Monday, September 14, 2020

विपुल लखनवी के यक्ष दोहे।

 

विपुल लखनवी के यक्ष दोहे।

 

बूझो तो जानी। मानू तब ज्ञानी।


भाव भाव को देखता, न है भाव आ भाव।

भाव नहीं तो भाव क्यों, क्यों है भाव अभाव।।

तू देखे तुझको न मैं, तुझको तुझ में देख।

बूझ गया जो तुझको मैं, पड़ी समय इक रेख।।

समय चला गतिमान बन, गति गति है शून्य।

दूर गति करे चले तू, दाल धान ले चून।।

बरस बरस के बरस गए, असुअन  नयनन धार।

दिन बारिस सब सून है, कैसे बेड़ा पार।।

मांग मांग कर भर लिया, अपने घर को आज।

बने भिखारी आज सब, कौन बने सरताज।।

मद माया ममता यहां, करै न बेड़ा पार।

इनका यहां न मोल है, कैसे बेड़ा पार।।

मांग मांगे बुझे नहीं, क्षुधा अलग है राज।

दिशा क्षुधा की मोड़ कर, बन जा तू सरताज।।

यम का पासा दिख रहा, गोटी कौन पिटाय।

जो गोटी निज घर रहे, वोही तो बच पाय।।

चौसर खेले रोग यह, यम की चलती चाल।

बैठे रहो क्रास पर, यह जीवन की ढाल।।




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