Thursday, September 10, 2020

चर्चा, कुण्डलनी जागरण, योग और ब्राह्मण

चर्चा, कुण्डलनी जागरण, योग और ब्राह्मण 

 सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”


वाह स्वामी जी। स्वामी जी आप तो शत प्रतिशत अंक लेकर पास हो गए। लेकिन आप पहले वालों की नकल भी मार सकते हैं।

मित्र आप सन्यासी है इसीलिए स्वामी है हम सबके आदरणीय हैं इसलिए कोई भी शब्द निरर्थक प्रयोग नहीं होना चाहिए।

यह मेरी सभी सदस्यों से विनती है इस ग्रुप में कई सन्यासी है इसलिए टिप्पणी करने के पूर्व पता कर ले कि सामने वाला सन्यासी तो नहीं है।

हंसी मजाक टाइमपास ठीक है लेकिन कोई भी शब्द जिसमें गरिमा भंग होती है कृपया ना पोस्ट करें।

मुझे आप गालियां भी दे सकते हो और ग्रुप में भी पोस्ट कर सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता।

 
Swami Triambak giri Fb: हमारी तो कोई बात नहीं हमारी तो कोई बात नहीं

 
प्रभु जी आपको नहीं बोल रहा हूं एक अन्य सदस्य ने कुछ लिखा था वह डिलीट हो गया।
सन्यासियों के लिए कोई नियम कानून नहीं है वह ग्रुप में आदरणीय हैं और सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त है।

 

कुंडलनी जागरण कैसे करें।

 
किसी भी शक्तिशाली बीज मंत्र का निरंतर जाप कुछ वर्षों के पश्चात कुंडली जागरण का अनुभव दे देता है। लेकिन इसमें इतनी ऊर्जा निकलती है जो अधिकतर मनुष्य संभाल नहीं पाते हैं और उनको मानसिक आघात के साथ कभी-कभी मृत्यु के दर्शन भी करने पड़ सकते हैं।
इसलिए इन सब का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि कोई समर्थ शक्तिशाली गुरु ना मिले तो अपने इष्ट का सतत निरंतर जाप करना चाहिए क्योंकि साकार मंत्र के जाप से किसी भी संकट की घड़ी में इष्ट देव अपने मंत्र के कारण आपकी सहायता करने हेतु एक प्रकार से बाध्य हो जाता है।
लेकिन मात्र ओम का जाप या किसी भी निराकार का ध्यान जाप शक्ति जागरण की दशा में आपकी सहायता नहीं कर पाता है क्योंकि यदि आप किसी साकार को मानते ही नहीं है तो वह में आपकी सहायता किस रूप में करेगा।
इसीलिए अपनी यात्रा किसी साकार मंत्र से भक्ति योग हेतु आरंभ करो।

 
एक बार में पूरा तो नही पढ़ पाएंगे कुछ ऐसा नियम है जो इसे प्रतिदिन या सुबह शाम के हिसाब से पढ़ सके
जो कथा का एक से 13 तक है उसमें 1,5 और तेरह तीन खंडों में इसको पढ़ना पड़ता है।
इसके अलावा कवच अर्गला कीलक यह तीनों एक साथ पढ़ने पड़ते हैं।
बाकी 1,1 अध्याय करके भी पढ़ सकते हो।

 
आज रामायण में भगवान वाल्मीकि ने लवकुश की कुण्डलिनी शक्ति, शक्तिपात विधि से जाग्रत की। अभी देखिये या सुबह के एपिसोड में भी देख सकते है
Amit Singh Parmar: देख रहा....हू
Bhakt Hb13 Plas. Anik Sahu: प्रणाम गुरुओं 🙏
मुझे हर रात में स्वप्न आते हैं।
कभी भी कुछ भी लेकिन हमेशा ।
ऐसा होने के क्या कारण हैं ।
ये अच्छा है या खराब मुझे पता नहीं ।
क्या इस वजय से नींद मे कमी आती है या ज्यादा सोने की आवश्यकता होती है ।
कृपया उचितमार्गदर्शन करें!

 
यक्ष ज्ञान वाक्य
सनातन पुत्र देवीदास विपुल
द्वैत से अद्वैत का ज्ञान अनुभूति के द्वारा ही योग है।
अद्वैत यानी ज्ञान योग अहंकार को जन्म दे सकता है।
द्वैत यानि भक्तियोग दासत्व और समर्पण देता है।
अद्वैत यानी ज्ञान योग पकाऊ और नीरस है।
द्वैत यानि भक्तियोग रसयुक्त आनंददायक है।
अद्वैत यानी ज्ञान योग मोक्ष हेतु आवश्यक है।
द्वैत यानि भक्ति योगी को अपने इष्ट के अतिरिक्त कोई मतलब नहीं। सब तेरी इच्छा।
जब किसी को मोक्ष भी जहर लगने लगे तब वह समझे उसे भक्ति प्राप्त हो गई।
वेद महावाक्य की अनुभूतियां मात्र एक उच्च कोटि की क्रिया ही है।
मनुष्य चाहे कितने भी अनुभव कर ले अहम् ब्रह्मास्मि एको अहम् द्वितीयो नास्ति सोहम अयम आत्मा ब्रह्म वह अन्य महावाक्य। किंतु वह ब्रह्म नहीं हो सकता।
हां जो ब्रह्म स्वरूप हो जाते वे कहे जा सकते हैं।
कारण हम कुछ भी अनुभूती अनुभव कर ले हम सदैव माया के अधीन रहते हैं। अतः मानव हैं। ब्रह्म वह होता है जिसके अधीन माया होती है।
वेद महावाक्य की अनुभूति कुछ समय से लेकर लंबे समय तक रह सकती है जो चौबीसों घंटे ब्रह्म में लीन रहता है वह ब्रह्म स्वरूप बन जाता है।
सिद्धियां सत्यगुणी रुकावट है। बोझ चाहे कचरे का हो या सोने का। मार्ग में बोझ बोझ ही होता है।
महामाया को कोई नहीं जीत सकता।
सत्व गुणी विभिन्न लोकों में विभिन्न शरीरों में भटकता रहता है वही पापी सुख और दुख में।
सतगुण में यह क्षमता है कि वह तमोगुण और रजोगुण को नष्ट कर देता है अपने में समाहित कर देता है लेकिन सद्गुण का अहंकार सबसे बड़ा बाधक होता है।
लेकिन सतगुण में यह अच्छाई है कि वह समय आने पर अपने को अपने में ही विलीन कर लेता है।
महामाया से पार जाने का एक ही रास्ता है कि हम उसे समर्पित हो जाएं विरोध न करें।
जो मनुष्य ऊंच-नीच के चक्कर में फंसा रहता है अपने को श्रेष्ठ मानता है वह कभी भी योगी नहीं हो सकता।
जब तक हमारे अंदर मानव मानव के प्रति समत्व की भावना नहीं आएगी हम अध्यात्म में आगे नहीं बढ़ सकते।
ब्राह्मण वही होता है जो ब्रह्म ज्ञानी होता है जो द्वैत से अद्वैत का अनुभव कर चुका होता है जो वेद महा वाक्यों का अनुभव कर योगी हो चुका होता है।
ब्राह्मण की कोई जाति नहीं होती हां उसकी पहचान होती है कि वह ब्रह्म को जानता है और योगी है।
महर्षि विश्वामित्र के 100 पुत्र थे उनमें से कुछ ब्राह्मण बने क्षत्रिय बने कुछ वैश्य बने और कुछ शूद्र।
भगवान परशुराम की माता स्वयं कौन थी यह हम सभी जानते हैं।
क्या हमारा काम कट पेस्ट के बिना नहीं चल सकता।
क्या हम स्वयं अपनी ओर से विचारों का कोई योगदान नहीं दे सकते।
क्या हमारे लिए आवश्यक है कि हम पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाते रहें।

इसके कई प्रमाण वेदों और ग्रंथो में मिलते हे जेसे…..
(1) ऐतरेय ऋषि दास अथवा अपराधी के पुत्र थे। परन्तु उच्च कोटि के ब्राह्मण बने और उन्होंने ऐतरेय ब्राह्मण और ऐतरेय उपनिषद की रचना की| ऋग्वेद को समझने के लिए ऐतरेय ब्राह्मण अतिशय आवश्यक माना जाता है।

(2) ऐलूष ऋषि दासी पुत्र थे। जुआरी और हीन चरित्र भी थे। परन्तु बाद में उन्होंने अध्ययन किया और ऋग्वेद पर अनुसन्धान करके अनेक अविष्कार किये। ऋषियों ने उन्हें आमंत्रित कर के आचार्य पद पर आसीन किया। (ऐतरेय ब्राह्मण २.१९)
(3)  सत्यकाम जाबाल गणिका (वेश्या) के पुत्र थे परन्तु वे ब्राह्मणत्व को प्राप्त हुए।
(4) राजा दक्ष के पुत्र पृषध शूद्र होगए थे, प्रायश्चित स्वरुप तपस्या करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। (विष्णु पुराण ४.१.१४)
(5) राजा नेदिष्ट के पुत्र नाभाग वैश्य हुए। पुनः इनके कई पुत्रों ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया। (विष्णु पुराण ४.१.१३)
(6) धृष्ट नाभाग के पुत्र थे परन्तु ब्राह्मण हुए और उनके पुत्र ने क्षत्रिय वर्ण अपनाया | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(6) आगे उन्हींके वंश में पुनः कुछ ब्राह्मण हुए | (विष्णु पुराण ४.२.२)
(7) भागवत के अनुसार राजपुत्र अग्निवेश्य ब्राह्मण हुए |
(8)  विष्णुपुराण और भागवत के अनुसार रथोतर क्षत्रिय से ब्राह्मण बने |
(9) हारित क्षत्रियपुत्र से ब्राह्मणहुए | (विष्णु पुराण ४.३.५)
(10) क्षत्रियकुल में जन्में शौनक ने ब्राह्मणत्व प्राप्त किया | (विष्णु पुराण ४.८.१) वायु, विष्णु और हरिवंश पुराण कहते हैं कि शौनक ऋषि के पुत्र कर्म भेद से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण के हुए| इसी प्रकार गृत्समद, गृत्समति और वीतहव्यके उदाहरण हैं |
(11) मातंग चांडालपुत्र से ब्राह्मण बने |
(12) ऋषि पुलस्त्य का पौत्र रावण अपनेकर्मों से राक्षस बना |
(13) राजा रघु का पुत्र प्रवृद्ध राक्षस हुआ |
(14) त्रिशंकु राजा होते हुए भी कर्मों से चांडाल बन गए थे |
(15) विश्वामित्र के पुत्रों ने शूद्रवर्ण अपनाया |
विश्वामित्र स्वयं क्षत्रिय थे परन्तु बाद उन्होंने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया |
(16) विदुर दासी पुत्र थे | तथापि वे ब्राह्मण हुए
और उन्होंने हस्तिनापुर साम्राज्य का मंत्री पद सुशोभित किया |


मित्रों, ब्राह्मण की यह कल्पना व्यावहारिक है कि नहीं यह अलग विषय हे किन्तु भारतीय सनातन संस्कृति के हमारे पूर्वजो व ऋषियो ने ब्राह्मण की जो व्याख्या दी है उसमे काल के अनुसार परिवर्तन करना हमारी मूर्खता मात्र होगी. वेदों-उपनिषदों से दूर रहने वाला और ऊपर दर्शाये गुणों से अलिप्त व्यक्ति चाहे जन्म से ब्राह्मण हों या ना हों लेकिन ऋषियों को व्याख्या में वह ब्राह्मण नहीं है।  अतः आओ हम हमारे कर्म और संस्कार तरफ वापस बढे.

वे ब्राह्मण नहीं पुरोहित है पुरोहित में ब्राह्मण में ज्ञानी में अंतर होता है।
एक ब्राह्मण पुरोहित हो सकता है लेकिन आवश्यक नहीं कि पुरोहित ब्राह्मण हो उसी भांति एक ज्ञानी ब्राह्मण हो सकता है लेकिन आवश्यकता नहीं की जाती का ब्राह्मण ज्ञानी हो या पुरोहित ज्ञानी ब्राह्मण हो।
एक कार्य होता है जो किसी भी शुद्ध कार्य को कराने के बदले में जीव का चलाने हेतु कुछ धन प्राप्त करते हैं।
क्योंकि उनका कार्य सत्यगुणी और आध्यात्मिक होता है इसीलिए वह सम्माननीय है।
किसी भांति ऋषि मुनि और तपस्वी में भी अंतर होता है।

 
Bhakt Brijesh Singer: जी प्रभु जी सही कहा
जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात्‌ भवेत द्विजः।
वेद पाठात्‌ भवेत्‌ विप्रःब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः।।

व्यक्ति जन्मतः शूद्र है। संस्कार से वह द्विज बन सकता है। वेदों के पठन-पाठन से विप्र हो सकता है। किंतु जो ब्रह्म को जान ले, वही ब्राह्मण कहलाने का सच्चा अधिकारी है।
आदि गुरु शंकराचार्य का और चांडाल का विवरण तो सर्व विदित है

 
Bhakt Lokeshanand Swami: रामजी विनय करते हैं, केवट आप चाहते क्या हैं? केवट चरण धूलि धोना चाहता है, कहता है, यह वही चरणामृत है, जिसे ब्रहमाजी ने कमण्डल में रखा, शिवजी ने जटाओं में रख लिया, बलि ने घर में छिड़का, जनकजी ने भी रखा तो पर पीया नहीं, परन्तु मैं पीऊँगा। क्यों?
आप ही बताएँ, अमृत रखने की वस्तु है, या पीने की? मैं तो चखकर देखूँगा, कि जिसकी इतनी महिमा है, उसका स्वाद कैसा है?
रामजी ने कहा, अच्छा वही करो जो आप चाहो। पर केवट कहता है, प्रभु! गरज मेरी है या आपकी? मुझमें चाह है ही नहीं। यहाँ आवश्यकता आपको है, चाह आपकी है। आप साफ साफ कहें, आप क्या चाहते हैं?
भगवान को कहना पड़ा-
"बेगि आँय जल पाँय पखारू"
देखें, सीताजी ने इन चरणों के लिए जनकपुर और अयोध्या दोनों का त्याग किया, लक्षमणजी ने सुमित्राजी और उर्मिलाजी का त्याग किया, और केवट बिना त्याग के ही इन चरणों की सेवा चाहता है। कैसे?
स्वामी राजेश्वरानंद जी कहते हैं कि सीताजी का त्याग बहुत बड़ा है, लक्षमणजी का त्याग बहुत बहुत बड़ा है, पर केवट का अनुराग तो बड़े से भी बड़ा है।
केवट अपने घर को दौड़ा, लगा कठोता उठाने, पत्नी चिल्लाई इसे कहाँ ले जा रहे हो?
-इसमें भगवान के चरण धोऊँगा।
-चरण धोने को कठौती है ना, वो ले जाओ, इसमें तो मैं आटा गूँधती हूँ।
केवट की आँखें भर आईं, बोला, हाँ! आज इसमें पदपदम पराग लगेगी, तूं इसे अब कभी न धोना, इसी में बार बार आटा गूँथना, अब से हम हमेशा चरण रज मिली रोटी ही खाएँगे।
पत्नी कहती है, अच्छा, आज की रोटी तो खाते जाओ। केवट ने रोटियाँ गमछे में बाँध लीं।
-और सब्जी?
केवट कहता है, आज सब्जी नहीं चाहिए, चरणामृत में भिगो भिगो के खाऊँगा।
लोकेशानन्द कहता है- धन्य धन्य!!


Hb 87 lokesh k verma bel banglore: 🕉30.04.2020 गुरुवार🌹
*गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत् ।*
*वर्तमानेन कालेन वर्तयन्ति विचक्षणाः॥*
बीते हुए समय का शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य के लिए परेशान नहीं होना चाहिए, बुद्धिमान तो वर्तमान में ही कार्य करते हैं |
One should not mourn over the past and should not remain worried about the future. The wise operate in present.
गुरु की शुभकामनाएं।🌹🙏🕉

 
Bhakt Sundram Shukla: *30 अप्रैल 2020*
*श्री "गुरुचरित्र" अध्याय : 1 (श्लोक 27-34)*
अब त्रिमूर्ती को वंदन करता हूँ । ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी से मैं विद्या रूपी वरदान मांगता हूँ ।। २७ ।।
सृष्टिकर्ता और वेदों के जनक चतुर्मुखी ब्रह्मदेव जी के चरणों मे सादर प्रणाम करता हूँ ।। २८ ।।
अखिल विश्व के नायक और श्री लक्ष्मी देवी जी के साथ जो निशीदिन क्षीरसागर में निवास करते है उन हृषिकेश जी को मैं अब प्रणाम करता हूँ ।। २९ ।।
अब देखु पद्मनाभ, श्री विष्णु जी, चतुर्भुजा नरहरी जी, जिन्होंने हाथ मे शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए है ।। ३० ।।
पीताम्बर धारण किये हुए, वैजयंती माला पहने हुए श्री विष्णु जी की जब कृपा दृष्टि किसी शरणागत पे पड़ती है तो उसके सभी अभीष्ट पूर्ण हो जाते है ।। ३१ ।।
जिन्होंने गंगा जी को अपने मस्तक पे धारण किया है, जो पञ्चमुख और दस भुजाधारी है, साक्षात जगन्माता जिनकी अर्धांगिनी है उन शिव जी को मैं अब प्रणाम करता हूँ ।।३२।।
सृष्टि के संहार कर्ता, शमशान वासी, पंचवदन शिव जी के चरणों मे नमन करता हूँ ।। ३३ ।।
व्याघ्रांबरधारी, सर्वांग पे सर्प वेष्ठित, उमारमण जी के चरणों मे वंदन करता हूँ ।। ३४ ।।
क्रमशः ...
मित्रों लाक डाउन के समय का सदुपयोग कीजिए। आप लोगों को नेट पर सर्च करने की आदत होनी चाहिए। यह बहुत ही फायदेमंद रहती है आप नेट पर कुरान बाइबल वेद समीक्षा गीता सभी प्रकार की पुस्तकों का लेखों का अवलोकन कर सकते हैं। यह सही है कुछ इसमें गलत भी होंगे कुछ सही भी होते हैं लेकिन आप नेट के अस्तित्व को नकार नहीं सकते।

 
Bhakt Lokeshanand Swami: एक गरीब विधवा के पुत्र ने एक बार अपने राजा को देखा। राजा को देख कर उसने अपनी माँ से पूछा- माँ! क्या कभी मैं राजा साहब से बात कर पाऊँगा?
माँ हंसी और चुप रह गई।
पर वह लड़का तो निश्चय कर चुका था। उन्हीं दिनों गाँव में एक संत आए हुए थे। तो युवक ने उनके चरणों में अपनी इच्छा रखी।
संत ने कहा- अमुक स्थान पर राजा का महल बन रहा है, तुम वहाँ चले जाओ, और मजदूरी करो। पर ध्यान रखना, वेतन न लेना। अर्थात् बदले में कुछ मांगना मत। निष्काम रहना।
वह लड़का गया। वह दोगुनी मेहनत करता पर वेतन न लेता।
एक दिन राजा निरीक्षण करने आया। उसने लड़के की लगन देखी। प्रबंधक से पूछा- यह लड़का कौन है, जो इतनी तन्मयता से काम में लगा है? इसे आज अधिक मजदूरी देना।
प्रबंधक ने विनय की- महराज! इसका अजीब हाल है, दो महीने से इसी उत्साह से काम कर रहा है। पर हैरानी यह है कि यह मजदूरी नहीं लेता। कहता है मेरे घर का काम है। घर के काम की क्या मजदूरी लेनी?
राजा ने उसे बुला कर कहा- बेटा! तूं मजदूरी क्यों नहीं लेता? बता तूं क्या चाहता है?
लड़का राजा के पैरों में गिर पड़ा और बोला- महाराज! आपके दर्शन हो गए, आपकी कृपा दृष्टि मिल गई, मुझे मेरी मजदूरी मिल गई। अब मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
राजा उसे मंत्री बना कर अपने साथ ले गया। और कुछ समय बाद अपनी इकलौती पुत्री का विवाह भी उसके साथ कर दिया। राजा का कोई पुत्र था नहीं, तो कालांतर में उसे ही राज्य भी सौंप दिया।
लोकेशानन्द कहता है कि भगवान ही राजा हैं। हम सभी भगवान के मजदूर हैं। भगवान का भजन करना ही मजदूरी करना है। संत ही मंत्री है। भक्ति ही राजपुत्री है। मोक्ष ही वह राज्य है।
हम भगवान के भजन के बदले में कुछ भी न माँगें तो वे भगवान स्वयं दर्शन देकर, पहले संत बना देते हैं और अपनी भक्ति प्रदान कर, कालांतर में मोक्ष ही दे देते हैं।
वह लड़का सकाम कर्म करता, तो मजदूरी ही पाता, निष्काम कर्म किया तो राजा बन बैठा। यही सकाम और निष्काम कर्म के फल में भेद है।
"तुलसी विलम्ब न कीजिए, निश्चित भजिए राम।
जगत मजूरी देत है, क्यों राखे भगवान॥"

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: अथ श्रीगुरुगीता...
ज्ञान शक्ति समारूढस्तत्त्वमाला विभूषितः।
भुक्तिमुक्तिप्रदाता यस्तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७२॥
अनेकजन्मसंप्राप्त सर्वकर्मविदाहिने।
स्वात्मज्ञानप्रभावेण तस्मै श्रीगुरवे नमः॥७३॥

अर्थ: जो ज्ञान शक्ति रूप, वाहन पर आरूढ़ है, जो छत्तीश तत्व माला से विभूषित है, जो भुक्ति, मुक्ति के दाता है,  उन गुरुदेव को प्रणाम है।
अपने अंतर्ज्ञान के प्रभाव से जो अनेक जन्मों के कारण, प्राप्त संपूर्ण कर्म राशि को दग्ध करने वाले हैं, उन गुरुदेव को प्रणाम हैं।
व्याख्या: किसी ना किसी के पास कोई ना कोई वाहन अवश्य होता है। देवताओं के अपने वाहन होते हैं, विभिन्न आकार के पशु, पक्षी जीव, को इनमें स्थान मिला है। उन वाहनों के अपने-अपने महत्व को विषयांतर होने कारण, यहां उनका वर्णन नहीं करेंगे,
हमारा विषय गुरुदेव के वाहन से है, यहां गुरुदेव जिस वाहन पर आरूढ़ हैं, वह चिन्मय वाहन है "ज्ञान शक्ति"। जब कोई वाहन पर आरूढ़ होता है, सुसज्जित होकर बैठता है। यहां गुरुदेव के गले में जो माला है वह 36 तत्वों की चिन्मई माला है और उससे वे विभूषित बताए गए हैं। अब सुसज्जित वाहन पर बैठकर कोई कुछ ना दे, तो उसकी श्रेष्ठता समाप्त हो जाती है। अतः यहां गुरुदेव को भुक्ति मुक्ति के दाता कह कर प्रणाम किया है।
आत्म ज्ञान बहुत ही बड़ी शक्ति है, जो गुरुदेव में, गुरु तत्व के माध्यम से भरपूर होती है। ज्ञान शक्ति में इतना बल होता है कि अनेक जन्मों की अशुभ कर्म राशि को दग्ध करने का सामर्थ्य, उसमें लिखा है।।
प्रभु इसके अतिरिक्त और कुछ उपाय नहीं है और यही पहला और अंतिम सत्य है बाकी माया है🌹🙏😊💐

 
Bhakt Parv Mittal Hariyana: उचित है एक झण्डा ब्राह्मण का उठाइये, एक जाटों का, एक यादवों का, एक मराठो का, एक अग्रवालों का बहुत सारे झंडे उठा लो, लेकिन हिंदुत्व का कोई मत उठाना। फिर एक शत्रु आयेगा कहेगा, जाट ब्राह्मणों का अनादर करते है हम तुम्हारे साथ है काटो जाटों को, जाट को कहेगा कि काटो बनिये को, बनिये को कहेगा कि काटो वाल्मीकियों को।
क्या मानसिकता बना ली हम सबने। सहमत होना है तो अपनी जाति में सात्विकता के लिये सहमत होइये। क्योंकि ब्राह्मण समुदाय स्वयं को और अधिक सात्विक करने की चेस्टा करता क्यों विकारों को जगत के सम्मुख प्रस्तुत करने में नही सकुचाता, ब्राह्मण उदहारण है जगत के लिये जो सर्वदा रहेंगे फिर ब्राह्मण क्यों स्वयं को निकृष्ट मान आचरण करता है, क्यों व्यापारी जगत अपने कारोबार को लूट का तंत्र बनाता है और कृषक वर्ग अपने प्रयासों से शुद्ध अनाज उत्पन्न नही करता। सुद्धता कि कीमत यदि ज्यादा भी हो तो चुकाई जानी चाहिये।
वास्तविकता यह नही की जाती का विरोध है, वास्तविकता है हिंदुत्व में धन का लोभ है, सांसारिक तृष्णा ने आंखों पर पट्टी बांध रखी है और उदारहण देंगे भगवान परशुराम के, भगवान वाल्मीकि, महाराज अग्रसेन, कृष्ण, राम, बुद्ध और दशों गुरु महाराज जी के। क्या केवल उन्हीं में वही सामर्थ्य था।
क्या कृष्ण के कुल यादवों का जेनिटिक सरंचना बिगड़ गई जिनसे भगवान कृष्ण के गुण लुप्त हो गए, क्या भगवान राम के वंशज जाट, राजपूत, वैश्य समुदाय, कायस्थ आदि अपनी पैतृक गुण को विस्मृत कर बैठे है। क्या महृषि वसिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, भारद्वाज, अगस्त्य आदि ऋषियों का तपोबल क्षीण हो गया है जो उनके वंशज उसको जाग्रत नही कर पा रहे। पूर्वजो का उदारहण देने से काम नही चलेगा, अपने वंशजो हेतु पुरषार्थ करना पड़ेगा, उदारहण बनना पड़ेगा। जाति में मत बटो। सबसे छोटी इकाई से परिवर्तन शुरू करो। सरकार सास्त्र ज्ञान नही देगी, स्वयं दो। किस किस को रोकेगी।
शास्त्र स्वयम शस्त्र प्रकट कर देंगे।
प्रभु जी मेरी यह इच्छा है की सनातन की रक्षा हेतु सभी हिंदुओं को दलितों को साथ लेकर पिछड़ों को साथ लेकर आगे आना चाहिए। इसलिए यह जो व्यर्थ का जाति भाग और ऊंच-नीच लगा रखी है इसको दूर करना होगा बिना इस को दूर किए हुए हम अपने को बचा नहीं सकते।
हिंदू का अर्थ है भारतीय भूभाग में पैदा हुए सभी संप्रदाय या धर्म जैसे बौद्ध जैन सिख इत्यादि।

 
Bhakt Dr Arun Gupta Rohtak Fb: (20 मार्च, सन्‌ 1900 ई० को सैन फ्रान्सिस्को में दिया गया व्याख्यान)
ईश्वर, जीव, प्रकृति तीनों एक है | वह एक है, मैंने कहा - मेरा मतलब- देह, देही, बुद्धि से है। किन्तु हम जानते हैं कि कार्य-कारण सम्बन्ध प्रकृति के कण-कण में फैला हुआ है । एक बार तुम उसमें फंसे तो फिर कभी उससे बच निकल सकना असम्भव-सा हो जाता है। कभी इसके चक्कर में आ गये तो बचाव का उपाय न हो पाएगा। तुम समस्त जीवधारियों के लिए अस्पताल बनवाओ.इतने पर भी मोक्ष-सिद्धि नहीं होने की। (अस्पताल) बनते-बिगडते हैं ।(मोक्ष-सिद्धि) सम्भव होगी, जब कि प्रकृति के बंधन से परे किसी ऐसे तत्त्व की सत्ता रहे, जो प्रकृति का नियंता हो। वही नियमों का मूल आधार है। नियम उसे बांध नहीं सकते . उसकी स्थिति है और वह परम दयालु है। तुम उसे ढूंढो तो सही - वह उसीपल (तुम्हारी रक्षा के लिए तैयार मिलेगा) ।उस सर्वशक्तिमान ने हमें उबारा क्यों नहीं ? तुमको उसकी जरूरत नहीं ।उसको छोड़ तुमको बाकी सब कुछ चाहिए। तुम जब उसकी याद करोगे, उसी दम तुमको वह मिल जाएगा। हमें उसकी चाह नहीं । हम कहते हैं, प्रभु | एक आलीशान बंगला दो |” हम बंगला चाहते हैं, उसे नहीं -मेरी तन्दुरुस्ती बनाये रखो, मुसीबत से बचाओ |” जब व्यक्ति सारे सुख-उपभोग की मूल केवल उसकी प्राप्ति की लगन रखता है तब उसे (वह मिल जाता है); है भगवान्‌ धनी मानव को जो प्यार उसके सोने,चांदी एवं सम्पत्ति पर है, वही प्यार मैं तेरे लिए रखूं। मुझे न तो पृथिवी की कामना है, न स्वर्ग की, न सौन्दर्य की और न तो विद्या की ही। मैं मोक्षाभिलाषी भी नहीं हूं ।मैं नरक में बार-बार जाऊं; परन्तु मुझे एक वस्तु की कामना है : तुझसे प्रेम करूं - केवल प्रेम के निमित्त, स्वर्ग के निमित्त भी नहीं ।मानव जो चाहता है वह पाता है। तुम हमेशा शरीर की लालसा करो तो(तुमको दूसरा शरीर मिलेगा)। यह शरीर सड़ जाए तो दूसरे की चाह होती है और एक के बाद एक शरीर मिलता जाता हैं। जड़ से अनुराग रहे तो जड़ ही तुम्हारे पल्ले  पड़ता हैं। तुम पहले जानवर होगे | अगर हड्डी चाटता हुआ कुत्ता दिखायी पड़े, तो मैं बोल उठूँगा, ईश्वर ! रक्षा करो ।” शरीर से चिपके रहे तो कुत्ते-बिल्ली की योनि में पड़ोगे। क्रम से पतन होगा और हम खनिज पदार्थ रह जाएंगे - केवल शरीर और कुछ नहीं...🌷स्वामी विवेकानन्द🌷.



"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

 

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