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अपराधी गद्दार देश के
अपराधी गद्दार देश के
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
जब तक देश के टुकड़े न हो। इन को चैन नहीं आए।।
जब तक हिंदू मिट न जाए। इनको भोजन न भाए।।
सात दशक में इन ने केवल। देश को लूटा खाया है।।
आपस में सबको ही लड़ा कर। वोट सत्ता का पाया है।।
गद्दारी इन्हे मिली विरासत। जयचंद इनके पूर्वज थे।।
हिंदू इनको दुश्मन दिखते। उनको सदा ही ठगते थे।।
तुष्टिकरण की राजनीति ही। महामंत्र कहलाती है।।
हिंदू अंधा गूंगा बहरा। उसको समझ न आती है।।
ऊंच-नीच का विष इनके। मन में ऐसा डाला है।।
खुद अपने को मार ही देगा। ऐसा तीक्ष्ण यह भाला है।।
गर न जागे विपुल देश ये। मिट्टी में मिल जाएगा।।
खूनी नंगी तलवारों से। गरदन यह कटवाएगा।।
अब कुछ समय बचा जो मिलता। बेहोशी से बाहर आओ।।
देश की संस्कृति नष्ट हुई जो। पुनर्स्थापित कर जाओ।।
वरना तुमको तेरे बालक। माफ नहीं कर पाएंगे।।
तेरी संस्कृति तेरी पूजा। कभी नहीं कर पाएंगे।।
चलो विपुल अब शपथ यह ले लो। देश को अपने बचाएंगे।।
नहीं इराक यह बन पाएगा। बलि वेदी चढ़ जाएंगे।।
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