Monday, July 1, 2019

मंत्र विज्ञान परिचय और बजरंग मंत्र



मंत्र विज्ञान  परिचय और बजरंग मंत्र  

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
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भारतीय वांङ्गमय अध्यात्म, मंत्र, तंत्र और यंत्र साहित्य से परिपूर्ण है।
अध्यात्म भारतीय ऋषियों का मौलिक चिंतन है।
उन्होंने स्वयं मंत्र का साक्षात्कार किया और तब ही उसे लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया।
मंत्र ध्वनि तरंगों का एकत्रित स्वरूप है।
दूसरे शब्दों में नियोजित ध्वनि तरंगों की अभिव्यक्ति ही मंत्र है।


मंत्र तीर्थ, द्विजे देवेषे भेषजे गुरो। यादृशी भावना यस्य सिद्धीर्भवति तादृशी।। अर्थात् मंत्र, तीर्थ, द्विज, देव, ज्योतिषी, औषधि और गुरु में जैसी भावना हेा वैसी ही सिद्धि प्राप्त होती है।


मंत्र अध्यात्म का प्रथम द्वार है। ब्रह्म के बाद से प्रणव की उत्पत्ति हुई।
प्रणव बीज ॐ कार से वेद प्रकट हुए।
वेद कि शाखाएं विस्तृत होती गयीं व उन्हें स्मृतियों में संग्रहीत किया गया।
ऋषियों ने केवल मंत्रों पर चिंतन किया व पारंपरिक रूप से गुरु शिष्य प्रणाली से मंत्रों का प्रचार-प्रसार हुआ।
निगम को स्मृतियों ने अपने भीतर संग्रहीत किया व आगमशास्त्र केवल ऋषियों द्वारा फैलता गया।


कलियुग के आगमन के पूर्व परमात्मा शिव ने सभी मंत्रों को कीलित कर दिया व उनके फल को बाधित कर दिया ताकि कोई मनुष्य स्वार्थवश उनकी शक्ति का दूरुपयोग न कर पाए व उन मंत्रों को जागृत करने के उपाय तंत्र शास्त्र के माध्यम से सीमित रखे।


अध्यात्म न तो किसी ग्रंथ में पाया जाता है और न ही किसी मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में बंटता है। अध्यात्म दिव्य अलौकिक अनुभूती है।
जब आत्मा रुपी हंस उस परमतत्व की खोज में लीन रहता है तब उसे उस दिव्य चेतना का साक्षात्कार होता है और वही परमहंस की स्थिति हांसिल कर लेता है।
आचार्य शंकर प्रतिपादित करते हैं- ‘‘ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या’’ अर्थात् ब्रह्म एक है और हम सब उसकी माया रूपी सृष्टि है।ब्रह्म द्वैत, अद्वैतवाद से भी परे है।
महर्षि अरविंद कहते हैं- ‘‘ऊँ स्वयं परमात्मा के हस्ताक्षर हैं’’।


धर्म केवल सनातन धर्म ही है, हिंदु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई यह सब संप्रदाय हैं।
धर्म में बाह्य आडंबर का कोई स्थान नहीं है। जो आडंबर करता है वह सत्य से कोसों दूर चला जाता है।


सत्य ही धर्म का मूल तत्व है। भक्ति में कोई युक्ति नहीं चलती।
भगवत् प्रीति का ही नाम भक्ति है।
अध्यात्म भारतीय ऋषियों का मौलिक चिंतन है।
 उन्होंने स्वयं मंत्र का साक्षात्कार किया और तब ही उसे लोगों के सम्मुख प्रस्तुत किया।
मंत्र ध्वनि तरंगों का एकत्रित स्वरूप है। दूसरे शब्दों में नियोजित ध्वनि तरंगों की अभिव्यक्ति ही मंत्र है।


एकाग्रता, एकरसता, एकलयता से समुच्चारित तरंगों से उत्पन्न ऊर्जा से विशेष शक्ति जागृत हो जाती है, उस शक्ति का व्यक्ति अपनी लक्ष्य शक्ति के अनुरूप उपयोग कर सकता है।
 ‘‘शब्दो नित्यः आकाशगुणत्वत्’’ अर्थात् शब्द नित्य है, आकाश (आश्रय) गुण के कारण शब्दों का विनाश नहीं होता है। इसमें विकृति नहीं आती, यह तो अजर है...........अमर है।
हमारे प्राचीन ऋषि-महर्षियों के इसी मूल तथ्य को आज के आधुनिक वैज्ञानिक स्वीकार करने के लिए बाध्य हैं।


ध्वनि तरंगों के आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक को महर्षियों के इसी मूल तथ्य का ज्ञान हुआ और उसी के माध्यम से आज हम हजारों लाखों मील दूर से उच्चारित (बोलने) शब्द को ठीक उसी रूप में सुन सकते हैं।


इससे प्रमाणित होता है कि शब्द का कभी विनाश नहीं होता है। आकाश में संचरित ईथर किरणों के माध्यम से शब्द सदैव वायुमंडल में विचरण करते रहते हैं।
हर मंत्र अक्षर की उत्पत्ति है, अक्षर जो कभी नष्ट नहीं होता।
अक्षर का अर्थ है नष्ट होना। अक्षर जो नष्ट नहीं होता, पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त रहता है।


सनातन भारतीय वैदिक पद्धति की यह विलक्षणता है कि वह किसी शब्द, संज्ञा द्वारा वस्तु अथवा व्यक्ति को अविदित करता है। उस शब्द की पहचान के साथ वस्तु और व्यक्ति दोनों उससे जुड़ जाते हैं। एक अक्षर को भी एक निश्चित संज्ञा और शक्ति से निर्दिष्ट किया गया है।
अतः जब किसी भी अक्षर का पुनरोच्चार करते हैं तब सहज रूप से उस नाम से एकाकार हो जाता है।


वैदिक मंत्र दृष्टा ऋषि मंत्र का चिंतन करते थे।
वेदों के प्रकट होने में भी मंत्र दर्शन ही मूल स्वरूप था।
जब साधक उस मंत्र से निश्चित संकेत का बार-बार उच्चारण करता है तब उसके मन और मस्तिष्क में प्रकम्पन प्रारंभ हो जाता है।


मंत्र शास्त्र का क्षेत्र इतना विशाल है कि इसका पार नहीं पाया जा सकता।
आगमकार कहते हैं ‘‘अनंत पारं कील मंत्र शास्त्रम्’’ वेदों के अनुसार वाणी मानव जाति का एक अति महत्वपूर्ण सार तथ्य है।
मनुष्य सर्वप्रथम सोचता है और उसे अपने भावों एवं क्रियाओं द्वारा अपने विचारों को विभिन्न माध्यमों द्वारा व्यक्त करता है।


आचार्य आपस्तम्ब के कथानुसार ‘‘मंत्र ब्राह्मणयोर्वेदनाम धेयम्’’ वेदों में मंत्र को सर्वोच्च स्थान है  एवं उन्हें ब्रह्म समान माना गया है। मंत्र में ऐसी रहस्य शक्ति व्याप्त है, जो वाणी द्वारा प्रकाशित नहीं की जा सकती है, अपितु मंत्र शक्ति द्वारा वाणी स्वयं प्रकाशित होती है।
मंत्र आप्तवाक्यजन्य होते हुए भी मंत्र की शक्ति अवर्णनीय है।


मंत्र के शक्ति व स्वरूप की व्याख्या करने पर यह कहा जा सकता है कि मंत्र सर्व शक्तियों से संपन्न, नाश रहित, नित्य सर्व व्यापक जहां वाणी नहीं जा सकती वहां मंत्र जाता है।
अग्नि पुराण के अनुसार मंत्र भोग एवं मोक्ष दोनों को प्रदान करता है।
बीस अक्षरों से अधिक अक्षर वाले मंत्र महामंत्र कहलाते हैं
और दस अक्षर से कम वाले मंत्र को बीज मंत्र की संज्ञा दी जाती है।


पांच अक्षरों से अधिक और दस से कम अक्षरों वाले मंत्र सर्वथा सिद्धि प्रदान करने वाले होते हैं।
मंत्रों की तीन जातियां होती हैं- स्त्री, पुरुष और नपुंसक।
जिन मंत्रों के अंत में ‘‘स्वाहा’’ शब्द लगता है वे स्त्री जाति के होते हैं,


जिन मंत्रों के अंत में ‘‘नमः’’ शब्द लगता है वे सब नपंुसक मंत्र कहलाते हैं और शेष सभी पुरुष जाति के होते हैं।
क्षुद्र कार्य तथा रोगों के विनाश के लिए स्त्री मंत्रों का प्रयोग किया जाता है और शेष अन्य कार्यों में नपुंसक मंत्रों का प्रयोग किया जाता है।
मंत्र युवावस्था में सिद्ध होते हैं। माला मंत्र वृद्धावस्था में सिद्ध होते हैं।
मंत्र के दो भेद होते है आग्नेय और सौम्य।
जिन मंत्रों के आदि में प्रणव प्रयोग किया जाता है वे आग्नेय मंत्र कहलाते हैं और
जिन मंत्रों के अंत में प्रणव प्रयोग किया जाता है वे सौम्य मंत्र कहलाते हैं

जिस समय सूर्य नाड़ी चलती है, उस समय आग्नेय मंत्र का जप करना चाहिए और जिस समय चंद्र नाड़ी चलती है, उस समय सौम्य मंत्र का जप करना चाहिए।
दोनों प्रकार के मंत्र क्रमशः क्रूर एवं सौम्य कर्मों के लिए प्रशस्त माने गये हैं।


यदि आग्नेय मंत्रों के अंत में ‘‘नमः’’ पद प्रयुक्त किया जाता है तो ये सौम्य हो जाते हैं
और सौम्य मंत्रों के अंत में ’’फट्’’ पद प्रयुक्त किया जाता है। तो वे आग्नेय हो जाते हैं।
यदि मंत्र सोया हुआ हो या सोकर तत्काल जगा हुआ हो तो वह सिद्धिप्रद नहीं होता।


जब वाम नाड़ी चलती हो तब वह आग्नेय मंत्र के सोने का समय होता है और जब दाहिनी नाड़ी चलती हो वह आग्नेय मंत्र के जागरण का समय होता है।
सौम्य मंत्र के सोने और जागने का काल आग्नेय मंत्र के सोने और जागने के काल से विपरीत होता है। जिस समय दोनों नाड़ियां चलती हैं, उस समय दोनों प्रकार के मंत्रों का जागरण काल होता है।


प्रत्येक मंत्र के एक अधिष्ठाता देवता रक्षक होते हैं। बीज मंत्र जितना छोटा होगा उतना ही शक्तिशाली होगा, जैसे- ऐं, बं, ठं, ह्रीं, क्लीं, हं इत्यादि मंत्र हैं।


महामृत्युंजय मंत्र में भी आगे-पीछे बीज मंत्र का सम्पुट लगाकर उसका जप करने से उसमें अपार शक्ति का समावेश हो जाता है।


मंत्र सिद्ध करने के लिए एक निश्चित संख्या होती है, उस संख्या तक जाने के लिए नित्य उसका पाठ बार-बार करना चाहिए तभी उस मंत्र का फल मिलता है।


मंत्र सफल न हो इसलिए नकारात्मक शक्तियां अनेक अवरोध पैदा करती हैं - जैसे-जैसे आप मंत्र जप करेंगे वैसे-वैसे आपका अनिष्ट होने की पूरी संभावना रहती है व कई लोग डर के मारे मंत्र जप बंद भी कर देते हैं, पर यह उचित बात नहीं है।


मंत्र को सिद्ध होने तक नित्य करना चाहिए बाद में तो लाभ ही लाभ है।
अंततः वर्णों एवं शब्दों के उच्चारण की चमत्कारी शक्ति को हम सब सुहृदय स्वीकार करते हैं। मंत्र की तरंगे मस्तिष्क तथा बह्मांडीय वातावरण को प्रभावित करती हैं।


जिस प्रकार निरंतर वायुमण्डल में प्रवाहित विद्युत चुंबकीय तथा रेडियो तरंगे हमें नहीं दिखलायी पड़तीं, ठीक उसी तरह मंत्र के द्वारा उच्चारित ध्वनि शक्तियां भी हमें प्रत्यक्ष रूप से दिखलायी नहीं देती।



हनुमान जी के कुछ चमत्कारी सिद्ध मंत्र



जो साधक पूर्ण श्रद्धा,आस्था एवं लग्न के साथ श्री हनुमान जी का जप, पूजा-पठन आदि कुछ भी करते हैं उनको समस्त सुखों की प्राप्ति होती ही होती है, इसमें लेश मात्र भी संशय नहीं है। हनुमत साधना से लाभ पाये असंख्य लोग इसके साक्षात् उदाहरण हैं। वाचिक, उपांशु अथवा मानसिक कोई भी जप इच्छापूर्ति के लिए कर रहे हैं तो उसके लिए ब्रह्मचर्य, सद्विचार अत्यन्त आवश्यक हैं। मंत्र जप के साथ यदि नैवेद्य, पुष्प तथा सिंदूर के चोले से देव को प्रसन्न करने का यत्न करते हैं तो फल की प्राप्ति बहुत ही शीघ्रता से मिलती है। हनुमान जी से सम्बन्धित बीज, मंत्र, चालीसा, बाहुक, बाण, साठिका आदि कुछ भी कर रहे हैं तो उसके बाद एक माला सीता राम की अवश्य जप लिया करें।


मंत्र जप के बाद उस मंत्र का दशांश संख्या में हवन कर लेने से मंत्र सिद्ध हो जाता है। यदि मंत्र जप, दशांश हवन, हवन सामग्री आदि की पूर्ण विधि में जाना है तो उसके विस्तृत ज्ञान के लिए अन्य शास्वत ग्रंथों का अध्ययन मनन करना भी आवश्यक हो जाता है। उचित परामर्श यही है कि जप से पूर्व किसी बौद्धिक व्यक्ति से विषयक चर्चा एवं ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लें।*
इच्छा पूर्ति के लिए पाठकों के लाभार्थ कुछ प्रभावशाली मंत्र प्रस्तुत है-

1. सूर्य की प्रसन्नताव यश-कीर्ति के लिए: ॐ  नमो हनुमते रुद्रावताराय विश्वरूपाय अमितविक्रमाय प्रकट-पराक्रमाय महाबलाय सूर्यकोटिसमप्रभाय रामदूताय स्वाहा।

2. शत्रु पराजय के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय रामसेवकाय रामभक्तितत्पराय रामहृदयाय लक्ष्मणशक्ति भेदनिवावरणाय लक्ष्मणरक्षकाय दुष्टनिबर्हणाय रामदूताय स्वाहा।

3. शत्रु पर विजय तथा वशीकरणके लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सर्वशत्रुसंहरणाय सर्वरोगहराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।

4. सर्वदुःख निवारणार्थ: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय आध्यात्मिकाधिदैवीकाधिभौतिक तापत्रय निवारणाय रामदूताय स्वाहा।

5. सर्वरुपेण कल्याणार्थ ( मनोकामना पूर्ति के लिए): ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवर्षिमुनिवरदाय रामदूताय स्वाहा।

6. धन-धान्य आदि सम्पदाप्राप्ति के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय भक्तजनमनः कल्पनाकल्पद्रुमायं दुष्टमनोरथस्तंभनाय प्रभंजनप्राणप्रियाय महाबलपराक्रमाय महाविपत्तिनिवारणाय पुत्रपौत्रधनधान्यादिविधिसम्पत्प्रदाय रामदूताय स्वाहा।

7. स्वरक्षा के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय वज्रदेहाय वज्रनखाय वज्रमुखाय वज्ररोम्णे वज्रदन्ताय वज्रकराय वज्रभक्ताय रामदूताय स्वाहा।

8. सर्वव्याधि व भय दूरकरने के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय परयन्त्रतन्त्रत्राटकनाशकाय सर्वज्वरच्छेदकाय सर्वव्याधिनिकृन्तकाय सर्वभयप्रशमनाय सर्वदुष्टमुखस्तंभनाय सर्वकार्यसिद्धिप्रदाय रामदूताय स्वाहा।

9. भूत-प्रेत बाधा निवारणार्थ: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय देवदानवयक्षराक्षस भूतप्रेत पिशाचडाकिनीशाकिनीदुष्टग्रहबन्धनाय रामदूताय स्वाहा।

10. शत्रु संहार के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय पूर्वमुखे सकलशत्रुसंहारकाय रामदूताय स्वाहा।

11. भूत-प्रेत के दमन केलिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय दक्षिणमुखेय करालवदनाय नारसिंहाय सकलभूतप्रेतदमनाय रामदूताय स्वाहा।

12. सकल विघ्न निवारण केलिए: ऊँ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चवदनाय पश्चिममुखे गरुडाय सकलविघ्ननिवारणाय रामदूताय स्वाहा।

13. सकल सम्पत के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय पच्चमुखाय उत्तरमुखे आदिवराहाय सकलसम्पत्कराय रामदूताय स्वाहा।

14. सकल वशीकरण के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय ऊर्ध्वमुखे हयग्रीवास सकलजन वशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।

15. शत्रु की कुबुद्धि को ठीक करने के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय सव्रग्रहान् भूतभविष्यद्वर्तमानान् समीपस्थान सर्वकालदुश्टबुद्धीनुच्चाटयोच्चाटय परबलानि क्षोभय क्षोभय मम सर्वकार्याणि साधय साधय स्वाहा।

16. सर्वविघ्न व ग्रहभयनिवारणार्थ: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय परकृतयन्त्रमन्त्र पराहंकार भूतप्रेत पिशाचपरदृष्टिसर्वविघ्नतर्जनचेटकविद्यासर्वग्रहभयं निवारय निवारय स्वाहा।

17. जादू टोना का असर दूर करने के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय डाकिनीशाकिनीब्रह्मराक्षसकुल पिशाचोरुभयं निवारय निवारय स्वाहा।

18. ज्वर दूर करने के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय भूतज्वरप्रेतज्वरचातुर्थिकज्वर विष्णुज्वरमहेशज्वरं निवारय निवारय स्वाहा।

19. शारीरिक वेदन कष्टनिवृत्ति के लिए: ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय अक्षिशूलपक्षशूल शिरोऽभ्यन्तर शूलपित्तशूलब्रह्मराक्षसशूलपिशाचकुलच्छेदनं निवारय निवारय स्वाहा।

20. प्रेत बाधा निवारणके लिए: ॐ दक्षिणमुखाय पंचमुखहनुमते करालवदनाय नारसिंहाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रौं ह्रः सकलभूतप्रेतदमनाय स्वाहा।
यह मंत्र कम से कम हजार जप करने पर सिद्ध हो जाता है। मंत्र जाप के बाद अष्टगंध से हवन करना चाहिए।

21. विष उतारने के लिए: ॐ पश्चिममुखाय गरुडाननाय पंचमुखहनुमते मं मं मं मं मं सकलविषहराय स्वाहा।
यह मंत्र दीपावली के दिन अर्धरात्रि में दीपक जलाकर हनुमानजी को साक्षी करके 10 हजार जप लेने से सिद्ध हो जाता है। पुनः बिच्छू, बर्रै आदि बिषधारी जीवों द्वारा काटने पर इस मंत्र को उच्च स्वर से उच्चारण करते हुए उस अंग का स्पर्श करें जहां जीव ने काटा है। कई बार ऐसा करने पर विष उतर जाता है।

22. शत्रु संकट निवारणके लिए: ॐ पूर्वकपिमुखाय पंचमुखहनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रुसंहरणाय स्वाहा।
इस मंत्र के सिद्ध कर लेने पर शत्रु भय दूर हो जाता है। यह केवल 15 हजार मंत्र जप से सिद्ध हो जाता है।

23. महामारी, अमंगल, ग्रह-दोष एवं भूत-प्रेतादि नाश के लिए: ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रं ह्रौं ह्रः ॐ नमो भगवते महाबलाय-पराक्रमाय भूतप्रेतपिशाचीब्रह्मराक्षसशाकिनीडाकिनीयक्षिणी पूतनामा-रीमहामारीराक्षसभैरववेतालग्रहराक्षसादिकान् क्षणेन हन हन भंजन भंजन मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामाहेश्वररुद्रावतार ॐ ह्रं फट् स्वाहा। ॐ नमो भगवते हनुमदाख्याय रुद्राय सर्वदुष्टजनमुखस्तम्भनं कुरु कुरु स्वाहा। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रं ठं ठं ठं फट् स्वाहा।
यह मंत्र मंगलवार को दिन भर व्रत रखने के बाद अर्धरात्रि में हनुमानजी के मंदिर में सात हजार जप करने से सिद्ध हो जाता है।



MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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