Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 16 (कोरोना बचाव मंत्र)

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 16   (कोरोना बचाव मंत्र)


यक्ष कोरोना कवच।

कोरोना की महामारी मां काली का भृकुटी विलास है।

इससे बचने के लिए मैं कुछ उपाय बताता हूं।

इनके जाप से मनुष्य को इस महामारी से बचाव होगा।

जग हेतु इस रोग से मुक्ति का मंत्र।

ऊँ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

व्यक्तिगत बचाव और उपचार के लिए

ॐ रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।

संपूर्ण बचाव के लिए

देवि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

जय गुरुदेव जय महाकाली


Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*छायां अन्यस्य कुर्वन्ति तिष्ठन्ति स्वयं आतपे ।*

*फलानि अपि पर अर्थाय वृक्षाः सत्पुरुषा इव ॥*

पेड को देखिये दूसरों के लिये छॉव देकर खुद गरमी में तप रहे हैं। फलफलादी भी सारे संसार को दे देते हैं। सचमुच सभी वृक्ष सज्जन पुरुष जैसे होते है।

Trees make shade for others and stand in the heat themselves. Even fruits are for the good of others: They are indeed like good men.

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Hb 96 A A Dwivedi: भिषम पितामह ने श्रवण कुमार के माता-पिता को मारा

भिषम पितामह के द्वारा शक्ति ने श्रवण कुमार के माता-पिता को शरीर से मुक्त किया

राजा दशरथ ने पुत्र का वियोग सहा

राजा दशरथ ने अपने प्रारबध को क्षीण किया पुत्र वियोग को सहकर और मुक्त हुए

सभी धटनाओ के पीछे जो परमात्मा है वो ही हमारे शरीर में आत्मा के रूप में विराजमान हैं और उसे जानना ज्ञान है और विधि साधना है

भिषम पितामह जी को ज्ञान था और इसलिए उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए अपने प्रारबध को भोगने के लिए समर्पण भाव से उसे काटा।।

राजा दशरथ जी को ज्ञान था और पहले से ही इस घटना के बारे में पता था

जो कुछ भी घट रहा है वो लिखा जा चुका है और उसके साथ स्वयं को जोड़ देना अज्ञानता है और जो कुछ भी होगा वो भी लिखा जा चुका है

रामचरितमानस की रचना भगवान राम के राज्याभिषेक के समय हि हो गई थी यह बात तार्किक नहीं है और इसलिए अपने प्रारब्ध कर्म को ईश्वर की इच्छा जानकर भोगना चाहिए और चित्त में संचित संस्कारों को ध्यान के द्वारा नष्ट कर देना चाहिए।।

संस्कार क्षय होने पर घटना घटित नहीं होगी।।

जय गुरुदेव🌹🙏😊👏

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु प्रारंभ में थोड़ी त्रुटि है। भीष्मपितामह ने नही दशरथ ने श्रवण कुमार को मारा था।

Hb 96 A A Dwivedi: ठिक करके पात्र बदल दो😊👏🙏🌹

Bhakt Lokeshanand Swami: अब बड़ी बारीक बात पर ध्यान दें, कर्मकाण्ड के अनुष्ठान से, भगवद् प्रेम को प्राप्त, भरत रूपी संत ने, कर्म रूपी कैकेयी से, ममत्व का बंधन त्याग, ज्ञान रूपी कौशल्या का आश्रय ग्रहण किया।

यह ऐसा ही है जैसे कोई सीढ़ियों से ऊपर चढ़, छत की सीमारेखा को छूकर, सीढ़ियों का त्याग कर, छत पर चला जाए।

या नाव से, नदी पार कर, दूसरे किनारे पर, नाव का त्याग कर, किनारे पर उतर जाए।

यही है कि भक्ति रूपी सीता के अवलम्बन से, हृदय रूपी अयोध्या के राज सिंहासन पर, राम रूपी परमात्मा का, राज्याभिषेक हो जाने पर, सद्गुरु रूपी धोबी के कहने पर, भक्ति रूपी सीता का त्याग कर दिया गया।

यही है जो रामकृष्ण, काली के मार्ग से, अन्त:करण को पवित्र कर, सद्गुरु तोतापुरी जी के निर्देश में, काली का त्याग कर, परमहंस हो गए।

यही हुआ जब कन्हैया ने, कर्म रूपी यमुना में उतरी, गोपी (गो माने इन्द्रियाँ, पी माने सुखा डालना, लाख विषय इन्द्रियों के सामने से गुजरते हों, मन में वासना की रेखा मात्र भी न खिंचती हो, ऐसी अवस्था को प्राप्त साधक) रूपी परिपक्व साधक का, वस्त्र, पट, पर्दा, माया का आवरण चुराकर, हटाकर, उनके अपने नग्न स्वरूप, वास्तविक स्वरूप, आत्म स्वरूप को उद्घाटित कर दिया था।

और कितने उदाहरण दें, समझदार को तो इशारा काफी है, मूढ़ लात खाकर भी नहीं ही समझता।

भरतजी ने तो भगवान के आदेश का ही पालन किया है-

"सबकी ममता ताग बटोरी।

मम पद मनहिं बाँधि बर डोरी॥"

गलत क्या किया? ऐसा तो एक दिन प्रत्येक मुमुक्षु को करना ही पड़ता है। सौभाग्यशाली हैं वे, जिनके जीवन में ऐसा क्षण आ गया।

माया ने जिसकी बुद्धि पर जादू चला रखा है, वह इनके आध्यात्मिक संकेत न पकड़ कर, इन्हें लौकिक घटनाक्रम समझ कर, महापुरुषों के माथे पर कलंक का टीका लगा, स्वयं पाप का भागी ही बनता है।

ध्यान दें, पक जाने पर जड़ फल भी स्वत: ही, डाली का आश्रय त्याग ही देता है, तब चैतन्य स्वरूप संतों की कौन कहे?

अब विडियो देखें- कैकेयी को त्यागना

https://youtu.be/Jrp2u6o5Xm8

Hb 96 A A Dwivedi: यथार्थ रामायण स्वामी जी ने पेश कर दिया हैं

चाहे जो नाम से पुकाऱो

जय हो महाराज जी🙏🌹👏😊

Bhakt Lokeshanand Swami: एक लड़का खुले में शौच करने बैठा था। वह एक साँप को अपनी ओर आते देख घबरा गया और इसी घबराहट में वह साँप को जाते हुए नहीं देख पाया। और तब उसे वहम हो गया कि हो न हो वह साँप उसके भीतर घुस गया।

अब तो उसे पेट में कुछ इधर उधर सरकता हुआ भी मालूम पड़ने लगा। और उसके भय की कोई सीमा न रही।

"साँप घुस गया! साँप घुस गया! मेरे पेट में साँप घुस गया! हाय मैं मारा गया! कोई बचाओ!" कहता हुआ, वह बदहवास होकर गाँव की ओर दौड़ा।

उसे वैद्य जी को दिखाया गया। शहर ले जाकर बड़े डाक्टर को दिखाया गया। एक्स-रे करवाए गए। पर साँप होता तो दिखता। उसे लाख समझाया गया, पर वह माने कैसे? डाक्टर कहते हैं कि तूं पागल हो गया है। वह समझता है कि ये सारे डाक्टर पागल हैं। बड़ी समस्या हो गई।

दो ही दिन में उसकी भूख प्यास, नींद आराम सब गायब हो गया और वह मरने को पड़ गया।

संयोग से एक संत को मालूम पड़ा, तो वे आए। उससे पूछा कि कैसा साँप था? कितना लंबा था? रंग क्या था? और कहा- "बेटा चिंता मत करो! मैंने जान लिया है कि साँप तुम्हारे पेट में ही है। मैं कल दोबारा आऊँगा और साँप निकाल दूंगा।"

लड़के को बड़ी सांत्वना मिली कि कोई तो है जो मेरी बीमारी को समझता है।

अगले दिन संत वैसा ही दूसरा साँप झोले में छिपा लाए, लड़के पर चादर ओढ़ाई,  पेट दबाया, और तुरंत झोले से साँप निकाल, लगे कहने- "मिल गया! मिल गया! रुक रुक कहाँ भागता है? अरे ठहर!" और चादर हटा दी। साँप तो हाथ में था ही। लड़के को दिखा कर, फिर झोले में डाल लिया।

और क्या हुआ होगा? क्या नहीं? मुझे नहीं मालूम। पर वह लड़का ठीक हो गया।

लोकेशानन्द कहता है कि जैसे झूठी बीमारी से बचाने के लिए झूठा ईलाज करना पड़ा, वैसे ही इस काल्पनिक संसार से छूटने के लिए, भगवान के एक नाम और रूप की कल्पना करनी ही पड़ती है।

इसके सिवा, जन्म मरण के बंधन से छूटने का न कोई उपाय था, न है, न होने की संभावना ही है।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: 👌👌👌......

कई बार वहम ही होता है और हम प्रभु को छोड़ कर जगत की माया मे उलझ जाते हैं.....🙏🙏🙏

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: <Media omitted>

Swami Toofangiri Bhairav Akhada: <Media omitted>

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: 👌👌.........

हम सब भी ऐसा ही करते हैं। बहुत जल्दी अधीर हो जाते हैं.....

Swami Pranav Anshuman Jee: <Media omitted>

vashi MeghNath Bhagat: Due to the lock down, no devotees are visiting the famous Sankata-Mochana-Hanuman Temple (Gujarat). But still the bell rings... See how😘

+91 96726 33273: Bahut Purana video h bhai.. Kam se kam 3 saal pahle dekha tha..  Log kuchh bhi lock down.. Corona k naam se daalte h.... Jai bajarang Bali.... Jai gurudev 🙏🙏🙏🙏

क्या आप दीक्षित हैं। वह भी शक्तिपात परंपरा में।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/06/blog-post.html?m=0

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: जी

फिर आपको क्रिया का ज्ञान तो होगा।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: अवश्य है ।

http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_22.html?m=1

 हे प्रभु। हम अज्ञानी नहीं जानते कि हम एक फोटो पोस्ट करने से तेरी बनाई प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।

कृपया फोटो से बचें। जब तक बहुत आवश्यक न हो किसी वीडियो फोटो को मत डाले। क्योंकि इससे आप जाने जाने में प्रदूषण के दोषी बन जाते हैं।

Hb 96 A A Dwivedi: आप किस परम्परा के हैं🙏🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Jai Shri Krishna sir🙏🏻

Wt about shaktipaat parampara?

Wl u let me know?

If u hv time or

 if its possible fr u

Bhakt Anjana Dixit Mishra: इस विद्या को किस प्रकार लिया जा सकता है?

क्या शिष्य में कोई विशेष गुण की उपस्थिति आवश्यक है

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Mera matlab hai ki agar main is vidhya ko lena chahu to kaise possible hoga?

 Bhakt Anjana Dixit Mishra: कृपया मार्ग दर्शन करें

Bhakt Anjana Dixit Mishra: 🙏🏻

http://freedhyan.blogspot.com/2019/07/blog-post_85.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2019/08/blog-post_78.html?m=1

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Ye link maine padh liye sir

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Still need description by u

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: Puri order  in dashnami tradition

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Ji

दीक्षा ब्रह्म मुहूर्त में सुबह 3:00 बजे दी जाती है।

दीक्षा के पश्चात गुरु के सानिध्य में 3 दिन रहना होता है।

क्योंकि यदि आवेग पूर्ण किर्या होती हैं तो गुरु  नियंत्रित करते हैं

गुरू अपनी संकल्प शक्ति से शिष्य की कुंडलनी जागृत करते हैं।

जिसमें शिष्य को आनंद तो आता है किंतु व्यक्ति शक्ति को संभाल भी नहीं पाता है।

अतः  गुरु के पास 3 दिन रहना होता है।

Hb 96 A A Dwivedi: आपको गुरु कौन है तथा साधन की विधि क्या है🙏🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Ji

Thanks alot

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: Swami Balak Puriji Maharaj

Initiated in the Puri order of the Dash-nami Tradition as propagated by Adi Shankaracharya, Swami Balakpuriji Maharaj had mastery over rare Hath Yogic practices. His final settlement was at Ghadav village, approximately 20 km from Jodhpur City. He initated and guided his foremost disciple Prakash Puriji into the path of God-Realization. Left his Pranas through Brahmarandhra and shed his mortal body on Safla Ekadashi.

Swami Prakash Puriji Maharaj

Blessed with rare qualities of Vivek and Vairagya from the very beginning, Swami Prakash Puriji got initiated on the path divine by His Guru Swami Balak Puriji Maharj and performed penance in various places of Rajasthan, Himalayas and Mount Abu. His final settlement was in Mandore village, where he established Shree Siddha Hanuman Shrine and mastered various Hath Yogic disciplines. Later, he discarded Dhuni and got engrossed in contemplation of various Vedantic Texts, Upanishads, Ramayana, Mahabharata and Yoga-Vashishtha. Provided guidance and solutions to a lot of seekers. Before leaving His mortal body in 1982, Swamiji initiated three disciples into the holy order of Sanyasa.


Swami Rameshwaranda Puriji Maharaj

Swami Rameshwaranda Puriji Maharaj, the foremost disciple of Swami Prakash Puriji Maharaj is presently providing guidance and pointers to the seekers on the path divine. Swamiji has great respect for the Siddha Yoga lineage of Swami Vishnu Teerth ji Maharaj and Bhagwan Nityanandaji, whose blessings provided great insights into the mysteries of MahaYoga and its linkages with the ultimate reality

Bhakt Anjana Dixit Mishra: One thing more sir

Name n place of guruji 🙏🏻?

समय आने पर आपसे बात कर ली जाएगी।

क्योंकि हर व्यक्ति को दीक्षा नहीं मिलती है। दीक्षा भी किन्हीं विशेष तिथियों पर ही होती है।

फिलहाल आप शक्तिपात के बारे में लेख पढ़ ले।

स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज जो स्वामी विष्णु तीर्थ जी महाराज के शिष्य थे उनको आदि गुरु शंकराचार्य ने ध्यान में आकर कई बार निवेदन किया था तब स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज ने श्री विद्या ग्रहण की थी।

जो मंत्र आज कल आप पढ़ते हैं वह अधूरा होता है।

Hb 96 A A Dwivedi: So you are doing Hatha yoga also please share your method of sadhana 🙏🙏

बहुत सुंदर👏👏

बड़े महाराज स्वामी विष्णु तीर्थ जी ने सौन्दर्य लहरी के ऊपर टिका दिया है जो कि आदि शंकराचार्य स्वामी जी ने स्वयं कहा था और उसे सर्वश्रेष्ठ बताया है।। उस पुस्तक को पढ़ते हुए क्रिया होने लगती है और बहुत ही सुन्दर ढंग से वर्णन किया है

जय गुरुदेव🙏👏🌹😊

Jain Vijay Ref H S K Jain: My experience , the energy flows in body of all humans, one has to practice for focus and feel, deep breathing is the best way to enhance the level of natural energy, it is very much scientific,

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: आशा करता हूं आपको प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हुए होंगे🙏💐

Hb 96 A A Dwivedi: वैज्ञानिक आधार पर इसे हम श्रेष्ठ विधि जानते हैं और पहले सिर्फ मान लेते थे।।

आप ध्यान कैसे करते हैं और कितनी देर करते हैं

मौका मिला तो आपके आश्रम में जाकर दर्शन लाभ भी करेंगे अगर भगवती की कृपा प्राप्त होती है🙏👏🌹😊

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: बस आसन ग्रहण करते है जी बाकी सब गुरु कृपा है।

Hb 96 A A Dwivedi: लोग गुरु शक्ति के बारे में बहुत सी शंका करते हैं और कलियुग में गुरु का मिलना हमारे विचार से सनसार कि सबसे बड़ी धटना है और जो लोग गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद भी उसका लाभ नहीं लेते हैं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य कोई भी दुसरा नहीं है।।

गुरु शक्ति का साक्षात अनुभव इस विधा में होता है और उसी पल हो जाता है लेकिन भारत जैसे धरती पर जहां पर आज भी ऐसे साधक मौजूद हैं जो हजारों वर्षों से साधना में लीन हैं वहां पर लोग हमारे ऋषियों की परम्परा के बारे में भी नहीं जानते हैं।।

पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में माटी जोड़ते जोड़ते माटी में मिल जाते हैं और उस ज्ञान का जिसे स्थापित करने के लिए महापुरुषों ने जन्म जन्मांतर खपा दिया उसे जानने के लिए कोशिश नहीं करते हैं।।

भारत की धरती कभी भी सन्त महात्माओं से खाली नहीं हुई है और अध्यात्म न तो चर्चा और न ही तर्क वितर्क का विषय है यह शुद्ध अनुभव का विषय है और जो लोग गुरु की प्राप्ति कर चुके हैं कम-से-कम उनका पतन नहीं हो सकता है।।

आश्चर्य है कि जो वाइरस दिखाई नहीं दे रहा है उसके डर से घरों में बैठे हुए हैं लेकिन जिसने सृष्टि में ऐसे ऐसे जीव जंतुओं को जन्म हि नहि दिया अपितु एक काल चक्र स्थापित किया उस परमात्मा के बारे में चिन्तन नहीं करते हैं।।

भगवान की लीला हर पल हर तरफ हो रही है और मनुष्य उसे सिर्फ विज्ञान के द्वारा ही जानना और समझना चाहते हैं।।

शरीर के जिस प्रकार वर्णन हजारों वर्ष पहले शास्त्रों में किया गया है उसे भी मनुष्य खुली आंखों से नहीं देख पाया है।।

यह समुह के भीतर ऐसे लोग मौजूद हैं जिनके पास शक्ति पात कर देने की भी सामर्थ्य है लेकिन सब सृष्टि के सन्तुलन से बंधे हुए हैं और जिसे लोग चमत्कार मानते हैं वो उसका प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं।।

ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हुए पुरा पाश्चात्य जगत आज उस जगह पर पहुंच गया है जहां भौतिकता के सुखों को सबसे अधिक भोगने के बाद सबसे अधिक लोग  तनाव का शिकार है।

हम लोग धन्य हैं जो ऐसे सद्गुरु की कृपा प्राप्त होती है जिनके लिए प्राणों का बलिदान भी कुछ नहीं है।।

जय गुरुदेव🙏👏🌹😊

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 17

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