Monday, November 9, 2020

अपने आध्यात्मिक अनुभव क्यों न बताएं।

 अपने आध्यात्मिक अनुभव क्यों न बताएं।

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी


अक्सर गुरु लोग मना करते रहते कि आप अपने अनुभव दुनिया को मत बताइए मैं इस बात से सहमत नहीं हूं क्योंकि यह बात सबके लिए लागू नहीं होती।
उनका यह कहना होता है कि अनुभव बताने से अपनी अनुभव बंद हो जाते हैं और शक्ति का ह्वास होता है।



यहां पर मैं करना चाहता हूं जो अनुभव मेरे है ही नहीं यह सब ईश्वर की कृपा से होते हैं गुरु कृपा से होते हैं यह उन्हीं की देन है तो इस पर मेरा क्या अधिकार क्योंकि जब मैं कुछ हूं ही नहीं तो किस पर अपना अधिकार दिखाया जाए।
उसने अनुभव दिए उसकी मर्जी अनुभव नहीं दिए उसकी मर्जी अपना है क्या जो हम समेट के रखे।



उसकी मर्जी रहेगी वह और देगा नहीं होगी नहीं देगा अपने क्या बिगड़ा।
लेकिन एक बात यह समझने की है कि यदि आपके अंदर अपरिपक्वता है।  आप को गुरु चेले के चक्कर मैं आकर दुकान खोलनी है। इसके बदले में जगत से कुछ लेना चाहते हैं तो मत बताइए।



यदि केवल और केवल जगत का कल्याण चाहते हैं मेश बताना चाहिए क्योंकि यदि आप किसी मूर्ख को अनुभव बताएंगे तो वह समझेगा नहीं नास्तिक या शठ आपकी मजाक बनाएगा और जो आस्तिक है वह आपका और अधिक सम्मान करने लगेगा या अन्य लोग जगत के आपसे कुछ हाथ में आने की आस लगाए बैठे रहेगे।



यदि आप इन सब से निपट सकते हैं तो आपको बताना चाहिए।
लेकिन यदि बताते समय आपके अंदर अहंकार का प्रवेश होता है तो नहीं बताना चाहिए।
शायद इसीलिए गुरु लोग मना करते यदि आपको लग रहा है कि मेरे अनुभव है मैं कर रहा हूं तो आप महामूर्ख है आपको अनुभव बिल्कुल नहीं बतानी चाहिए। क्योंकि उससे आपका पतन निश्चित है क्योंकि आपके अंदर कर्ताभिमान आ जाता है।



लेकिन यदि आपके अंदर यह फीलिंग है कि मैं जगत के कल्याण के लिए बताना चाहता हूं जिसको मानना हो माने न मानना ज्ञो न माने अपना क्या क्योंकि अपना कुछ है ही नहीं सब उसकी मर्जी। तब आप सनातन की सेवा में आकर अपने अनुभव जगत को बताइए जिससे कि लोग सनातन की ओर प्रेरित हूं और आप हिंदुत्व की सही व्याख्या कर सकें।


जय गुरुदेव जय महाकाली



जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥



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मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 
जय गुरुदेव जय महाकाली।

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