Tuesday, August 6, 2019

“श्रीरुद्राष्टकम्” हिंदी काव्य

“श्रीरुद्राष्टकम्”   हिंदी काव्य

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


तुलसीकृत इस स्तुति को काव्यांतर करने हेतु कुछ शब्दो को जोड़ा भी गया है।

॥ श्रीरुद्राष्टकम् ॥ 


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । 
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥

हे मोक्ष रूप, हे सर्वव्याप्त, हे ब्रह्म सदा तेरा वंदन।
हे वेद स्वरूप,  ईशान प्रभु, सबके स्वामी शिव का वंदन॥ 
हे निजस्वरूप, गुण भेद रहित, तुमको सदा हम नमन करते। 
जो इच्छारहित चेतना और चिद आकाश निवास भजन करते॥ 

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् । 
करालं महाकाल कालं कृपालं गुणागार संसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥

जो निराकार है ओमकार,  है गुणातीत तुरीय रहता। 
उस वाक् ज्ञान इंद्री से परे,  ईशो के ईश नमन करते॥
गिरि ईश बना है महाकाल है महाकृपाल नमन करते।
है गुणनिधान भव सागर तरे नतमस्तक सभी भजन करते॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम् । 
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥

हिमराज समान गम्भीर सदा, आकाश समान विशाल धरा।
हरमन  स्वामी करोड़ो प्रात: सम ज्योति रूप नमन करते॥
जिनके सिर गंगा जटा भटक है चंद्र सदा ही नमन करते॥
शोभित हो बाल चंद्र सदा धर कंठ सदा हम भजन करते॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् । 
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

जिनके कर्ण कुण्डल नेत्र विशाल शोभित धनु समान भृकुटी।
जो प्रसन्नसदा हर्षित रहते,  नीलकण्ठ  दयालु नमन करते॥
सिंह चर्म वस्त्र मुण्डमाल गले उस दीन दयाल नमन करते।
सबके प्यारे जग के स्वामी प्रभु शंकर का हम भजन करते॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम् । 
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥


जिन महातेज  प्रचंड सदा है परमेश्वर उसको भजते।
सदा अजन्मा अखंड सदा कोटि सूर्य प्रकाश नमन करते।
त्रिशूलधारी सब ताप हरे त्रै शूल निवारण जो करते।
भक्तभाव वश भवानीपति उनका सदा हम भजन करते॥

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी । 
चिदानन्द संदोह मोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥


कल्याण स्वरूप प्रलयकर्ता जो रहे सदा कलाओं से परे।
जो सदा सज्जन आनन्द देते अरि त्रिपुर का दमन जो करे॥


सत् चित्त आनंद संदेह हरे जो भक्त ह्रदय सब मोह हरते॥
मन को अब मथ डालो प्रभु हो जाओ प्रसन्न हम भजन करते॥  

 

न यावत् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् । 
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥


जब तक भक्त भवानीपति श्री शंकर चरण को न भजते।
तब तक भक्त इस लोक नहीं परलोक कभी सुख न वरते॥
न ही कष्ट हमारे कटते हैं न शांति हमें कुछ मिलती है।
हे सुखदाता ह्रदयनिवासी तेरा सदा ही भजन करते॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् । 
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥


नही जप का कोई ज्ञान हमें नही योग पता न पूजन क्या।
हे शिव शम्भु दीनहीन विपुल तुझको सदा ही नमन करते॥
हम दु:ख से पीड़ित वृद्ध हुये हैं काम क्रोध सदा जलते।
हे प्रभु विपुल रक्षा करना हम मूर्ख सदा तुझको भजते॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये । 
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

 प्रभुदास विपुल शिवोमगुरो नित्यबोधानंदनं सर्वदा।
मातृकालिके गंसहायकं नम: देवाधिदेव॥


यह रूद्राष्टक छंद सदा निज भक्ति भाव जो गायेगा।
है तुलसीदास का वास्ता प्रभु मनवांछित वो पायेगा॥

प्रभुदास विपुल शिवोम् गुरू नित्यबोधानंद सदा रहते।
माता काली सहाय गणेश देवाधिदेव नमन करते॥ 

 

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं दास विपुल काव्यानुवादकम् श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥



 
MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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