Monday, April 2, 2018

अहंकार या अहम का आकार

अहंकार या अहम का आकार

                                                
विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
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          आज सुबह हमारे सहकर्मी ने एक बहुत सुंदर बात कही “ जो


इस   लाइन (आध्यात्मिक) के लोग होते हैं उनमें अहंकार और मैं
बहुत होता है”। उस समय इस बात पर जो उत्तर मिला। वह पोस्ट
करता हूं

देखो आध्यात्म में शक्ति जागरण के पश्चात जो अनूभूति होती है वह अहमब्रम्हास्मि यानी मैं ही ब्रह्म हूं। एकोअहम द्व्तियोनास्ति यानी मैं एक और दूसरा कोई नहीं। सोअहम यानी वो मैं ही इस जगत 

में। यहां ईश्वर केवल आपको मैं क्यों बोल रहा है। यह अनुभव मैं के द्वारा क्यों करा रहा है। 

अब दूसरा वाक्य जगत से मैं धनवान हूं। मैं 1000 लोगों का पेट पाल रहा हूं मैंने 1 लाख गायत्री जप किये। मैं भगवान हूं। मै ओशो हूं। मुझे ही निराकार की अनूभूति है। मंदिर गलत मस्जिद गलत है। 

यहां भगवान देखो क्योकि मैंने देखा। मैं कहता हूं सम्भोग से समाधि इत्यादि। जैसे सभी मेरी ऊचाई पर हैं वह मेरी बात का गलत अर्थ नहीं लगायेगे।  

इन शब्दो में अंतर नहीं है क्या। खुद सोंचो। ब बात अहम के आकार की यानी अहंकार की। पहली वाली पहले बताये मानव के लिये। 

बाद वाला दूसरे उदाहरित मानव के लिये। जब गुरु अपने शिष्य को टीचर जो गुरु है बोलता है तुम गलत  हो तो यह उसका अह्न्कार हो गया क्या। मां अपने बेटे को बाप अपने बेटे को बोले बेवकूफ तू मूर्ख है। यह तो मां बाप का भी अहंकार कहलायेगा क्या।

एक नंगे के शव से चिकित्सक भौतिक ज्ञान यानी डाक्टरी सीखता है। 

शव साधक अघोरी शिव तक पहुंचने का प्रयास करता है। 

हिंसक पशु उसको भोजन समझ कर खाने लगता है। 

व्यापारी अंग प्रत्यंग बेचने लगता है 

और चाण्डाल उसे कर लेकर जला देता है। 

यानी व्यापारी भी धन कमाता है और चाण्डाल भी। 

पर व्यापारी और कर्म भी कर के धन कमा सकता है पर चाण्डाल का निर्धारित कर्म है। 

समाज सेवा है एक तरह की। 

अब बताओ पाप कर्म किसका। 

मेरे अनुसार केवल व्यापारी का यानी आज जो धर्म के दुकानदार कर रहे हैं। 

भगवान जिसके अधीन माया है वह बनकर माया के अधीन प्राणी धर्म के शव को भी छिन्न भिन्न कर पतित हो रहे हैं

अत: मित्रो अहंकार को जानना ही ज्ञान है। पर अहंकार पालना पाप और विनाशक। 

हरि ओम हरि



  "MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल



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