Friday, February 22, 2019

अनुभव ही एक मात्र ज्ञान की कुंजी है



अनुभव ही एक मात्र ज्ञान की कुंजी है
 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 फोन : (नि.) 022 2754 9553  (का) 022 25591154   
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मित्र। सारे अनुभव मात्र कुछ समय के होते है। दीक्षा के बाद मन के भी भाव खुलते है। अतः उहापोह होने लगती है। आप घबराए नही। कुण्डलनी जागृत होने के बाद शांत होना भी एक क्रिया है।
लेकिन साधन के अतिरिक्त जप करते रहे।


जब प्रथम मानव का जन्म हुआ तो वह ईश के नजदीक ही था। उस वक्त सृष्टि के निर्माण हेतु उसे काम वासना में लगना आवश्यक था किंतु मानव समय के साथ काम के साथ अधिक नजदीक होता गया। मतलब प्रभु से दूर होता गया।
काम को मात्र सृष्टि निर्माण न समझ कर आनन्द हेतु मानव कुछ भी करने लगा। उन कर्म फल को भोगने हेतु उसे जन्म पर जन्म लेने पड़ गए।
अब चूंकि कर्म फल ईश की इच्छा अतः यह कहा गया सब प्रभु की इच्छा। फिर इस क्रम फल को भोगने हेतु मानव द्वारा कर्म। फिर उसका कर्म फल। यही श्रृंखला चलती रहती है।
दूसरी बात किसी भी योनि हेतु कुछ कर्म निर्धारित होते है जो स्वतः होते है। उनमें लिपप्ता नही हो पाती। क्योकि वह उस योनि हेतु धर्म बन जाता है। 
यह हमला कर्मफल के रूप में हुआ।
यह बिल्कुल सत्य है। जिस भांति प्रत्येक मर्ज की दवा अलग उसी भांति हर एक के पूर्व प्रारब्ध और साधनाये अलग। अतः सबके मार्ग अलग हो सकते है। सबके इष्ट और मन्त्र अलग हो सकते है। 
इसी लिए जिनके गुरू नही उनको चाहिए कि उनको जो इष्ट अच्छा लगे, कारण हम पूर्व जन्मों की आराधनाओं के कारण उसी इष्ट की ओर आकर्षित होते है जिसकी पहले आराधना की।, उसके मन्त्र को नाम जप को आरम्भ करे। गुरू बनाने के कोई जल्दबाजी न करे। आजकल ठग अधिक है। सदगुरू कम। भीड़ पर शिष्यों की संख्या पर मत जाए। गुरू परम्परा अवश्य देखे। इत्यादि।
फिलहाल अपना मन्त्र जप सतत निरन्तर निर्बाध करते रहे। ये ही आपको द्वैत से अद्वैत, विज्ञान से ज्ञान, सद्द्गुरुओ तक खुद पहुँचा देगा। घबराने अधीर होने से काम विलंबित होकर बिगड़ भी सकता है।


मैं जानता हूँ सर्वस्य ब्रह्म सवर्त्र ब्रह्म। गीता का भी ज्ञान है किंतु इन जवानों की मृत्यु से हिल गया है अंदर तक। देश की चिंता। सनातन की चिंता मन मे बैठ गई है। 
मैं यह भी जानता हूँ मैं कुछ नही। सब प्रभु कृपा से होता है। किंतु मन मोहित होता है। बिना यूद्ध ये शहीद हो गए। 
मैं इस बात से पूरा सहमत हूँ कि यह धर्म की कमी है जो शैतान पैदा होते है। कुरान जे सही अर्थ भी शायद यही कहते है।
मैंने कुरान बाइबिल दोनो टेस्टामेंट पढ़े है तब यह लेख तर्को के साथ लिखा कि विश्वशांति का एक मात्र मार्ग सिर्फ और सिर्फ सनातन सिध्दांत है।
बौद्ध और जैन धर्म को भी समझा ये सनातन के ही अंग है।
इस ग्रुप के description में mmstm का लिंक दिया है। आप अन्य लेख भी पढ़े।
यह ध्यान की आधुनिक वैज्ञानिक विधि है जिसमे ईश की शक्ति का अनुभव शर्तिया होता है। यह अपने घर पर ही करनी होती है। बाकी आप पढ़ ले।
न आदि न अंत।
सनातन' का अर्थ है - शाश्वत या 'हमेशा बना रहने वाला', अर्थात् जिसका न आदि .... सनातन धर्म में सनातन क्या है ?
इस पर लेख लिखा है
पहले सनातन ज्ञान था। जिससे वेद पैदा हुए। फिर वेद के बहुत बाद विदेशियों द्वारा हिन्दू शब्द आया।
सनातनमेनमहुरुताद्या स्यात पुनण्रव् ( अधर्ववेद 10/8/23)
अर्थात – सनातन उसे कहते हैं जो , जो आज भी नवीकृत है ।
सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘हमेशा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त।
श्री कृष्ण की भागवत कथा श्री कृष्ण के जन्म से पहले नहीं थी अर्थात कृष्ण भक्ति सनातन नहीं है ।
श्री राम की रामायण तथा रामचरितमानस भी श्री राम जन्म से पहले नहीं थी अर्थात श्री राम भक्ति भी सनातन नहीं है ।
श्री लक्ष्मी भी, (यदि प्रचलित सत्य-असत्य कथाओ के अनुसार भी सोचें तो), तो समुद्र मंथन से पहले नहीं थी  अर्थात लक्ष्मी पूजन भी सनातन नहीं है ।
गणेश जन्म से पूर्व गणेश का कोई अस्तित्व नहीं था, तो गणपति पूजन भी सनातन नहीं है ।


केवल सनातन धर्मं ही सदा से है, सृष्टि के आरंभ से सृष्टि के अंत |
सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह। दोनों ही सत्य है।
अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि।
।ॐ।। पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।- ईश उपनिषद
ॐ =  सच्चिदानंदघन
अदः = वह परब्रह्म
पूर्णम = सब प्रकार से पूर्ण है
इदम = यह (जगत भी)
पूर्ण म = पूर्ण (ही) है
पूर्णात = (क्योंकि) उस पूर्ण से ही
पुर्णम = यह पूर्ण
उदच्यते = उत्पन्न हुआ है
पूर्णस्य = पूर्ण के
पूर्ण म = पूर्ण को
आदाय = निकाल लेने पर (भी)
पूर्ण म = पूर्ण
एव = ही
अविष्यते = बच रहता है ।
व्याख्या : वह सच्चिदानंदघन (ॐ) परब्रह्म पुरुषोत्तम सब प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है ।
यह जगत भी उस परब्रह्म से ही पूर्ण ही है ; क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है ।
इस प्रकार परब्रह्म की पूर्णता से जगत पूर्ण होने पर भी वह परब्रह्म परिपूर्ण है ।
उस पूर्ण में से पूर्ण को निकाल लेने पर भी वह पूर्ण ही बचा रहता है ।
यही सनातन सत्य है ।
ब्रह्म ही सत्य है।
ब्रह्म शब्द का कोई समानार्थी शब्द नहीं है।
वास्तव में ब्रह्म को जानना ही सनातन है। इसके लिए हमे सहारो की आवश्यकता भी पड़ती है।
मित्रो। खाली समय मे हम सबको गूगल गुरोकी शरण मे चले जाना चाहिए। वहाँ भौतिक ज्ञान का खजाना है। सभी तरह का भौतिक ज्ञान भरा है।
हमारे प्रश्न भी प्रायः भौतिक ही होते हैं। अतः उत्तर मिल जाते है। 
ईश की अनुभूति या अनुभव होने के बाद वाणी मौन होने लगती है। वहीं आत्म गुरू सभी प्रश्नों के उत्तर देकर जिज्ञासा रहित कर देता है।


नेट पर गीता वेद इत्यादि पुराण सब मौजूद है। उनके अध्धय्यन आप जो समझे और मक्खन निकले उसे अपनी भाषा मे लिख कर ग्रुप में डालने का कष्ट करें। 
ताकि ग्रुप का और आपका दोनो का कल्यान हो।
यदि प्रत्येक मनुष्य नेट का एक कट पीस डालेगा तो मुश्किल हो जाएगी। लेकिन यदि कोई प्रश्न कर रहा है तो आप नेट से कट पेस्ट कर ग्रुप में उसको संतुष्ट कर दे। 

मैंने एक लेख लिखा था। फोटो इत्यादि बहुत अधिक पर्यावरण प्रदूषण होता है। पता नही कहा गया। किसी के पास हो तो कृपया उसे पुनः पेस्ट कर दे।
मित्रो ग्रुप का उद्देश्य हमे अपने को कुछ प्राप्त करना है किसी की परीक्षा लेना या तर्क करना बिल्कुल नही।
इसकी स्थापना उनके लिए की गई थी जो साधना करते करते अपने अनुभव से डर कर साधना छोड़ देते थे। या कभी किसी कुण्डलनी जागृत होने से वह भयभीत होता था। उनका मार्ग दर्शन करना था।
मित्र वेद क्या क्यो कैसे आये मुझे जानकर क्या कोई लाभ मिलेगा।
हा वेद के महावाक्यो का अनुभव बहुत कुछ देगा।

मुझे नही जानना वेद कैसे पैदा हुए। कोई रुचि नही कथाओं में।
आम से मतलब है गुठली से नही।
तर्क करते करते दूसरे को हराने की चाह मात्र समय की बर्बादी है।
ईश का ध्यान और ज्ञान ही जगत के पार लगाता है।
अतः मित्रो मैं पुस्तको के ज्ञानियों से तर्क आरम्भ होने के पहले ही विनम्रतापूर्वक हार स्वीकार करता हूँ।
कृपया मुझसे व्यक्तिगत प्रश्न या विवाद न किया जाए।


मित्रवर आप आर्य समाजी है। जो मात्र वेद के किताबी अध्ययन के ही समझते है। बेहतर है आप अपना ज्ञान मुझे न समझाए। मुझे क्या करना है क्या नही करना है। मैं अच्छी तरह जानता हूँ। 
मुझे किसी के सार्टिफिकेट की आवश्यकता भी नही।
आर्य समाजी न कुण्डलनी शक्ति मानते है और न जानते है। आप स्वयं वेद पूरा फिर से पढ़ने की आवश्यकता है। 
बेहतर है वेद महावाक्यों को अनुभव करने की चेष्टा करे।
बाकी सब बेकार का थोथा ज्ञान है। 


यह सिद्ध हो गया आप मात्र किताबी दीमक है। वेद महावाक्य बिल्कुल सही है और अनुभव किये जाते थे है और रहेगे।
आप बिलकुल समुद्र की लकड़ी है जो अपने से समुद्र नापती है।
बस प्रभु इतना ही।
इस ग्रुप में अनुभवी लोग भी अधिक संख्या में मात्र किताबी दीमकें नही है।
गीता और वेद का एक एक वाक्य अनुभव किया जा सकता है। पर हममें दम होनी चाहिए।
जैसे वेद के चारो महावाक्य। तीन वचन। गीता के स्थिर बुद्धि स्थितप्रज्ञ समत्व के अनुभव। योग के अनुभव।
राम कृष्ण पैदा हुए या नही यह आस्था का प्रश्न  हो सकता है पर राम और कृष्ण ने करोड़ो को तारा है।
दुर्गा काली इत्यादि के दर्शन और शक्ति की अनुभूतियों को भी महसूस किया जा सकता है।
पर किताबी ज्ञान वाली दीमक मात्र किताब को चाटकर विद्द्वान नही बन सकती।
समर्थ गुरू रामदास मात्र शिवाजी के लिए जैसे अवतरित हुए थे। लगता है अब उनकी जीवनी भी लिखनी पड़ेगी।
12 वर्षों में 13 करोड़ राम नाम जपे थे।


सर यह मात्र दीमकी ज्ञान वाले है। जो उथली बात ही समझ सकते है और जानते है।
मैं इनको चुनौती देता हूँ। मात्र 6 महीने mmstm कर लो यदि सनातन अपनी शक्ति का अहसास न कराए तो मुझे कहो करने को तैयार हूँ।
पर ये करेगे नही क्योकि दूसरे का कितसबी ज्ञान मुफ्त में मिला है और स्वाद भी अच्छा।
मैं इनको चुनौती देता हूँ। मात्र 6 महीने mmstm कर लो यदि सनातन अपनी शक्ति का अहसास न कराए तो मुझे कहो करने को तैयार हूँ।
पर ये करेगे नही क्योकि दूसरे का कितसबी ज्ञान मुफ्त में मिला है और स्वाद भी अच्छा।


वैज्ञानिक सबसे बड़े मूरख और धोखेबाज होते है।
1 वे उन यंत्रों पर यकीन करते है जो मानव ने बनाये पर मानव पर नही।
2 वे 50 साल प्रतीक्षा करेगे किसी घटना की पर यह खो तुम केवल छे महीने दो। तो बगले झाकेंगे।
मैंने सब गर्न्थो को आग लगा दी। सब जल गए। अब जो मै बचा उसको पढ़ता हूँ।
वैज्ञानिक हूँ वो भी वरिष्ठ तब ही कह रहा हूँ।
क्षमा करना मेरा स्वभाव है।
पर दूसरा वाक्य आपकी गलतफहमी है। आपसे भी कहता हूँ। योग अनुभव है शब्द नही। समाधि ध्यान अनुभव है जिसके लिए शब्द नही।
किताबे चाटना बन्द करो। अपने को पढो। सब स्वतः पढ़ जाएगा।


उसके लिए पहले या अंतरर्मुखी हो।
कभी न कभी तो किनारा मिलेगा।
तुम्हे तेरा दिलवर प्यारा मिलेगा।।
कभी छूट जायेगे जगती के भरम।
तुम्हे तेरा दिलवर न्यारा मिलेगा।

प्रभु जी आप रोलीग मिल पर दौड़ते रहे। मुझे रेगिस्तान में चलने दे।
जी मुझे मेरे गंतव्य का ज्ञान भी है भान भी है और मान भी है। जो मुझे गुरू कृपा माँ कृपा से मिल चुका है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती एक स्वतन्त्रा सेनानी समाज सुधारक और हिंदुस्तानी भाषा के प्रचारक थे। किंतु वे आंतरिक ज्ञानी नही थे।
उन्होंने वेद का कोई भी अनुभव नही किया था।
किंतु उन्होंने वेद का प्रचार बहुत किया।
जो मात्र निराकार या साकार की ढपली बजाए। मूर्तिपूजा का विरोध करे वह महा अज्ञानी है।
ईश का अंतिम स्वरूप निराकार निर्गुण ही है कितुं वह साकार और सगुन रूप भी लेता है।
यह गीता ने भी बोला है और मेरा खुद का महानुभव है।
मैं अपने अनुभव के आधार पर उनको अल्प ज्ञानी बोलता हूँ।
जी हां अनुभव साकार का भी निराकार का भी योग का भी और 3 वेद महावाक्यों का।
तब ही आपके सहित नास्तिकों को चुनौती देता हूँ। mmstm करो तुमको सनातन का अनुभव होगा। पर तुमको करना पड़ेगा। अनुभव का वायदा कृष्ण का है।
जी कुछ नही पढा। मात्र मा शक्ति का सघन मन्त्र जप किया।
मन्त्र जप को करते हो नही। करते हो तो atm समझ कर।
अब क्या बोलू। स्वयम मुझे मॉ काली ने दर्शन देकर दीक्षा दी है। यह मेरा अनुभव है। दयानन्द का नही।
करके देखो। प्रयोग करो। शब्दो मे मत फँसो।


मैं कहता हूँ अपने दिमाग का कचरा मा को समर्पित करो। और उसकी आराधना कर के देखो।
पर नही करोगे। क्योकि झूठे ज्ञान में फंसे हो।
देखो ईश्वर जिसे निराकार ब्रह्म कहते भी कहते है। उसने मानव की सृष्टि के बाद मानव को ब्रह्म के नजदीक बनाया। साथ ही जैसा कि सँस्कृत भाषा का जन्म हमारे शरीर से हुआ है। इस कारण जब मानव ध्यान के द्वारा योग में एकाकार हुआ तो मानव क्रिया रूपी आवेग में आया। चूंकि मानव उस समय ईश से एकाकार था। तब उसने कुछ वाक्यों ज्ञान को बोला। जिनको लिपिबद्ध किया गया। इस प्रकार वेदों का जन्म सनातन ज्ञान से हुआ। कालांतर में कुछ जगह वैदिक ज्ञान का प्रचार हुआ जो वैदिक युग कहलाया।
विदेशियों ने इसे सिंधु नदी के उच्चारण को बिगाड़कर हिन्दू बना दिया। फिर यह हुआ हिंदु   स्थान जो बाद में हिंदुस्तान कहलाया।


यह पहले भारत था। कुछ भूभाग आर्यावर्त भी कहलाया।
उस सनातन वेद ज्ञान के प्रचार में लोगो ने अपनी व्याख्या दी जो उपनिषद हुए। साथ ही अन्य धाराएं अन्य भाषाओं में भी बनने लगी जो जैन फिर बुद्ध हुए।
ये सब सनातन वेद की धाराएं ही है



MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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