Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 15

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 15


Bhakt Varun: पहले जब दीक्षित नहीं था तब मैं विपस्सना करता था उस समय मेरा ध्यान लगता था तो मेरा दम घुटने लगता था उसके बाद में विपुल जी से मिला विपुल जी ने मुझे गुरुजी तक पहुंचाया। विपुल जी का दिल से धन्यवाद गुरु जी से मिलवाने का।

+91 79828 87645: यह उन सब के लिए सुगम मार्ग है जो पूछते हैं मैं कौन हूं

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Bhakt Varun: पहले मुझे विपस्सना की जरूरत पड़ती थी पर अब मुझे नहीं लगता कि विपस्सना जरूरी है क्योंकि गुरु मंत्र से ही ध्यान में उतर जाते हैं अंतर्मुखी हो जाते हैं

तुमको यार रह-रहकर झटके लगते। शक्तिपात परंपरा की गूढंता को समझो।

+91 79828 87645: अब मैं ईनको डायरेक्ट कह दूंगा कि तुम मन के पीछे छिपी हुई आत्मा हो  उसको ढूंढो तो यह उस आत्मा को ढूंढ नहीं पाएंगे

यदि सांसो पर ध्यान लगाएंगे तो मन कुछ ही समय में शांत हो जाएगा इधर सांसे शांत होंगी इधर मन भी शांत हो जाएगा और निर्विचार में आत्मा का अनुभव होने लगेगा

फिर प्रश्न खत्म हो जाएगा कि मैं कौन हूं मैं सर्व व्यापक आत्मा हूं ऐसा जान लेंगे

👆 और इस अनुभव को बाहर का कोई भी व्यक्ति नहीं दे सकता शब्दों से तो बिल्कुल नहीं

Bhakt Varun: मैंने कानों से भी ध्यान लगाया है उसे कान इतने थे स्ट्रांग हो गए हैं कि छोटी से छोटी आवाज भी बड़ी जल्दी सुन लेते हैं

जी बिल्कुल

Bhakt Varun: झटके समय के साथ-साथ शांत होते जा रहे हैं

मित्र सबके मार्ग अलग हो सकते हैं।

आप एक विधि जानते हैं।

Bhakt Varun: जी

+91 79828 87645: बिल्कुल हो सकते हैं इसीलिए तो सबसे पहले हमने इस बात को रखा कि आप कौन हो या आपको पता होना चाहिए विपुल जी कैसे बताएंगे

Bhakt Varun: मैं तो अभी अज्ञानी हूं।

+91 79828 87645: बहुत अच्छी बात है परंतु टाइट हुए पड़े हो अज्ञानी इतना टाइट नहीं होता

एक बार योग की अनुभूति हो जाए तो सारे मार्ग समझ में आ जाते‌ हैं।

जो एक का राग गाता है वह अपूर्ण ज्ञानी है।

Bhakt Varun: पर समय के साथ करते-करते अब विपश्यना की जरूरत नहीं पड़ती है

Bhakt Varun: बहुत कम

यह लेख देखो। कुछ स्पष्ट होगा।

+91 79828 87645: ध्यान में श्वास को चलती हुई महसूस करते हो कि ऐसा लगता है जैसे बंद पड़ी हो

Bhakt Varun: दिल की धड़कन तक शांत हो जाती है कुछ सुनाई नहीं देता जैसे शब हो

ध्यान लग जाने के बाद कोई एहसास नहीं होता कहां है क्या है

- +91 79828 87645: जब सब कुछ शांत हो गया तो फिर प्रश्न क्यों करते हो मैं कौन हूं

Bhakt Varun: मुझे सुनाई दिया पर मैं समझ हीं नहीं पाया

+91 79828 87645: दोबारा सुनने की कोशिश करो इसमें कोई दिक्कत थोड़ी है

यार उसने मुझसे पूछा था।

Bhakt Varun: एक क्रिया बार-बार नहीं होती

जी बिल्कुल

यार यह क्रिया नहीं समझते।

+91 79828 87645: बार-बार एक ही क्रिया को वापस लाने की कोशिश करोगे तो ध्यान भंग हो जाएगा ध्यान में नहीं प्रवेश कर  पाओगे

Bhakt Varun: जी

+91 79828 87645: कभी-कभी पृथ्वी लोक में उतर करके आता हूं साहब चलता हूं

ब्रह्मांड भ्रमण पर मिलते हैं एक युग के बाद😌😌😌😌😌😌

Bhakt Varun: धन्यवाद आपका

+91 79828 87645: अब धन्यवाद स्वीकार करने वाला भी कोई नहीं है वह तो जा चुके

Bhakt Varun: शरीर से इधर उधर गए हैं मन से नहीं

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 जी मैं आपसे एक अनुरोध करूंगा आप भटके नहीं। आप गुरु परंपरा में है तो यह सब आपके सोचने के विचार नहीं है सब गुरु कृपा का विषय है। जब प्रश्न अंदर से उपजा है तो आपको उत्तर भी वही मिलेगा। और उसी उत्तर पर आपका संकल्प दृ ड होगा । अन्य किसी के अनुभव पर नहीं।

Bhakt Varun: जी

 कहां मिलना है।

💐💐💐

Bhakt Acharya Dharm Dhar: *ओ३म्*

*🌷कर्म-फल पर भावना और ज्ञान का प्रभाव🌷*

*(पिता-पुत्र संवाद)*

*पुत्र―*यह बात मेरी समझ में भली प्रकार नहीं आई कि नीयत के साथ-साथ ज्ञान और अज्ञान का भी कर्मफल पर कुछ प्रभाव पड़ता है, कृपया विस्तारपूर्वक बतलाइये?

*पिता―*देखो! जैसे किसी मनुष्य से कोई पाप हो गया परन्तु उसकी नीयत ठीक थी। नीयत का ठीक होना ही ज्ञान और बे-ठीक अथवा बुरा होना ही अज्ञान है। एक मनुष्य से कोई धर्म-कार्य हो गया, परन्तु उसकी नीयत बुरी थी। वह वास्तव में यह शुभ कार्य करना नहीं चाहता था, अनजाने में ही उससे यह हो गया या यों समझो कि अपनी बदनीयत का तो उसे ज्ञान था वह धर्म कार्य, वह हुआ उसके अज्ञान तथा भूल से। अब उसे फल वैसा ही मिलेगा, जैसा कि उसका ज्ञान था। या यों कह लो, जैसा कि उसकी नीयत थी। इन दोनों वाक्यों में शब्दों का भेद होने पर भी कुछ अन्तर नहीं।

*पुत्र―*मैं अभी नहीं समझा! कोई दृष्टान्त देकर समझाने की कृपा कीजिए।

*पिता―*एक वृक्ष के ऊपर सांप चढ़ रहा है। उस की नीयत किसी पक्षी के बच्चे खाने की है, जिसका घोंसला उस वृक्ष पर है। एक मनुष्य यह सब कुछ देख रहा है। उसने बच्चों को बचाने के लिए सांप पर तीर चलाया, परन्तु वह तीर जा लगा पक्षी को, उस मनुष्य की नीयत तो सांप को मारकर बच्चों की रक्षा करने की थी, किन्तु मर गया बीच में आकर पक्षी और उससे अनजाने में वह पाप हो गया। इस पाप का उसे कोई दण्ड नहीं मिलेगा। वरन्, वह पक्षी के बच्चों को बचाने के सम्बन्ध में अपने मानसिक कर्म के पुण्य फल का ही भागी समझा जायेगा।

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और लो, एक मनुष्य नदी के किनारे खड़ा हुआ किसी मछवे से मछली मोल ले रहा है। उसकी नीयत यह है कि वह उसे भूनकर खाये। परन्तु भाग्यवश ज्यों ही वह मछली को उस मछवे से लेता है, वह फड़फड़ा कर उसके हाथ से छूट जाती है और तड़पती हुई पानी में गिर पड़ती है। पानी में गिरते ही वह तैर कर अपनी जान बचा लेती है। अब उस मनुष्य की नीयत तो उस मछली के सम्बन्ध में बुरी थी। उसके ज्ञान में उसे भून कर खाने का पाप कर्म था परन्तु हो गया अज्ञान से यह पुण्य कर्म कि मछली उसके हाथ से छूटकर पानी में जा पड़ी। अब उसे मछली के जीवन-दान देने के कर्म-कार्य का पुण्य-फल कदापि नहीं मिल सकता। उसे तो मछली भूनकर खाने के मानसिक पाप-कर्म का ही दण्ड मिलेगा।

*[साभार: महात्मा प्रभु आश्रित जी महाराज, "कर्म भोग चक्र" पुस्तक से]*

इसीलिए स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज कहते हैं यह जगत तुम्हारे मन का विस्तार है।

Bhakt Brijesh Singer: राजा दशरथ की नियति श्रवण कुमार को मारने की नही थी लेकिन अनजाने मे मर गये थे फिर भी कर्म भुगतने पड़े।

भीष्म पितामह की नियति सांप को रस्ते से हटाने की थी लेकिन अनजाने मे सांप कांटो पर चला गया और कांटो से बिंध गया और भीष्म को कर्मफल भुगतना पड़ा।

कर्म फल से कोई नही बच सकता। बस अनजाने का असर थोड़ा कम होता है।

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Bhakt Brijesh Singer: सिर्फ निष्काम कर्म ही कर्म फल से छुटकारा दिला सकते है।

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: फिर भि अच्छे आदमी के श्राप से भी किसी का अच्छा हो जाता है।जैसे राजा दशरथजी के भाग्य में पुत्र था ही नही श्रवण का श्राप था कि आप भी पुत्र वियोग से तड़पेंगे,,ओर उसको पुत्र प्राप्ति हुई👏

Bhakt Brijesh Singer: पुत्र के रूप मे भगवान का अवतार तो उनको होना ही था पूर्व मे तपस्या जो की थी।

Bhakt Brijesh Singer: कितने पुत्र और कितने पुत्री यह आपके प्रारब्ध कर्म के अनुसार आपके हाथ और जन्मपत्री मे भी अंकित होते है।

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: जी,,पर राजा दशरथ जी के भाग्य में तो सन्तानयोग ही नही था प्रभु

Bhakt Brijesh Singer: This message was deleted

Bhakt Brijesh Singer: कर्मफल से तो भगवान श्रीराम भी नही बचे। बाली श्री कृष्ण अवतार मे बहेलिया बन के आया था।

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: जी क्षमा,,मेरी भूल हो सकती है,,पर है नही ये पक्का है😊

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: राम जी बड़े थे लक्ष्मण जी छोटे,,तो कृष्ण जन्म में लक्ष्मण जी दाऊजी बनकर बड़े बने और रामजी कृष्ण बन कर छोटे ,जो रामयुग में  सेवा की थी तो कृष्ण युग मे उन कर्म को पूरा किया भगवन

Bhakt Acharya Dharm Dhar: *सांस्कृतिक - तार्किक - दार्शनिक प्रश्नोत्तरी"*

*विषय :   कर्मफल सिद्धान्त*  अर्थात् ईश्वर की न्याय व्यवस्था

दिव्य कर्म फल प्रसाद : ०३यह उन सब के लिए सुगम मार्ग है जो पूछते हैं मैं कौन हूं

(७) प्रश्न :- कर्म करने के क्या क्या साधन हैं ?

उत्तर :- *ऋषियों ने मुख्य रूप से कर्म करने के तीन साधन बताए हैं :- मन, वाणी और शरीर* ।

(८) कर्मों के क्या क्या भेद हैं ?

उत्तर :- *कर्म तो अनन्त होते हैं परन्तु ऋषियों ने तीन कोटियों (शरीर - वाणी - मन को आधार बनाकर ) में कर्मों का वर्गीकरण किया है* :-

(क) शरीर से किए गए कर्म :-

शुभ कर्म :- ( रक्षा, दान, सेवा )

अशुभ कर्म :- ( हिंसा, चोरी, व्यभिचार )

(ख) वाणी से किए गए कर्म :-

शुभ कर्म :- ( सत्य, मधुर, हितकर, स्वध्याय करना )

अशुभ कर्म :- ( असत्य, कठोर, अहितकर, व्यर्थ बोलना )

(ग) मन से किए गए कर्म :-

शुभ कर्म :- ( दया, अस्पृहा, आस्तिकता )

अशुभ कर्म :- ( द्रोह, स्पृहा, नास्तिकता )

(९) प्रश्न :- शास्त्रों के अनुसार कर्मों के क्या क्या भेद हैं ?

उत्तर :-कर्मों के भेद शास्त्रों में इस प्रकार जानने को मिलता है :-

(क) *मनुस्मृति के अनुसार मानसिक बुरे कर्म* :-

परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम् । वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधंकर्म मानसम् ।। *( मनुस्मृति १२/५ )*

मन के पाप कर्म :- परद्रव्यहरण ( चोरी का विचार करना ) , लोगों का बुरा चिंतन करना, मन में द्वेष करना, ईर्ष्या करना तथा मिथ्या निश्चय करना ।

(ख) *मनुस्मृति के अनुसार वाणी के बुरे कर्म*:-

पारुष्यमनृतं चैव पैशुन्यं चापि सर्वशः । असंबद्धप्रलापश्च वाङमयंस्याच्चतुर्विधम् ।। *( मनुस्मृति १२/६ )*

वाणी के पाप कर्म :- कठोर भाषा, अनृत भाषण अर्थात झूठ, असूया ( चुगली ) करना, जानबूझकर बात को उड़ाना ( लांछन लगाना ) ।

(ग) *मनुस्मृति के अनुसार शारीरिक बुरे कर्म* :-

अदत्तानामुपदानं हिंसा चैवाविधानतः ।  परदारोपसेवा च शरीरं त्रिविधं स्मृतम् ।। ( *मनुस्मृति १२/७* )

शारीरिक अधर्म तीन हैं :- चोरी, हिंसा, अर्थात् सब प्रकार के क्रूर कर्म तथा व्यभिचार कर्म करना ।

*पतंजलि के "योगदर्शन" के अनुसार पाप पुण्य के आधार पर चार भेद बताए* :-

(क) शुक्लकर्म :- सुख प्राप्त कराने वाले पुण्य कर्म जैसे दान, सेवा आदि ।

(ख) कृष्णकर्म :- दुख प्राप्त कराने वाले पाप कर्म जैसे चोरी, हिंसा आदि ।

(ग) शुक्लकृष्णकर्म :- सुख दुख प्राप्त कराने वाले मिश्रित कर्म जैसे खेती करना, चोरी करके दान करना आदि ।

(घ) अशुक्लअकृष्णकर्म :- निष्काम कर्म जो मोक्ष प्राप्त कराने की इच्छा से किए जाएँ ।

*फल के आधार पर तीन भेद* हैं :-

(क) संचित :- पिछले जन्मों से लेकर अब तक किए हुए कर्म जिनका फल मिलना अभी बाकी है ।

(ख) प्रारब्ध :- जिनका फल मिलना प्रारम्भ हो गया है या जिनका फल मिल रहा है ।

(ग) क्रियमाण :- जो वर्तमान में किए जा रहे हैं ।

*गीता में कर्म के तीन भेद* :-

(क) कर्म :- अच्छे कर्म

(ख) विकर्म :- बुरे कर्म

(ग) अकर्म :- निष्काम कर्म

(१०) प्रश्न :- कर्मों का कर्ता कौन ?

इत्यादि सवालों को देखेंगे ......

दिव्य कर्म फल प्रसाद : ०४

Bhakt Brijesh Singer: आप लोगो को जब तक सबूत न दो मानते नही हो 🙂

एक बार भूपति मन माहीं। भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥

गुर गृह गयउ तुरत महिपाला।  चरन लागि करि बिनय बिसाला ॥

 निज दुख सुख सब गुरहि सुनायउ।  कहि बसिष्ठ बहुबिधि समुझायउ॥

*धरहु धीर होइहहिं सुत चारी।* *त्रिभुवन बिदित भगत भय हारी ।*

- Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 प्रभु क्या ये भी कह सकते है कि मन का बहिर्मुख होना या संकल्प विकल्प करना ही कर्म है।

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: सबूत नहीं प्रभु

लठ्ठ बजाओ तब मानेंगे 😃

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 16


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