Wednesday, September 16, 2020

काहे का रोना (कविता)

काहे का रोना (कविता) 


विपुल लखनवी 


हमको जाना तुमको जाना फिर काहे का रोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

 

कभी-कभी यह बन जाता है कभी-कभी ये टूटे।

सपने नही किसी के पूरे जीवन से ही रुठे।।

जीवन को मथ कर तू जाने दूध से माखन बिलोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

कभी तो रुक कर के यह सोचे धरती पर क्यों आया।

क्यों मन को भटकाया करता तेरे मन जो भाया।

राम नाम को धारण कर ले आत्म रूप का सिलौना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।

दास विपुल ने मरम है समझा राम नाम रस पाया।

गुरु मिले जो शिव स्वरूप है उनके द्वारे जाया।।

अब जीवन उन्मुक्त हुआ है द्वारे प्रभु के सोना है।

यह जीवन मिट्टी का ठेला जैसे एक खिलौना है।।



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