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Tuesday, December 18, 2018

क्या है दस विद्या ? दूसरी विद्या: तारा



क्या है दस विद्या ? 
दूसरी विद्या: तारा 
 

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi


मित्रो मां दुर्गा की आरती में आता है।
दशविद्या नव दुर्गा नाना शस्त्र करा। अष्ट मातृका योगिनी नव नव रूप धरा॥

अब दशविद्या क्या हैं यह जानने के लिये मैंनें गूगल गुरू की शरण ली। पर सब जगह मात्र कहानी और काली के दस रूपों का वर्णन। अत: मैंनें दशविद्या को जानने हेतु स्वयं मां से प्रार्थना की तब मुझे दशविद्या के साथ काली और महाकाली का भेद ज्ञात हुआ जो मैं लिख रहा हूं। शायद आपको यह व्याख्या भेद कहीं और न मिले। किंतु वैज्ञानिक और तर्क रूप में मैं संतुष्ट हूं।

शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत पुराण का मंत्र है।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।

मां तारा ध्यान और सिद्धि विद्या की अधिष्ठात्री हैं। कोई भी मानव यदि इन गुण विद्यायों और विधाओं से युक्त है तो वह ऐश्वर्यशाली बनकर सब सुख भोगकर भी योग मार्ग के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। यह मनुष्य का दूसरा गुण विद्या बता है।

तांत्रिकों की प्रमुख देवी तारा। तारने वाली कहने के कारण माता को तारा भी कहा जाता है। सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष प्रदान करने वाली हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं:- तारा , एकजटा और नील सरस्वती।

तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है। यह पीठ पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित है। इसलिए यह स्थान तारापीठ के नाम से विख्यात है। प्राचीन काल में महर्षि वशिष्ठ ने इस स्थान पर देवी तारा की उपासना करके सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस मंदिर में वामाखेपा नामक एक साधक ने देवी तारा की साधना करके उनसे सिद्धियां हासिल की थी।

तारा माता के बारे में एक दूसरी कथा है कि वे राजा दक्ष की दूसरी पुत्री थीं। तारा देवी का एक दूसरा मंदिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत पर बना हुआ है। तिब्‍बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी 'तारा' का काफी महत्‍व है।
महाविद्या भगवती तारा, ब्रह्मांड में उत्कृष्ट तथा सर्व ज्ञान से समृद्ध हैं, घोर संकट से मुक्त करने वाली महाशक्ति। जन्म तथा मृत्यु रूपी चक्र से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करने वाली महा-शक्ति! तारा।


महाविद्या महा-काली ने हयग्रीव नामक दैत्य के वध हेतु नीला शारीरिक वर्ण धारण किया तथा देवी का वह उग्र स्वरूप उग्र तारा के नाम से विख्यात हुई।
देवी प्रकाश बिंदु रूप में आकाश के तारे के सामान विद्यमान हैं, फलस्वरूप वे तारा नाम से विख्यात हैं। देवी तारा, भगवान राम की वह विध्वंसक शक्ति हैं, जिन्होंने रावण का वध किया था।
महाविद्या तारा मोक्ष प्रदान करने तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाली महाशक्ति हैं।
देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध मुक्ति से हैं, फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र से हो या अन्य किसी प्रकार के संकट मुक्ति हेतु।
भगवान शिव द्वारा, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष पान करने पर, उनके शारीरिक पीड़ा के निवारण हेतु, इन्हीं देवी तारा ने माता की भांति भगवान शिव को शिशु रूप में परिणति कर, अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। फलस्वरूप, भगवान शिव को उनकी शारीरिक पीड़ा 'जलन' से मुक्ति मिली थीं, महा-विद्या तारा जगत जननी माता के रूप में एवं घोर से घोर संकटो की मुक्ति हेतु प्रसिद्ध हुई। देवी के भैरव, हलाहल विष का पान करने वाले अक्षोभ्य शिव हैं।


मुख्यतः देवी की आराधना, साधना मोक्ष प्राप्त करने हेतु, तांत्रिक पद्धति से की जाती हैं। संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जितना भी ज्ञान इधर उधर फैला हुआ हैं, वह सब इन्हीं देवी तारा या नील सरस्वती का स्वरूप ही हैं।
देवी का निवास स्थान घोर महा-श्मशान हैं, देवी ज्वलंत चिता में रखे हुए शव के ऊपर प्रत्यालीढ़ मुद्रा धारण किये नग्न अवस्था में खड़ी हैं, (कहीं-कहीं देवी बाघाम्बर भी धारण करती हैं) नर खप्परों तथा हड्डियों की मालाओं से अलंकृत हैं तथा इनके आभूषण सर्प हैं।
तीन नेत्रों वाली देवी उग्र तारा स्वरूप से अत्यंत भयानक प्रतीत होती हैं।
चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है।
जो भी साधक या भक्त माता की मन से प्रार्धना करता है उसकी कैसी भी मनोकामना हो वह तत्काल ही पूर्ण हो जाती है।

तारा माता का मंत्र : नीले कांच की माला से बारह माला प्रतिदिन 'ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम इत्यादि किसी जानकार से पूछकर ही करें।
दस महाविद्या में तारा के शिव के रूप अवतार हैं अक्षोभ्य।
दस महाविद्या में  तारा का विष्णु रूप अवतार है मत्स्य। 
 
 

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 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      

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 जय मां तारा

 
 
 

Friday, October 16, 2020

दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

 दश विद्या के वैज्ञानिक अर्थ और व्याख्या

व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों  को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।


चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं  करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा।


मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।


प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।

साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।

वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।

 

10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।

 

मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।


यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप।


अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”।


मेरे ब्लाग का पहला लेख जो “वैज्ञानिक” पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। उसको पढें और कुछ समझें कि मां काली क्या है।

 ब्रह्मांड की उत्पत्ति 

 

कुछ यूं समझना चाहिए इस सबसे पहले सिर्फ निराकार ऊर्जा फिर उस निराकार ऊर्जा में ध्वनि से सृष्टि का निर्माण और उस उर्जा में जब हल-चल आरंभ हुई वह बनी काली। E = MC 2 के अनुसार सृष्टि का निर्माण आरम्भ हुआ। 

 

फिर जब और आगे बढ़े तो जैसे धरा और आकाश होता है आकाश नीले रंग का माना जाता है उसने निर्माण किया तारा का वह एक शक्ति बनी फिर वह शक्ति ज्योति उसने पूरे विश्व को व्याप्त किया तो वही त्रिपुर सुंदरी जो महा माया बनी।  फिर यही शक्ति ने फिर पूरे विश्व को व्याप्त कर उसकी मालकिन बन गई और कहलाई भुवनेश्वरी लेकिन भुवनेश्वरी के साथ में कोई नहीं तो क्या करेंगे तो उसके लिए फिर बनी छिन्नमस्ता यानी भुवनेश्वरी ने ही अपने अंगों को काटकर एक तरीके से ऊर्जा को अलग कर विभिन्न सृष्टि के निर्माण की ओर एक कदम बढ़ाया लेकिन पालन पोषण हेतु बनी छिन्नमस्ता मतलब पूरी सृष्टि को इसी के द्वारा संचालित होना है यही पालनकर्ता का काली रू है। इसके पश्चात आई त्रिपुर भैरवी त्रिपुर भैरवी भैरवी यानी वहां पर कुछ नहीं तो एक यह भावना की यहां और कुछ नहीं है यदि कोई अकेला होता है तो उसे भय लगता ही है इसीलिए इसे भैरवी भी कहा गया इसके बाद आई धूमावती क्योंकि अभी भी सृष्टि निर्माण आरंभ हुआ था के प्रलय आ गई क्योकि धूमावती सब नष्ट करती है। अत: विनाश प्रलय की देवी यानि शक्ति कहलाईं। चारों और धुंध ही था फिर आई बगलामुखी।  बगलामुखी ने धूमावती के जो प्रलय के अंदाज़ को रोका और रोक करके वह बनी बगलामुखी और यह कथा में भी उनके हैं कि उन्होंने प्रलय को रोका था क्योंकि धूमावती एक तरह से पहले का प्रतीक अब इसके बाद जब सृष्टि की में विनाश होता है तो चारों और आपको इस तरह से गंदगी ही गंदगी दिखेगी चारों ओर सब चीज व्यस्त दिखेगी तो फिर निर्माण हुआ मातंगी।  मातंगी यानी सफाई हेतु वह शक्ति जो कि मनुष्य को सफाई करती है मनुष्य के ह्रदय से गंदी बातें निकालती है और इसके बाद आई कमला।  कमला यानी वैभव की देवी जो कि मनुष्य को रहने के लिए सारी सुविधाएं देती है इस तरीके से यह 10 विद्या का व्याख्यान हुआ।

 


सही बात तो यह है कि हमारा जो सनातन साहित्य है बहुत ही गूढ़ है और उसको लोगों ने केवल भौतिक रूप में देखा उसके अंदर जाने का प्रयास नहीं किया भौतिक रूप में उन शक्तियों की आराधना करें और सुख दुख प्राप्त किया अधिक से अधिक मोक्ष प्राप्त किया या स्वर्ग प्राप्त किया लेकिन वह शक्ति का नाम वह क्यों रखा गया उस शक्ति का काम क्या था इसके ऊपर किसी ने चिंतन नहीं किया इसलिए यह व्याख्यान किसी भी गूगल में नहीं दिया है किसी दवाब पुस्तकों में नहीं दिया है यहां तक कि कि संतों ने भी इस पर प्रकाश नहीं डाला है शायद पहुंचाना हो या समझ ना पाए हो।

 


अब यह स्पष्ट हो गया की काली ने इस ब्रह्मांड की सृष्टि का निर्माण आरंभ किया 10 विद्याओं के माध्यम से इसके पश्चात जब मनुष्य का निर्माण हुआ तब सभी देवों की शक्ति से दुर्गा का निर्माण होने के पश्चात उनके नौ रूप 9 चक्रों में स्थापित होकर मनुष्य के अंदर की शक्ति को संचालित करने लगी यानी 10 विद्या शरीर के बाहर की ऊर्जा की पूजा और नवरात्रि की पूजा यानी शरीर के अंदर की जो ऊर्जा है उसकी पूजा अब बात आती है गायत्री की जब मनुष्य का निर्माण हो गया तो उसका उद्देश्य क्या होना चाहिए क्योंकि वह तो ब्रह्म का ही अंश है नर नारायण बराबर तो इसके लिए एक शक्ति ने जन्म लिया जिसको हम कहते हैं गायत्री गायत्री यानी इसने अपने मुख से तीन वेदों को जन्म दिया बाद में यह वेद चार बने बहुत सी जगह लिखा है कि गायत्री ने चारों मुख से चार वेद बोले वह गलत है मैं उसे बिल्कुल सहमत नहीं हूं क्योंकि तमाम साहित्य में यही लिखा हुआ है कि पहले तीन ही वे थे इसलिए त्रयपथी बोलते हैं वेद पहले तीन ही वे थे फिर बाद में वह चार हो गए कहने का मतलब यह है कि जो शक्ति का निर्माण का करम है सबसे पहले काली विद्या उसके बाद मानव के निर्माण के साथ गायत्री का निर्माण और दुर्गा का निर्माण जो मनुष्य के अंदर की बात है और 10 विद्या मनुष्य के बाहर की बात है।

 

गायत्री का प्रादुर्भाव कब हुआ विष्णु के क्षीरसागर के रूप का क्या अर्थ है विज्ञान में इनको कैसे व्याख्या कर सकते हैं यह सब मेरे ध्यान में है।

एक बहुत आनंददायक बात अभी हुई वह योग के संबंध में यह परिभाषा आपको बहुत अद्भुत लगेगी और मेरी कई बातें तो गूगल में मिलेगी नहीं किताबों में मिलेगी नहीं आपको।

 

मैं योग को यू परिभाषित करना चाहता हूं कि जब तुम्हारी दुर्गा शक्ति का काली मां की शक्ति से मिलन होता है तब योग घटित होता है।

क्योंकि योग की अनुभूति में क्या है इस पर कहीं कोई साहित्य नहीं है लेकिन योग का अनुभव साकार भी हो सकता है निराकार भी हो सकता है यह तो मेरी अनुभूति में है ही।

यह परिभाषा साकार योग के लिए है।

 

कुछ प्रतीक्षा करें इन विषयों पर लेखों की। आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे।

जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥


मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।

 

मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या) 

 

जय गुरुदेव जय महाकाली।


मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या व गायत्री में भेद (पहलीबार व्याख्या)

 मां दुर्गा के नवरूप व दशविद्या में भेद 

(पहलीबार व्याख्या)

व्याख्याकार सनातन पुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


मित्रों कुछ दिन पूर्व मैनें 10 विद्या पर लेख लिखे थे तो 10 विद्या का कुछ अर्थ का प्रादुर्भाव हुआ था। इसके बाद मां दुर्गा के नव रूपं पर भी लेख लिखे थे। तब यह प्रश्न उठा। जिस पर मां सरस्वती और गुरूदेव की कृपा हुई और मैं वह कुछ खोज पाया जो आपको कहीं नहीं मिलेगा। बल्कि आपने सुना तक न होगा। 
 
कुछ प्रतीक्षा करें इन विषयों पर लेखों की। आप चाहें तो ब्लाग को सबक्राइब कर दे जिससे आपको जब कभी लेख डालूं तो सूचना मिलती रहे। 
 


वास्तव में हम जितना अधिक विज्ञान में खोज करते जायेंगे हम उतना अधिक सनातन को समझ पायेंगे और यह सोंचने पर विवश हो जायेंगे कि आज का विज्ञान कितना बौना है जो सनातन के रहस्यों पर प्रकाश नहीं डाल पाता और बिना जाने निंदा करता है। सनातन की ऊंचाई गहन अध्ययन चिंतन और ईश कृपा के बिना नहीं पाई जा सकती है। वास्तव में सनातन में सृष्टि में होनेवाले सभी अविष्कारों  को गूढ रूप में समझाया गया है। जो हम समझ नहीं सकते और पूर्वाग्रह के कारण सिर्फ बकवास ही करते हैं। इसमें सुपर भौतिकी मेटा भौतिकी सहित विज्ञान के हर आयाम को बताया गया है।

 

चूंकि इस जन्म में मैं इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएट के साथ परमाणु वैज्ञानिक और 38 साल का अनुभवी हूं अत: मैं कह सकता हूं कि वैज्ञानिक कौम सबसे बडी मूर्ख और पूर्वाग्रहित कौम है जो किसी उपकरण की सूचना को सही मानेगा पर जिसने उपकरण बनाया उस पर यकीन नहीं  करेगा। साथ ही किसी घटना के घटने के लिये 50 साल प्रतीक्षा करेगा पर उसको बोलो मुझे मात्र कुछ दिन कुछ समय दो। तुमको पराशक्ति के सनातन अनुभव होंगे तो वह कन्नी काटेगा। 

 

मैं समझता हूं सनातन के ऊपर शोध हेतु कोई शिक्षा प्रणाली और संस्थान होनें चाहिये।

अभी नवरात्रि हेतु नवदुर्गा के नव रूपों पर लेख लिख रहा था तब नवरात्रि का अर्थ समझ में आया और अनायास ही मां सरस्वती की कृपा से अपने प्रथम गुरु मां काली की दया से व भौतिक गुरू की लीला से अचानक स्पष्ट हुआ नवरात्रि और 10 विद्या में यानी मां दुर्गा के नौ रूपों में और 10 विद्या के 10 रूपों में बहुत ही अंतर है।

 

इसको मैंने इंटरनेट पर गूगल गुरु की शरण में जाकर देखा वहां कुछ नहीं मिला न ही किसी किताब में कुछ मिला न ही किसी संत ने इस पर व्याख्या की। मैंने व्यक्तिगत रूप में उनको निवेदन किया कुछ तांत्रिकों से भी पूछ पर कोई बता न सका। कुछ ने मां दुर्गा के नव रूपों पर प्रकाश डाला। अत: यह हो सकता है यह व्याख्या आपको इस लेख के अलावा कहीं और न मिले। हो सकता है यह व्याख्या हमारे मन का भ्रम हो यानी गलत हो। लेकिन यह बात तो सही है अभी तक के हमारे अनुभव अनुभूति व आत्मगुरू की व्याख्या मां जगदंबे की कृपा से सही ही रही। वह सब के सब वेद से उपनिषद से भगवत गीता से अंत में मेल खा जाते और कहीं न कहीं उस अनुभूति का जिक्र मिल जाता है। 

 

यद्यपि यह बात सही है कि ब्रह्म निराकार है और उसने समय-समय पर साकार रूप धारण किए तो यह कह देना कि सब एक ही है यह बहुत ही उच्च स्तर की बात होगी जब आप उस ब्रह्म के स्तर पर बैठे हो।

यह तो बिल्कुल वही बात हो गई आप बोलो सब आलू या बटाटा या पोटैटो है लेकिन आलू की चाट बनती है सब्जी बनती है उबाल के बनता है चिप्स बनते हैं नमकीन बनती है भुजिया बनती है सब में अंतर है कि नहीं उसी भांति इन नौ रूपों में और 10 विद्या में अंतर है। इन सबको आप एक तब ही कह सकते हैं जब यह मूल रूप में हो। कुछ ऐसे ही ब्रह्म समझें। जब कुछ समझ में न आये तो बोल देना सब एक ही है। 

 

कुछ इसी भांति मां गायत्री के विषय में कुछ असत्य बातें दीं हुई हैं जो तर्कों पर खरी नहीं उतरती हैं। इस पर भी लिखना है। विष्णु का क्षीरसागर रूप भौतिकी से समझा जा सकता है।  इसलिए मैं विज्ञान की दृष्टि से और तर्क के साथ आपके समक्ष इस विषय पर चिंतन करना चाहूंगा। आपका सुझाव आपके प्रश्न का हमेशा की भांति स्वागत रहेगा।

प्रयोग करें एक टंकी के अंदर पानी भर दे गुब्बारों के अंदर पानी भरकर टंकी में छोड़ दें आप देखेंगे गुब्बारे के अंदर भी पानी है गुब्बारे के, बाहर भी पानी है। लेकिन उन दोनों पानी का कोई आपस में जोड़ नहीं मेल नहीं। बस यही अंतर है 10 विद्या में और नवरात्रि में।

 

साकार ब्रह्म की मूर्ती के अंदर भी जल है बाहर भी है। वैसे ब्रह्म सर्वव्यापी है निराकार रूप में लेकिन साकार रूप में भी वह मौजूद है यानी गुब्बारों के आकार के अंदर भी वही है और बाहर भी वही है। बीच में इस शरीर का बंधन है।

वह गुब्बारा कौन है हम हैं जो साकार है वह जो पदार्थ है जो हमें दिखते हैं जिसको कि भगवान श्री कृष्ण ने भागवत में कहा की विज्ञान वह है जिसमें मनुष्य हमारे साकार सगुण रूप के विषय में शोध करता है और उस विषय में चिंतन करता रहता है जानने का प्रयास करता रहता है। ज्ञान क्या है जो निराकार सगुण स्वरूप को जानता है जानने का प्रयास करता है वह ज्ञानी है और वह ज्ञान है।

 

10 विद्या जो गुब्बारों के बाहर व्याप्त है यानी जो हमारे शरीर के बाहर ऊर्जा है जो रूप है वह विद्याएं हैं क्योंकि विद्या के द्वारा हम बाहर कुछ करते हैं। इस पर भी अलग लेख लिखूंगा।

मैं यह कहना चाहूंगा पहले 10 विद्या का प्रादुर्भाव हुआ फिर दुर्गा का प्रादुर्भाव हुआ और जिसने की नव दुर्गा के रूप धरे। इसी के साथ गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ।

 

यानी पहले वाहिक जो 10 विद्या थी उर्न्होने सृष्टि उत्पन्न की और फिर उस सृष्टि ने मनुष्य की उत्पत्ति की और फिर नवदुर्गा उत्पन्न हुई। फिर मनुष्य को ज्ञान हेतु वेदों को उत्पन्न करने हेतु मां गायत्री का रूप। 

 

अब मैं योग की एक नई परिभाषा देता हूं। “ जब तुम्हारे अंदर की दुर्गा का काली से मिलन होगा तब योग होगा”। 

 

सोचने की बात यह है कि शब्द नवरात्रि क्यों है नव दिन क्यों नहीं है नव दिवस क्यों नहीं है नौ रूपों के लिए नवरात्रि ही क्यों कहा जाता है?????

वहीं 10 रूपों को विद्या कहा जाता है और कुछ नहीं। बस आरंभ यहीं से होता है।

 

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मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य की पूरी जानकारी हेतु नीचें दिये लिंक पर जाकर सब कुछ एक बार पढ ले।

 

जय गुरूदेव जय महाकाली। महिमा तेरी परम निराली॥

 

Tuesday, December 18, 2018

क्या है दस विद्या ? तीसरी विद्या: त्रिपुर सुंदरी


क्या है दस विद्या ? 
तीसरी विद्या: त्रिपुर सुंदरी 


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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मित्रो मां दुर्गा की आरती में आता है।
दशविद्या नव दुर्गा नाना शस्त्र करा। अष्ट मातृका योगिनी नव नव रूप धरा॥

अब दशविद्या क्या हैं यह जानने के लिये मैंनें गूगल गुरू की शरण ली। पर सब जगह मात्र कहानी और काली के दस रूपों का वर्णन। अत: मैंनें दशविद्या को जानने हेतु स्वयं मां से प्रार्थना की तब मुझे दशविद्या के साथ काली और महाकाली का भेद ज्ञात हुआ जो मैं लिख रहा हूं। शायद आपको यह व्याख्या भेद कहीं और न मिले। किंतु वैज्ञानिक और तर्क रूप में मैं संतुष्ट हूं।

शाक्त सम्प्रदाय के देवी भागवत पुराण का मंत्र है।

काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा।
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्या: प्राकृर्तिता।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता।।

त्रिपुर सुंदरी : षोडशी माहेश्वरी शक्ति की विग्रह वाली शक्ति है। इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इसे ललिता, राज राजेश्वरी और ‍त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए षोडशी भी कहा जाता है। ‍‍भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है।

त्रिपुर सुंदरी यानि दूर दर्शिता और मोहनी विद्या की प्राप्ति। सर्व मनोकामना पूर्ण करने वाली महाविद्या, श्री कुल की अधिष्ठात्री! महा त्रिपुरसुंदरी।
महाविद्या महा त्रिपुरसुंदरी स्वयं आद्या या आदि शक्ति हैं, इनके षोडशी, राज-राजेश्वरी, बाला, ललिता, मिनाक्षी, कामेश्वरी अन्य नाम भी विख्यात हैं।


अपने नाम के अनुसार देवी तीनों लोकों में सर्वाधिक सुंदरी हैं तथा चिर यौवन युक्त १६ वर्षीय युवती हैं, इनकी रूप तथा यौवन तीनों लोकों में सभी को मोहित करने वाली हैं।


मुख्यतः सुंदरता तथा यौवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के परिणामस्वरूप, मोहित कार्य और यौवन स्थाई रखने हेतु महाविद्या त्रिपुरसुंदरी की साधना उत्तम मानी जाती हैं।


सोलह अंक जो पूर्णतः का प्रतीक हैं (सोलह की मात्रा में प्रत्येक वस्तु पूर्ण मानी जाती हैं, जैसे १६ आना एक रुपये होता हैं), देवी सोलह प्रकार की कलाओं से पूर्ण हैं और सोलह प्रकार के मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं; तात्पर्य हैं सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं कारणवश महाविद्या षोडशी नाम से विख्यात हैं।


देवी ही श्री रूप में धन, संपत्ति, समृद्धि दात्री श्री शक्ति के नाम से विख्यात हैं, इन्हीं महाविद्या की आराधना कर कमला नाम से विख्यात दसवी महाविद्या धन की अधिष्ठात्री हुई तथा श्री की उपाधि प्राप्त की।


श्री यंत्र जो यंत्र शिरोमणि हैं, साक्षात् देवी का स्वरूप हैं; देवी की आराधना-पूजा श्री यंत्र  में की जाती हैं। कामाख्या पीठ महाविद्या त्रिपुरसुन्दरी से ही सम्बंधित तंत्र पीठ हैं, जहाँ सती की योनि पतित हुई थीं; स्त्री योनि के रूप में यहाँ देवी की पूजा-आराधना होती हैं।


देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध पारलौकिक शक्तियों से हैं, समस्त प्रकार की दिव्य, अलौकिक तंत्र तथा मंत्र शक्तिओं (इंद्रजाल) की देवी अधिष्ठात्री हैं। तंत्र मैं उल्लेखित मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तम्भन इत्यादि (जादुई शक्ति), कर्म इनकी कृपा के बिना पूर्ण नहीं होते हैं।


अपने भक्तों को हार प्रकार की शक्ति देने में समर्थ हैं देवी षोडशी, चिर यौवन तथा सुन्दरता प्रदाता हैं देवी त्रिपुरसुंदरी, राज-राजेश्वरी रूप में देवी ही तीनों लोकों का शासन करने वाली हैं।


देवी शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव के नाभि से निर्गत कमल-आसन पर बैठी हुई हैं, इनके चार भुजाएं हैं तथा अपने चार भुजाओं में देवी पाश, अंकुश, धनुष और बाण धारण करती हैं।


देवी के आसन को ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा यम-राज अपने मस्तक पर धारण किये हुए हैं; देवी तीन नेत्रों से युक्त एवं मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण किये हुए अत्यंत मनोहर प्रतीत होती हैं, सहस्रों उगते हुए सूर्य के समान कांति युक्त देवी का शारीरिक वर्ण हैं।

दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण 'पाद' का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को 'कूर्भपीठ' भी कहते हैं।

उल्लेखनीय है कि महाविद्या समुदाय में त्रिपुरा नाम की अनेक देवियां हैं, जिनमें त्रिपुरा-भैरवी, त्रिपुरा और त्रिपुर सुंदरी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

त्रिपुर सुंदरी माता का मंत्र: रूद्राक्ष माला से दस माला 'ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:' मंत्र का जाप कर सकते हैं। जाप के नियम इत्यादि किसी जानकार से पूछकर ही करें।


दस महाविद्या में षोडषी के शिव के रूप अवतार हैं कामेश्वर ।
दस महाविद्या में  षोडषी का विष्णु रूप अवतार है परशुराम । 
 
 
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 जय मां त्रिपुर सुंदरी

 
 
 
 
 

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