Tuesday, September 15, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 28 ओशो सन्यासी से चर्चा

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 28

ओशो सन्यासी से चर्चा

Npc Narendra Parihar: Few are not enough.. specially when majority of us do not support them . We should atleast demand a ayrvedachary at our dispensaries.

I have experienced in certain areas ayurved is not only superior but   only treatment.

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*आचारः परमो धर्म आचारः परमं तपः।*

*आचारः परमं ज्ञानम् आचरात् किं न साध्यते॥*

सदाचरण सबसे बड़ा धर्म है, सदाचरण सबसे बड़ा तप है, सदाचरण सबसे बड़ा ज्ञान है, सदाचरण से क्या प्राप्त नहीं किया जा सकता है?

Right conduct is the highest religion. Right conduct is the greatest penance. Right conduct is the greatest knowledge. What can't be achieved through right conduct?

*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

 Bhakt Lokeshanand Swami: "दुनिया के जिस्म जलते देखे अपना जल जाना भूल गए।

दुनिया के झमेलों में फंसकर हम असली ठिकाना भूल गए॥

हमें काम ना भूला क्रोध ना भूला नाम हरि का भूल गए।

जो वादा करके आए थे वो कौल निभाना भूल गए॥"

दशरथ जी आज बहुत प्रसन्न हैं, पुत्रवधुएँ जो आ गईं। सब ठीक हो गया। सब उनके भाग्य की सराहना कर रहे हैं।

अपनी प्रशंसा सुनकर उन्होंने दर्पण मंगवाया, कि देखें हम इस स्तुति के योग्य भी हैं या नहीं? और देखा क्या? देखा कि यम का डाकिया कान पर मौत का वारंट चिपका गया है।

देखो कहने वाले कहते हैं कि मौत बता कर नहीं आती, कोई अचानक ही मर जाता है। नहीं नहीं, वह तो हजार चिट्ठियां भेजती है, आप ही होश में नहीं हैं, आप ही ध्यान नहीं देते, आप वह चिट्ठी देखकर भी नहीं देखते।

बालों की सफेदी आपने छिपाई, चेहरे की झुर्रियाँ आपने छिपाई, मामला क्या है? किसे आप धोखा देना चाहते हैं? अपनेआप को? दुनिया वाले तो धोखे में आ सकते हैं, पर यमदूत धोखा नहीं खाते।

दशरथजी ने सफेद बाल देखते ही निर्णय लिया, मैं अपना राज्य भगवान को दे दूंगा। अब नाव जितनी खेनी थी खे ली, अब तेरे हवाले कर दूंगा। अब जो कुछ है सब तेरा, तूं ही संभाल। अब बस हो गई। बहुत रह लिए, दुनिया की रंगीनियों में घूम लिए, नशों में झूम लिए, अब चलने का समय हो गया, जीवन ढलान पर आ गया, वापसी होने को है, माल लुट गया, अब बाजार समेटने का समय हो गया, स्टेशन आने को है, गाड़ी से उतरना है, सामान बाँधना है।

बड़े उत्साह से घूमने निकले थे, थक गए हैं, टाँगों में जान नहीं रही, हाथ काँपने लगे, आँखों से कम दिखता है, ऊँचा सुनता है, पेट गड़बड़ रहता है, बहुत सफ़र किया, बहुत suffer किया, अब घर जाऊँगा, अब यहाँ जो है सब भगवान को सौंप कर, आराम करूंगा।

आप का क्या कार्यक्रम है?

 Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...

यत् पाद रेणू कणिका, कापि संसार वारिधे:।

सेतु बन्धायते नाथं, देशिकं तमुपास्महे।।55।।

अर्थ: जिन गुरुदेव की चरण रज का एक कण भी संसार रूपी समुद्र को पार करने के लिये सेतु के समान है उन समर्थ गुरुदेव की हम उपासना करते है।

व्याख्या: यहाँ गुरुपद रज कण से एक विशेष अर्थ को ग्रहण करना चाहिये, गुरु प्रसाद रज कण वास्तव में गुरु कृपा के प्रसाद का ही अंश है।

गुरु शिष्य में तादात्म्य स्थापित होने पर शक्तिपात की प्रक्रिया सम्पन्न होती है, उससे जब शक्ति अन्तर्मुखी जाग्रत हो जाती है, तो शक्ति जागृत करने वाला जो शक्ति का अंश है वही "गुरु पद रज कण" है। इस शक्ति के सामान्य अंश से भी संसार समुद्र को पार किया जा सकता है। इस शक्ति के प्रभाव से  संस्कार  क्षीण होते हैं, संसार के बंधन कट जाते है-पाप राशि समाप्त हो जाती है, ऐसे समर्थ अपने स्वामी गुरुदेव की हम उपासना करते है।

Bhakt Lokeshanand Swami: एक राजा के पास एक मोटी-ताजी पर भुक्खड़ बकरी थी। कितना भी क्यों न खा ले, उसका पेट न भरता, जहाँ हरी घास देखती, मुंह जरूर मारती।

राजा ने बकरी का पेट भर देने वाले को एक लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा की।

पर बड़े बड़े सेठ, उस बकरी को सुबह-शाम-दिन-रात घास खिला कर भी उसकी वह आदत न बदल पाए।

तब एक लंगोटीधारी संत आए। राजा ने व्यंग्य किया कि आपके पास तो खुद के लिए ही भोजन नहीं है, आप बकरी का पेट कैसे भरेंगे? परन्तु संत मुस्कुराते हुए उस बकरी को अपनी कुटिया में ले गए।

संत ने बकरी को एक खूंटे से बाँध दिया, सामने हरी हरी घास रख दी, और स्वयं एक छड़ी लेकर कुर्सी पर बैठ गए।

बकरी ने जैसे ही घास को मुंह लगाया, संत ने उसकी नाक पर हलके से छड़ी लगा दी। बकरी चोट खाकर पीछे हट गई। ऐसा ही चार दिन लगातार चलता रहा। संत ने बकरी को एक तिनका घास भी न खाने दिया।

जब बकरी घास देखते ही, तुरंत छड़ी की ओर देखने लगी, संत बकरी को राजा के पास लौटा लाए।

राजा ने बकरी को देखा तो चीख उठा। चीखता क्यों नहीं, चार दिन से कुछ भी न खाने से बकरी पिचक जो गई थी।

राजा बोला- हाय हाय! मेरी बकरी को भूखा मार दिया।

संत मुस्कुरा कर बोले- नहीं महाराज! यह तो आपकी याद में पतली हो गई है। मैंने इसे इतना खिला दिया है कि अब कईं दिन घास नहीं खाएगी।

राजा ने हरी घास मंगवाई। संत भी छड़ी बगल में दबाए तैयार ही खड़े थे।

राजा ने घास हाथ में लेकर बकरी को पुचकारा। बकरी ने घास देखी। फिर छड़ी की ओर देखा। संत ने छड़ी जरा सी हिला दी। बकरी चार कदम पीछे हट गई।

संत ने कहा- नहीं खाएगी महाराज! नहीं खाएगी। राजा भी हैरान रह गया।

लोकेशानन्द कहता है कि वह राजा कोई ओर नहीं आप ही हैं। मन ही बकरी है। इसे कुछ भी क्यों न मिल जाए, यह 'और' माँगा ही करता है। यदि गुरूजी के मार्गदर्शन में, इस मन को संयम की छड़ी लगने लगे, तो इसकी भी भूख सदा के लिए मिट जाए।

मित्रों सनातन के अनुसार कोई भी महामारी या अशुभ सृष्टि की निर्माता महाकाली का भृकुटी विलास माना जाता है। जो एक प्रकार से मनुष्य को चेतावनी होता है।

मेरे दिमाग में है पता नहीं क्यों कुछ दिनों से यह भाव आ रहा है कि रामचरितमानस की एक चौपाई उसका पाठ अगर किया जाए तो संकट से उबरा जा सकता है वह चौपाई है।

देवी पूजी पद कमल तुम्हारे।

सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।

मैं समझता हूं यदि इसका हम निरंतर जाप या पाठ करें तो हम संकटों से मुक्त हो सकते हैं। वैसे दुर्गा सप्तशती के सम्पुट भी बहुत शक्तिशाली है लेकिन वह क्योंकि संस्कृत में है इसलिए कुछ मुश्किल हो जाती है।

यक्ष सवाल

आजकल फेसबुक पर लोग पूछ रहे हैं कि आप बताएं कि आप मुझसे कब पहली बार मिले थे।

मेरा सवाल है मैं आप सभी से पूछता हूं आप स्वयं अपने आप से कब मिले थे या फिर कब मिलेंगे।

मुझसे तो आज तक कोई नहीं मिला।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: स्वयं से आप स्वयं कभी नहीं मिल सकते जब तक किसी गुरु की कृपा न हो...

Pragya del: Ek baar puja karte samay jab man mein prashan aaya ki mujhe dharti per kyo bheja to laga ek awaj ander se aayi ki tumhe dharti per bachho ko vigyan sikhane bheja hai .ye kaam sahi se karo taki log usse padhkar apna jeevan uparjan kar sake.bus tabhi se yahi koshih hai ki iss kary mein safal rahu .iss udheshya se na bhatku

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: स्वयं से आप स्वयं कभी नहीं मिल सकते जब तक किसी गुरु की कृपा न हो...

बिल्कुल आवश्यक नहीं है यह आपकी इच्छा शक्ति और आपकी कार्यशैली पर निर्भर करता है।

वास्तव में जगत का एक ही गुरु होता है और वह स्वयं परमपिता परमेश्वर जिसका साकार रूप शिव तत्व के नाम से जाना जाता है।

किंतु मानव शक्ति हीन हो चुका है वह उस परमपिता परमेश्वर की शक्ति को सहन नहीं कर सकता अतः मानव के रूप में ही कुछ लोगों को ईश्वरीय शक्ति देकर इस कार्य हेतु प्रेषित किया जाता है ताकि मनुष्य उनको सहन कर सके।

आप देखें कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना विराट रूप दिखाने के पहले अर्जुन को विशेष शक्ति प्रदान की थी कि वह श्री कृष्ण का वास्तविक रूप देख सकें।

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: ....शक्ति को पहचान लो....

शिव पर समर्पित, भाव अर्पित और भक्ति  जान लो।

हो तन समर्पित, प्राण अर्पित, शक्ति को पहचान लो।।

प्रारब्ध के उस पाश में जो जीव-तन है जल रहा।

जन्म-जन्मांतर का संचय कर्म का जो फल रहा।।

संस्कारो  की  अमिट  स्म्रति-छवि  का बल  रहा।

कर्म -  दुष्कर्मों  का  जो एकत्र  होता मल  रहा।

गुरु पर समर्पित,भाव अर्पित, ब्रह्म-भक्ति जान लो।

हो मन समर्पित, ध्यान अर्पित, शक्ति को पहचान लो।।

                 ....सुनेत्रम योगी🕉

Pragya del: Sirf apne dharti per hone ka uddeshya pata hai.

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: छोटे भाई सुनेत्रम शुक्ला की ओर से प्रस्तुत एक रचना🙏

यह बहुत अच्छी बात है कि तुम को अंदर से आवाज आती है जिसे आत्मगुरु भी कहा जाता है। किंतु हमारे परम पूजनीय स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज के अनुसार जब तक में आपको कोई आदेश लिखकर न दिखाई दे या उसकी स्पष्ट ध्वनि न सुनाई दे स्वप्न में आकर स्पष्ट आदेश न हो तब तक में कुछ भी आंतरिक आवाज को हम मन की बात ही समझ सकते हैं यानी यह सब मन की चालबाजी भी हो सकती है।

यह योगीराज तुम्हारे छोटे भाई हैं।

भाव सुंदर है अच्छे हैं लेकिन अपने नाम के आगे योगी लगा कर तुम्हारे भाई ने अपने आपको एक साधारण मानव बना दिया।

इस तरह के नाम पत्र अपने नाम के आगे स्वयं जोगी लगा लेना गुरु लगा लेना सिद्ध लगा लेना इत्यादि यह सब हमारा अहंकार पोषित करते हैं और अहंकार का प्रतीक है और यदि हम सब अपने नाम के आगे लगाते हैं हम जिंदगी में योगी नहीं हो सकते

तुम देखो कोई भी महापुरुष कोई भी महायोगी क्या स्वयं अपने नाम के आगे योगी लिखता है हमारे परम गुरु महाराज स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज हस्ताक्षर करते हैं तो अपने नाम के आगे स्वामी तक नहीं लगाते जबकी स्वामी टाइटिल होता है सन्यासियों का। वह केवल शिवम का साइन करते हैं या शिवओम तीर्थ लिखते हैं बस।

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: 🙏🏻🙂

Bhakt Manglam Ref Shukla Ji: बड़ी सुमन🙏

मेरी बात को अन्यथा मत लेना क्योंकि तुम सब लोग अभी आयु में बहुत छोटे हो और इस ग्रुप का नाम आत्म अवलोकन है अतः मैं स्पष्ट शब्दों में बोल देता हूं यदि किसी को बुरा लगे तो यह उसकी व्यक्तिगत बात है और किस बात के लिए मैं क्षमा मांगता हूं।

Ba Kuldeep Yadav Ref Nu: 🙏🙏 बहुत अच्छी तरह से आपने समझा दिया।।

🙏🙏💐💐

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी आज दैन्य पर कुछ लिखिये। मन बहुत आतुर है

Pragya del: Dhwani spasht hoti hai

अब सब कुछ आप के निर्णय पर हैं।

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: अर्जुन के साथ एक और भी था जो ये विराट दिव्य रूप देख का

*संजय*

संजय को दिव्य ज्योति किसने दी थी श्रीकृष्ण ने दी थी इसके अलावा जिसे आजकल खाटू श्याम के नाम से जानते हैं जो बर्बरीक था उसने भी देखा था।

यक्ष चुनौती

मित्रों मैं आज आपके सामने चुनौती पूर्वक अपनी बात कहना चाहता हूं जो लोग मोदी के विरोधी हैं यदि वे मानव हुए यानी उनमें यदि कुछ भी मानवीय गुण होंगे तो वह 1 वर्ष के भीतर मोदी के मुरीद हो जाएंगे क्योंकि हम भारतीयों को बचाना था इसके लिए नियति ने मोदी ऐसा महायोगी हमारा प्रधानमंत्री बनाया और आयुष मंत्रालय के द्वारा हम भारतीयों की रोग विरोधी क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। यह प्रयास आगे आने वाली विपत्तियों में सहायक होगा क्योंकि कोविड-19 तो कुछ भी नहीं है आने वाले समय में इससे भी भयंकर आपदाएं आने की संभावना है। मात्र 1 वर्ष रूकिए और तब मेरी बात आप लोगों की समझ में आएगी।

आज के महाज्योतिषी दिसंबर 2020 के बाद का भविष्य देखें और अपनी बात रखें। वे मेरी बात से सहमत होंगे।

विनीत: सनातन पुत्र देवीदास विपुल।

क्या,बिपदा आने वाली है प्रभु,,खुल के कहो

किस भांति की आने वाली है चीज़े बताने की कृपा करें

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: यह तो भविष्य भाखा है किसी ने आप ओर कूछ कहे विपुलजी

Bhakt Amit Singh Parmar Meditation, Gwalior: सर पहले से ही बुरी हालत है आप और डरा दो, जो होगा देखा जाएगा अभी से क्या सोचना 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

+91 94174 71894: Respected vipul ji kindly let us know what is going to happen

   Thanks and Regards

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: 21 वी सदी उज्ज्वल भविष्य,,यह नारा तो प पु श्री राम शर्मा आचार्य जी ने कब से दिया है प्रभु

यार अभी कुछ नहीं बोलूंगा लाक डाउन के बाद।

किसी ज्योतिषी से पूछ कर देखो उससे बोलो दिसंबर 2020 के बाद का भारत देखे मतलब दुनिया देखे।

किसी भी घटना में अधिकतर देश  मिट जाएं किंतु भारत अडिग रहेगा उसको उतना नुकसान नहीं होगा जितना कि औरों को होगा।

एक बात यह समझ लो भारत इस समय एक महायोगी के हाथों में सुरक्षित है।

वो कोई भी निर्णय ले रहा है वह समय के अनुसार बिल्कुल सटीक है और भारतीय सनातन संस्कृति के आधार पर निर्णय लेता है।

आप लोग बस निरंतर प्रभु भक्ति में लीन रहे

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: क्षमा करें,,आगाह तो अनंत भाई जी,,ने ओर कालसूत्रअभिषेकम ने भी की है

Ba Shetty Hindi: No one can predict, what shall happen next moment...

Why worry present

Bhakt Parv Mittal Hariyana: आज जिस पुस्तक को प्रस्तुत कर रहा हूं वो गुरुदेव विष्णुतीर्थ जी महाराज द्वारा लिखित प्राणतत्व है। जो तथ्य मुझे अक्सर रोमांचित करते रहते थे और अनायास ही प्रकट होते रहते थे वो इस पुस्तक में प्रस्तुति देते है। साधक वर्ग से अनुरोध है कि इस पुस्तक का श्रवण एकाग्रचित और एकांत में करें। इसमे बहुत रहस्य है जो मुमुक्षुओ की जीवंतता की जिज्ञासा का शमन करता है। यद्यपि मुझको महान सँस्कृत भाषा का अति अल्प ज्ञान है और पुस्तक में वर्णित मंत्रों के उच्चारण में न्याय नही कर पा रहा हूं, तथापि रोमांचित और मुमुक्षु होने के कारण ऐसा कर पाने का दुस्साहस कर रहा हूं। विद्वतजन मेरे इस अमर्यादित व्यवहार के लिये क्षमा करके मेरे भाव को आशीष देवे। प्रस्तुत श्लोको का जो व्याख्या गुरुदेव ने की है उनको शुद्ध उच्चारण देने की पूर्ण चेष्टा की है। पुस्तक पढ़ते हुए कई बार रोमांचित होकर एक आध जगह स्वयं के कुछ पंक्ति अवश्य जोड़ी है उसके लिये क्षमा प्रार्थी हूं। क्योंकि जब गुरुदेव ज्ञानवर्षा कर रहे हो तो बीच मे बोलकर उदंडता नही करनी चाहिये। अपनी इस वाचालता के लिये गुरुदेव आपसे क्षमाप्रार्थी हूं, आपका बालक हूं निश्चित ही आप मेरा यह अपराध क्षमा करेंगे।

श्री गुरुचरणों में दण्डवत प्रणाम🙇‍♂️

जय गुरुदेव

जय श्री कृष्णा🙏🙇‍♂️

Bhakt Brijesh Singer: हां

दुनिया से 20% आबादी का तो हमने भी सुना है

Bhakt Baliram Yadav: शिव लिंग का अर्थ तो इसे क्या हमारे बहुत से अपने लोगो को पता नहीं है ☹😔😔

शिवलिंग का अर्थ वास्तव में जनक से लिया जाता है और पुराणों के अनुसार जब ब्रह्मा और विष्णु में विवाद था तब शिवलिंग के आकार की उत्पत्ति हुई थी और जिसका आदि अंत ढूंढने के लिए दोनों गए थे। यह कथा आपको पता होगी वास्तव में यदि आप देखें तो इस जगत में  ग्रह नक्षत्र इलेक्ट्रान या कण यह सब दीर्घ वृत्त के आकार में घूमते हैं जो एक शिवलिंग का ही आकार है उसी के प्रतीक स्वरूप इस जगत के निर्माता को एक लिंग का रूप दिया।

वेदों में लिंग शब्द कई जगह इस्तेमाल हुआ है जिसका अर्थ जनक से ही है।

शिवलिंग के ऊपर जो डेढ़ कुंडली लिए सांप है वह वास्तव में कुंडलिनी शक्ति है जो कि हमारे मूलाधार चक्र में स्थित होती है यह मूलाधार चक्र हमारी योनि और लिंग के बीच में होता है। वास्तव में शिवलिंग सृष्टि का प्रतीक है।

मित्रों राम मंदिर बनने की तैयारी हो रही है लेकिन यह बहुत दुखद है कि कुछ साधु संत जो कि शंकराचार्य के स्तर के भी हैं वह ट्रस्ट में शामिल नहीं किए जाने के कारण कोर्ट तक जाने की बात कर रहे यह बहुत दुखद है और अशोभनीय भी है।

क्योंकि यदि आप योगी है तो आपके अंदर अष्टांग योग महायोग के कुछ गुण तो होने चाहिए।

और उसमें यम के अंतर्गत अपरिग्रह यानी स्वीकार न करने की वृत्ति और जो तीसरा अंग है प्रत्याहार यानी त्यागने की प्रवृत्ति।

यदि यह नहीं है तो आप योगी कहलाने लायक नहीं है और यदि योगी भी नहीं है तो आप कैसे सद्गुरु या जगतगुरु हो सकते हैं।

जिसको योग के विषय में अनुभूतियां वह निश्चित रूप से कह देगा आप नकली है असली नहीं है।

मैंने अपने गुरु महाराज को देखा महाराज का 19 सौ 75 में किसी ने आश्रम निर्माण हेतु इकट्ठा ₹25000 मार दिया था लेकिन महाराज जी ने कोई प्रतिकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि उसको अधिक आवश्यकता होगी। आश्रम के लोगों ने कहा पुलिस में जाओ।

 त्याग यहां तक कि शरीर त्यागने के पहले शिष्यों के रोग ले लिए।

और फिर देखो यह योगी के लक्षण होते हैं। हालांकि सबको अपना गुरु बहुत अच्छा लगता है भगवान लगता है और होता भी है।

लेकिन मैं बात करूं आज की तारीख में मुझे कोई भी व्यक्ति योगी तो नहीं दिखता है यदि आपके अंदर पद की लालसा है तो आप योगी नहीं है।

सवाल यह है राम मंदिर बनने का जो संकल्प पूरा हो रहा है कोई भी उसे पूरा करें राम मंदिर बन रहा है उसका स्वागत करना चाहिए ना कि आपने मुझे शामिल नहीं किया मैं कोर्ट में जाऊंगा।

आप भारतीय जनता पार्टी को गालियां दे सकते हैं लेकिन याद रखिए राजनीतिक पार्टी है जो हर कार्य में राजनीति भी देखेगी और यह अधिकार भी है क्योंकि जहां पर वोट होते हैं वहां पर यदि आपको वोट मिलेंगे तभी आपके हाथ में अधिकार है और चूंकी भारतीय जनता पार्टी आई तब ही राम मंदिर बनेगा।

पहले किसी  की औकात नहीं थी हिम्मत नहीं थी कि राम मंदिर बनवा देते।

काग्रेस ने तो शंकराचार्य को दीवाली के दिन गिरफ्तार किया था क्या उखाड़ लिया था हिंदुओं ने।

क्या कर लिया था बाकी शंकराचार्य ने।

इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूं राम मंदिर बनने का विरोध न करें और यदि आपके गुरु ऐसा कर रहे हैं तो आप को समझाएं उनको अष्टांग योग की फिर से बताएं कि आप जो कह रहे हो लेकिन आप उन पर खुद नहीं चल रहे हो।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

😄😄😄☝️☝️☝️

लंबा लंबा सफर और कठिन है डगर।

नाम ले ले प्रभु का तो तर जाएगा।।

वरना थक गिरेगा तू चूर कहां।

अपना रास्ता भी तू फिर भटक जाएगा।।

नाम की नांव ले जो भी मझधार में।

कितना तूफान भी तू उतर जाएगा।।

चाहे रात अंधेरी हो बादल घने।

चाहे कंटक अनेकों जो पथ पर बिछे।

बस राम का नाम तू लेता चले।

यह लंबा सफर भी तो कट जाएगा।

अब आगे और बनाऊंगा।

🤪🤪

धीरे धीरे चलता चल प्रभु नाम को जपता चल।

यह तुझको पहुंचा दे मंजिल।

यह तुझको पहुंचा दे मंजिल।

आज नहीं तो पहुंचेगा कल।।

बाकी बाद में

Bhakt Mohit Fb: आत्मा दूसरे लोको में विचरण करते हुए परमात्मा तक पहुंचती है। ऐसा कथन बहुत से गुरुओं ने कहा है जैसे राधा स्वामी, राम रहीम, ओम शांति, जय गुरुदेव आदि संस्थाओं में यह कहा जाता है। क्या यही सत्य है ? हमारी भी ऐसे ही यात्रा होगी क्या ?

 कामवासना मुझे सताती है, क्या करू ?

जब तुम इतने गुरु के संपर्क में हो तो मेरी क्या औकात??

🤪🤪🙏🏻🙏🏻

वैसे यह शरीर तीन प्रकार का होता है स्थूल सूक्ष्म और कारण।

Bhakt Mohit Fb: kaaran matlab

यह सब मैं अपने ग्रुप में लोगों को अवसर बताता रहता हूं समझाता रहता हूं कारण चली जो है मनुष्य के जीवन का कारण बनता है।

Bhakt Mohit Fb: nhi smjha

अपने किसी महान गुरु से पूछ लेना यदि समझ में ना आए तो मैं सब समझा दूंगा।

Bhakt Mohit Fb: mera koi guru nahi

ek hai to sahi, lekin usko me kam maanta hu, kyuki wo sansaari jyada hai

देखो सन्यास मन का होता है तन का नहीं कोई संसारी व्यक्ति किसी संन्यासी से अधिक ज्ञानी और अनुभव वाला हो सकता है।

तुम मुझसे बात करते हो तो मैं ना कोई सन्यासी हूं और ना ही मुझे गुरू पद स्वीकार है और नहीं मैं अपने को कुछ समझता हूं किंतु अध्यात्म के अनेकों अनुभव कर चुका हूं किसी भी प्रकार के प्रश्नों का उत्तर दे सकता हूं।

ध्यान की नई तकनीकी के द्वारा कितनों को दिव्य अनुभव भी हो चुका है।

Bhakt Mohit Fb: आपको गुरु पद नहीं चाहिए क्युकी ये आपके गुरु ने  बोला कि यहां कोई गुरु नहीं होगा

 ये भी तो एक बंधन है

गुरु ने ऐसा नहीं बोला और हमारी परंपरा में कई गुरु वर्तमान में मौजूद हैं जिनको गुरु दीक्षा का अधिकार है।

यह शायद तुम ना समझोगे की गुरुपद एक बहुत ही अधिक बंधन कारी पद होता है बहुत ही कष्टकारी होता है।

गुरु को स्वयं कभी मुक्ति आसानी से नहीं मिलती है

Bhakt Mohit Fb: बंधनकारी ओर कष्टकारी ☹️

मैं यह बात समर्थ गुरु सद्गुरु के लिए कह रहा हूं जो वास्तव में योगी होते हैं और गुरु होते हैं आज के दुकानदारों के लिए यह बात नहीं है

Bhakt Mohit Fb: लाहिड़ी जी

तभी तो मैं तुमको एक बालक बोलता हूं अभी तुमको बहुत कुछ जानना होगा जिसमें कि तुमको बहुत समय भी लग सकता है

Bhakt Mohit Fb: मै एकमात्र इन्हीं को मानता हूं सबसे बड़ा


इसके बाद ओशो

यह सत्य है लहरी महाशय बहुत ही उच्च कोटि के साधक और गुरु थे वे पारिवारिक होते हुए भी सन्यास से युक्त थे लेकिन लहरी महाशय भी जब महा अवतार बाबा के संपर्क में आए और महा अवतार बाबा जो उनके पूर्व जन्म के गुरु थे उन्होंने उनको तेल पीने को दिया था तब लहरी महाशय सांसारिक बंधनों से मुक्त हो पाए थे।

ओशो एक ज्ञानी व्यक्ति था लेकिन वह रावण की भांति था।

Bhakt Mohit Fb: तेल 🤔

महावतार बाबा लहरी महाशय को एक गुफा में ले गए थे और वहां पर उनके सिर पर हाथ रख कर उनको पूर्व जन्म का वृतांत दिखाया और उसके बाद बोला तुम उस दिए में रखा हुआ जो तेल है वह भी जाओ तो तुम अपने सारे जगत की वासनाओं को नष्ट कर दोगे।

Bhakt Mohit Fb: 😦😯

Bhakt Mohit Fb: मेरा जवाब दो

Bhakt Mohit Fb: कहना क्या चाहते थे

तुम पहले दूसरों का सम्मान करना सीखो। तुम्हारी हर समस्या मैं जानता हूं हर समस्या का समाधान है और हल है मेरे पास। लेकिन तुम अभी भटकाव में हो कुछ और भटक लो तब तुमको अधिक बेहतर समझ में आएगा।


मात्रा का भजन।

जीवन एक मुस्कान है

विपुल लखनवी। नवी मुम्बई।।


जीवन एक मुस्कान है। यह सांसो का गान है।।

सांस तेरी कहती क्या। जो तेरी पहचान है।।


जब श्वांस संग हरि भजे। तेरी सांस महकेगी।।

अपने मन हरि बसा ले। यही तेरा निर्वाण है।।


यही जीवन सरल बना। रहे मस्त सदा मन में।।

अंत: मन डूब जा बंदे। यह तो सुख की खान है।।


व्यस्त रहे व मस्त बने। मन मौज में डूबे तू।।

लक्ष्य सदा हरि नाम हो। यह गीता का ज्ञान है।।


दास विपुल जब पा सके। सुख सागर स्वयम मन में।।

तू भी उसको पा बन्दे। यह प्रभु प्राणीधान है।।


न योग की चिंता कर ले। न वियोग में दुख ही कर।।

बस मन को तू स्थिर कर। यह तेरी पहचान है।।

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 29 (राम नाम की महिमा) 

 

 

 

 

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