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विपुल लखनवी के मूर्ख हिंदुओं को समर्पित दोहे।
विपुल लखनवी के मूर्ख हिंदुओं को समर्पित दोहे।
भारत में बसते सदा, दुष्ट कमीने लोग।
इसीलिए दुश्मन सदा, यहां लगाते भोग।।
नाम भले भूषण हुआ, पर भारत के दाग।
जनम कुलीन पा लिया, विश्वासघाती साथ।।
देश हारता है सदा, पल आस्तीनी सांप।
समय आज अब आ गया, अब इनको तू भांप।।
गर निश्चिंत बैठा रहा, मिटेगा तेरा नाम।
जाग सके तो जाग ले, लेकर हरि का नाम।।
पानी सीने तक हुआ, पर मूरख तो सोय।
एक लहर जो नाक तक, अपना जीवन खोय।।
हिंदू सभी नादान है, पशु समान स्वभाव।
आपस में लड़ कर मरें, दे अपनों को घाव।।
धीरे-धीरे मिट रहे, नहीं समझ कुछ आय।
खुद मिटने की सोचते, कौन इन्हें समझाय।।
समझाने का जो कभी, करता है परयास।
उसको मूरख बोलते, करते हैं उपहास।।
दास विपुल समझे यही, यही नियति का खेल।
अपनी बुद्धि फिर गई, नहीं पाए अब झेल।।
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