Sunday, April 22, 2018

क्या सनातन का अर्थ हिंदू ही है




क्या सनातन का अर्थ हिंदू ही है


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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         प्राय: लोग भ्रमित होकर सनातन को हिंदू समझने की भूल कर बैठते हैं। जबकि सनातन पहले आया इसकी राह पर चलने कुछ लोग हिंदू या वैदिक हिंदू, कुछ जैन और बाद में बौद्द और बहुत बाद सिख।
          वास्तव में 'सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त सनातन मूलत: भारतीय भू भाग में मानव द्वारा परमशक्ति और अपनी शक्तियों को जानने और मानवीय मूल्यो का धर्म अर्थात तरीका है। चूंकि यह अनंत है अत: य्ह मनुष्य की सोंच को अनंत तक ले जाता है और सोंचने का अवसर देता है। 

         सनातन को किसी विशेष सम्प्रदाय से जोडना महामूर्खता है और इसको छोटा कर देना है। मनुष्य की जितनी बडी सोंच हो सकती है यह उतना विशाल है। जितनी छोटी सोंच हो सकती है उससे भी छोटा है।  कहने का अर्थ यह है जो मानव चिन्तन कर सोंच कर अनुभव कर सकता है उसे सनातन कहते हैं। जैसे यदि आप विभिन्न जाति की पुस्तकें पढें तो आप देखेगे वह आपकी सोंच को सिर्फ एक किताब त सीमित करते हैं। आपको मजबूर करते हैं कि आप सिर्फ उसी किताब के इर्द गिर्द ही सोंचे। एक तरह से आप बुद्दि के बंधक हो गये। 

           जैसे सिर्फ कुरान में जो दिया बाइबैल में जो दिया आप उसकी सोंच के बाहर न जायें। उसी के दायरे में रहें। जबकि सनातन कहता है तुम खुद अपनी किताब लिख सकते हो यदि वह समाज के हित में है तो सही है अन्यथा गलत। यहां तक तुम साकार हो सही है, निराकर हो तो भी सही है, आस्तिक हो तो भी सही, नास्तिक हो तो भी सही।
         कुछ लोग बिना समझे सनातन को रूढिवादी कह देते हैं। मेरी निगाह में वो महामूर्ख और अनप हैं। बिना पढे बिना जाने आप एक महासागर को नाला बोलते हैं तो आपको क्या कहा जायेगा।

         सनातन किसी का अंधाधुंध पालन करना नहीं कहता है। तर्क वितर्क यहां तक कुतर्क को भी स्थान देता है। यह आलोचना समालोचना टीका टिप्पणी सबको समान अधिकार देता है। तो यह रूढिवादी कहां हो गया।  जिसने मूर्तिपूजा का खंडन किया साकार का खंडन किया वे महात्मा बुद्ध कहलाये। जिनको कुछ साकार विष्णु का अवतार मानते हैं। अब बोलो। क्या किसी और धर्म में यह कह सकते हो। मौत की सजा सुना दी जायेगी। तो रूढीवादी कौन।

       आध्यातमवाद, भौतिकवाद, द्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद, अद्वैतवाद, जैसे दर्शन को जनम देता है सनातन। ईशवरवाद , अनिशवरवाद, सर्वेश्वरवाद (Pantheism), निमित्तोपाद्वेशवरवाद   (Panentheism), अनेकेशवरवाद (Polytheism),   जैसे सिद्धांतों को जन्म देता है सनातन।

          चार्वाक ईश्वर को नही मानते पर उनको ऋषि कहा जाता है। उनका दर्शन भूमि, जल, वायु, अग्नि के परमाणुओं के आकस्मिक संयोग से विश्व विकास मानते हैं। चैतन्य भी अचानक संयोग से हुआ मानते हैं।

         कुल मिलाकर भारतीय भू भाग में मानवीय शैली और सोंच को जो करना चाहिये और कर सकती है वह सनातन है। पर एक बंधन है कोई भी कर्म जो समाज के हित में हो वो ही प्रशंसनीय है और पुण्य है। जिस कर्म से समाज का अहित होता है वह निंदनीय और पाप है। और पाप कर्म की अनुमति नहीं है।

          जब विदेशी आक्रांता भारत भू भाग में आये तो एकमात्र मार्ग था खैबर दर्रा जहां से आते समय सिंधु नदी पार करनी पडती थी अत: सिंधु जो बाद में हिंदू हो गया। वेद में कहीं हिंदू शब्द नहीं है। यहां रहनेवाला हर व्यक्ति विदेशी भाषा में हिंदू ही कहलायेगा। उसी से बना हिंदुस्तान और बाद में हिंद देश और हिंदी। 
           हां जैन धर्म या सोंच हिंदू से आगे पीछे की सनातन शैली है। बाद में सनातन की एक विचारधारा बुद्ध बनी। और कुछ वर्षो पूर्व शिष्य से सिक्ख और फिर सिख बनी।

          अब आप खुद सोंचे आप यदि भारतीय मूल के हैं तो आप सनातन हैं अथवा हिंदू ही हो सकते हैं। यहां तक इस समय के मुस्लिम या इसाई पहले सनातनी हिंदू या जैन ही थे अथवा बौद्ध थे। बीच में लालच या भय के कारण इनके पूर्वज विदेशी धर्म शैली अपना बैठे।

            मैं समझता हू अब आप सनातन और हिंदू, जैन या बौद्ध सिक्ख के अर्थ समझ गये होंगे। अत: आइये एक होकर अपने मूल स्वरूप शैली महासागर को बचायें। अर्थात अपने को सिर्फ सनातनी या भारतीय शैली का ही बोलें। 

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

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