Tuesday, September 15, 2020

निर्दोष साधु हत्या पर आक्रोश

 निर्दोष साधु हत्या पर आक्रोश

विपुल लखनवी



अहिंसा पुजारी कैसे खुद हिंसा से ही मारे जाते हैं। 

प्रेम पाठ समझाने वाले घृणा शिकार हो जाते हैं॥


गीता पढ़ना बहुत जरूरी अध्ययन उसका कर डालो।

अत्याचारी के विरुद्ध लड़ो और मौन समर्थन मत पालो॥


भारत का दुर्भाग्य सदा यह प्रेम अहिंसा सिखलाया है।

देश लुटेरों को आश्रय दे गले से अपने लगाया है॥


है दुर्भाग्य ये भी भारत का गद्दारों संग राज किया।

कुछ धन लोलुप भाई थे अपने अपनों का ही रक्त पिया।।


जयचंद अपने घर में रहते उनको हमने ही पाला है।

बन आस्तीन के सांप रहे वो आज हमको डस डाला है॥


फिर भी हम सब नहीं जगेंगे कायरता तो लहू में है।

अपने बाप के न दिखते हैं बाप कोई तो और ही है॥


घाट घाट के कुत्ते बनेंगे नहीं चैन से सो पायेंगे ।।

अगर न जागे अब तुम समझो वीर शिवाजी रो जायेंगे।


महावीर राणा प्रताप आंसू पोछते थक जायेंगे।

कलंक लगाया हिंदू समाज जो कभी नहीं धो पायेंगे॥    


कलम विपुल की समझाती है पर समझ नहीं कुछ आती है।

बेबस लाचारी के आंसू चुपके चुपके पी जाती है॥


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