Monday, September 14, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 21 (नर और नारायण व भक्ति बनाम ज्ञान योग)

 आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 21  

 (नर और नारायण व भक्ति बनाम ज्ञान योग)


+91 90683 62440: Maf krna sir is video me jaisa aapne btaya tha us trh ki hi jankari h isliye post kr diya tha sir 🙏

ठीक है लेकिन यदि संभव हो तो शब्दों का प्रयोग करो।

जगत में पाप क्यों उपजा?


ये सब उपजा है मनुष्य के अहंकार के कारण।

कुछ यूं समझो जैसा कि हम सभी ने पढ़ा है सृष्टि की उत्पत्ति पर नर और नारायण की उत्पत्ति हुई।

ब्रह्म ने दो साकार रूप नर और नारायण के धारण किए।

आरंभ में नर और नारायण बराबर के थे और बराबर की शक्तिशाली थे।

नारायण का काम था जगत का पालन करना।

नर का काम था सृष्टि का आरंभ करना।

सृष्टि के आरंभ करने हेतु नारायण ने नर की हड्डी से स्त्री का निर्माण किया।

आप देखें तो पुरुष में एक्स और वाई क्रोमोसोम होते हैं जबकि स्त्री में मात्र एक्स एक्स होते हैं।

यानी हर पुरुष के अंदर आधी स्त्री होती है आधा अंग स्त्री का ही होता है जो अर्धनारीश्वर का रूप है।

यह यू पहले स्त्री का आधा अंग पुरुष का होता है।

अब स्त्री और पुरुष को सहयोग से जनसंख्या बढ़ानी थी संतानोत्पत्ति करनी थी।

नारायण ने नर से कहा कि तुम संतान की उत्पत्ति हेतु स्त्री के पास जाओगे और वापस अपने ब्रह्म स्वरूप में लौट के आओगे।

किंतु जब नर स्त्री के साथ गया तो उसको संतान उत्पत्ति की प्रक्रिया में अधिक आनंद आने लगा।

वह उस आनंद को प्राप्त करने के लिए लिप्त हो गया।

इस भांति वह अपने नारायण रूप से दूर हो गया।

क्योंकि यदि आप दक्षिण ध्रुव की ओर जाते हैं तो उत्तरी ध्रुव से दूर होते हैं और उत्तरी ध्रुव की ओर जाते हैं तो दक्षिण ध्रुव की ओर से दूर हो जाते हैं।

यदि आप जगत की ओर बढ़ते हैं तो प्रभु से दूर हो जाते हैं अपने नारायण स्वरूप से दूर हो जाते हैं

अब नर का चित् तो मलिन हो गया वह शुद्ध ब्रह्म तो नहीं रह गया।

तब नारायण ने कहा भाई एक जन्म मानव का और ले लो ताकि तुम अपने अशुद्ध रूप को शुद्ध कर सको यानी अपने संस्कारों को और कर्म फल को भोग कर पुनः ब्रह्म स्वरूप हो जाओ।

किंतु मानव जन्म दिन जन्म दर अपने नारायण स्वरूप से दूर होता चला गया। आनंद की प्राप्ति हेतु जगत में तरह-तरह के बहाने बनाने लगा और पाप करते लगा।

आपने देखा होगा धरती के सारे युद्ध अधिकतर स्त्री के लिए होते हैं।

धीरे-धीरे नर नीचे गिरता चला गया तो उसने  अपने बचाव हेतु विभिन्न प्रकार के बहाने बना ने आरंभ कर दिए।

अपने अहंकार को पोषित करने हेतु विभिन्न प्रकार की षड्यंत्र रचता गया जो भौतिक रूप से तो दिखते ही थे बल्कि आंतरिक रूप से भी औरों को प्रदूषित करते थे।

इसीलिए वेदों का अवतरण हुआ।

वेदों का जो सार है वह है वेद महावाक्य।

मनुष्य अपने को जान सके कि ब्रह्म क्या है और वही ब्रह्म का एक रूप है इसीलिए मानव का शरीर प्राप्त होता है।

जब वेद में कुछ कठिन हुई तो लोगों ने उन पर शोध आरंभ किया वेदों की बातों को मानकर जो थीसिस लिखी वे उपनिषद बन गए।

 जिन लोगों ने वेदों की बातों को सीधा ना मानकर प्रयोग कर तर्क के साथ प्रस्तुत किया वह षट् दर्शन बन गए

उपनिषद को समझाने के लिए गीता का अवतरण हुआ।

गीता को सरल सहज भाषा में समझाने के लिए तुलसीदास से रामचरितमानस लिखवाई गई।

मेरे अनुसार यदि हम वेदों को एक गौशाला माने तो उपनिषद उसमें चरने वाली गाय है और भगवत गीता उन से निकला हुआ दूध और रामचरितमानस दूध से निकला हुआ मक्खन है। और गायों के बछड़े षट् दर्शन और धीरे-धीरे वे शास्त्र और पुराण बन गए।

मानव की दो ही प्रजातियां होती है एक ब्राह्मण और दूसरी शूद्र।

यो ब्रह्म वरण: सा ब्राह्मण।

जन्म जायते शूद्र:।

जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ब्राह्मण बनते हैं।

वेद उपनिषद और षट् दर्शन कभी भी जन्म से ब्राह्मण की बात नहीं करते हैं समाज को चलाने के लिए मनु ने चार प्रकार के प्रवृत्ति वाले लोग बताए थे।


एक चर्चा।

मित्रों एक बात आत्म अवलोकन हेतु है। यदि हिंदू समाज बचेगा तभी हम अपने को ब्राह्मण कह सकेंगे और दूसरे को कुछ अन्य बोल सकेंगे।

आपसी लड़ाई के कारण हमारा पतन हुआ है और हो रहा है।

आज दलित वर्ग पिछड़ा वर्ग हिंदुओं से अलग क्यों नारे लगा रहा है।

हमें आपसी भेदभाव भूलकर सभी हिंदुओं को एक झंडे के तले एकत्र करना होगा।

इसके लिए हमें जाति का झूठा अभिमान त्यागना होगा हमको व्यक्तिगत सम्मान की भावना से ऊपर उठना होगा।

इसके लिए दक्षिण भारत में बहुत सुंदर पहल की है बहुत से मंदिरों के पुजारी दलित वर्ग से नियुक्त किए गए हैं और उनका बराबर सम्मान किया जा रहा है।

जब हम इस तरीके से कार्य करेंगे तभी हम वापिस सनातन की ओर अग्रसर होकर देश की उन्नति कर हिंदुत्व का परचम पूरे विश्व में फैला सकेंगे।

मेरी पोस्ट से यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो मैं उसके लिए खेद व्यक्त करता हूं और क्षमा चाहता हूं लेकिन मैं बिना सत्यता के बिना प्रमाणिकता के कोई बात नहीं कहता हूं।

अधिकतर आध्यात्मिक बातें मैं अनुभव से बताता हूं और उपनिषद या वेदो या भगवत गीता के ज्ञान और अध्ययन के कारण बता पाता हूं।

इस कारण मैंने कुरान का बाइबल के दोनों टेस्ट मैन्ट का बौद्ध और जैन विचारधारा का अध्ययन किया उसको समझने का प्रयास किया है आज यदि कोई चाहे तो मुझसे किसी भी संबंधित विषय पर चर्चा कर सकता है।

Bhakt Varun: *पति एक दरगाह पर माथा टेककर घर लौटा,*

*तो पत्नी ने.. बगैर नहाए घर में घुसने नहीं दिया।

* बोली : जब अपने खुद के बाप को शमशान में जलाकर आये थे, तब तो खूब रगड़ रगड़ के नहाये थे।

 *अब किसी की लाश पर मत्था टेककर आ रहे हो, अब नहीं नहाओगे?*

*पति:   अरी बावरी, वो तो समाधी है।

*पत्नी:  समाधि ! 🤔 उसको जलाया कब ? जलावेगा तभी तो समाधी बनेगी। उसमें तो अभी लाश ही पड़ी है।*

*पति:    अरे, वो तो देवता है।*

*पत्नी:  तो तुम्हारे पिता क्या राक्षस थे ?*

*पति:   अरी मुझे तो.. दोस्त अब्दुल ले गया था। अगर नहीं जाऊँगा तो उसे बुरा नहीं लगेगा?

*पत्नी:   तो उस अब्दुल को.. सामने वाले हनुमान जी के मन्दिर में मत्था टेकवाने ले आना। कल मंगलवार भी है।*पति:   वो तो कभी नहीं आवेगा मत्था टेकने।*🤔🥳

*ला तू पानी की बाल्टी दे।*

*पत्नी: तो कान पकड़ के* *10 दंड बैठक और लगाओ, और सौगंध लो कि.. आगे से किसी  की मजार पर नहीं जाओगे !*

*हमारा घर.. एक मंदिर है यहाँ  "बांके बिहारी जी , श्री राधा रानी , महादेव जी और.. मां आदिशक्ति की मर्जी चलती है।*🌹🙏🌹

*सुख आवै तब भी, दुख आवै तब


  *जय सनातन धर्म की !*

  *जय राम जी की🙏🚩*

Swami Veetragi R Sadhna Mishra: <Media omitted>

Hb 96 A A Dwivedi: बहुत सुंदर🙏🙏

इसे पकाने की विधि भी बता दे और नमक कितना रखना है यह भी।।

कुकर में पकाना चाहिए कि भगौने में

विपुल सर जी बहुत ही बढ़िया 🌹🙏😊💐

Hb 81 Promod Mishra Lko: राम कथा के दो प्रमुख पात्र है दशरथ एवं दशानन , दशरथ दसो  इन्द्रियो को बस में रखने बाले जिनका अवध में शासन था। आत्मा अवध है यानी आत्मा पर शासन था। इसीलिए उनके यहां सत्य का जन्म हुआ यानी सत्य स्वरूप राम का जन्म हुआ। और इधर दशानन दसो इन्द्रियो का भोग करने बाला जिसका लंका में शासन था। असत्य का साम्राज्य था। बस यही से असत्य पर सत्य की विजय को पाने के लिए श्री रामचरित मानस का अवतरण हुआ। इस कि विस्तार से ब्याख्या मिश्रा जी करेंगे।

इसका  उत्तर  क्या  हे

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_76.html?m=0

http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_9.html?m=0

19/05/2020, 05:17 - Swami Veetragi R Sadhna Mishra: उच्चैःश्रवसमश्वानां विद्धि माममृतोद्भवम्।

*ऐरावतं* गजेन्द्राणां नराणां च *नराधिपम्*।।

घोड़ों में अमृत के साथ उत्पन्न होनेवाला *उच्चैःश्रवा* नामक घोड़ा, श्रेष्ठ हाथियों में *ऐरावत* नामक हाथी और मनुष्यों में *राजा* मुझ को जान ।।१०/२७।।

• Among horses, know me to be the celestial horse *Uccaihsrava*, begotten of the churning of the ocean along with nectar;

• among mighty elephants, *Airavata (Indra's elephant)*; and among men, the *king*.

(10/27)

Bhakt Lokeshanand Swami: गुरुजी ने पूछा, भरत! तुम पद त्याग रहे हो, क्या तुम त्यागी बनना चाहते हो?

-नहीं गुरुजी! मैं त्यागी नहीं हूँ, मैं तो पद का लोभी हूँ।

-भरत, लोभी भी कभी अपने से मिलता हुआ पद छोड़ता है?

-हाँ गुरु जी, मैं तो बड़े के लोभ में छोटा छोड़ रहा हूँ, रामजी का पद, एक नहीं, करोड़ों अयोध्या के पदों से भी बड़ा है। और अयोध्या का पद तो एक है, रामजी के चरण दो हैं। मैं लोभी हूँ गुरुजी, जब मुझे दो मिल सकते हैं, तो मैं एक क्यों लूं गुरुजी?

भरतजी खड़े हो गए, हाथ जुड़ गए, बोले, मेरा एक ही निवेदन है कि जब तक मैं रामजी के चरण कमलों का दर्शन न कर लूंगा, मेरे हृदय की जलन जाएगी नहीं।

"देखे बिनु रघुनाथ पद जिय के जलन ना जाई"

और मैं तो वही कह रहा हूँ जो आपने भगवान के जन्म के समय पिताजी से कहा था कि आपके घर में उनका जन्म हुआ है जिनके भजन के बिना जलन नहीं जाती।

"जासु भजन बिनु जलनि ना जाई"

आपने तब कहा था, मैं आज कह रहा हूँ। मुख ही मेरा है, शब्द तो आपके ही हैं गुरुजी।

देखें, सत्य भी यही है, कि अंत:करण की जलन, अन्य किसी साधन से मिट सकती भी नहीं।

मैं आप सबसे भीख माँगता हूँ, मुझे आशीर्वाद दें कि मुझे रामजी के दर्शन हो जाएँ। अभी माँ ने कहा है कि मुझमें और रामजी में कुछ भी अंतर नहीं है, तो रामजी राजा बनेंगे, मैं चौदह वर्ष वन में रहूँगा। यह राज्य राम जी का है, मैं तो उनका सेवक हूँ।

उनके सिवा मेरा इस जगत में कौन है? मैं उनकी शरण में जाकर, श्रीसीतारामजी को मनाऊँगा। कैकेयी मेरी माँ नहीं है, श्रीसीताजी मेरी माँ हैं। मेरे कारण वे कंदमूल खाती हैं, भूमि पर बैठती, सोती हैं, धूप सर्दी वर्षा सहती हैं, मुझसे बड़ा अपराधी कौन है? ऐसा जीवन मुझे बोझ है। मैं माँ के पास जाऊँगा "माँ! माँ!"

ऐसा कहकर भरतजी जोर जोर से रोने लगे, आँसू धरती पर गिरने लगे। कदाचित् भरतजी गिर न जाएँ, गुरुजी ने भरतजी के दोनों हाथ पकड़कर, अपने पास बैठा लिया।

लोकेशानन्द ने देखा कि भरतजी ने राजसी वस्त्राभूषण उतार दिए और कहा कि मैं कल सुबह ही चलूँगा॥

http://shashwatatripti.wordpress.com

Bhakt Lokeshanand Swami: एक राजा की चिंता का कोई ठिकाना न था। जिस परिस्थिति से वह गुजर रहा था, जिसे ऐसी परिस्थिति से गुजरना न पड़ा हो, वह उस राजा की चिंता क्या समझेगा?

हुआ यह था कि राजा से ब्रह्महत्या हो गई थी। जानबूझ कर नहीं हुई थी, भूलवश हुई थी, पर हुई तो थी। और जिन्हें मार डाला गया था, वे आत्मज्ञानी महात्मा थे। पर यह तो राजा को बाद में पता लगा, जब मारा था तब तो मालूम न था।

राजा ब्रह्महत्या के दोष से बचने के लिए बहुत भाग दौड़ कर रहा था। करोड़ों उपाय करवाए जा रहे थे। फिर भी राजा की चिंता मिट नहीं रही थी। "मैं पापी हूँ! मैंने पाप किया है!" राजा अपनी आँसू भरी आँखों को बंद कर ऐसा ही विचार किए जा रहा था।

अचानक राजा के कान में किसी की आवाज पड़ी। ऐसी आवाज जिसके सुनने मात्र से राजा की सारी चिंता नष्ट हो गई। उसकी करोड़ों उपायों की थकान भी जाती रही। पसीने में सिर से पैर तक भीगे उस राजा को इतना आराम मिला, जैसे किसी के सभी पाप क्षमा कर, उसे फांसी के तख्ते से उतार लिया गया हो।

वह आवाज गुरूजी की थी। गुरूजी बोल रहे थे- "महाराज! महाराज!! आपको क्या हो गया है? आप आँखें क्यों नहीं खोलते?" राजा ने आँखें खोली और गुरूजी, अपनी पटरानी और मंत्रियों को अपने पास खड़ा पाया।

राजा ने चौंक कर अपने चारों ओर देखा। वह तो अपने शयनकक्ष में था। न वहाँ कोई यज्ञ मंडप था, न कुछ और।

"ओह! तो यह सब स्वप्न में हो रहा था?" ऐसा विचार करते हुए, राजा ने चैन की लम्बी साँस ली।

लोकेशानन्द भी आपको आवाज लगा रहा है, "जाग जाओ! जाग जाओ!"

जैसे स्वप्न भोग काल में सत्य मालूम पड़ता है, पर जाग जाने पर असत्य हो जाता है। नींद खुलने पर दोनों मिथ्या हैं, ब्रह्महत्या भी, करोड़ों उपाय भी। जागने पर न ब्रह्महत्या का पाप है, न करोड़ों उपायों का पुण्य।

वैसे ही यह जो जाग्रत का संसार इस समय हमें सत्य मालूम पड़ रहा है, यह भी यहाँ जाग जाने पर, साक्षी हो जाने पर, द्रष्टा हो जाने पर, चिंतन में स्थित हो जाने पर, असत्य ही हो जाता है।

हमें स्वप्न सुधारने का नहीं, स्वप्न से जागने का प्रयास करना चाहिए।

तुलसीदास जी "विनय पत्रिका" में लिखते हैं- सपने में किसी को मारने के पाप से बचने के लिए, चाहे कोई कितना भी भागे, करोड़ों उपाय करने के बाद भी, वह जागे बिना शुद्ध नहीं हो सकता।

"सपनें नृप कह घटए विप्र वध,

विकल फिरै अघ लागे।

बाज कोटि सत यज्ञ करई,

नहीं शुद्ध होई बिनु जागे॥"

Hb 87 lokesh k verma bel banglore:

*दिवसेनैव तत् कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत् ।*

*यावज्जीवं च तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत् ।।*

*रात्रि में निश्चिन्तता एवम् सुख की नींद सोने के लिये दिन भर अच्छे कर्म करना आवश्यक होता है उसी प्रकार जीवन के अन्त में निश्चिन्तता एवम् परम् शान्ति की प्राप्ति के लिये जीवन पर्यन्त सत्कर्म करना आवश्यक है।*

*It is necessary to do good deeds throughout the day to sleep for sleeping with no worry and happiness. so in the end of life it is necessary to do good deeds till end of life in order to achieve peace and happiness.*

शुभोदयम *लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

Hb 96 A A Dwivedi: महाराज जी की जय हो🙏🙏

महाराज आपसे विनती है की आप अपने लेखों में उस महान गुरु का भी वर्णन करें जिससे भगवान राम जी ने धनुर्विद्या अभ्यास सीखा था और रावत तथा अनेक असुरों का सनगहार किया।।

उस गुरु का भी महिमा मंडन करें जिसने दशरथ जी को योद्धा बनाया और वो राजा दशरथ कहलाये।।

स्वामी जी आपको कहने का कारण है लोग आपकि सुनते हैं हमारी कोई नहीं सुनता है पापी जन है हम।।

कौशल्या मां कैकेई भरत यह बहुत रुलाते हैं और ठिक भी है रोना चाहिए लेकिन सिर्फ प्रेम अश्रु बहाने से काम नहीं चलेगा समाज में बहुत ही आसुरी शक्तियां फैल गई है और उन्हें नियंत्रित करने के लिए युद्ध कला और विज्ञान कि आवश्यकता है।।

साधु संतों का कर्तव्य है समाज की रक्षा करना और भगवती दुर्गा मां के हाथों में इतने सारे शस्त्रों का कोई तो कारण होगा।।

भगवती दुर्गा ने कितने राक्षसों का वध किया है और वो शक्ति लोगों के भीतर पैदा करने की जरूरत है नहीं तो धर्म की रक्षा कैसे होगी।।

वेदों में स्पष्ट रूप से समाज साधु और ग्रहस्थ जीवन में किया जाने वाला कार्य सम्पादित है।।

भगवान राम श्री कृष्ण ने भी वेदों का अध्ययन किया है और इसलिए वैदिक रीति रिवाजों के अनुसार धर्म तथा समाज की सुरक्षा आपका भी दायित्व है।।

क्षमा हमें न करें बल्कि इस बात पर इतना क्रोध आपके भीतर पैदा हो कि दस बारह अर्जुन,दस पन्द्रह महाराणा प्रताप जगाने का काम शुरू हो।।

हमारी कोई नहीं सुनता है आप महाराज हमारी सुनो आपकी शरण में शरणागत है

पूजा के समय या अपने इष्ट के विषय में सोचते समय यदि आंखों से आंसू गिरते हैं तो यह भक्ति की परिपक्वता को इंगित करता है।

इन आंसुओं को प्रेमाश्रु कहते हैं। इन आंसुओं में बेहद आनंद होता है और सुख का सागर होता है। जगत के आंसुओं में दुख होता है पीड़ा होती है लेकिन प्रेमाश्रु गिरने से मनुष्य की भक्ति में और अधिक प्रगाढ़ता आती है।

मेरा तो यह मानना है जिस मनुष्य ने प्रेमाश्रु का रस नहीं पिया वह प्रेम नहीं समझ सकता और न ही विरह की अनुभूति कर सकता है।

यह केवल भक्ति मार्ग में ही होता है ज्ञान मार्ग एकदम शुष्क और नीरस होता है।

जाकि फटी न पैर बिबाई। बा का जाने पीर पराई।

घायल की गति घायल जाने और न जाने कोय।

ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दरद न जाने कोय।।

वह मनुष्य इस विषय पर सब गलत ही टिप्पणी करेगा जिसको प्रेमाश्रु का सुख प्राप्त नहीं हुआ है।

कुंती ने इनके लिए श्री कृष्ण से सदैव दुखी होने का वरदान मांगा था ताकि दुख के कारण वह प्रभु को याद कर सकें।

उद्धव अपनी ज्ञान की गठरी छोड़कर भाग गए थे जब उनके सामने गोपियों ने प्रेमाश्रु की वर्षा की।

क्योंकि जब विरह का और प्रेम का समागम प्राप्त होता है तब प्रेमाश्रुओं में आनंद का रस निकलता है।

मूढ़ जगत इसको समझ नहीं पाता है। वह कुछ भी कयास लगाता रहता है।


इसी ग्रुप में चर्चा।

आपकी कौन सी इंद्री मजबूत है यह आप जानते होंगे में क्या बताऊं।

जैसे यदि आपने कोई चित्र देखा कोई दृश्य देखा और काफी समय के पश्चात भी जब अपनी आंखें बंद करें तो वह दृश्य चित्र आंखों के सामने आ गया तो इसका मतलब यह होगा कि आपके नेत्र मजबूत है।

यदि आपने कोई वस्तु सूघीं और लंबे समय के पश्चात भी उसकी सुगंध सोचने पर आपको महसूस होने लगी तो मतलब यह है कि आप का नासिका मजबूत है तो आप सुगंध सिद्धि या विपस्सना कर सकते हैं।

यदि कोई संगीत आपने सुना और लंबे समय के पश्चात सोचने पर आपके कानों में वह संगीत बजने लगा तो इसका मतलब यह है कि आप अक्षर ब्रह्म नाद ब्रह्म ध्वनि ब्रह्म शब्द योग के माध्यम से अंदर जा सकते हैं।

लेकिन सबसे सरल होता है मंत्र जप।

एक बात याद रखिए सिद्ध पुरुष संत महापुरुष और समर्थ शक्तिशाली गुरु यह भारत में सदैव विद्यमान रहते हैं इसीलिए भारत भूमि को पवित्र भूमि कहा जाता है।

आप खुद देखें महावतार बाबा तैलंग स्वामी अमर महर्षि ऐसे लोग सदैव धरती पर मार्गदर्शन करते रहते हैं गुरु गोरखनाथ बजरंग बजरंग बली बाबा मां काली दर्शन देकर लोगों को ज्ञान देती रहती है।

Bhakt Pallavi: यदि नेत्र मजबूत है तब क्या करना चाहिए🙏🏻

मित्रों ये बड़े हर्ष का विषय है की लाक डाउन के कारण लगभग हर हिंदू जो कभी ईश्वर को नहीं मानता था वह भी ईश्वर को मानने लगा है।

आत्म अवलोकन और योग जो इस समय पांच भागों में कार्य कर रहा है वह इसी कारण निर्मित हुआ है की सनातन की प्रचार हो सके और लोगों को हिंदुत्व की सही व्याख्या मालूम पड़ सके।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

मित्रों एक निवेदन करना चाहता हूं कि यदि आप चाहते हैं आपकी आने वाली पीढ़ियां शांतिपूर्ण जीवन बिता सकें तो आपको सनातन की सत्यता का प्रचार करना ही होगा क्योंकि अन्य कोई रास्ता नहीं है।

क्योंकि और कोई जीने की पद्धतियां धर्म संप्रदाय मजहब यह शांति पूर्वक विश्व को जीने का मार्ग नहीं बता सकते हैं।

मुझे सनातन के अतिरिक्त कुरान बाइबल के दोनों टेस्ट मैंट जैन धर्म बौद्ध इन सब को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

बौद्ध जैन सिख यह तो सब सनातन की ही शाखाएं हैं।

लेकिन जो अन्य मान्यता है या धर्म है वे शांति का मार्ग तो बिल्कुल नहीं दिखा सकती।

क्योंकि उसके मानने वालों को एक किताब की सोच के दायरे में ही दुनिया को देखना है।

उस दायरे के बाहर देखने की छूट है ही नहीं।

वही सनातन अपनी खुद की गीता लिखने की छूट देता है और मार्ग बताता है।

सनातन जहां विश्व बंधुत्व की बात करता है वही कुरान अपने दायरे के बाहर किसी को इंसान भी नहीं समझने देता।

बाइबिल भी यही करती है लेकिन ओल्ड टेस्टामेंट की कुछ बातें भगवत गीता से मिलती हैं।

कुरीतियों के मामले में सबसे अधिक जाति भेद मुस्लिम में ही है। लेकिन वह एक पुस्तक के नाम पर एकत्र हो जाते हैं।

सनातन में इतना अधिक पाखंड छुआछूत नहीं है किंतु इतिहास में इसको अधिक प्रचारित किया गया क्योंकि इतिहास लिखने वाले विदेशी थे।

Swami Pranav Anshuman Jee: https://youtu.be/u4IBWIhOXy8

Hb P N Agnihotri: Bhakti se gyan mein jaya ja sakta hai to kya gyan se bhakti mein aaya ja sakta hai

भक्ति मार्ग सबसे सहज और सरल मार्ग है इसमें जब द्वैत का ज्ञान परिपूर्ण हो जाता है तो इष्ट देव स्वयं अद्वैत का अनुभव करा कर ज्ञान योग का अनुभव करा देता है जिसे योग कहते हैं।

जहां एक तरफ भक्ति मार्ग रसीला आनंददायक और प्रेम से भरा होता है वही सीधे-सीधे ज्ञान मार्ग की प्राप्ति पकाऊ नीरस और अहंकार की जननी हो सकती है।

क्योंकि ईश्वर का अंतिम रूप निराकार ही है अंतिम अनुभव अद्वैत ही है जोकि ज्ञान योग है किंतु द्वेत के द्वारा भक्ति योग का अनुभव आनंददायक है और इसमें हमारे अंदर दासत्व की भावना रहती है जिसके कारण अहंकार नहीं आ पाता अतः पतन होने की संभावना नहीं होती है।

यह भी बिल्कुल सत्य है कि यदि आपको निर्वाण चाहिए मोक्ष चाहिए तो वह बिना अद्वैत के अनुभव के बिना ज्ञान योग के नहीं हो सकता।

किंतु भक्ति योग में जो आनंद का सागर है जो प्रेम और विरह की अनुभूति में प्रेमाश्रु का गिरना है। राम रस का जो पान है जो आनंददायक नशा है। वह ज्ञान योग में नहीं है।

यदि आपको पहले ज्ञान योग हो गया तो आपको भक्ति योग हो यह आवश्यक नहीं है।

आप इसके आनंद से भी वंचित रह सकते हैं।

लेकिन यदि भक्ति योग है तो कर्म योग और ज्ञान योग आने की अधिक संभावना रहती है।

 

 

 


No comments:

Post a Comment