Friday, March 9, 2018

क्या अंतर है ध्यान और समाधि में




क्या अंत है ध्यान और समाधि में


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
.सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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मैं जब छोटा था तो नौबस्ते मोहल्ले लखनऊ में गली के बाहर किन्ही संत पुरुष स्वामी गिरधारा जी महाराज की समाधि बनी हुई है।  उन महापुरुष को मैं न जानते हुये के क्या है मां के कहने पर मैं प्रनाम कर लिया करता था। समाधि यानी जिनके मृत शरीर पर बना हुआ एक चबूतरा। यही अर्थ समझता था और वास्तव में यही अर्थ हैं भी।

कुछ कहने के पूर्व मैं अनुभव करता हूं कि मार्कंडेय कितने बडे ज्ञानी और आज की दुनिया के महाविज्ञानी थे जो साधना और ध्यान और समाधि को श्रीमद दुर्गा सप्तशती में सिद्द कुंजिका स्त्रोत में साकार समझा गये और यहां तक ध्यान के नौ द्वारो की कुंजी भी दे गये। समाधि की 11 अवस्थाये या जिनको पुराणो में 11 विमायें कहा है उनको भी साकार कर बता गये। परंतु यह रहस्य केवल शक्ति की आराधना या यूं कहो अखंड मंत्र जप। चाहे वह किसी गधे की भांति मूर्खो की तरह करते रहो करते रहो। वो ही सहज जान सकता है। और यह मेरा दावा है कि मात्र निराकार की आराधना से कोई जान ही नहीं सकता। वह केवल ध्यान के सात द्वार तक जा सकता है। सम्भावना यह भी है कि अभिमन्यू की भांति वापिस भी न आ सके। वहीं जाकर वह मृत समाधि ले ले। जो बाद में जगत पूजा का स्थान बना दे। किंतु जिसने साकार से निराकार का अनुभव किया है और जिसने परमशक्ति अविनाशी कृष्ण के निराकार अनूभूति की है या यू कहो निराकार के भी दर्शन किये हैं उसके लिये यह एक खेल है। इसीलिये अर्जुन इसको भेद सकता था क्योकि उसने गुरु से सीखा और कृष्न के निराकार रूप को जाना। पर अभिमन्यू केवल गर्भ में सुनकर (ध्यान दे) बिना गुरु से सीखे बिना कृष्न के निराकार रूप को जाने उसको भेदता चला गया जहां पर मन रूपी दुर्योधन खडा था। पर लौट न सका यहां तक स्वय भीष्म द्रोणाचार्य कृपाचार्य सहित और भी सिर्फ खडे रहे उसको बचा न सके। यह है प्रारब्ध और हमारी अवस्था जो हमें सिर्फ निराकार आराधना से प्राप्त होती है। 

साकार में कृष्न का साकार रूप किसी न किसी तरह सहायता करता रहता है। और शक्तिशाली समर्थ गुरु की कृपा से किसी भी देव की उपासना के रूप में कृष्ण और इष्ट की मंत्र शक्ति उसे नवे द्वार तक ले जाती है। जो साकार या शक्ति की सीमा है। जहां उसे शिव का सानिध्य मिलता है जो स्वत: अपनी कृपा से समाधि के 11 वें द्वार तक ले जाता है। और निराकारी परम अविनाशी कृष्ण मिलते है। जिनकी कृपा से अंतिम 12 वां द्वार पर मानव खुद खडा होकर सृष्टि का निर्माण योग लीला सभी देवों और शक्ति के विभिन्न स्वरूपों महापुरुषो के जन्म उनके द्वारा की गई साधानाये उनके समाधि या ध्यान की अवस्थाओं को भी देख सकता है। 

अब विज्ञानी आइंसटाइन की समय की व्याख्या समझनी पडेगी। तब यह समझ में आयेगा। समय का समयकाल भी गति और गुरुत्वाकर्षण यानी बडा वाला जी और छोटावाला जी के अनुसार बदल जाता है। जैसे 24 घंटे की साधना के बराबर 1 सेकेंड की समाधि का अनुभव। इसी भांति समाधि के भी 11 द्वार यानी समय का काल और गति की विमायें। (यह फिजिक्स वाली नही बल्कि प्याज की परतें समझो)  आप खुद गणना करे तो जो पुराणो में वर्णित है वही पायेगे। भौतिक शास्त्री इस पर कृपया गणना कर बताये।

अब ध्यान में सोचो। विपश्ना कौन कर रहा है मैं। त्राटक कर्ण सिद्दी सुगंध या धवनि नाद और खेचरी वज्रोली  स्तम्भन प्रणायाम कौन कर रहा है मै। पर मंत्र जप साकार सगुण में प्रारम्भ में मैं जप करा हूं पर जप स्वत: छूटने के बाद किधर गया मैं वहां केवल सगुण साकार और उसकी अनूभूति फिर उसकी कृपा से महामाया की अनुकम्पा से परदा हटा तो क्या ओह यह है निराकार सिर्फ शक्ति पर यह भी भ्रमित कर रही है हे महामाया तेरी लीला। ठीक है महामाया का पर्दा और हटा देखा अरे यह कौन । बाप रे ग्वाला कान्हा तुम निराकार । कान्हा मुस्कुराया और कहेगा चलो यहां बैठो। और जब चाहो जाओ आओ। जगत की लीला का अनुभव लो। अपनी बेतर्क की बुद्दी से तर्क करो मेरी व्याख्या करने की कोशिश करो। कलियुग है पर शायद कुछ शब्दों में कर पाओ।

देखो ध्यान के छह चक्रो तक कर्ता का अभिमान रहता है। हां सातवे द्वार के आगे समाधि के सभी द्वारों तक यू कहो सुरंग जैसे रास्तों से आ जा सकते हो। जहां प्राय: सीधे सीधे निराकार की साधना करने वाले भ्रमित होकर बाहर नही आ पाते हैं। उनका जीव और चेतन पुन: शरीर में वापिस न जा पाता है। पर साकारवाले को उसके मंत्र की शक्ति जो जाग्रीत होकर उसे बचा देती है। साधक का समर्पण किसी मां जो अपने बच्चे की रक्षा करती है वैसे ही किसी भी अनहोनी या अंजानी शक्ति से टकरा कर लडकर भी बचा लेती है। और तमाम अनुभूतिया जैसे अह्म ब्र्म्हास्मि या सोअहम या एको अहम दितीयोनास्ति मात्र एक खेल और लीला लगती हैं। जिनको निराकारी सत्य मानकर भगवान या ओशो बनने की भूल कर अपना विनाश कर लेते हैं। क्योकि माया जो भगवान के अधीन है वह इस मानव के अधीन तो होती नहीं।  अत: मानव भटक जाता है। 
इस प्रकार अनुभव मात्र कुछ महापुरुष कर पाये हैं। जिनमें गायत्री उपासक पूजनीय आचार्य शर्मा, अरविन्द घोष, परमपूजनीय गुरु महाराज स्वामी नरायणदेव तीर्थ जी महाराज व अन्य, संत तुलसी दास, कुछ सीमा तक रसखान, मीरा तो स्वयं अवतार थी, समर्थ गुरु रामदास, तैलंग स्वामी सहित कुछ और ।
समाधि की परिभाषा : 
तदेवार्थ मात्र निर्भासं स्वरूप शून्यमिव समाधि।।
न गंध न रसं रूपं न च स्पर्श न नि:स्वनम्।
नात्मानं न परस्यं च योगी युक्त: समाधिना।।
भावार्थ : ध्यान का अभ्यास करते-करते साधक ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है कि उसे स्वयं का ज्ञान नहीं रह जाता और केवल ध्येय मात्र रह जाता है, तो उस अवस्था को समाधि कहते हैं। (जहां ध्येय भी छूटे वहां और आगे

हरि ॐ हरि 


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 


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