सुवरन को ढूढत फिरै: कवि, व्यभिचारी,
चोर
सुवरन यानि कवि के लिये सुंदर वर्ण, व्यभिचारी
हेतु गोरी स्त्री और चोर हेतु सोना
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
वेब: vipkavi.info वेब चैनल: vipkavi
एक राजा था जिसे राज्य करते काफी समय हो गया था, बाल भी सफेद होने लगे थे। एक दिन उसने अपने दरबार में
उत्सव रखा और अपने गुरु तथा मित्र देश के राजाओं को भी सादर आमंत्रित किया। उत्सव को रोचक
बनाने के लिए राज्य की सुप्रसिद्ध
नर्तकी को भी बुलावा भेजा।
राजा ने कुछ स्वर्ण मुद्राएं अपने गुरु को दी ताकि नर्तकी के अच्छे गीत नृत्य पर वे उसे पुरस्कृत कर सके।
सारी रात नृत्य चलता रहा। सुबह होने वाली थीं, नर्तकी ने
देखा कि मेरा तबले वाला ऊंघ रहा है, उसको जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा...
'बहु बीती, थोड़ी रही, पल-पल गई बिहाई। एक पलक के कारने, ना कलंक लग जाए।'
अब इस दोहे का अलग-अलग व्यक्तियों ने अलग-अलग अपने-अपने अनुरूप अर्थ निकाला। तबले वाला सतर्क होकर तबला
बजाने लगा। जब ये बात गुरु ने सुनी, तो उन्होंने सारी मोहरे उस मुजरा करने वाली को दे दी।
वही दोहा उसने फिर पढ़ा तो राजा की
लड़की ने अपना नवलखा हार उसे दे दिया। उसने फिर वही दोहा दोहराया तो राजा के लड़के ने अपना मुकुट
उतार कर दे दिया।
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वहीं दोहा वह बार-बार दोहराने लगी, राजा ने कहा- बस कर! तुमने वेश्या होकर एक दोहे से
सबको लूट लिया है।
जब यह बात राजा के गुरु ने सुनी तो गुरु के नेत्रों में पानी आ गया और कहने लगा, 'राजा इसको तू वेश्या न कह, ये अब मेरी गुरु है। इसने मेरी
आंखें खोल दी है कि मैं सारी उम्र जंगलों
में भक्ति करता रहा और आखिरी समय में मुजरा देखकर अपनी साधना नष्ट करने आ गया हूं, भाई मैं तो चला!
राजा की लड़की ने कहा, 'आप मेरी
शादी नहीं कर रहे थे, आज मैंने आपके महावत के साथ भाग कर अपना जीवन बर्बाद कर
लेना था। इसने मुझे सुमति दी है कि कभी तो तेरी शादी होगी। क्यों अपने पिता को कलंकित करती
है?'
राजा के लड़के ने कहा, 'आप मुझे राज
नहीं दे रहे थे। मैंने आपके सिपाहियों के साथ मिलकर आपका कत्ल करवा देना था। इसने समझाया है
कि आखिर राज तो तुम्हें ही मिलना है, क्यों अपने पिता के खून का कलंक
अपने सिर लेते हो?
जब यह सारी बातें राजा ने सुनी तो राजा को भी आत्मज्ञान हुआ क्यों न मैं अभी राजकुमार का राज तिलक कर दूं, गुरु भी मौजूद है। उसी समय राजा ने
अपने बेटे का राजतिलक कर दिया और लड़की
से कहा- 'बेटी, मैं जल्दी ही योग्य वर देख कर तुम्हारा भी विवाह कर दूंगा।'
यह सब देख कर मुजरा करने वाली नर्तकी ने कहा कि, मेरे एक दोहे से इतने लोग सुधर गए, मैं तो न सुधरी। आज से मैं अपना
धंधा बंद करती हूं। हे प्रभु! आज से मैं भी तेरा नाम सुमिरन करूंगी।
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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