Sunday, October 14, 2018

कैसे बदनाम करते हैं ये दुष्ट वेदों को



कैसे बदनाम करते हैं ये दुष्ट वेदों को
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
 वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"


मित्रों गूगल गुरू को मैं नमन करता हूं। इसमें किताबी ज्ञान, गलत सही सब दिया रहता है पर सबसे अच्छा यह होता है कि लोगों के दिमाग की बदबू और गंदगी भी देखने को मिल जाती है। ऐसी एक वेब साइट है जन उदय। नाम तो सुंदर है पर कर्म दुष्टो और पापियों के हैं। भारतीय सनातन के अर्थ वेदों के अर्थ उलटखोपडी बिना परम्परा के धर्म की दुकान चलाकर लोगों को बरगलानेवाले कुछ पापियों द्वारा संचालित है। चलिये इसकी बकवास को रीपोस्ट करता हूं।

पहले इस पापबुद्धि वेबसाइट दैनिक जन उदय से कट पीस:

वेदों में लिखी गंदगी देख कर आप भी करेंगे इनसे नफरत:  
(15 अक्टूबर,  2018 को प्रकाशित ई लेख)

अथर्ववेद - अश्लीलता के कुछ और नमूने वेदों में किस प्रकार अश्लीलता, जन्गी बातों और जादू-टोने को परोसा गया है.
धर्म-युद्ध: वेदों को गंदगी देख कर आप भी करने लगेंगे इनसे नफरत
हिन्दुओं के अन्य धर्मग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता की भांति वेद भी लडाइयों के विवरणों से भरे पड़े है. उनमें युद्धों की कहानियां, युद्धों के बारे में दांवपेच,आदेश और प्रर्थनाएं इतनी हैं कि उन तमाम को एक जगह संग्रह करना यदि असंभव नहीं तो कठिन जरुर है. वेदों को ध्यानपूर्वक पढने से यह महसूस होने लगता है की वेद जंगी किताबें है अन्यथा कुछ नहीं।

इस सम्बन्ध में कुछ उदाहरण यहाँ वेदों से दिए जाते है ....ज़रा देखिये
(1) हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं || यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो || हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं || धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. (ऋग्वेद १.२.४)

(२) हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर || हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.(ऋग्वेद १.३.७)

(३) हे संग्राम में आगे बढ़ने वाले और युद्ध करने वाले इन्द्र और पर्वत! तुम उसी शत्रु को अपने वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना चाहे. हे वीर इन्द्र ! जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए शत्रु की इच्छा करें, तब वह उसे कर ले. हे अग्ने, वायु और सूर्य ! तुम्हारी कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों और श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.(यजुर्वेद १.८)

(४) हे अग्ने तुम शत्रु-सैन्य हराओ. शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा सकते. तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज प्रदान करो |३७| यजुर्वेद १.९)

(५) हे व्याधि! तू शत्रुओं की सेनाओं को कष्ट देने वाली और उनके चित्त को मोह लेने वाली है. तू उनके शरीरों को साथ लेती हुई हमसे अन्यत्र चली जा. तू सब और से शत्रुओं के हृदयों को शोक-संतप्त कर. हमारे शत्रु प्रगाढ़ अन्धकार में फंसे |४४|

(६)हे बाण रूप ब्राहमण ! तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो. हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो और उनके शरीरों में घुस कर किसी को भी जीवित मत रहने दो.(४५) (यजुर्वेद १.१७)

(यहाँ सोचने वाली बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना और पाक से डरने की जरुरत क्या है इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना चाहिए फिर क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की और क्या जरुरत है मिसाइलें बनाने की)
अब जिक्र करते है अश्लीलता का :-वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं (१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ : हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.

(२) अद्द्यागने............................पसा:|| (अथर्व वेद ४-४-६) अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी, तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
(३) अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो

(४) आहं तनोमि ते पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व वेद ६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि तुम स्त्रियों में प्रचंड विहार कर सको.
(५) तां पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद १४-२-३८) अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि वह अपनी जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.

(६) एयमगन....................सहागमम || (अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ.

(७) वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो.

(अब आप ही इस अश्लीलता के विषय में अपना मत रखो और ये किन हालातों में संवाद हुए हैं। ये तो बुद्धिमानी ही इसे पूरा कर सकते है ये तो ठीक ऐसा है जैसे की इसका लिखने वाला नपुंसक हो या फिर शारीरिक तौर पर कमजोर होगा तभी उसने अपने को तैयार करने के लिए या फिर अपने को एनर्जेटिक महसूस करने के लिए किया होगा या फिर किसी औरत ने पुरुष की मर्दानगी को ललकारा होगा) तब जाकर इस प्रकार की गुहार लगाईं हो.

अब जरा सही अर्थ भी देखें। नास्तिकों का खंडन ब्लाग।


लेख लिखने के पहले मैं सनातनपुत्र देवीदास विपुल तुम नास्तिकों अनीश्वरवादियों को पूरे होशोहवास में चुनौती देता हूं। यदि “तुम पागल नहीं हो। हठी नहीं हो। ईमानदार नास्तिक हो अनीश्वर्वादी हो तो तुमको अपने घर पर कुछ समय दो। सनातन की ईश्वरीय शक्ति का अनुभव होगा होगा और होगा। तुमको न किसी को गुरू बनाना है न कहीं जाना है।

“ MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

अथवा इस लिंक पर अप्रैल माह में मनपसंद तरीके से ढूढ हो: https://freedhyan.blogspot.com/

वेदों के सही अर्थ:
उत्तर : https://nastikwadkhandan.blogspot.com/2017/08/blog-post_36.html
वेदों पर आक्षेप करने वालों का की कोई कमी नहीं है। "दैनिक जनउदय" नामक एक वेबपत्र में ऐसे ही आक्षेप किये गये हैं। हम उस पोस्ट का खंडन इस पोस्ट में कर रहे हैं:- http://januday.co.in/NewsDetail.aspx?Article=7025
लेखक ने सायण महीधर आदि के वेदविरुद्ध भाष्यों का उल्लेख किया है। यह भाष्यकार वाममार्गी थे। वेद का भाष्य कोई ऋषिकोटि का व्यक्ति ही कर सकता है,जैसे, महर्षि दयानंद। उन्हीं का अनुसरण करके जयदेव शर्मा और पं हरिशरण आदि ने वेदभाष्य किये हैं। हम वाममार्गी वेदभाष्य का सत्य वेदार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं।
वेदों में लिखी गंदगी देखकर आप भी करेंगे इनसे नफरत
वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं
(१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१)
अर्थ : हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.
उत्तर:- वेद ईश्वरीय ज्ञान है।इसमें अश्लीलता लेश मात्र भी नहीं है। पूरा मंत्र इस तरह है:-
यात्म्वा गंधर्व  अखनद्वरुणाय मृतभ्रजे।तां त्वा वयं खनामस्योषधि शेपहर्षिणिम्।। अथर्ववेद ४/४/१
भावार्थ:- उत्तम वृत्ति वाले, परंतु किसी रोगवश नष्ट दीप्तिवाले पुरुष के लिये ज्ञानी वैद्य ऋषाभक आदिऔषधियों को खोदकर लाता है। इस ओषधी के सेवन से सबल होकर यह वरुण (पाप का निवारण करने वाला उत्तम पुरुष) फिर चमक उठता है। औषधी का प्रयोग ज्ञानी पुरुष को ही करना है।

पूरा अर्थ देखिये:- http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&sukt=4&kand=4

यहां पर न लिंग शब्द है न लिंग बढ़ाने की प्रार्थना है। यह वाममार्गी भाष्यकारों का अश्लील अशुद्ध भाष्य है।

(२) अद्द्यागने............................पसा:|| (अथर्व वेद ४-४-६) 
अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी,   तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
उत्तर:- अद्याग्ने अद्य सवितुरद्य देवि सरस्वति। अद्यास्य ब्रह्मणस्पते धनुरिव तानया पसः ।।

अथर्ववेद ४/४६
अर्थ:- संक्षेप में, हे अग्रगणी प्रभो! इस पुरुष के शरीररूपी राष्ट्र को धनुष के समान फैलाइये। राष्ट्रशक्ति इस प्रकार फैले जिस तरह से खींचने पर धनुष फैलता है। प्रेरणा देने वाले प्रभो! इस शरीर राष्ट्रका वर्धन कीजिये। हे विद्या के अधिष्ठातृ देव! इस राष्ट्र का विद्या से वर्धन करें। हे तपों के रक्षक प्रभो! इस पुरुष को तपस्वी बनाकर राष्ट्र शरीर का वर्धन कीजिये।
यहां लिंग वाचक कोई शब्द नहीं है,न लिंग बढ़ाने की बात है। पूरा अर्थ देखिये:-
http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&sukt=4&kand=4&mantra=6
(३) अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
उत्तर:- अशवस्याश्वतरस्याजस्य पेत्वस्य च। अथ ऋषभस्य ये वाजास्तानस्मिन्धेहि तनूवशिन्।। अथर्ववेद ४/४/८
अर्थ:- संक्षेप में हम संयमी जीवन बिताते हुये अश्व के समान वेगवाले, खच्चर के समान कार्यभार वहन करने वाले, बकरे के समान दिनभर गतिशील, मेढे के समान शत्रु से टक्कर लेने वाले तथा बैल की तरह शकट की धुरा को वहन करने वाले हों।
यहां पर भी न लिंगशब्द है न उसे बढ़ाने की बात है।

मंत्रार्थ इस प्रकार है:-
(४) तनोमि ते पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व वेद ६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि तुम स्त्रियों में प्रचंड विहार कर सको. 
उत्तर:- आपने अशुद्ध पाठ दिया है।शुद्ध पाठ इस प्रकार है'-
आहं तनोमि ते पसो अधि ज्यामिव धन्वनि।

क्रमस्व ऋष इव रोहितमनवग्लायता सदां।। ( अथर्ववेद ६/१०१/३)
अर्थ:- हे साधक! मैं तेरे राष्ट्र का उसी प्रकार से वर्धन करता हूं जिस प्रकार से धनुष को डोरी द्वारा विस्तृत करते हैं। जिस प्रकार हिंसक पशु मृगों पर आक्रमण करता है उसी प्रकार तू थकावट और ग्लानि त्यागकर शत्रुओं पर आक्रमण कर।
इस मंत्र में कोई भी लिंगवाची शब्द नहीं है।यहां पर राष्ट्र का वर्धन धनुष की डोरी जैसा विस्तृत करने को कहा है।

(५) तां पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद १४-२-३८) 
अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि वह अपनी जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.

उत्तर:- तां पूषा छिवतमामेरयस्व यस्या बीजं मनुष्या वपन्ति। या न ऊरु उशती विश्रयाति।यस्यामुशन्तः प्रहरेम शेपः।। ( अथर्ववेद १४/२/३८)

मंत्र का प्रतिपाद्य विषय पूषा शिवतमा है यानी पोषण करने वाला पति एवं मंगलदायक पत्नी।

अर्थ:- हे पूषन्! तू संतान प्राप्ति की कामना से पत्नी को प्रेरित करने वाला हो। पत्नी वही ठीक है जो संतानोत्पत्ति के लिये ऊरुओं को फैलाने वाली हो। उसमें पुरुष बीज का वपन करता है। इसे वीर्याधान कहते हैं। इसके विपरीत भोगवृत्ति के लिये वीर्यनाश कहाता है।

इस मंत्र में पति पत्नी को उत्तम संतान के लिये गर्भाधान का उपदेश है। बॉयोलॉजी की पुस्तकों में मूत्रेंद्रिय, गर्भाशय आदि का वर्णन है, पर इस विज्ञान को कोई अश्लील नहीं कहता। अतः वेदमंत्र भी अश्लीलता रहित गर्भाधान का वर्णन करने वाला है।
पूरा अर्थ यहां देखें:- http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&sukt=2&kand=14&mantra=38

(६) एयमगन....................सहागमम || (अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ.
उत्तर:- एयमगन्पतिकामा जनिकामोsहमागमम्।अश्वः कनिक्रदद्या भगेनाहं सहागमम्।।

( अथर्ववेद २/३०/५)

मंत्र का प्रतिपाद्य विषय है पतिकामा जनिकामः अर्थात् पति की कामना वाली पत्नी और पत्नी की कामना करने वाला पति।

 
अर्थ:- युवावस्था में ही अपनी रुचि से पति पत्नी का चयन हो। पुरुष में पूर्ण तारुण्य के साथ धन कमाने की योग्यता भी हो। पति कहता है कि जिस प्रकार से घोड़ा हिनहिनाते हुये आता है, उसी प्रकार मैं बलशाली वाणी सहित ऐश्वर्य के साथ तुम्हारे पास आता हूं। इस मंत्र में पति-पत्नी के पारस्पिरिक प्रेम का वर्णन है।  
यहां अश्लीलता कतई नहीं है।

(७) वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो.
उत्तर:- आपने अत्यंत अशुद्ध पता दिया है। अथर्ववेद के २० वें कांड के १३३ वें अध्याय में ६ मंत्र है। आपको लिखना था कि मंत्र कौन सा है।आपके शब्द जिस मंत्र से मिलते है वो इस प्रकार है:- 
उत्तानायै शयानयै तिष्ठंती वावं गूहसि।न वै कुमारि तत्तथा यथा कुमारि मन्यसे।।
(अथर्ववेद २०/१३३/४)
मंत्र का संदर्भ है "उत्ताना शयाना" चित्तवृत्ति।
अर्थ:- छल-छिद्र-शून्य चित्तवृत्ति को प्राप्त करके
तू आलस्य में शयम करने वाली चित्तवृत्ति की तू शिकार नहीं होती। हे कमारि!तू सदा ध्यान रखना कि यह संसार वैसा नहीं है जैसा तू सोचती है।
यहां न स्तन वाचक शब्द हैं न उनको मसलवाने आदि का वर्णन है,न इसके वाचक शब्द हैं। यह मंत्र अश्लीलता मुक्त है
मंत्रार्थ:- http://www.onlineved.com/atharva-ved/?language=2&sukt=133&kand=20&mantra=4

पाठकगण! हमने सभी अश्लील दिखने वालो मंत्रों का सत्यार्थ देकर सिद्ध कर दिया है कि वेदों में कहीं भी अश्लीलता नहीं है।अतः मूलनिवासियों के सब आक्षेप झूठे हैं। बौद्ध मत में बुद्ध के लिंग और जापानादि में लिंग महोत्सव वाली पोस्ट आप हमारे ब्लॉग पर देख सकते हैं कि अश्लीलता और नग्नता का कैसा भौंडा वर्णन है। इसके दूसरे और अंतिम भाग में वेदों पर हिंसक होने के आरोपो का निराकरण किया जायेगा। ...... क्रमशः । ओ३म् शम्।

संदर्भित ग्रंथ एवं पुस्तकें:-
अथर्ववेद- भाष्यकार पं हरिशरण विद्यालंकार

मित्रो जैसा कि देखा गया है कि पिता के गुण अवगुण संतान में आते हैं। उसी प्रकार वेश्यापुत्र स्त्री दलाल न बनें तो क्या आश्चर्य। वह हर स्त्री को भोग हेतु ही देखे। तो चकित नही होना चाहिये।

तुलसीदास कह गये हैं। “जाकि रही भावना जैसी प्रभु देखी तिन मूरत वैसी”। गीता में कहा है कि हे अर्जुन मुझे जो जिस रूप में भजता है मैं उसको उसी रूप में प्राप्त होता है।
श्वान तो स्वर्ण पात्र में भी मल खाने का प्रयास करेगा। वहीं समझदार स्वर्ण की मह्त्ता जानता है।

हरि ॐ हरि। प्रभु मूरखों को सद्बुद्धि दे। 


 (तथ्य, कथन गूगल से साभार) 



"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
ब्लाग :  https://freedhyan.blogspot.com/

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