१.वेद सनातन ज्ञान है। जो कभी नष्ट नहीं होता। यह आप यूं समझे जो मनुष्य आत्म साक्षात्कार कर लेता है तो उसकी शिक्षा स्वयं वेद की शिक्षायों से मिलने लगती है। अत: ज्ञानी मनुष्य की पहिचान होती है कि उसकी बात वेदों से मेल खाये। इनको समझाने हेतु इनकी शिक्षाओं पर शोध कर जो लिखे गये वे उपनिषद कहलाये। वेदों की शिक्षाओं पर तथ्य द्वारा विभिन्न विषय पर तर्क सहित जो लिखे गये वे षट् दर्शन कहलाये। इन सभी का निचोड़ श्रीमद्भग्वद्गीता है। जिसको चारित्रिक उदाहरण सहित रामचरित मानस ने जन जन तक पहुंचाया। हर सृष्टि के आदि में चार ऋषियों को आत्म ज्ञान द्वारा यह स्वयं ईश्वर द्वारा प्रगट किये जाते हैं । जो मनुष्य को वास्तविक रूप का ज्ञान बोध करवाते हैं। अत: यह साकार निराकार द्वैत अद्वैत सगुण निर्गुण या यूं कहो हर उस पद्धति को समझाते हैं जिसके द्वारा मनुष्य अंतर्मुखी हो सकता है।
२.वेद सब सभी मानव जाति के कल्याण लिए हैं। यह सभी प्रकार के ऊंच नीच व अन्धविश्वास पाखंड आदि का समर्थक नहीं है । यह वसुधैवकुटुम्बकम् सहित मानवता का संदेश देता है। यह सभी वर्गो के लिये हैं ।
३.चूंकि संस्कृत देव नागरी है यानि इसका जन्म मानव शरीर से हुआ है। हमारे शरीर के चक्रों पर जो ध्वनियां अनाहत उत्पन्न होतीं है उनको लिपिबद्ध कर संस्कृत का जन्म हुआ है। अत: यह संस्कृत भाषा में हैं जिसे सीखने के लिए सबको एक जैसी मेहनत करनी पडती है।
४. वेद में ईश्वर जीव प्रकृति व सृष्टि का यथार्थ ज्ञान है जो सूत्र रुप में है। अत: उपनिषद षट् दर्शन का निर्माण हुआ जिसकी सहायता के द्वारा इसको समझा जा सके।
५. वेद में सब बातें सृष्टि नियमों के अनुसार हैं । वेद कभी अनियमित बात नहीं करता।
६. वेदों में कोई इतिहास व किस्से कहानियां नहीं। मात्र मार्गदर्शन है।
७. वेद ईश्वरीय वाणी है- इसका साक्ष्य कई मनुष्यों भी ने किया है। आप भी कर सकते हैं।
८. वेद में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता क्योंकि यह सृष्टि के लयात्मक सिद्धांत हैं।
९. वेद पूरी मानव जाति का संविधान है ।
अत: विश्वशांति हेतु वेद या सम्बंधित साहित्य का पढ़ना पढ़ाना सुनना सुनाना आज की आवश्यकता है।
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