Wednesday, August 7, 2019

यमराज तो हमारे साथ रहते हैं

 यमराज तो हमारे साथ रहते हैं

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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जब हम साधन पर जब बैठते है तो गुरू शक्ति अपना कार्य करती है और परा पश्यंती तक नही हो पाती है। अतः जब क्रिया न हो यानी गुरू शक्ति शांत हो तब अपने ध्यान से परा  पश्यंती में ही पहुँच सकते है। नही तो नही। यह हो पाता है बस में। क्योकि बस में आसन होता नही अतः गुरू शक्ति की क्रिया नही हो पाती है। उस समय ध्यान लगाकर परा पश्यंती में तुंरन्त पहुँच कर मन्त्र को घुमाकर अपने तालु के द्वार पर दस्तक दे सकते है। जब मैंने यह प्रयास किया तो पुनः उस अवस्था मे यानी फंसने की अवस्था मे न पहुचा पर मुझे सोने के सींग वाले भैंसे के दर्शन हुए। दुबारा फिर वही। तिबारा साक्षात बड़े सींग वाले भैंसे और उस पर धुंधली आकृति। अच्छा यह सब एक महलनुमा भवन जिसमे तमाम सुंदर नक्काशी सोने चांदी के खम्भे और चित्र लगे थे।

मैं विस्मित हुआ। अचानक आत्मगुरु बोले यह यम का भवन है। यमराज। तुम जहाँ आये थे वह स्थान तालु के नीचे होता है। जहां से प्राण यानी आत्मा गर्भ में बच्चे में प्रवेश करती है। फिर उस छिद्र पर खाल चढ़ जाती है। आप नवजात को देखे तो उसके तालु पर हड्डी नहे सिर्फ खाल होती है। अतः योगी मृत्यु के समय वहाँ प्राण चेतना ले जाकर वही से निकलते है। जहाँ उनका स्वागत होता है।

मतलब मनुष्य के प्राण की रक्षा यम द्वारा की जाती है। इसीलिए सनातन में मृतक की कपाल क्रिया करते है ताकि यम की नगरी नष्ट हो जाये

बाप रे बाप। मनुष्य का शरीर कितना रहस्यमयी है। क्या क्या है यहाँ पर

अब आप ज्ञानियों की राय जाननी है। यह शायद पहली बार कोई लिख रहा होगा। अतः मेरे मन का भरम भी हो सकता है। पर मैं व्याख्या से सन्तुष्ट हूँ।

जय माँ काली। तेरी शक्ति निराली।


मुझे खुद आश्चर्य होता है। जिस को समझने के लिए लोग बाग इतना समय लगाते है। माँ काली कुछ पलों में आकर सब लीला दिखा जाती है। जैसे सहस्त्रसार तक मैंने कभी सपने में न सोंचा था। वहाँ भी दृष्टा भाव से खड़ा कर दिया। पलो में। ब्रह्मांड की उत्तपत्ति समझाया दी क्षणों में।

प्रभु की लीला प्रभु जाने। हम तो बस गधे से अधिक कुछ नही।

प्रकाश तो ऐसा लगता है कभी कभी कान के पीछे से कोई आगे टार्च मारता हो एकदम सफेद प्रकाश की। कभी कभार तो इतना तीव्र सफेद प्रकॉश जो असहनीय होकर आंख तक खुल जाती है। यह प्रकाश ऊपर ने नीचे आता हुआ कभी कभार दिखा है।

वैसे यह विचार मैंने न कभी सुने और न सोंचे।

पहली बार लगा कि यम शरीर मे है।

सर जी मैं वहाँ पलो में पहुच जाता हूँ। जबकि लोग कहते है समय लगता है। मुझे तो किसी अनुभव में कोई समय नही लगा।???

मतलब सब सही है या भरम।

मैं कही और तो नही जाता। क्योकि मैं तो मन्त्र को परा पश्यंती में जाता हूँ। मन्त्र से साथ ध्यान को शरीर के किसी भी हिस्से में ले जा सकता हूँ। इसका नतीजा यह होता है सर कनपटी से भारी हो जाता है। प्रायः मैं मन्त्र सर में चक्कर कर घुमाता भी हूँ।

जैसे कितना ही सुंदर सुडौल मोती हो, पर भीतर छिद्र हो जाए तो बंधन को प्राप्त होता है। वैसे ही धनहीन पुरूष को शील, पवित्रता, सहनशीलता, चतुराई, मधुरता और कुल भी शोभित नहीं कर पाते। बुद्धि भी नष्ट हुई सी रहती है। शास्त्र कुशल मनुष्य भी धन से रहित रह जाने पर हास्य का ही पात्र हो जाता है।

अकेला, घरहीन, करपात्री, दिगम्बर होकर, सिंह और हाथियों से सेवित, जनहीन और काँटों से भरे वन में, घास की शैय्या और वल्कल वस्त्र धारण करना उत्तम है, पर पुरूष का निर्धन होकर अपने बंधुओं के बीच जाना ठीक नहीं।

अब नियम यह है कि धन सत्कर्म से प्राप्त होता है, सत्कर्म एक ही है, भगवान के नाम का जप।

"जिमि सरिता सागर महुं जाहीं। यद्यपि ताहि कामना नाहीं।।

तिमि सुख सम्पति बिनहिं बोलाएँ। धर्मशील पाहिं जाईं सुभाएँ।।"

कहना न होगा की दिनरात व्यर्थ ही धन का चिंतन करने से धन प्राप्त नहीं होता। तो जिनके जीवन में भगवान के नाम का जप नहीं है वे कामना से ही सही, नामजप करना प्रारंभ करें।

 

 

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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