Friday, September 11, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 6 (बिना गुरू दीक्षा सन्यासी कैसे बन गये ये)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 6 

(बिना गुरू दीक्षा सन्यासी  कैसे बन गये ये) 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

 

पिछले भाग से आगे ..........


Bhakt Brijesh Singer: मौक़े का फायदा उठाने वाले हर जगह मौजूद है जिन्हें कालनेमि कहा गया है भी

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: मैं एक प्रश्न करना चाहता हु वाल्मीकि रामायण में श्रीराम जी को हवन में मांस का उपयोग करने वाला दिखाया गया है व भोजन में भी क्या इस विषय मे कुछ बताने की कृपा करेंगे

Swami Triambak giri Fb: यह सिर्फ आपके सुनी सुनाई बातें हैं

Bhakt Brijesh Singer: कौन सा श्लोक? बताने की कृपा करे?

 तंत्र विद्या में बली आवश्यक हो जाती है।

अघोर तंत्र तांत्रिक इसमें बलि में मांस देना पड़ता है।

इसमें महाकाली की साकार रूप की पूजा होती है। साकार रूप में उस महाकाली की आराधना करते हैं और महाकाली का रूप तमो गुणी है।

पहले तमोगुण की उत्पत्ति हुई क्योंकि सृष्टि हेतु तमोगुण आवश्यक है यदि तमोगुण नहीं होगा तो सृष्टि नहीं चल सकती।

Swami Triambak giri Fb: शिकायत तुम्हें होगी अगले जन्म में जब जन्म गड़बड़ मिलेगा फिर तुम रोओगे, बोला परमात्मा अंदर ही था और मैं उलझा रहा गुरु सत्संग सेवा और सिमरन में |

फिर सोचोगे कि एक ही जन्म था अंतर्मुखी होने के लिए अंतर्मुखी हो लेता परमात्मा से बातचीत कर लेता परमात्मा की पहचान पा लेता तो परमात्मा में ही विलय हो जाता जनम दुबारा ना लेना पड़ता

Swami Triambak giri Fb: निर्दोष पशुओं को मारना यह कैसी पूजा है

प्रभु जी अगले जन्म किसने देखा है होगा कि नहीं होगा कि मोक्ष मिलेगा या नहीं मिलेगा उस चक्कर में अपना यह जो कर्म योनि मिला है इनको क्यों बर्बाद करें।

Swami Triambak giri Fb: परमात्मा को कोई भी किसी रूप में पूछता है तो उसकी मनोकामना पूर्ण होती है मनोकामना पूर्ण होने से सुख भी नहीं होता मोक्ष भी नहीं होता आनंद भी नहीं होता मोक्ष और आनंद तो तभी होता है जब परमात्मा प्रेम करने लग जाता है भक्तों से

प्रभु जी आवश्यक नहीं है कि हर विधि आपको पता हो।

प्रभु से मांगने वाला व्यक्ति सबसे बड़ा भिकारी होता है।

लेकिन मनुष्य की यात्रा भी सकाम से ही आरंभ होती है।

Bhakt Brijesh Singer: तो क्या गुरु अंतरमुखी होना गुरु नही बताते??

वह भी बताते है और बढिया से बताएगे जो आप कई जन्म मे भी नही जान पायेगे l 🙂

कुछ मांगा जब मनुष्य को भीख लगने लगे तो यक्ह अलग स्तर की बात है।

Swami Triambak giri Fb: इन्हीं विधीयों से तो सनातन में बिगाड़ आ रहा है

प्रभु जी हमारे सनातन में अपने को जानने की ब्रह्म को पहचानने की 5 विधियां है।

मित्र मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं सन्यासी का सम्मान करना सीखो।

Swami Triambak giri Fb: हम तो सबसे अच्छे गुरु की शरण में हैं परमात्मा परमात्मा से बड़ा कौन है परमात्मा से बड़ा कौन गुरु है परमात्मा ने अगर बुद्धि नहीं दी होती विवेक नहीं दी होती परमात्मा ने अगर अंदर की आवाज अंदर नहीं सुनी होती और अंदर मेरे से बातचीत नहीं कर रहा होता तो मैं आपसे इतनी बात नहीं कर रहा था

जो व्यक्ति ईश्वर की खोज में सारा जगत छोड़ चुका होता है भले ही उसका  ज्ञान आप से कम हो लेकिन वह सम्मान का पात्र होता है।

आप बिल्कुल सही सोचते हो प्रभु जी।

🙇🏼♀️🙇♂️

Bhakt Brijesh Singer: जी क्षमा प्रभु

मैंने कहाँ अपमान किया प्रभु?? जो गुरु को गुरुडम वाद बोल रहे है वो क्या है प्रभु?

Swami Triambak giri Fb: सन्यासी वही है जो मान सम्मान से ऊपर उठे जिसने यह रोग मिटा दिया हो कि क्या कहेंगे लोग

सन्यासी को छूट है। हम उसको बंधन में नहीं बांध सकते।

Swami Triambak giri Fb: हर सन्यासी  यही समझाता है कि सृष्टिकर्ता एक है चाहे तुम किसी रूप में भी मानो जानो समझो पर जिस दिन पहचान जाओगे, उस दिन रूप से अरुप में आ जाओगे | अब हर पल ध्यान में रहोगे और हर कार्य ध्यान में होगा |

हर गुरु स्वयं अपने गुरु से अलग हो जाते हैं अपने गुरु से अलग होकर के अपनी दुकानदारी जमाते हैं  और जबकि  सही बात तो यह है कि पारस तो लोहा कंचन करें संत करें आप समान | तो यह अपने शिष्यों को अपने समान क्यों नहीं बनाते ❓

हर गुरु को अपनी दुकानदारी चलानी है भीड़ इकट्ठी करनी है मजमा लगाना है भीड़ इकट्ठी करके फिर अपनी ताकत दिखानी है अपनी शक्ति प्रदर्शन करना है इसलिए अपने सानिध्य में आए लोगों को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करते किसी ना किसी तरह भोले भाले लालची और डरपोक लोगों को अपने काफिले में बांधकर रखना चाहते हैं |

जबकि हमारे सन्यास परंपरा में बिल्कुल सही कार्य है गुरु के पास आकर के सन्यास दीक्षा लेते ही वह सन्यासी गुरु, सिद्ध ,संत ,साधक बन सकता है |

सन्यासी अपने सदगृहस्थ शिष्यों को  किसी भी तरह से बंधन में नहीं रखता कि तुम सिर्फ मेरे साथ ही रहोगे सन्यासी अपने सदगृहस्थ शिष्यों को भी कहता है जहां से अच्छाई मिले जहां से सच्चाई मिले धारण करो धारण करो धारण करो |

किंतु हमको बंधन है कि हम सन्यासियों ब्रह्मचारीओं का और संन्यासियों का सत्कार करें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Swami Triambak giri Fb: संन्यास का अर्थ मृत्यु के प्रति प्रेम ... आत्महत्या करने वालों को मृत्यु कभी प्यारी नहीं होती, क्योंकि यह बहुधा देखा गया है कि कोई मनुष्य आत्महत्या करने जाता है और यदि वह अपने यत्न में असफल रहता है तो दुबारा फिर वह उसका कभी नाम भी नहीं लेता।

सन्यास का अर्थ है जीने के लिए मरना। वह मनुष्य के स्थूल स्वार्थी जीवन की पूर्ण मृत्यु है, जो साधारण व्यक्ति की तरह भौतिक क्षेत्र पर जीने का आदी हो चुका है। सन्यास एक नए जीवन का जन्म है जहां ‘व्यक्ति’ का अंत हो जाता है, और उसके विलक्षण व्यक्तित्व के नए जन्म के आवाहन में समग्र सृष्टि उसके समक्ष खड़ी हो जाती है और वह विश्व प्रेम का अद्भुत स्वरूप धारण कर लेता है। ऐसा करने के लिए वह घोषित करता है कि समग्र सृष्टि उसके साथ है और किसी भी प्राणी को उससे डरने की ज़रूरत नहीं। वह इस धरती के सभी जीवों को योगदान देता है और सभी जीवों से योगदान लेता हैं क्योंकि वह और कुछ नहीं, सिर्फ प्रेम है, सिर्फ त्याग है। सन्यास दीक्षा समारोह के दौरान लिए गए प्रण के अनुसार उसके अंतर से करुणा उजागर होती है सब धार्मिक जीवों के प्रति , पर  धर्म का लबादा ओढ़े अधार्मिक लोगों के प्रति वह उतना ही सजग होता है |

लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है ?

नहीं | ऐसा नहीं होता | न तो गुरु ही स्वयं भौतिक जगत से मुक्त होता है और न ही शिष्य को मुक्त कर पाता है | यहाँ भी घृणा, द्वेष, शोषण, भय… सभी कुछ होता है | सब कुछ जो भौतिक जगत में होता है, अंतर होता है तो केवल वस्त्रों के रंग का | यहाँ भी जिसके हाथ में सत्ता होता है वह शोषक बन जाता है और जिसके हाथ में सत्ता नहीं होती वह सत्ता पाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद अपनाता है | यहाँ भी गुंडे-बदमाश पाले जाते हैं | यहाँ भी हत्या या प्रताड़ना के लिए सुपारी दी जाती है…

कहते हैं की गुरु के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए, लेकिन गुरु ही यदि पथ-भ्रष्ट हो तो कोई समर्पण भाव कहाँ से लाये ? गुरु शिष्य बटोरते हैं ज्ञान मार्ग दिखाने के लिए नहीं, अपितु अपनी सेवा करवाने के लिए | किसी गुरु को कमर दर्द है तो शिष्य तलाशते हैं जिसे मालिश आती हो, किसी को आश्रम में झाड़ू-पोंछा के लिए शिष्य की आवश्यकता होती है तो किसी को खाना बनाने वाले शिष्य की आवश्यकता होती है |शिष्य भी अजीबोगरीब होते हैं | हमेशा भयाक्रांत रहते हैं |


क्या बदला इन सन्यासियों के जीवन में ? वही भय कल तक नौकरी या व्यवसाय करते समय था आज भी है | कल भी भय रहता था कि मकान का किराया नहीं दिया तो मकान मालिक घर से निकाल देगा और आज भी है | कल भी भय से भगवान् की अराधना करते थे और आज भी | कल भी मौत से भय था आज भी… क्या यह संन्यास जीवन का अपमान नहीं ?

मेरी दृष्टि में संन्यास का अर्थ है स्वयं को ईश्वर को समर्पित करना | गुरु यदि पाखंडी है तो गुरु का दोष है, शिष्य उसके लिए जिम्मेदार नहीं है और ऐसे गुरु के लिए वह किसी भी कर्तव्य से मुक्त हो जाता है | सृष्टिकर्ता ही उसका एक मात्र गुरु और रक्षक होता है | सन्यासी को किसी भी प्रकार के भय से मुक्त होना चाहिए | सन्यासी को यह चिंता नहीं करनी चाहिए कि कल क्या होगा | वही होगा जो सृष्टिकर्ता करेंगे या तो कर्मों का फल देंगे या माफ करेंगे | इसलिए वर्तमान में क्या करना है और कैसे जीना है यही तय करे | पूजा-पाठ घंटे घड़ियाल का नाम सन्यास नहीं है, सन्यास है मुक्त भाव से सृष्टिकर्ता की सृष्टि और इसकी रचनाओं का सम्मान, सेवा, संरक्षण व कल्याणार्थ कार्य करना | सन्यासी के लिए सम्पूर्ण विश्व ही उसका घर है | सन्यासी के लिए विश्व के सभी प्राणी उसके अपने हैं | वह सबके कल्याण व सुरक्षा के लिए यथा-संभव प्रयासरत रहता है | संन्यास का अर्थ प्रेम है | सन्यास का अर्थ है किसी भी कार्य को पूरी श्रद्धा व लगन से प्रेमपूर्वक करना |

किन्तु…जिस तरह पूरे घर की सफाई करने के लिए घर के एक कोने से ही शुरू करना पड़ता है, वैसे ही विश्व कल्याण भी तभी कोई कर सकता है जब उस राष्ट्र के कल्याण को अपना कर्तव्य समझे जिसमें उसने जन्म लिया या जिस में वह रह रहा है | शोषण और भ्रष्टाचार से पीड़ित राष्ट्र में आत्मज्ञान और ब्रम्हज्ञान प्राप्त करने का दिखावा करके अपने आश्रमों में बैठ कर भजन-कीर्तन करना और प्रवचन करना पीड़ितों और दुखियों और असहायों के प्रति मानसिक हिंसा है | भौतिक, आर्थिक, राजनैतिक व आध्यात्मिक शक्ति संपन्न होते हुए भी भ्रष्टाचारियों और दुष्टों के दमन में सहयोग न करना और “मैं सुखी तो जग सुखी” के सिद्धांत पर चलना अमानवीय है | ईश्वर ने मानव शरीर देकर हमें सृष्टि में निडरता से राक्षसों (शोषक, भ्रष्ट, द्वेशात्मक, हिंसक, बलात्कारी पाखण्डी, धूर्त मानसिकता के व्यक्तियों) के दमन के लिए भेजा है न कि धूनी रमा कर भजन-कीर्तन करने के लिए | एक सन्यासी ही वसुदेव कुटुंबकम का सही मायने में जीवन जीता है वह जानता है कि परिवार में अगर कहीं भी कोई व्यक्ति बुराई करने लग जाता है तो उसको हम समझाते हैं और समझाने से नहीं मानता है तो हम उसे अपने परिवार से अलग कर देते हैं हम उसे अपने परिवार से निष्कासित कर देते हैं ऐसे ही अगर यह संसार पूरा मेरा परिवार है तो इस संसार में जो भी बुराई करने लग जाता है उसको भी समझाने की कोशिश सन्यासी करता है और जब अगर वह समझाने से नहीं माने तो इस संसार से उसको अलग करने के लिए कानूनन जो भी कार्रवाई है वह भी सन्यासी को करनी चाहिए | triyambak giri (तरुण तपस्वी)

Bhakt Brijesh Singer: श्री राम चरित मानस उत्तर कांड...


एक बार हर मंदिर

          जपत   रहेउ   हर   नाम।

गुरु आयउ अभिमान ते

          उठि नहिं कीन्ह प्रणाम ।।


          महाकालेश्वर भगवान देवाधिदेव महादेव शिव के मंदिर में बैठा हुआ मैं 'ॐ नमः शिवाय,  ॐ नमः शिवाय ' का जप कर रहा था। गुरुदेव आये, मैंने प्रणाम नहीं किया। गरुड़ जी ने कहा- - तो आप ध्यान में बैठे होंगे, जप कर रहे होंगे? तो अपने यहाँ परम्परा है,  मन ही मन प्रणाम कर लिया होगा? कागभुसुण्डि जी बोले-- सही बात बताएं । ••••क्या?•••• मैंने देखा गुरु जी आ रहे हैं, तो पहले तो मैं आँख खोले हुए था और देखा गुरु जी आ रहे हैं, उठकर प्रणाम करना पड़ेगा, तो मैंने आँख बंद कर लीं।

          जिनकी वजह से आँख खुली थी, उन्हें देखकर आँख मूंद लीं। गुरु आयउ अभिमान ते, अभिमान के कारण मैंने उठकर प्रणाम नहीं किया; लेकिन गुरुदेव तो गुरुदेव हैं।


गुरु कृपालु नहिं कहेउ कछु

         उर    न   रोष     लवलेष।


         मैंने प्रणाम नहीं किया, तो गुरु जी ने कुछ नहीं कहा और ऐसा नहीं कि ऊपर से गुरु जी ने कुछ न कहा हो, भीतर आग लगी हो। ना, ना-- गुरु कृपालु नहिं कहेउ कछु , न वाणी में और, उर न रोष  लवलेष, हृदय में कोई क्रोध नहीं । चलो! रोज करता है,  नहीं किया कोई बात नहीं ।पर--


अति अघ गुरु अवमानना

         सहि   नहिं  सके   महेस।


         यह केवल अघ नहीं है, केवल पाप नहीं है गुरुदेव का अपमान करना। अति अघ,  अत्यन्त अघ है--- सबसे बड़ा पाप। और इतना पाप कि शंकर जी से सहन नहीं हुआ।


मंदिर   मांझ   भई नभ  वानी।

रे  हतभाग्य अग्य अभिमानी।।

यद्यपि तव गुरु के नहिं क्रोधा ।अति कृपालु चित सम्यक वोधा।।


            तुम्हारे गुरु को क्रोध नहीं है, बड़े कृपालु हैं। उनके चित्त में सम्यक प्रकार से वोध है,  पर तू--


बैठ रहसि अजगर इव पापी।

जौं नहिं दंड करउँ खल तोरा।

भ्रष्ट   होइ  श्रुति मारग मोरा।।


         अगर दंड नहीं दूँगा,  तो परम्परा नष्ट हो जायगी।शाप देता हूँ,  तू साँप बन और हजार जन्म तुझे साँप के मिलें। कागभुसुण्डि जी कहते है-- मैं क्या करता? मैं सोच रहा था, भगवान से हमारी डायरेक्ट एप्रोच है,  गुरु जी की जरूरत क्या है?  पर भगवान भी नाराज हो गए । शंकर भगवान जगत गुरु हैं-- तुम त्रिभुवन गुरु वेद वखाना। गुरु का अपमान हुआ तो जगत गुरु नाराज हो गये,  शंकर भगवान नाराज हो गए । होगा ही ऐसा।

          इसीलिए,  क्यों नहीं प्रणाम किया था? गुरु आयउ अभिमान ते--- अभिमान वश  प्रणाम नहीं किया और भगवान कहते हैं- -


गुरु पद पंकज सेवा

          तीसरि भगति अमान ।।

गुरुदेव की सेवा अभिमान छोड़कर करें। शंकर जी ने शाप दे दिया। अब मैं क्या करता, जिनके भरोसे था उन्होंने ही श्राप दे दिया, जिनका नाम ले रहा था, उन्होंने ही श्राप दे दिया; लेकिन आहा हा-- धन्य हैं मेरे गुरुदेव। गुरु का भाव--- हाहाकार कीन्ह गुरु। गुरुदेव हाहाकार करने लगे--- त्राहि माम, त्राहि माम।

Bhakt Dev Sharma Ref Fb: जिन्होंने मेरे से पूछा था वो मुझे उसका स्क्रीन शॉट दिया तो वो डिलीट हो गया मैं उनसे पुनः मांगा हु जब आएगा तब दूंगा उसके बाद इसपे जवाब देने की कृपा करिएगा। 🙏🏻🙏🏻 यह विषय इस लिए आया था कि रामपाल जो जेल में बन्द है उसके चेले वाल्मीकि रामायण का नाम ले के हमारे भगवान श्रीराम के विषय मे विपरीत बात बोलते है तो उनको जवाब देने के लिए इस प्रश्न को किआ हु। 🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी आपसे विनती है कि ऐसी बातें न करें जो उन सद्गुरु के लिए जो त्याग और बलिदान की भावना से प्रेरित होकर अपने पुरे जीवन को लगा दिया

अच्छा बुरा तो संसार का नियम है लेकिन आप इस बात को जानने की कोशिश करें कि जो स्वामी विष्णु तीर्थ महाराज जी की परम्परा से है उनको जानकारी है आप सद्गुरु के लिए जिस प्रकार से बोल रहे हैं वो एक सन्त महात्मा को शोभा नहीं देता है और आप चाहें तो आपसे भेट किया जा सकता है और आपके साथ बैठकर साधना करते हुए इस बात को जाना जा सकता है कि जिस प्रकार से दुध से पानी अलग करते हैं उसि प्रकार से ढोंगी बाबाओं और सदगुरु के बीच के अंतर को समझना आसान है आप स्वामी जी हैं  आपका सम्मान करते हैं और विनती है कि पहले पुरी तरह से लोगों को जानकर टिप्पणी करना चाहिए बाकी ईषवर की इच्छा जय हो महाराज जी🙏👏💐😊🌹

Bhakt Anil Vibhute Thane Dir: हमारी परंपरा में ये दुकानदारी नही चलती है


ये वक्तव्य किसी साधक का हो ही नही सकता है

Swami Triambak giri Fb: सांच को आंच नहीं,

 पर हमने कोई गलत बात तो की ही नहीं है,

Swami Triambak giri Fb: जहां दुकानदारी नहीं चलती है उन्होंने तो दुकानदारी के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए

Bhakt Shyam Sunder Mishra: There was a famous ashram near a hillside. The guru in the ashram was very famous for his wisdom and knowledge. He loved to inspire and empower others to awaken their true nature in a unique way. A group of tourists who visited the town, heard about this ashram and were very excited to visit the ashram and get the darshan from the guru. They went to the ashram and they were welcomed in a lovely manner by the ashram volunteers and  then a volunteer came to take them to the guru's room to get the darshan from the guru. They were  so delighted to see the guru. They came to the room and at the top of the entrance on the door, they was a notice written as Guru's meeting room. Before they  entered the room, they were briefed about the rules everyone should follow and only one person is allowed to enter the room. The rules are: drop your mind, go inside and surrender. Then the door was opened and only one person was allowed to enter to meet the guru. When the person went inside, he saw nothing there, there was nobody in the room, no prayer alter or anything. It was totally empty. The person who went inside got puzzled. He didnt understand what is going on. With a confused  mind he came out of the room and ask the volunteer who took them to see the guru. He asked, where is the guru sir ? I don't see anyone there ......The room is totally empty. After sometime the volunteer  answered,  drop your mind, go inside and surrender. The guru is there. All of them get so confused, after sometime, the volunteer explained to them that the real guru is within you. Drop your mind, drop your ego, go inside and totally surrender. Your guru has been waiting for you for very very long time. The guru has no name, no form, he is beyond time and space. He is your Awareness. Go and meet him and surrender to him, he will take charge of your life and guide you on the right path. He will answer all of your questions. Stop looking for a guru outside. Everyone got so amazed in his words and with great joy in their heart, they left the ashram and before leaving the gate, one of them asked the volunteer who came to send themoff , who is the person who took us to the room just now. Whats his name? The volunteer answered, he is the founder and guru of the ashram. Everyone got amazed. The volunteer told them that the guru here only shows you the way, everyone has to walk and create their own path themselves.


*A true guru, takes you within you to meet your inner guru, then leaves you. They create gurus not followers. They are not interested in the crowd.*


When do you want to meet your inner guru, your Awareness?

If not NOW, when?

Jay Gurudev 🌹🙏🌹🚩🚩

Hb 96 A A Dwivedi: गुरु महाराज के लिए हम कुछ नहीं कर सकते हैं और जो उन्होंने किया है उसके लिए एक जीवन तो क्या होगा सारे जन्म उनके पैरों में गिर सकता है और इससे अधिक क्या बोले

Swami Triambak giri Fb: बोलने की जरूरत ही नहीं है जब आपको इस जन्म में मोक्ष का भरोसा ही नहीं है

Hb 96 A A Dwivedi: आप ने कहा कि सब गुरु ढोंगी है और दुकान चलाते हैं भगवान आपको माफ़ करे

Swami Triambak giri Fb: यह समझो यह परमात्मा ने ही कहा है

Hb 96 A A Dwivedi: यह भी परमात्मा की आवाज भोलेनाथ की आवाज

Swami Triambak giri Fb: गुरु करो 10 पांचा जब तक मिले ना सांचा, सांचा एक रामजी दूसरों ना कोई |

" यत्र तत्र सर्वत्र रमेति तया राम: "

Bhakt Brijesh Singer: *"गुरु बिन भवनिधि तरही न कोई जो बिरंचि संकर सम होई"* श्री रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने गुरु की महिमा का बखान करते हुए कहा है कि गुरु के बगैर भवसागर से कोई नहीं तरता चाहे वह ब्रह्मा, विष्णु, महेश के ही समान क्यों न हो।

Bhakt Brijesh Singer: गुरु की अवमानना तो भगवान भी नही सह सकते

Swami Triambak giri Fb: कभी कविता करता है तो कुछ व्यंग भी करता है यह एक व्यंग है क्योंकि शंकर जी का गुरु कोई नहीं है

Bhakt Brijesh Singer: और यह भी कोई न समझे कि चुप चाप गुरु की निंदा सुन लो, या तो वहां से चले जाओ या उसका जवाब दो  वीरभद्र जी ने यज्ञ विध्वंस के समय उनको भी नही छोडा जो चुपचाप तमासा देख रहे थे l बोले पाप देखने वाला भी बराबर का भागीदार है l

Hb 96 A A Dwivedi: जैसे जिसके चित्त की दशा होती है उसे सनसार वैसा ही दिखाई देता है इसमें महाराज जी का कोई दोष नहीं है चित्त की शुद्धि बाकी है👏💐😊🌹

Bhakt Brijesh Singer: राम ईश्वरो यस्य स: रामेश्वर:

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की कुछ बातें अनुकरणीय है जैसे अन्तरमुखी सदा सुखी नमन है महाराज जी😊🌹💐👏🙏

Hb 96 A A Dwivedi: मां काली के दर्शन वाले लोग मौजूद हैं और वो जानते हैं कि साकार रूप में मौजूद हैं लेकिन आर्य समाज वाले इस बात को नहीं मानते हैं

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की सहनशीलता अनुकरणीय है नमन है महाराज इतना धैर्य और संयम साधना के कारण ही सम्भव है💐👏🌹😊

Swami Pranav Anshuman Jee: 👌🏻👌🏻👌🏻

Bhakt Shyam Sunder Mishra: रामस्य ईश्वरं सःरामेश्वरः

🌹🙏🌹😄😄🚩🚩

Bhakt Shyam Sunder Mishra: यह मात्र हास्य विनोद है। 😄🌹🙏🌹

Bhakt Brijesh Singer: *गुर निंदक दादुर होई। जन्म सहस्र पाव तन सोई॥*


भावार्थ

शंकर जी और गुरु की निंदा करने वाला मनुष्य (अगले जन्म में) मेंढक होता है और वह हजार जन्म तक वही मेंढक का शरीर पाता है।

मैंने सोंचा याद दिला दू कोई ये न कहे मैंने बताया नही 🙂

Bhakt Shyam Sunder Mishra: तर्क वितर्क के उद्देश्य से नही

Bhakt Shyam Sunder Mishra: बिल्कुल सही बात कही आपने। 🌹🌹👍

Bhakt Brijesh Singer: हर गुरु निंदक

प्रभु जी आपके द्वारा भी कुछ ज्ञान का वितरण हो।

🙇🏼♀️🙇♂️

आप हैं स्वामी प्रणव अंशुमन जी, जूना अखाड़ा से,  जिनको की रामचरितमानस पूरी कंठस्थ है और प्रवचन देते समय घंटों खड़े रहकर बिना रामचरितमानस खोले प्रवचन देते हैं।

आप से मेरी मुलाकात कुंभ में हुई थी।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻😀😀😀

Bhakt Shyam Sunder Mishra: कोटि कोटि प्रणाम पूज्यपाद संत श्री अंशुमान बाबा जी। अभिनंदन। 🌹🙏🌹🚩🚩

Bhakt Brijesh Singer: नमन है 🙏🌹

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Namaste Vipul jee 🙏

Kaise hain ap,

Mera naam Anjana Mishra hai,

Main apke grp aatm avlokan me added hu

Main sir ganga ram hospital administration me working hu, aur ajkal Corona ki wajah se bzy bhi bahut jada chal raha hai,

Isliye grp ke msgs nahi padh payi thi

Aj maine 2 hours baith kar sare msgs read kiye, to meri antaraatma ne kaha ki mujhe apko naman karna chahiye 🙏

Ap jaise logo ki samaj me bahut jarurat hai Vipul jee

May lord Krishna n babaji always bless you 🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Sath hi lokeshanad jee ki stories

Bahut hi सराहनीय hain

Thanks lokeshananad ji 🙏

बहन जी सबसे पहले आपको नमन यह आपको कोरोना से एक योद्धा की भांति मरीजों को बचा रही है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻💐💐💐🙏🏻🙏🏻

दूसरी बात यह है कि मेरा प्रयास रहता है कि यदि कोई ग्रुप में आया है तो हम उसको विभिन्न साधु संतों के मुख से कुछ ज्ञान की बातें या चर्चा करवा सकें।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Is grp ke sabhi sadhu jano ko mera pranam

Bhakt Anjana Dixit Mishra: 🙏🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: इसी बहाने ईश्वर ने मुझे एक अवसर दिया है

सेवा का,,🙏

लोकेशानंद जी तो जब से ग्रुप बना है तब से राम नाम की चर्चा कर रहे हैं उनको कोटिश: नमन।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Really

I must say

U all are awesome

N

This s d right plateform to all

इसके अतिरिक्त गगनगिरी महाराज जी भी काफी दिनों तक ग्रुप में लिखते रहे लेकिन अभी व्यस्तता के कारण शायद छोड़ गए।

Bhakt Anjana Dixit Mishra: Thanks to all 🙏🙏🙏

हमारे इंजीनियर मित्र लोकेश कुमार जो ग्रुप में प्रतिदिन एक अच्छी बात डाला करते थे।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

इसके अतिरिक्त और भी मित्र है जो प्रतिदिन गुरु कृपा के ऊपर अच्छी बातें पोस्ट करते हैं।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Bhakt Anjana Dixit Mishra: आज सारा पढ़ने के बाद मैंने ये decide kiya hai ki chahe jitna bhi bzy rahe, pr yaha ke msgs to jaroor padhungi

Swami Pranav Anshuman Jee: विपुल जी सहित सभी आदरणीय , ज्ञानी जनो को मेरा प्रणाम है ।आप लोगो की इस उच्च स्तरीय चर्चा को पढ़ता हूँ एवं बहुत कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ।

समय सभय पर अपनी जथा मति अनुसार   कुछ श्रीराम चर्चा भेजने का प्रयास करता रहूंगा । सभी को पुनः प्रणाम है 💐💐💐🙏🙏🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: कृपया मार्ग दर्शन करते rahiyega 🙏

Bhakt Anjana Dixit Mishra: सभी को नमन,

Swami Pranav Anshuman Jee: यह एक 🙏🙏🙏🙏

Swami Pranav Anshuman Jee: यह दूसरा अभी तक भेजा है ।आशा है समयानुसार आप लोग आनंद लेंगे ।जय श्रीराम 💐💐🙏🙏🙏

Bhakt Brijesh Singer: श्रीरामचरितमानस अनुसार कलियुग में ऐसे साधु भी है!!!

*मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा। पंडित सोइ जो गाल बजावा॥*

*मिथ्यारंभ दंभ रत जोई। ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥*

*निराचार जो श्रुति पथ त्यागी। कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी॥*

*जाकें नख अरु जटा बिसाला। सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥*

+91 79066 10157: सत्य वचन | सभी गुरुजनों को धन्यवाद एवं सादर प्रणाम

🙇♂️🙇🏼♀️🙇♂️🙇🏼♀️

बहुत सुंदर बाली वध का प्रसंग है प्रभु जी। सुनकर रोंगटे खड़े हो गए।

🙏🏻🙏🏻

Swami Pranav Anshuman Jee: 💐💐💐👍👍🙏🙏💐💐💐

Bhakt Shyam Sunder Mishra: 🌹🙏🌹🚩🚩

Bhakt Brijesh Singer: बहुत सुंदर प्रभु 👌

मोरें मन प्रभु अस बिस्वासा। राम ते अधिक राम कर दासा।।

जय हो 🙏🙏

Bhakt Parv Mittal Hariyana: प्रभु जी, परिचर्चा से स्पस्ट होता है कि मानव अपने आचरण के और दृश्यता के अनुसार ही प्रस्तुति करता है, निश्चित ही है आपकी दशा और हम सबकी दशा में एक कदम का अंतर है। माने आप एक कदम ऊंचे चढ़े हो जहाँ आपको सब नजर आता है और हम अभी ओट में है। आप सब देख पा रहे है लेकिन नीचे देखिये हमें दृषभान नही है।

तो हे प्रभु हमें वो विधि बताये जोकि आपको प्राप्त है, जिससे ईश्वर का साक्षात्कार हो, हमें वो साधन बताओ जो आपको उपलब्ध है और उस दयानिधि की कृपा से हम वंचित है। वो पुरषार्थ आप अवश्य बतायेंगे ऐसा हमें यकीन है, क्योंकि साधु अपने पास कुछ शेष नही रखता। यदि आप वो दुर्लभ विधि बताने में संकोच करते है तो प्रभु जी सन्यासी और सामान्य संसारी में कोई अंतर नही।🙏🙏🙏🙇‍♂️🙇‍♂️

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: जब से रामायण सीरियल खत्म हुआ तब से मन राम को ढूंढ रहा है

Bhakt Parv Mittal Hariyana: अब कृष्ण में राम को पा लीजिये प्रभु

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: गुरुवर बस अब सब पूजा पाठ छोड़ कर राम राम जपता राहु आगे जो होगा देखा जाएगा

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: यही मन करता है

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: बहुत दिन बाद सीरियल देखा शायद इसी लिए मन बेचैन है

Swami Pranav Anshuman Jee: साधुवाद बृजेश जी ,आपने सुनकर आनंद लिया ,आगे भी भेजता रहूंगा ।💐💐💐💐

बहुत ही सुंदर मानव प्रबंधन पर आपका यह व्याख्यान है। मुझे इस समय लगा तो मैं भी प्रबंधन पर इस तरीके का व्याख्यान आयोजित कराना चाहूंगा।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Swami Pranav Anshuman Jee: धन्यवाद विपुल भय्या । क्यो नही अवश्य ही ।💐💐💐💐

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: Pranav puri guruji kase hai ap

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: Mera pranam swekar kare maharaj

अपने ग्रुप में पाकर रोमांचित हो ना।

Swami Pranav Anshuman Jee: मै अच्छा हूँ । ॠषि जी ।

Bhakt Rishi Srivastva Fb 1: Ha vipul guruji apke madhyam se kitne ache logo se milne ka muka mila

यह स्वामी जी 2007 में कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया फिर एमबीए किया और पुणे में नौकरी भी की।

फिर 2012 में सन्यास लिया।

Bhakt Anjana Dixit Mishra: बहुत सुंदर 🙏

Swami Pranav Anshuman Jee: 💐💐💐

इस ग्रुप के कई सदस्यों की शक्तिपात गुरु गुरु माता वह भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर में बी टेक की है। मध्यप्रदेश शासन की नौकरी को छोड़कर ब्रह्मचारी की दीक्षा ली और फिर संन्यास की दीक्षा ली।

😃😃😃



"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 
 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली


No comments:

Post a Comment