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कुछ जयचंदी दोहे
कुछ जयचंदी दोहे
विपुल लखनवी नवी मुंबई।
आंधुर बहरे साथ ले, बनती जब सरकार।
सत्ता लाठी लालच में, खुद पर करें प्रहार।।
हिन्द रचा इतिहास है, हिन्दू होता गद्दार।
नहीं सीखते हिन्दू कुछ, कर दुश्मन से प्यार।।
यही देश दुर्भाग्य है, करें जिन पर विश्वास।
सत्ता खातिर वे बिके, विश्वासों पर घात।।
नहीं समझते लालची, सत्ता ऐसे न आय।
मिट जाएंगे वे सदा, दुश्मन के घर जाय।।
मृत समान वे लालची, स्व भूले निज मोह।
रहें कलंकी वे सदा, जो करते निज द्रोह।।
विपुल कभी इतिहास में, पाएं जब स्थान।।
थूकेगा इतिहास ही, इनको जयचंद मान।।
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