भक्ति*
*ढाई अक्षर का त्याग*
*और ढाई अक्षर का ध्यान।*
*ढाई अक्षर की तृप्ति*
*और ढाई अक्षर की तृष्णा।*
*ढाई अक्षर का धर्म*
*और ढाई अक्षर का कर्म*
*ढाई अक्षर का भाग्य*
*और ढाई अक्षर की व्यथा।*
*ढाई अक्षर का ग्रन्थ,*
*और ढाई अक्षर का संत।*
*ढाई अक्षर का शब्द*
*और ढाई अक्षर का अर्थ।*
*ढाई अक्षर का सत्य*
*और ढाई अक्षर का मिथ्या।*
*ढाई अक्षर की श्रुति*
*और ढाई अक्षर की ध्वनि।*
*ढाई अक्षर की अग्नि*
*और ढाई अक्षर का कुंड*
*ढाई अक्षर का मंत्र*
*और ढाई अक्षर का यंत्र।*
*ढाई अक्षर की सांस*
*और ढाई अक्षर के प्राण*
*ढाई अक्षर का जन्म*
*ढाई अक्षर की मृत्यु*
*ढाई अक्षर की अस्थि*
*और ढाई अक्षर की अर्थी*
*ढाई अक्षर का प्यार*
*और ढाई अक्षर का स्वार्थ।*
*ढाई अक्षर का मित्र*
*और ढाई अक्षर का शत्रु*
*ढाई अक्षर का प्रेम*
*और ढाई अक्षर की घृणा।*
*जन्म से लेकर मृत्यु तक*
*हम बंधे हैं ढाई अक्षर में।*
*हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में,*
*और ढाई अक्षर ही अंत में।*
*समझ ना पाया कोई भी*
*है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।*
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Printer Raman Mishra: एक अचंभा देखा रे भाई, ठाढ़ा सिंध चरावै गाई॥टेक॥
पहले पूत पीछे भइ माँई, चेला कै गुरु लागै पाई।
जल की मछली तरवर ब्याई, पकरि बिलाई मुरगै खाई॥
बैलहि डारि गूँनि घरि आई, कुत्ता कूँ लै गई बिलाई॥
तलिकर साषा ऊपरि करि मूल बहुत भाँति जड़ लगे फूल।
कहै कबीर या पद को बूझै, ताँकूँ तीन्यूँ त्रिभुवन सूझै॥
Lo brother, I saw a wonder! The lion stood herding the cows!
First the son was born, then the mother! The Guru falls at the feet of the disciple!
The fish of the waters gave birth on a tree! The chicken caught and ate the cat!
The ox put on reins and came home! The cat takes away the dog!
The earth turned upside down to be the sky! In the ant's mouth the elephant fit!
Without wind the mountain flew! All living, all animals drowned in the tree!
A wave arose in the dried up lake! The shelduck sploshed without any water!
The branches were on the ground and the trunk above! With very bright flowers on the roots!
Says Kabir, who understands this song, to him the three worlds are deciphered.
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कबीर की उलटबांसियों के पूरे मिज़ाज़ में ही अचम्भा है। अचम्भा है कि सिंह गायों का पालक बना हुआ है। रक्षक जहां भक्षक बने हुए हैं वहां भक्षकों को रक्षक बनाना आजकल व्यंग्य बन जाता है। प्रजातंत्रीय घोषणापत्रों ने ऐसे व्यंग्य बहुत किये हैं।
- अचम्भा ही है कि पहले बेटे हुए और बाद में माताएं। जीव को माया कहुत बाद में दबोचती है। अगर व्यवसाय या मुद्रा-स्वार्थ का वाणिज्यशास्त्र देखें तो एक समय बाद मां सिर्फ होर्डिंग रह जाती है और पुत्र के पीछे बहुएं (मायायें) राज्य करती है। यह नीति की नहीं अर्थशास्त्र की मजबूरी है।
-अचम्भा ही है कि जल के बिना न रह सकने वाली मछलियां हवा मे अपने बच्चे देती है। बिल्ली को पकड़कर मुरगियां खाने लगती हैं। बैलों के बिना भरे हुए मालवाली गाड़ियां गोदामों में पहुंच जाती हैं। भड़ियाई के लिए प्रसिद्ध बिल्लियां वफादारी के लिए विख्यात कुत्तों को लेकर चम्पत हो जाती हैं। भारतीय पुरुष विदेशी हो जाते हैं।
-अचम्भा ही है कि शाखाएं नीचे तल के नीचे चली गई हैं। भूमिगत हो गई हैं और जड़ों में बहुत प्रकार के फूल-फूले हुए हैं। जड़बुद्धि फल-फूल रहे हैं, ऐसी बातें कहकर बहुत से भारी-भारी विद्वान लोग आहें भरते हैं और फिर भी केवल परिचितों को ,गांठ के पूरों को उछालते रहने से बाज नहीं आते। उन्हें अपने बिलाने का खतरा है। गांठ के पूरे ही उन्हें उबार सकते हैं।
शब्दार्थ ------नैया = नावका, मानव = शरीर , नदिया =नदी , संसार
गदहा == अविवेक | दो सींग= राग -द्वेष | कुआ = हृदय | आग = ज्ञान अग्नि | कीचड़ कादो = मन कि मलिनता | मछली =ज्ञानवती मनोवृति | बन्दर = शुद्ध मन | गाय = सदबुद्धि | दूध = जीवन मुक्ति का आनद | घियना = जीवन मुक्ति का सार गुणातीत दशा | बनारस = मोक्षदशा
भावार्थ ----मानव -शरीर संसार - सागर से तरने की नावका है | विवेकवान साधक की साधना के बल से मानव - शरीर रूपी नावका में संसार रूपी नदी डूब जाती है , शून्य हो जाती है और साधक का संसार - सागर से बेड़ा पार हो जाता है
हमने एक अचम्भा देखा की अविवेकी रूपी गदहा के राग -द्वेष रूपी दो सींग हैं | इस गदहे के गले में नाना काल्पनिक साधना के रस्से बाँध कर अर्जुन तथा भीम जैसे बलवान खीचते है , परन्तु उसे बिना विवेक के वश में नही कर पाते है || १||
हमने दुसरा अचम्भा देखा विवेकवान साधक के हृदय - कुए में विवेक ज्ञान की आग लग गयी और मन की मलिनता रूपी कीचड़ - कादो जलकर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया , इसलिए ज्ञानवती मनोवृति रूपी मछली आनद का फाग खेलने लगी ||२||
तीसरा अचम्भा कि शुद्ध मन रूपी बन्दर शुद्ध बुद्धि रूपी गाय का दोहन कर रहा है | उसका दूध - दही जीवन मुक्ति का आनद है , जिसका उपभोग जीवन पर्यंत शुद्ध मन स्वंय करता है और उसका गुणातीत दशा रूपी मक्खन विदेहमुक्ति में पहुचता है ||३||
यह व्याख्या बिल्कुल ग़लत दिखती है। कबीरदास योगमार्गी थे। कुण्डलिनी के ज्ञाता अत: उनकी बात बचकानी नहीं हो सकती।
यह सही लगती है।
Printer Raman Mishra: यह गायत्री परिवार द्वारा प्रस्तुत व्याख्या है। हमारी पहुंच यही तक है। आप की बात में सत्यता है। कबीर सच्चे योगी थे।
कहा भी गया है...
ज्यों ज्यों डूबे श्याम रंग
त्यों त्यों उज्जवल होय।🙏
कुछ प्रयास करता हूं बाकी बाद में बताऊंगा।
मनुष्य के शरीर में आत्मा एक सिंह की भांति होती है। सर्वशक्तिमान मनुष्य को जीवन देने का काम उसी का है।
लेकिन अज्ञानी मनुष्य उसको आत्मा का ज्ञान नहीं होता है तो वह जगत के प्रपंच में पड़ा रहता है और विभिन्न प्रकार की वासनाओं को गाय की तरीके से पालता रहता है उनका दुग्धपान करता रहता है।
सबसे बड़ा अचंभा है।
दूसरे मुहावरे में होना जगत में यह चाहिए की ज्ञानी की पूजा हो लेकिन होता क्या है पहले बेटा पीछे माई मतलब जो आदमी शक्ल सूरत वेशभूषा बना लेता है ज्ञानियों की उसका सम्मान होने लगता है और जो ज्ञानी वास्तव में ज्ञान युक्त होता है जिसके ज्ञान से सभी को प्रकाशित होता है वह पीछे रह जाता है क्योंकि जाने के वाह आडंबर पर ध्यान नहीं देता है।
मनुष्य स्वयं ब्रह्म का रूप होता है वह उसको न जान कर जो गुरु का गुरु है इसको न मानकर वाहिक रूप से आकर्षित होकर किसी को प्रणाम करने लगता है।
तीसरे में जल की मछली यानी कुंडली शक्ति जो सुषुम्ना नाड़ी में चढ़ती है। किसी पक्षी की भांति ऊपरी मंजिल पर पहुंच जाती है। और सहस्त्र सार को वर लेती है। जागृत मनुष्य उसकी जो शक्ति है वह मनुष्य जो म्याऊं म्याऊं करता है मतलब मैं मैं करता है उसको खा डालती है यानी नष्ट कर देती है
बैल ने अपना बंधन स्वयं ही बांध लिया। और घर की ओर चला आया।
मतलब जो छुटा घूमने का आदी है वह है हमारा मन हमारी इंद्रियां।
मन रूपी बैल में इंद्रियों के द्वारा बांधा गया अपने घर वापस आया।
मतलब वह अवस्था जब इंद्रिया स्वयं मन को बांधने लगती है। अपने निज स्वरूप के लिबास में जाने लगती है।
कब होता है जब शक्ति जागृत हो जाती है हमें आप ज्ञान प्राप्त हो जाता है यानी समर्थ गुरु की कृपा फलित होने लगती है तब होता है।
तब अपरिचित को देखकर इन पर भोकने वाला मन उनको हमारा मैं यानी हमारा आत्म स्वरूप बांध देता है।
कुकर का स्वभाव होता है किसी भी हड़िया में मुंह डालना मतलब भटकना।
इस श्लोक में पेड़ की टहनियां नीचे है और जड़ ऊपर है यह है भगवत गीता का श्लोक है।
मतलब ब्रह्म जो सबसे ऊपर और नीचे आते आते उसमें यह पुष्प रूपी संसार निर्मित होता है।
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