सनातन में मृत्यु के लक्षण
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मो. 09969680093
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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सोपक्रमं निरूपक्रमं च
कर्म तत्संयमादपारान्तज्ञानमरिष्टेभये वा।- योग सूत्र
अर्थात: 'सक्रिय व निष्क्रिय या
लक्षणात्मक व विलक्षणात्मक- इन दो प्रकार के कर्मों पर संयम
पा लेने के बाद मृत्यु की ठीक-ठीक घड़ी की भविष्य सूचना पाई जा सकती
है।'
मृत्यु को दो प्रकार से जाना जा सकता है। या तो प्रारब्ध को देखकर या फिर कुछ लक्षण और पूर्वाभास है जिन्हें देखकर जाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति मरता है तो मरने के ठीक नौ महीने पहले कुछ न कुछ होता है। साधारणतया हम जागरूक नहीं होते हैं। और वह घटना बहुत ही सूक्ष्म होती है। मैं नौ महीने कहता हूं- क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में इसमें थोड़ी भिन्नता होती है।
यह निर्भर करता है कि समय का जो अंतराल गर्भधारण और जन्म के बीच मौजूद रहता है उस पर । उतना ही समय मृत्यु को जानने का रहेगा। अगर कोई व्यक्ति गर्भ में नौ महीने रहने बाद जन्म लेता है, तो उसे नौ महीने पहले मृत्यु का आभास होगा। अगर कोई दस महीने गर्भ में रहता है तो उसे दस महीने पहले मृत्यु का अहसास होगा, कोई सात महीने पेट में रहता है तो उसे सात महीने पहले उसे मृत्यु का एहसास होगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि गर्भधारण और जन्म के समय के बीच कितना समय रहा।
मृत्यु के ठीक उतने ही महीने पहले हारा में, नाभि चक्र में कुछ होने लगता है। हारा सेंटर को क्लिक होना ही पड़ता है। क्योंकि गर्भ में आने और जन्म के बीच नौ महीने का अंतराल था : जन्म लेने में नौ महीने का समय लगा, ठीक उतना ही समय मृत्यु के लिए लगेगा। जैसे जन्म लेने के पूर्व नौ महीने मां के गर्भ में रहकर तैयार होते हो, ठीक ऐसे ही मृत्यु की तैयारी में भी नौ महीने लगेंगे। फिर वर्तुल पूरा हो जाएगा। तो मृत्यु के नौ महीने पहले नाभि चक्र में कुछ होने लगता है। जो लोग जागरूक हैं, सजग हैं, वे तुरंत जान लेंगे कि नाभि चक्र में कुछ टूट गया है; और अब मृत्यु निकट ही है। इस पूरी प्रक्रिया में लगभग नौ महीने लगते हैं।
या फिर उदाहरण के लिए, मृत्यु के और भी कुछ अन्य लक्षण तथा पूर्वाभास होते हैं, कोई आदमी मरने से पहले, अपने मरने के ठीक छह महीने पहले, अपनी नाक की नोक को देखने में धीरे-धीरे असमर्थ हो जाता है, क्योंकि आंखें धीरे-धीरे ऊपर की और मुड़ने लगती है। मृत्यु में आंखे पूरी तरह ऊपर की और मुड़ जाती है। लेकिन मृत्यु के पहले ही लौटने की यात्रा का प्रारंभ हो जाता है। ऐसा होता है : जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो बच्चे की दृष्टि थिर होने में करीब छह महीने लगते हैं। साधारणतया ऐसा ही होता है। लेकिन इसमें कुछ अपवाद भी हो सकते है- बच्चे की दृष्टि ठहरने में छह महीने लगते हैं। उससे पहले बच्चे की दृष्टि थिर नहीं होती। इसीलिए तो छह महीने का बच्चा अपनी दोनों आंखें एकसाथ नाक के करीब ला सकता है। और फिर किनारे पर भी आसानी से ला सकता है। इसका मतलब है बच्चे की आंखें अभी थिर नहीं हुई हैं। जिस दिन बच्चे की आंखें थिर हो जाती हैं फिर वह दिन छह महीने के बाद का हो या दस महीने के बाद का हो, ठीक उतना ही समय लगेगा, फिर उतने ही समय के पूर्व आंखें शिथिल होने लगेंगी। और ऊपर की और मुड़ने लगेंगी। इसीलिए भारत में गांव के लोग कहते हैं, निश्चित रूप से इस बात की खबर उन्हें योगियों से मिली होगी- कि मृत्यु आने के पूर्व व्यक्ति अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हो जाता है।
और भी बहुत सी विधियां हैं, जिनके माध्यम से योगी निरंतर अपनी नाक की नोक पर ध्यान देते हैं। वे नाक की नोक पर अपने को एकाग्र करते हैं। जो लोग नाक की नोक पर एकाग्रचित होकर ध्यान करते हैं, अचानक एक दिन वे पाते हैं कि वे अपनी ही नाक की नोक को देख पाने में असमर्थ हैं, वे अपनी नाक की नोक नहीं देख सकते हैं। इस बात से उन्हें पता चल जाता है कि मृत्यु अब निकट ही है।
योग के शरीर विज्ञान के अनुसार व्यक्ति के शरीर में सात चक्र होते हैं। पहला चक्र है मूलाधार, और अंतिम चक्र है सहस्त्रार, जो सिर में होता है। इन दोनों के बीच में पांच चक्र और होते हैं। जब भी व्यक्ति की मृत्यु होती है; तो वह किसी एक निश्चित चक्र के द्वारा अपने प्राण त्यागता है। व्यक्ति ने किस चक्र से शरीर छोड़ा है, वह उसके इस जीवन के विकास को दर्शा देता है। साधारणतया तो लोग मूलाधार से ही मरते हैं, क्योंकि जीवनभर लोग काम-केंद्र के आसपास ही जीते हैं। वे हमेशा सेक्स के बारे ही सोचते हैं, उसी की कल्पना करते हैं, उसी के स्वप्न देखते हैं, उनका सभी कुछ सेक्स को लेकर ही होता है- जैसे कि उनका पूरा जीवन काम-केंद्र के आसपास ही केंद्रित हो गया हो। ऐसे लोग मूलाधार के काम-केंद्र से ही प्राण छोड़ते हैं। लेकिन अगर कोई व्यक्ति प्रेम का उपलब्ध हो जाता है और काम-वासना के पार चला जाता है तो वह हृदय केंद्र से प्राण को छोड़ता है। और अगर कोई व्यक्ति पूर्णरूप से विकसित हो जाता है, सिद्ध हो जाता है तो वह अपनी ऊर्जा को, अपने प्राणों को सहस्त्रार से छोड़ेगा।
और जिस केंद्र से व्यक्ति की मृत्यु होती है, वह केंद्र खुल जाता है, क्योंकि तब पूरी जीवन ऊर्जा उसी केंद्र से निर्मुक्त होती है... जिस केंद्र से व्यक्ति प्राणों को छोड़ता है, व्यक्ति का निर्मुक्ति देने वाला बिंदु स्थल खुल जाता है। उस बिंदु स्थल को देखा जा सकता है। किसी दिन जब पश्चिमी चिकित्सा विज्ञान योग के शरीर विज्ञान के प्रति सजग हो सकेगा तो वह भी पोस्टमॉर्टम का हिस्सा हो जाएगा कि व्यक्ति कैसे मरा। अभी तो चिकित्सक केवल यही देखता है कि व्यक्ति की मृत्यु स्वाभाविक हुई है, या उसे जहर दिया गया है, या उसकी हत्या की गई है, या उसने आत्महत्या की है- यही सारी साधारण-सी बातें चिकित्सक देखते हैं। सबसे आधारभूत और महत्वपूर्ण बात कि चिकित्सक चूक जाते हैं। जो कि उनकी रिपोर्ट में होनी चाहिए- कि व्यक्ति के प्राण किस केंद्र से निकले हैं: काम-केंद्र से निकले हैं, हृदय केंद्र से निकले हैं, या सहस्त्रार से निकले हैं। किस केंद्र से उसकी मृत्यु हुई है।
और इसकी संभावना है, क्योंकि योगियों ने इस पर बहुत काम किया है। और इसे देखा जा सकता है। क्योंकि जिस केंद्र से प्राण-ऊर्जा निर्मुक्त होती है, वही विशेष केंद्र टूट जाता है, जैसे कि कोई अंडा टूटता है और कोई चीज उससे बाहर आ जाती है। ऐसे ही जब कोई विशेष केंद्र टूटता है, तो ऊर्जा वहां से निर्मुक्त होती है। जब कोई व्यक्ति संयम को उपलब्ध हो जाता है तो मृत्यु के ठीक तीन दिन पहले वह सजग हो जाता है कि उसे कौन से केंद्र से शरीर छोड़ना है। अधिकतर तो वह सहस्त्रार से ही शरीर को छोड़ता है। मृत्यु के तीन दिन पहले एक तरह की हलन-चलन, एक तरह की गति, ठीक सिरा के शीर्ष भाग पर होने लगती है।
यह संकेत हमें मृत्यु को कैसे ग्रहण करना, इसके लिए तैयार कर सकते हैं। और अगर हम मृत्यु को उत्सवपूर्ण ढंग से, आनंद से, अहो भाव से नाचते-गाते कैसे ग्रहण करना है, यह जान लें- तो फिर हमारा दूसरा जन्म नहीं होता। तब इस संसार की पाठशाला में हमारा पाठ पूरा हो गया। इस पृथ्वी पर जो कुछ भी सीखने को है उसे हमने सीख लिया। अब हम तैयार हैं किसी महान लक्ष्य, महान जीवन और अनंत-अनंत जीवन के लिए। अब ब्रह्मांड में संपूर्ण अस्तित्व में समाहित होने के लिए हम तैयार हैं। और इसे हमने अर्जित कर लिया है।
इस सूत्र के बारे में एक बात और क्रिया मान कर्म, दिन-प्रतिदिन के कर्म, वे तो बहुत ही छोटे-छोटे कर्म होते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में हम इसे चेतन कह सकते हैं। इसके नीचे होता है प्रारब्ध कर्म। आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में हम इसे ‘अवचेतन’ कह सकते हैं। उससे भी नीचे होता है संचित कर्म; आधुनिक मनोविज्ञान की भाषा में इसे हम 'अचेतन' कह सकते हैं।
कहते
हैं जन्म के साथ ही व्यक्ति का अंत भी निश्चित हो जाता है। उसकी
मौत कैसे होगी, कब होगी, कहां होगी आदि सभी का निर्णय पहले ही हो जाता है।
लेकिन
फिर भी मनुष्य की चिंता इसी बात पर स्थिर रहती है कि कहीं
उसे या उसके परिजन को कुछ हो तो नहीं जाएगा। जिस तरह जीवन एक सत्य है उतना
ही बड़ा सच है जीवन के पश्चात मौत।
व्यक्ति
चाहे कितना ही ताकतवर, धनवान या ऊंचे ओहदे पर हो,
कभी अपनी मौत को धोखा नहीं दे सकता।
इस
परिवर्तनशील दुनिया में हर पल व्यक्ति का स्वभाव,
उसकी आकांक्षाएं,
उसकी प्राथमिकताएं
बदलती जा रही हैं और जाहिर है बदलते
समय के साथ-साथ इस बदलाव में और भी तेजी आएगी।
परंतु
जीवन का मौत का चक्र ना कभी बदला है और ना कभी बदलेगा। जिसने जन्म लिया है उसे एक
दिन इस भौतिक संसार को अलविदा कहना ही है।
हां,
मृत्यु के पश्चात आत्मा कहां जाती है,
पुनर्जन्म लेकर दोबारा इस संसार का रुख
करती है या नहीं, ये अभी एक पहेली ही है।
इंसान को कभी नहीं पता
चलता कि उसका अंत कितना नजदीक है लेकिन पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने
स्वयं कुछ ऐसे लक्षणों को बताया है जो मृत्यु के नजदीक होने जैसी बात को स्पष्ट
करते हैं।
मान्यताओं
के अनुसार जब व्यक्ति के चेहरे का रंग पीला,
सफेद या हल्का लाल पड़ने लगता है
तो ये इस बात का लक्षण है कि 6
महीने के भीतर उसकी मौत निश्चित है।
सामान्य तौर पर जब हम
तेल या पानी में झांकते हैं तो हमें उसमें अपना अक्स नजर आने लगता है लेकिन
जिस व्यक्ति की मौत नजदीक है उसे वह अक्स नजर नहीं आता।
पानी
और तेल के साथ-साथ शीशे और धूप में भी उसकी परछाई उसका साथ छोड़
जाती है। इसका अर्थ है आगामी 6 महीनों के भीतर उसकी आत्मा उसका शरीर त्याग देगी।
मौत से कुछ समय पहले
व्यक्ति को सब चीज काली नजर आने लगती है। वह रंगों के बीच अंतर करना बंद
कर देता है, उसे सब कुछ काला ही नजर आने लगता है।
वैसे
इस लक्षण को पुख्ता तौर पर मान्य नहीं कहा जा सकता लेकिन ऐसा माना
जाता है कि जिस व्यक्ति का बायां हाथ लगातार एक सप्ताह तक फड़कता रहता
है तो यह इस बात को सिद्ध करता है कि एक माह के भीतर उस व्यक्ति की मौत
हो जाएगी।
मनुष्य के पास पांच
सेंस ऑर्गन अर्थात इन्द्रियां होती हैं लेकिन अगर धीरे-धीरे उन इन्द्रियों
में कड़ापन आने लगे तो यह उस व्यक्ति की मौत को स्पष्ट करता है।
समय
जैसे-जैसे बीतता है वह व्यक्ति अपनी नाक को नहीं देख पाता।
सामान्य तौर पर धुंधला ही सही लेकिन हम अपनी नाक को देख सकते हैं लेकिन जिस
व्यक्ति की मौत होने वाली होती है उसकी आंखें ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं जिसकी
वजह से वह अपनी नाक नहीं देख पाता।
सामान्य व्यक्ति सूरज, चांद
और आग में से निकलने वाली रोशनी देख लेता है लेकिन जिस व्यक्ति की
मौत होने वाली हो वह या तो इन सब की रोशनी को नहीं महसूस कर पाता या फिर ये
सब उसे लाल रंग का नजर आता है।
जिस
व्यक्ति की मौत कुछ ही घंटों में होने वाली होती है उसे चांद में दरार या खंडित
चांद नजर आता है।
जब हम अपने दोनों कान
अपने हाथों से बंद कर लेते हैं तो हमें एक अजीब सा शोर सुनाई देता है लेकिन
जिस व्यक्ति की मौत होने वाली हो उसके साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि जब वो
अपने कान बंद करता है तो उसके लिए सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा होता है।
जिस
इंसान की मृत्यु नजदीक होती है उसे हर समय अपने मृत परिजनों के
साथ होने का एहसास होता है। यह एहसास इतना गहरा होता है कि उसे ये लगता
है कि वह उन्हीं के साथ रह रहा है।
मौत के 2-3 दिन
रह जाने पर उस व्यक्ति को अपने साथ हर समय एक साये के होने का एहसास होता है।
जीभ
का सूजना और मसूड़ों में से पस के निकलने को भी मृत्यु का एक बड़ा लक्षण माना जाता
है।
आसमान में चमकने वाले
करोड़ो तारों के बीच एक ध्रुव तारा भी मौजूद होता है, जिसे
ना देख पाने वाले की 6 महीने के भीतर मौत होने की संभावना रहती है।
मौत
से कुछ समय पहले व्यक्ति के शरीर में से एक अजीब सी गंध आने लगती
है। यह गंध किस तरह की होती है यह कभी स्पष्ट नहीं हो पाया लेकिन मृत्यु
गंध नाम से जाने जानी वाली यह गंध एक विशिष्ट प्रकार की होती है।
सपने में उल्लू या एक उजड़े हुए गांव को
देखने का अर्थ है कि उस व्यक्ति की मौत नजदीक है।
जब
किसी व्यक्ति को हर जगह आग का भ्रम होने लगता है तो इसका अर्थ स्पष्ट है कि उसकी
मौत निकट है।
हम जब शीशा देखते हैं
तो हमें अपना ही चेहरा नजर आता है लेकिन अगर किसी को अपने अलावा किसी और
का चेहरा नजर आने लगे तो यह 24 घंटों के भीतर उसकी मौत का संकेत देता है।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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(कुछ तथ्य व कथन गूगल से साभार)
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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Thanks. Read more.
ReplyDeleteSundar
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