Friday, September 11, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 7 (बिना गुरू दीक्षा सन्यासी कैसे बन गये ये)


आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 7 (बिना गुरू दीक्षा सन्यासी  कैसे बन गये ये) 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

पिछले भाग से आगे ..........


Bhakt Anil Vibhute Thane Dir:

एक नगर था जिसके चारोओर से पत्थर की दीवार थी ( संरक्षण हेतु बनवाई गई थी ) .नगर से बाहर निकलने के किये एक ही द्वार  ( दरवाज़ा ) था. एक अंध व्यक्ति  को ( जीवात्मा को ) नगर के बाहर निकलना था,इस हेतु वो एक हात में लकड़ी और दूसरे हात से दिवार का सहारा ले करके चल रहा था.चलते चलते जब नगर से बाहर निकलने का  द्वार आया तब उस अंध व्यक्ति के सर में खुजली आयी और वो चलते चलते एक हात से सर खुजाने लगा,अब खुजाने के चक्कर मे नगर का द्वार पीछे छूट गया अब जब खुजली रुकी तो  हात में फिर दीवार आयी.अभ वापस पूरे नगर का चक्कर लगाना पड़ा द्वार की खोज में अब जो सद्गुरु है उनकी असीम गुरुकृपा से वो जो द्वार पर आते हि आने वाली खुजली को रोक देती है और इस संसार रूपी नगर का द्वार मिल जाता है

अभी जीव इस जन्म - मृत्यु के फेरो से मुक्ति पा लेता है

*पुनरपि जनमं पुनरपि मरणं* वाला मसला खंडित हो जाता है

कुल मिलाकर यह अपने ग्रुप विभिन्न क्षेत्रों के संतों द्वारा बहुत ही सुंदर तरीके से विकसित हो गया है और इसके लिए मैं प्रभु को कोटिश नमन करता हूं।

🙇♂️🙇🏼♀️🙇♂️

Bhakt Shyam Sunder Mishra: 👍👍🌹🙏🌹🚩🚩🚩

अब यदि कोई सदस्य लाभ नहीं उठा पाता है तो यह उसका महादुर्भाभाग्य है।

Bhakt Vikas Sharms: ✨🙏🏻🙏🏻🙏🏻✨

Bhakt Harish Kumar Haiyana: ये हमारा शौभाग्य है । आपने बहुत अच्छे से ग्रुप को चलाया है

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏 दर्शन दे और सम्पूर्ण विधि से अवगत कराये।। बहुत कोशिश की हनुमान जी नहीं आये बताया कि आपके साथ है हम लोगों को भी साधना कि विधि विस्तार से बताये🙏👏🌹😊

यार यह क्या पोस्ट है खीर में नमक की तरीके से इस तरह की पोस्ट ग्रुप में ना डालें।।

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: ये बात सही है मेरा अभी शक्तिपात दीक्षा  नही हुई माता जी का आशीर्वाद नही ले पा रहा हु और आप सब गुरुजन किसी न किसी रूप में।शक्ति का दर्शन कर लिया है मैं अभी लटका हुआ हूं

लाक डाउन हटने के बाद करवा देता हूं।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_21.html?m=1

+91 94065 00022: 🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹

जी अवश्य

Swami Triambak giri Fb: आप सभी प्रभु प्रेमी सज्जन वृंद को संध्याकालीन नमन |

परमात्मा के पहचान की कोई निश्चित विधि नहीं है सारा भाव का पराक्रम है परमात्मा भाव का भूखा है आप के अंदर अगर शिष्यत्व जाग गया है यह भाव घर कर गया है कि मुझे हर पल परमात्मा में ध्यान रखना है इसके लिए मुझे परमात्मा की पहचान चाहिए तो परमात्मा कण कण में है इसका मतलब कि आपके शरीर के अंदर भी है और कई बार प्रार्थना कर चुका हूं कि आप सभी को ही अनुभव होता होगा परमात्मा अंदर की बात को अंदर ही सुनता है समझता है  तो आप प्रथम वरीयता परमात्मा से प्रार्थना को दें और परमात्मा से हर पल प्रार्थना करते हुए बाकी दुनियावी हर काम को करें |

तात्विक चेतना में जीवन को जिए |

Swami Triambak giri Fb: सच्चा ईश्वरीय प्रेम अगर स्वभाव में हो तो हमें ना कोई साधना चाहिए ना कोई उपासना |

+91 94065 00022: K k not again👍🏻

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Satya Vachan

Koti koti Naman 🙏🙏

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की जय हो👏👏बुनद से प्यास नहीं बुझेगी जन्म जन्मांतर के प्यासे हैं और आपसे विनती है कि बीरबल की खिचड़ी मत परोसै पुरी थाल चाहिए😊

महाराज जी भाव कैसे पैदा होता है और भाव जड़ शरीर के साथ जुड़ा है कि चैतन्य तत्व है

महाराज जी वर्षों से साधना में लगे हैं और हनुमान जी नहीं आये और पालधर मुम्बई में वो बुढा साधु बहुत ही करुण भाव से ईश्वर को पुकार रहा था वहां भी नहीं आये, पीढ़ियों से लोग ऋषियो के बताये मार्ग को छोड़कर कथा वाचकों के भाव को पकड़ लिया है फिर भी कुछ हाथ नहीं लगा है

हमारे भाव पवित्र है और आपको किसी भी प्रकार से कष्ट हुआ है तो क्षमा करें महाराज भाव भाव से काम नहीं चल रहा है बहुत प्रेमाश्रु बहाने के बाद भी हनुमान जी नहीं आये और शास्त्रों में कहा गया है कि वो दृष्टा है तो क्या शास्त्रों में झुठ कहा गया है


महाराज जी हमारी प्यास बुझाने कि दया करे🙏🙏

Swami Triambak giri Fb: इसके लिए परमात्मा पर विश्वास करके सत्य निष्ठ होना पड़ता है सत्व गुण जागृत किए बगैर कैसे संभव हो सकता है |

सत्य निष्ठा अनिवार्य है अब अपने अंदर झांके क्या आपके अंदर सत्य निष्ठा हैं ❓

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏

प्रश्न के बदले प्रशन चर्चा में आए तो फिर आप हमारी भावनाओं को ठेस पहुंचा रहे हैं सत्वगुण कैसे प्रकट होता है और गुण शरीर में कहा रहता है और भाव के साथ मिलकर धर्म के नाम पर लोगों की हत्या कर रहे हैं

आप विस्तार से कहे और हमारी जानने की इच्छा है कोई अहंकार वश नहीं पुछ रहे हैं आप चाहें तो इस चर्चा से बहुत लोगों को लाभ होगा

हम वैदिक रीति से आपको शास्त्रों के अनुसार साधन विधि के बारे में कहेंगे उसमें आप भाव और सतगुण निकाल देना😊🙏👏🌹

Hb 96 A A Dwivedi: सत्य निष्ठा है महाराज जी और सत्य क्या है यह भी बताये🙏👏🌹😊

Swami Triambak giri Fb: संकल्प से,

ग्रुप का नाम आत्म अवलोकन है आत्म अवलोकन करें |

Swami Triambak giri Fb: जब आपको असत्य का भान हो जाता है अज्ञान का बोध हो जाता है तभी सत्य का और ज्ञान का बोध होता है

Hb 96 A A Dwivedi: विपुल जी क्षमा करें आज थोड़ा विस्तार से चर्चा करते हैं🙏👏

Swami Triambak giri Fb: यह हमने पहले ही लिखा है कि सच्चा ईश्वरीय प्रेम चाहिए और प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय प्रेम आपको अनुभव मिलने से ही उत्पन्न होगा और ईश्वर या अनुभव आपको तभी मिलेगा जब आपके जन्मों जन्मों की साधना जागृत होगी क्योंकि आप अभी भी साधना उपासना और विधि के पीछे पड़े हैं आप ईश्वरीय कृपा के भरोसे नहीं हैं जो ईश्वरीय कृपा के भरोसे हो जाता है अपने आप को ईश्वरीय कृपा के भरोसे छोड़ जाता है वह पूर्ण समर्पित हो जाता है जो करे सो हरि करें हरि करें तो खरी करें

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी🙏🙏

भाव

संकल्प

सत्य

श्रृद्धा

यह सभी एक ही जगह पर रहते हैं या फिर इनके निवास भिन्न भिन्न जगह पर है और अवलोकन कौन कर सकता है शरीर में किसकी शरण में जाएं

महाराज जी आप ईश्वर को प्राप्त कर चुके हैं और आप ईश्वर की वाणी बोल रहे हैं और हम अज्ञानी समझ नहीं पा रहे हैं महाराज उस कृष्ण की वाणी में कहे जो इस अर्जुन के हृदय में उतर जाये

महाराज जी आप यह नहीं कह सकते हैं कि निष्ठा और लगन में कोई कमी है कमी है तो उस विधि कि जिसे जानने के लिए आपकि शरणं गच्छामि है👏🙏😊🌹

Swami Triambak giri Fb: यह सब आपकी बुद्धि में ही निवास करते हैं यह सोए पड़े हो तो उसको जागृत करना यह तो पहला चरण है अभी और अगर यह सब आप कर रहे हैं कर चुके हैं तो पहले चरण से आपको ऊपर परमात्मा अपने आप उठाएगा आप ईश्वर के समर्पण तो हो लो आप हमारी शरण में आने से अच्छा है ईश्वर की शरण में चले जाओ यही तो मैं कह रहा हूं कि शरीर धारी गुरु मत बनाओ परमात्मा को ही अपना गुरु सद्गुरु बनाओ तभी बात बनेगी जब तक शरीर धारी गुरु बनाते रहोगे विधि में ही अटके रहोगे

प्रभु जी भाव कैसे पैदा हो।

Hb 96 A A Dwivedi: 🙏🙏भगवन् बुद्धि तो जड़ है और परमात्मा चैतन्य है

भला अन्धकार प्रकाश से कैसे उदय होता है और क्या यह जड़ शरीर चैतन्य के साथ कोई भी सम्बन्ध है और हैं तो शरीर के गिर जाने के बाद चैतन्य तत्व कहा जाता है और किस प्रकार से पुर्व जन्म के साधन के बाद सद्गुण स्वयं प्रकट हो जाता है👏🙏😊🌹

Swami Triambak giri Fb: परमात्मा ही आपके बुद्धि में विचारों को दे देगा और एक विशेष बात कि मैं यहां ज्ञान वर्धन के लिए नहीं हूं मैं तो तात्विक  उपासक हूं और मैं तात्विक उपासना के लिए ही आपको आग्रह करता हूं आप तात्विक उपासक हो करके तात्विक चेतना में जीवन को जीए हर पल इस तत्व के साथ जुड़कर के |

गुरु तब तो परमात्मा तत्व कण-कण में विराजमान है

Swami Triambak giri Fb: तब को तत्व पढ़ें

प्रभु जी तात्विक उपासना क्या है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

मैं मूर्ख नहीं जानता।

Swami Triambak giri Fb: यह शरीर ही साधन है मोक्ष का और इस बुद्धि को आप को मोक्ष प्राप्त करने के लिए ही प्रदान किया गया है अन्यथा तो आप किसी भी योनि में मोक्ष प्राप्त कर सकते थे |

वाह प्रभु किसी भी योनि को मोक्ष मिलता है।

🙏🏻🙏🏻🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️🙇♂️

Swami Triambak giri Fb: गुरु तत्त्व को परमात्मा तत्व को कण कण ने मान करके इसके साथ जुड़कर  इसके प्रति समर्पित होकर के हर पल इस को याद करते हुए जीवन के हर कर्म को करते हुए जीवन को जीना |

क्योंकि दुनिया का कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं है जो इस बात से नकारता हो कि परमात्मा कण कण में नहीं है |

प्रभु जी यही समस्या है समर्पित कैसे हो।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Swami Triambak giri Fb: दुनिया के सभी शास्त्रों पर विश्वास करके हमारी भारतीय मनीषा पर विश्वास करके

शास्त्र बहुत-बहुत भटकाते हैं कोई कहता विष्णु बड़े कोई कहता है दुर्गा। कोई कहता है शिव।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी👏👏

सथुल शरीर के गिर जाने के बाद क्या साधना नहीं होती है या की जाती है

सुक्षम शरीर में रहकर साधना करते हुए बुद्धि कार्य करती है या प्रज्ञा

महाराज जी तात्विक साधना भी तत्वों की साधना है और यह वो ही साधन है जो गुरु महाराज के भीतर गुरु तत्व के रूप में स्थापित होता है और ईश्वर को गुणों से कैसे जान सकते हैं बगैर किसी माध्यम के महाराज जी वो तो गुणातीत है गुणों से परे है

जय हो महाराज🙏👏🌹😊क्षमा अगर कोई भी बात गलती से ग़लत लिखा है

Bhakt Shyam Sunder Mishra: जी हाँ, तो इसका समाधान कैसे हो गुरदेव  ?

प्रणाम जी सब को

मेरा नाम हरीश कुमार है । मै हरियाणा से हूँ ।

मै चार साल से शाधना कर रहा हूँ । मै माँ दुर्गा जी शिव जी का ज्यादा ध्यान करता हूँ ।

मुझे आपके ग्रुप में जुड़े हुए भी काफी समय हो गया है । ध्यान के कारण मेरे को स्वप्न में बहुत अच्छे दरसन होते थे । लेकिन कुछ कारन बस ध्यान 5 महीनो से कम हो गया ।

मुझे दूसरे महीने में पित्त की पथरी के कारण ओपरेसन करवाना पड़ा ।

ओप्रेसन करवाने के 5 दिन बाद ही मुझे पीलिया हो गया । जो की काफी बढ़ गया है । चेकअप करवाया तो एक डॉक्टर कह रहा है की दवाई लेते रहो ठीक हो जाओगे । ठीक नही हुआ तो दूसरे डॉक्टर को दिखया तो उस डॉक्टर ने कह दिया की लिवर ट्रांसप्लांट करवाना भी पड़ सकता है ।

बहुत दुखी हूँ जी । आप ही सब सहारा है । ध्यान में कुछ गलती हुई हो मेरे से तो भी पता नही ।


आप देखो ना जी ।

माँ से अरदास करके पूछो ना जी ।

आप सब जानते हो ।

प्रणाम जी सबको

Swami Triambak giri Fb: शास्त्रों में भटकाना क्यों है शास्त्र की एक ही बात पकड़ो जो सही है जो सारे शास्त्र कहते हैं कि परमात्मा सर्वत्र है

पर किसको माने

🙏🏻🙏🏻

Swami Triambak giri Fb: आप जिसको प्रज्ञा कह रहे हो वह परमात्मा की ही आवाज है

Bhakt Brijesh Singer: गुरु बिन ज्ञान विवेक होई

राम कृपा बिन सुलभ सोई |

🙂

Swami Triambak giri Fb: परमात्मा एक है और यह सब परमात्मा की रचना है इनके अच्छे और सच्चे कर्मों के कारण लोगों ने इनको भगवान कह दिया जैसे अगर आप अगर किसी के लिए आज कुछ भलाई करने लग जाओ तो वह कह देता कि आप हमारे लिए भगवान हो

समझा नहीं।

😕☹️☹️

Bhakt Shyam Sunder Mishra: हाँ गुरु देव।

मैं भी इसी द्वैत में उलझा हूँ।

Swami Triambak giri Fb: और राम की कृपा के लिए राम के प्रति समर्पित हो जाओ जा पर कृपा राम की होई ता पर कृपा करे सब कोई |

"  यत्र तत्र सर्वत्र रमेति तैया राम: "

समर्पण कैसे करें भगवन

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी सुबह के समय आपने इस प्रशन का जवाब दिया होता जो अभी दिया तो सारे प्रश्न समाप्त हो जाते थे🙏🙏

Bhakt Jagat Bhatt Bhav Nagar: सत्यम शिवम सुन्दरम,,,एकोहम शिवोहम अनंदोहम,,, जय गुरुदेव

+91 79828 87645: समर्पण एस अस्तित्व की सबसे दुर्लभ घटना है

 समर्पण होते ही समाधि लग जाती है

मैं राम को नहीं मानता। दुर्गा को मानता हूं।

☹️☹️☹️

समाधि क्या होती है।

☹️☹️

+91 79828 87645: लोग लंबी लंबी बातें करते हैं भक्ति की गाथा गाते हैं परंतु उनको समाधि लगी है समझना चाहिए कि समर्पण नहीं हुआ है बेशक से वह इतना भी कहे कि समर्पण हो गया बस वह बुद्धि की चालाकी चल रहे हैं और कुछ भी नहीं

Swami Triambak giri Fb: लेकिन किंतु परंतु अगर मगर छोड़कर

+91 79828 87645: 100% समर्पण

+91 79828 87645: ✅

इसमें देह भान रहता है क्या।

+91 79828 87645: नहीं देह  नहीं रहता

और मर भी नहीं जाते

समर्पण हो कैसे???

मतलब

+91 79828 87645: लगातार मानसिक दृष्टा हो करके मन की गतिविधि का निरीक्षण करते रहने से और स्वयं के केंद्र पर स्थापित होते रहने से कुछ समय में यह घटना घटती है

पर कैसें हो।

+91 79828 87645: पारलौकिक कोई अस्तित्व है जहां पर मौजूद हो जाने से  देह की एनालिसिस करने वाला मन बुद्धि का अतिक्रमण हो जाता है

- +91 79828 87645: भक्ति वाले परा  भक्ति में

ध्यान वाले कर्मफल त्याग की चरम स्थिति में पहुंचने पर

समस्या करने की है। कैसे हो।

कोई मार्ग बताएं।

भक्ति भाव पैदा कैसे हो।

कर्मफल का त्याग कैसे हो।

जो जिस अवस्था को प्राप्त कर लेता है उसको बड़ा आसान सोचता है पर वह मार्ग नहीं बताता है कि वह खुद कैसे आया।

यदि व्यक्ति खुद इस मार्ग से आया रहै तो मार्ग पता होगा नहीं तो ऐसा लगता है कि सामने वाला किताबी ज्ञान दे रहा है।

ऐसा लगता है कि नेट से देखकर बड़े-बड़े शब्द बोलो सामने वाला सामने नहीं समझा तो ठीक नहीं तो दूसरा शब्द दाग दो।

😣😣☹️☹️

+91 79828 87645: भक्ति भाव भी परमात्मा का दिया हुआ स्वभाव है  बस उस मार्ग पर चलने की उसको निखारने की उसमें अपने आपको पूरी तरह झौंक देने वाली बात है   परिणाम जो भी हो वह ईश्वर का प्रसाद है

ज्ञानियों का ध्यान मार्ग भी उनका निजी स्वभाव है जो परमात्मा का ही दिया हुआ है

इसमें भी अपने आपको पूरी तरह झोंक देने की जरूरत है

जिसका अंतिम रुकावट या कारण कर्म फल की भावना बनी रहती है जैसे पूरी तरह त्यागने की जरूरत पड़ती है परिणाम जो भी हो वह भी ईश्वर का प्रसाद है

मेरा प्रश्न बार-बार यही है कि ध्यान है तो ध्यान कैसे करें भक्ति भाव में कैसे उतरे।

भक्ति भाव यदि परमात्मा का स्वभाव है तो यह सब परमात्मा की मर्जी है हम खाली बैठे।

+91 79828 87645: अपने प्राणीधान ईश्वर का सतत स्मरण निदिद्यासन  भक्ति मार्ग पर चलने का प्रमुख उपाय है

Swami Triambak giri Fb: पहले हनुमान जी की भक्ति ही किया करते थे पर धीरे-धीरे समझ आगे बढ़ी हनुमान जी से राम जी का पता पूछने लगे और  और भी शास्त्रों का अध्ययन किया संतों की वाणी या सुनी प्रवचन सुने संतो द्वारा लिखित पुस्तकों का स्वाध्याय किया समझ आगे बढ़ी तो हनुमान जी की भक्ति करनी भी बंद कर दी सुंदरकांड बंद कर दिया रामायण पाठ करना बंद कर दिया सब कुछ बंद कर दिया अब समझ में आ गया कि परमात्मा तो मेरे अंदर ही है सब जगह है कोई ऐसी जगह नहीं जहां परमात्मा नहीं है तो हर पल परमात्मा से प्रार्थना करते हुए अपना जो जीवन का कार्य था वह करते रहा और एक समय ऐसा आया जब यह आभास हो गया और यह आवाज आ गई कि मैं यहीं हूं और मैं यही हूं |

अब इसी में हर पल ध्यान टिका रहता है और द्रष्टा बनकर बैठा हूं जो कुछ हो रहा है इसे भी निहार रहा हूं और इस सत्ता को भी निहार रहा हूं |

भारतीय मनीषा की इस बात पर गौर किया है कि अंत समय में जो मता होगी वही गति होगी अंत समय में मता इस सत्ता में रखनी है इस में रखनी है इसके लिए शरीर को सुलाकर भी इससे जुड़ा रहना जरूरी है |

मतलब आपने वेद महावाक्य अयम आत्मा ब्रह्म इसका अनुभव किया।

इस अनुभव के समय स्थिति क्या होती है कुछ प्रकाश डालेंगे।

+91 79828 87645: हां परमात्मा का स्वभाव है परंतु साथ में संसार को भोगने की वृत्ति वाला मन भी है जो स्वभाव मैं स्थिन ना होने का कारण है

+91 79828 87645: जिस दिन आप खाली बैठ जाएंगे उस दिन समाधि लग जाएगी खाली बैठना ही आप का टारगेट है और यह हर किसी के लिए संभव नहीं है इसलिए सबको समाधि नहीं लगती

Swami Triambak giri Fb: मैं हूं नहीं तू है

वही मैं पूछ रहा हूं मन कैसे लगाएं।

+91 79828 87645: संसार की सभी चीजों से मन हटा दें और सतत ईश्वर के स्मरण में बिजी हो जाएं क्योंकि वह बड़ी चीज है और वह अंतिम लक्ष्य है जो अंतिम है उसका आज ही अभी ही क्यों ना स्मरण किया जाए

मतलब तत्वम असि का अनुभव किया

Swami Triambak giri Fb: प्रज्ञानंम ब्रह्म

वही तो प्रश्न है संसार से मन कैसे हटाए।

प्रज्ञानं ब्रह्म यह जो आपने पहले बोला है वह नहीं है।

+91 79828 87645: क्योंकि आप मन के मालिक हैं मन की आपके भीतर कोई अलग सत्ता नहीं है यह आपका कहना मानता है आप इसे एक बार आदेश दे कर देखो

Swami Triambak giri Fb: आप जिसको प्रज्ञा कहते हो यही परमात्मा की आवाज है

प्रज्ञानं ब्रह्म में अपनी आत्मा का विस्तार महसूस होता है

Swami Triambak giri Fb: अपना शरीर और अपनी आत्मा तो आप कौन हो ❓

इसे आत्म‌ गुरू बोलते हैं। किंतु एक‌ अवस्था के बाद मन भी बोलने लगता है।

+91 79828 87645: प्रज्ञानंम ब्रह्म को ही शायद भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवद्गीता में महत्त् ब्रह्म कह कर के बोलते हैं

इसका मतलब हुआ वह अस्तित्व जो स्वयं ज्ञानवान है और स्वयं की सत्ता से ही फलीभूत देहधारी भी है

आत्म गुरु सही बोलता है मन गुरु भटकाता है जिसे कुरान में शैतान की बोली बोलते हैं।

Bhakt Brijesh Singer: इसमे अंतर करना मुस्किल हो जाता है

+91 79828 87645: पहली बात तो मन को गुरु बोल रहे हैं यह गलत बात है मन गुरु नहीं है

मन एक ऐसा उपाय है जो अतीत में हमने संसार के विभिन्न अनुभवों को भोगने का माध्यम बनाकर के प्रयोग में लिया था परंतु बहुत अधिक अनुभव ले लिए हैं तो इसमें बहुत ज्यादा यादाश्त  जुड़ गई हैं

कि हम अपना मूल स्वरूप भूल गए हैं जिसने मन को धारण कर रखा है उस अस्तित्व को भूले पड़े हैं केवल मनोंमय हो गए हैं

 जैसे कोई दीवारों पर लगे हुए काजल की कोठरी में काफी दिन रह ले और एकदम काजल जैसा काला हो जाए एकदम काला काला तो वह अपना स्वरूप भी कैसे पहचाने बस वह बात है

+91 79828 87645: अभी किसी को और कुछ पूछना हो तो हम ठहरे हुए हैं 5 मिनट और फिर दोबारा मुलाकात होगी एक युग के पश्चात

मन गुरू को आत्म गुरू समझकर मोहम्मद एकदम भटक गया था।

कई संप्रदाय और पंथ जो बिल्कुल सनकी है वह इसी के कारण पैदा हुए हैं मन गुरु अगर आप नहीं बोलना चाहते हैं तो मन की बात को हम आत्म गुरु समझ लेते हैं

जब तक कोई भी बात हमें स्पष्ट ना सुनाई दे शब्द में लिखी हुई दिखाई न दे ध्यान में न सुनाई दे तब तक वह मन की चालबाजी है।

Swami Triambak giri Fb: Vipul sen ji   इसका जवाब नहीं दिया आपने

+91 79828 87645: हां यही गलती है जबकि कोई भी बात आत्म गुरु की नहीं होती
बात मात्र मन की होती है

आत्मा तो बस है बिना किसी बात के है

यदि कोई बात चलती है कोई डिमांड ऊठती है कोई विषय उठता है तो वह सिर्फ मन की बकवास है

 ऐसा जानना चाहिए परंतु आजकल लोग मन की आवाज को आत्मा की आवाज समझ लेते हैं जो कि संस्कार के अनुसार होती है

सही बताऊं मांस का एक लोथड़ा।

मैं तो कुछ करता ही नहीं मैं कुछ भी नहीं लेकिन मैं सब कुछ हूं मैं ही मैं हूं।

+91 79828 87645: सब कुछ मन है सब कुछ मन है ऐसा जाना चाहिए कोई बात स्पष्ट सुनाई दे

कोई शब्द स्पष्ट दिखाई दे कोई रूप स्पष्ट दिखाई दे

सब कुछ मन है यह संसार मन का ही फैलाव है

वह बात अलग है कि वह व्यक्तिगत मन हो या समस्टी गत मन हो

एक होता है स्वत: एक होता है संकर्षण।

Swami Triambak giri Fb: मांस का लोथोड़ा तो शरीर है जो आपका है |

पहले वाला है तो‌ सही है यदि दूसरा वाला हो तो गलत।

+91 79828 87645: इस प्रश्न का जवाब इस प्रकार होना चाहिए

मैं एक आत्मा जिसने मन बुद्धि अहंकार सहित मनुष्य शरीर धारण कर रखा है और जो संसार के प्रकृति के नियमों के भीतर विचरण कर रहा है

Swami Triambak giri Fb: ✔

इन के साथ मेरी फेसबुक पर बहुत नोंक झोंक होती रहती है थोड़ा आनंद ले कर के कर जवाब देता हूं

+91 79828 87645: 😁

Swami Triambak giri Fb: तो फिर आप आनंद ही लीजिए मैं यह चर्चा बंद करता हूं और इस ग्रुप से बाहर होता हूं

Swami Triambak giri Fb left

+91 79828 87645: नहीं प्रश्न करने वालों की हमेशा कीमत होती है आपको ग्रुप से बाहर नहीं जाना चाहिए

Hb 96 A A Dwivedi: वैदिक साधना पुर्ण रुप से वैज्ञानिक आधार पर हैं जिसमें पंच कोषों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत ही मन का आत्मा में विलय होता है।।

भाव में स्थित होने के लिए मन को साधने की आवश्यकता होती है और मन को साधने के लिए चित्त की शुद्धि करने की आवश्यकता है उसे ही अवलोकन कहते हैं।।

चित्त जड़ रुप है और आतमा चैतन्य

शरीर असत्य है और आत्मा सत्य

मन की अपनी कोई सत्ता नहीं है वो इन्द्रियो के विषयों पर आधारित है जो कि जड़ है और आत्मा चैतन्य

चैतन्य आत्मा को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद भगवती चैतन्य शक्ति को जगाने कि जरुरत होती है और उस विधि को शकतिपात दिक्षा कहते हैं।।

यह वही दिक्षा है जो भगवान राम को महर्षि वशिष्ठ जी ने और सनदिपनी ऋषि ने भगवान श्रिकृषण पर किया

यह वही शकतिपात है जो अष्टावक्र ने राजा जनक के ऊपर किया

बगैर चैतन्य शक्ति को जगाये जड शरीर कभी भी ईश्वरीय गुणों का विकास नहीं कर सकता है

शरीर में इतनी ताकत भी नहीं है जो बगैर चैतन्य शक्ति के पत्ते को भी हिला सके

यह वही जड़ शरीर है जो चैतन्य शक्ति के निकल जाने के बाद आंख होते हुए भी नहीं देख सकता है कान होते हुए भी नहीं सुन सकता है


गुरु अपने चित्त की दशा को शिष्य के शरीर में प्राकट्य करके भगवती कुण्डली जागरुक कर देते हैं और वो ही भगवती कुण्डली षठ चक्रों को भेदती हुई शरीर से जड़ ग्रनथी को तोड़कर चैतन्य आत्मा का अस्तित्व प्रकट कर देती है यह ऋषियो की बताई विधि है जिसे

लाहिड़ी महाशय

बाबा गोरखनाथ

देवरहा बाबा

तैलंग स्वामी

राम कृष्ण परमहंस

भगवान राम और श्रीकृष्ण ने अपनाया


जय हो गुरुदेव

जय हो महाराज जी


👏🙏🌹😊

+91 79828 87645: इस प्रकार का ज्ञानी किस काम का जब तक दो लात ना पड़े उससे पहले ज्ञानी अगर चला जाए तो उसको ऑथेंटिक ज्ञानी नहीं मानना चाहिए😄

Hb 96 A A Dwivedi: शिव बाबा की जय हो😊🌹🙏👏

अब यह स्वामी जी गुरु को मानते ही नहीं।

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी चले गए

बड़ा संभाला है बहुत सहनशील।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 आपको लगता है सन्यासी को मान अपमान सम्मान  लगता है।

Bhakt Brijesh Singer: नही जी

+91 94065 00022 left

प्रिय विपुल भय्या , इस समय जो भीषण तर्क चल रहा है उसमें स्पष्ट रूप से वह त्रयंबक गिरी जी महाराज प्रबाह में बह कर कुछ अनर्गल भी कह गये हैं एवं अब समेटना मुश्किल हो रहा है  ।

मेरा ग्रुप मे कुछ कहना सामहिक रूप से एक संत को उत्तर देना अनुचित लग रहा है मुझे ।

आप लोगो का तो ध्यान एवं मंत्र साधना , शक्तिपात से जुडे ज्ञान हैं उनको पढता हूँ ।

वास्तव में आप लोगो की साधना का स्तर बहुत ऊचा है एवं मैं अभी केवल राम नाम राम।महिमा को समझने में लगा हूँ ।जो कि अभी भी नही समझ पाया तो वहा किसी बारे में ज्ञान देने के लिए सक्षम नहो समझता अपने आप को ।

जय श्रीराम विपुल भय्या ।।💐💐💐💐💐

प्रभु जी आप यह शब्द लिखकर हम सभी को शर्मिंदा कर रहे हैं आप राम नाम के लिए जगत छोड़ चुके हैं और हम अभी तक जगत के प्रपंचओं में फंसे हैं निश्चित रूप से आपका स्थान हम सभी से बहुत ऊपर है हम आपको प्रणाम करते हैं और आपके मुंह से भी कुछ राम चर्चा सुनना चाहते हैं।

यही बात सत्य है की त्रिंबक गिरी इनसे मेरी पहचान फेसबुक पर हुई थी और इनकी अधिकतर बातों से मैं सहमत नहीं होता था लेकिन अपने ग्रुप में लोगों को समझाने के लिए की सन्यास का अर्थ पर यह नहीं कि मनुष्य ज्ञानी हो गया।

किंतु हमें ब्रह्मचारीओं का और संन्यासियों का सम्मान करते रहना चाहिए।

बस आपके मुखारविंद से राम नाम चर्चा सुनने की अभिलाषा है।

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"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


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