Tuesday, November 10, 2020

क्या जीव व आत्मा एक ही है या भिन्न - भिन्न ??? अगर एक ही है तो कैसे है ??

 क्या जीव व आत्मा एक ही है या भिन्न - भिन्न ???

अगर एक ही है तो कैसे है ??

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी


यह एक बहुत ही सामान्य सा प्रश्न है क्योंकि हम बचपन से ही सुनते चले आ रहे हैं की उस ब्रह्म की शक्ति को दो भागों में बांट सकते हैं एक वह जो सकल सृष्टि को चलाती है और वह जब मनुष्य के शरीर के बंधन में आ जाती है तब उसे जीवात्मा कहते हैं और शरीर के बाहर जो शक्ति व्याप्त है सर्वत्र व्याप्त परमात्मा है।



मैंने भी इस विषय में लेख लिखे हैं 10 विद्या और नवदुर्गा इन में क्या अंतर है यह मुझे कहीं नहीं मिला लेकिन इस नवरात्रि में मां काली की कृपा से यह अंतर स्पष्ट हुआ निराकार ब्रह्म ने जो कि सगुन निराकार है सबसे पहले ईशत हास्य किया यानी नाद किया जिसे हम बोलते हैं बैंग थ्योरी बोलते हैं। और उस नाद से उस वक्त निराकार ऊर्जा में कंपन आरंभ हुआ फिर आइंस्टाइन के नियम के अनुसार उसमें द्रव्यमान बनना आरंभ हुआ और सृष्टि की उत्पत्ति हुई यह सारा काम उस ब्रह्म की काली शक्ति जिसे हम 10 विद्या के नाम से जानते हैं उसके द्वारा सृष्टि का निर्माण हुआ फिर जब मनुष्य की उत्पत्ति हुई तक मनुष्य के अंदर उसके जीवन के उद्देश्य को जानने के लिए और पूरा करने के लिए जिस व्यक्ति ने नव चक्रों के रूप में शरीर की संरचना कि वह कहलाई नवदुर्गा उसको हम नव दुर्गा के द्वारा व्याख्या कर सकते हैं।



मतलब आपके शरीर के अंदर जो कुछ हो रहा है वह सब नव दुर्गा के द्वारा रचित हो रहा है और शरीर के बाहर जो कुछ भी है वह काली की 10 विद्या है जिसे हम दस महाविद्या कहते हैं जिसके द्वारा यह सकल सृष्टि चलती है यही शक्ति जो आपके शरीर के अंदर मौजूद है इसको हम आत्मा कहते हैं या जीवात्मा कहते हैं।
यानि किसी भी जीव के अंदर जो चेतन शक्ति है जो उस जीव को सभी कार्य करने में सहयोग करती है वह जीवात्मा शक्ति है।



वेद महावाक्य में जो दूसरा वाक्य है वह है अयम् आत्मा ब्रह्म। मेरी ही आत्मा ब्रह्म है जब हमको योग का अनुभव होता है तब हमें यह अनुभव होता है। यानी आपकी नव दुर्गा शक्ति जब सृष्टि की काली शक्ति से मिलती है तब आपको योग का अनुभव होता है।


जय गुरुदेव जय महाकाली



जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

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