Thursday, September 3, 2020

राहत से आहत(दोहे)

 राहत से आहत(दोहे)

विपुल लखनवी नवी मुंबई


राहत ने न की कभी,  राहत की कोई बात।

अपनी बातों से सदा,  करता था अघात।।

हिंदू सेकुलर नपुंसक कायर,  उसको था मालूम।

हिंदू मुस्लिम करता रहा,  दे हिंदुन को लात।।

नहीं प्रेम का भाव था,  जो था उसके विपरीत।

घाव नमक छिड़के सदा, यह उसकी थी रीत।।

कभी नहीं कर पाएगा वह,  जन्नत का आगाज।

शायर ऊंचा बात थी नीची,  विपुल की आवाज।।


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