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Thursday, March 22, 2018

ब्रह्मांड की उत्पत्ति




ब्रह्मांड की उत्पत्ति
(बौद्दिक समपत्ति कानून के अंतर्गत निजी शोध)

विपुल सेन, बी- एस. सी, बी.टेक., एम.टेक
                                  

जो मैंने ध्यान में अनुभव किया और देखा बल्कि यूं कहूं कि पहले बाल रुप और फिर ग्वाल रुप में कृष्ण दर्शन अनुभुति कराते हुये अपने निराकार रुप का अनुभव कराया और फिर सृष्टि का निर्माण दिखाते हुये जो ज्ञान दिया उसको भौतिक विज्ञान से जोडकर मैं समझाने का प्रयास करता हूं।

मैंने देखा मैं निराकार कृष्ण के साथ खडा हूं। निराकार में सिर्फ अधकारमय छाया जो सोने की तरह चमकदार मुकुट और हाथ में कडे पहने हुये है। बाद में मुझे समझाने हेतु निराकार कृष्ण रुप का मंदिर भी दिखाया जिसमें कभी कभी मुकुट चमकने का आभास था और पुजारी के रुप में केवल दो हाथ कुछ कुछ दिखाई दिये थे। वहां मुझे समझाया गया कि ईशवर का वास्तविक स्वरुप निराकार निर्गुण ही हैं और इसको ही जानना और अनुभव का होना अंतिम ज्ञान। बल्कि ब्रह्माण्ड को चलाने हेतु निराकार उर्जा का महासागर है पर मानव बेहद शक्तिशाली होता है जो साकार रुप धारण करने को मजबूर करता है। और भी बहुत व्याख्यायें बताई गई जो नहीं लिख रहा हूं।  

मैंने देखा सुप्त उर्जा का महासागर अंधकारमय । काला नहीं क्योकि अंधकार निराकार है जबकि काला अंधकार का साकार रुप। इस सुप्त उर्जा को निराकार कृष्ण कहते हैं। इसे अल्लाह गाड भी बोलते हैं। पर कृष्ण क्यों कहा। क्योकिं कृष्ण यानी अंधकार जिसका साकार काला जहां कुछ नहीं दिखता। और साथ ही कृष्ण मानव रुप में भी अवतरित हुये। मानव जो बेहद शक्तिशाली और अतींन्द्र शक्तियो से युक्त जिसको विज्ञान मात्र 1 प्रतिशत से भी कम जान पाया है। मानव रुप में ही हम ध्यान कर सारा ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। या यूं कहो कुछ भी कर सकते हैं।

इस निराकार कृष्ण यानी सुप्त उर्जा में महामाया ने भयानक शोर किया। जो ॐ प्रतीत हुआ। ध्यान से सुने हर ध्वनि या आघात का अंत ॐ से ही होता है। यह हैं बिग बैंग सिदांत। सुप्त ऊर्जा में कम्पन हुआ। ऊर्जा जाग्रत हुई जो निराकार दुर्गा बनी। निराकार दुर्गा ने निराकार ब्रह्मा का रूप लिया या जन्म दिया। निराकार ब्रह्मा ने आइन्टिन के सूत्र e =mc 2 के अनुसार द्रव्य पैदा किया सबसे पहले बनी हाइड्रोजन।

यहां e यानी ऊर्जा  m यानी पदार्थ । c यानी प्रकाश की गति। जो 1 लाख 86 हजार 400 मील प्रति सेकेंड है। जिस भांति पदार्थ से ऊर्जा बनती है उसी प्रकार ऊर्जा से पदार्थ बनता है। नाभिकीय विखण्डन में पदार्थ से ऊर्जा बनती है। पर नाभिकीय संलयन में छोटे परमाणु बड़े बनाते है। यह सामान्य गणित सूत्र है e = mc2  उल्टा करो तो ऊर्जा से पदार्थ।

हाइड्रोजन ने संलयन कर रासायनिक आर्वत सारिणी के अनुसार ऊर्जा के क्रमानुसार बडी परमाणु सन्ख्या के रासायनिक परमाणु तत्वों का निर्माण आरम्भ किया। धीरे धीरे यह कार्बन 12 तक पहुचे जहां पर अपेक्षाकृत कुछ जल्दी जल्दी नत्रजन 14 और आक्सीजन 16 का निर्माण हुआ। जिसके साथ जल की उत्पती हुई और जिसके कारण विभिन्न पाकेट्स में उर्जा सामांतय: कम हुई और बर्फ़ का निर्माण हो गया। यह बर्फ़ के बडे बडे खंड कारबनिक द्रव जिनका निरमाण लगभग साथ साथ हुआ उसमें बर्फ़ तैरने लगे। उधर लगातार उरजा में बिजली कडकती हुई अमीनो अम्ल का भी निर्माण कर आ.एन.ए और डी.एन.ए. का निरमाण भी करने लगी।  इसी के साथ बर्फ पर काली काली काई जमने लगी। कालांतर में यह ठोस तत्व जो भुमि में है उनका निरमाण भी करने लगी।

ऊधर तेजी से संलयन के कारण भारी रासयनिक तत्वों का निरमाण अनवरत चलता रहा। इधर काई भी ठोस रुप लेकर तैरने लगी। धीरे धीरे जब उर्जा वापिस मिलने के कारण बर्फ पिघलने लगी। तब एक अवस्था ऐसी आई के जल की संख्या मात्रा कार्बनिक द्रव के समुद्र से कई गुणा हो गई तब तक यह काई समुह में जल में तैरने लगी। अमीनो अम्ल के आर.एन.ए और डी.एन.ए. का संश्लेषण और विश्वलेष्ण होने लगा। बिजली की कडक्नुमा उरजा से उनमें चलने की क्षमता लेकर आत्म शक्ति का निरमाण हुआ। जिसके कारण काईनुमा जल के जीवों का निरमाण हुआ। जो विष्णु के अवतारों के क्रमानुसार विकासशील होता गया। पहले मछलियों का विकास हुआ। फिर जल थल में चलनेवाले कछुयों का विकास हुआ। फिर भुमि पर सफाई करनेवाले कीचड में फंसे जीवों को खानेवाले सुअर का क्रमानुसार विकास होता गया। फिर जल थल वायु में विचरण करनेवाले बंदर सामान जीवों का विकास होते हुये मानव का विकास हुआ। उधर साथ ही साथ भुमि का गठन भी होता गया पर विस्फोट के कारण पिड ब्रम्हाण्ड में उछलने लगे। गुरुत्वाकर्षण शक्ति का जन्म हुआ। अकाश गंगायें बनी। तमाम पिंड जिनमें कार्बनिक द्रव अधिक थे और उर्जा अधिक थी संलयन विखंडन कर सूर्य रुप में जल कर प्रकाश देने लगे। और उनके भुमि तत्वों के भार उरजा और गुरुत्वाकर्षण कारण उन सूर्यों से कुछ दूरी पर चक्कर लगाने लगे। जो भुमि सहित नव ग्रह कहलाये।
(यहां पर नक्षत्रों का मनुष्य पर प्रभाव उन पिडॉ की उर्जा और योग शास्त्र के चक्रो की उर्जा से प्रतिपादित होता है, जो अलग से बताऊंगा}

इसी प्रकार निरमाण शक्ति ब्रह्मा ने 0 कला के निकट से 8 कला तक विज्ञान के आधार पर सृष्टि का निर्माण किया। मनुष्य 6 से 8 कला। जानवर 4 से 6। पक्षी 2 से 44 से 2 कीट ।2 से नीचे पेड़ इत्यादि। 8 कला तक मनुष्य श्रेष्ठ श्रेणी। 8 से 10 देवता। 10 से 12 सिद्द योगी। 12 से उपर अवतार। राम 14 कला। कृष्न 16 कला। फिर निराकार ब्रह्म को साकार हुये और सृष्टि के निर्माण में जुट गये। पर साकार सृष्टि का विनाश करने हेतु विनाशक शक्ति यानी रुद्र का निर्माण हुआ और जो फिर शिव बना जो जगत को ज्ञान देने का काम करने लगे। शिव यानि गुरु तत्व। इसी भांति विष्णु का निर्माण हुआ जो साकार सृष्टि को चलाने हेतु कार्य करते हैं। इनकी पत्नी धन की देवी यानी लक्ष्मी जिसकी आवश्यकता सिर्फ जीवित शरीर को ही होती हैं। उधर ऋषियों ने निराकार की प्रार्थनाये की और तब एक तेज पुंज प्रकाश देखा और उसे सूर्य समझकर प्रार्थना की जो सूर्य की आराधना गायत्री बनी।  जो निराकार थी। और उसकी मन्त्र शक्ति बनी साकार गायत्री जिसने ज्ञान दिया और जिसके द्वारा वेद बना। यह वेद 8 भागो में विभक्त हुए जिसको सूर्य ने बताया। पर मनुष्य को 4 ही वेद मिले। 4 गायब हुए होंगे।

उधर निराकार जीवित शक्ति दुर्गा ने निराकार  शिव का निर्माण किया शिव लोक हेतु और फिर विष्णु का जगत के साकार का पालन करने हेतु विष्णुलोक। साकार ब्रह्मा जगत के निरन्तर निर्माण हेतु।
धीरे धीरे ऋषियों ने सभी शक्तियों को साकार रूप में भजना आरम्भ किया और देव बने।
सभी देव साकार हुए।

उधर निराकार दुर्गा ने शिव का निर्माण कर ज्ञान और गुरु तत्व उत्पन्न किया। स्वयं पार्वती बनी। जो सबसे पहली शिष्या बनी शिव की। यानी साकार दुर्गा शक्ति जो पार्वती के रुप में मानव बनी। शिव ने उन्हे शक्तिपात की दीक्षा दी। और यही परम्परा आज भी चली आ रही है। इसी भांति निराकार शक्ति ने सभी देवों को उनके स्त्री लिंग को बनाकर प्रदान किया। जैसे लक्ष्मी विष्णु को सरस्वती ब्रह्मा को इत्यादि।
निराकार कृष्ण क्यो । क्योकि कृष्ण विष्णु के अवतार। विष्णु ही इस साकार सृष्टि का मालिक यानी मनुष्य तक पहुँच। मनुष्य सबसे मजबूत साकार रूप जो ध्यान के द्वारा ही देवो को प्राप्त कर सकता है। मनुष्य साकार तो ईश है। मनुष्य तक का निर्माण ब्रह्मा करते है। अतः मनुष्य ही सृष्टि के निर्माण तक ध्यान के द्वारा पहुच कर सब देख सकता है। अतः निराकार कृष्ण।

मैंने यहां क ही देखा है आगे का मेरा नहीं है।

नोट: सृष्टि के पालन हेतु सप्त ऋषि नियुक्त जो वैज्ञानिक थे। जो हर युग पर निगाह रख धरती पर अवतारों हेतु वातावरण बनाते है। महाऋषि अमर जो बंगलूर में वर्ष 1994 को प्राण त्यागे। वह सप्तषियों के सम्पर्क में 8 वर्ष की आयु से थे। सप्तऋषि तपोवन में वर्ष 2004 में सूक्ष्म में इकट्ठा हुए थे और मीटिंग हुई थी। जिसकी व्यवस्था अमर जी के शिष्य कृष्णकांत जी ने की थी।
आप कृष्णकांत रचित " प्रकाश की ओर पढ़े" । आप उलट जायेगे। उसको पढ़कर।

कुछ उत्तर, जो ग्रुप मे दिये: 
यह धारणा नही। अचानक अपना निराकार रूप दिखाया था।
निराकार सुप्त ऊर्जा को गा अल्लह कहते है। जो निराकार कृष्ण भी कहलाता है। जब आप किसी के आगे महा लगा देते है तो उस देव का अर्थ साकार से निराकार तक चला जाता है।
यह अपना काम करते है। वास्तव में जब ब्रह्मा ने सृष्टि बनाई तो विनाश हेतु रुद्र हुए। शिव बाद में आये। महाकाल या रुद रूप शिव से पहले का है। विष्णु पैदा से मौत तक मालिक है। लक्ष्मी तभी चाहिए। रुद्र जो मृत्यु के समय होते है। ब्रह्मा पैदा करते है।
जगत में ज्ञान जीवित रखने हेतु गुरुओ के मालिक शिव।
हा निराकार शक्ति जिसे दुर्गा कहते है।
उस सुप्त ऊर्जा में मिलना ही मोक्ष है। जहाँ जाकर वापिसी नही होगी।
जागृत शक्ति या ऊर्जा निराकार दुर्गा तक जगत में वापिस आ सकते है। अपनी मर्जी से।
निराकार में समाना मोक्ष है।
निराकार ऊर्जा में गहन अंधकार व्याप्त है ऊर्जा का शांत समुद्र जैसा। काला रंग अंधकार का साकार रूप है।
हा निराकार कृष्ण। क्योकि जानने हेतु साकार मनुष्य ही है  जो कृष्ण है यानी विष्णु यानी इस साकार जगत का पालक।
हम सब ऊर्जा के साकार रूप है।
काला यानी कृष्ण अतः कृष्ण नाम।
हा बिल्कुल हम किसी और ग्रह पर भी जन्मके सकते है।
नही ऐसा नही  जहाँ कोई और कम्पन न हो।
प्रकाश में ही सब दिखता है। अतः प्रकाश निराकार से साकार के बीच का माध्यम।
प्रकाश से आप साकार या निराकार किसी का अनुभव पा सकते है।
हा निराकार तो अंधकार है।
नही यह तो हमने समझने के लिए नाम दिया। उसे अल्लह या गाड भी कहते है।
ध्यान तो सुपर महासुपर परासुपर सूक्ष्म अतिसूछ्म सभी कुछ। जगत कल्याण हेतु चेतना का जागृत होना। यह व्यक्तिष्ट है
सप्त ऋषि सहायता करते है त्रिदेव की वैज्ञानिक और सृष्टि के नियम के आधीन।
यह बदलते है । हर चतुर्युग के अलग ऋषि होते है। ये हमेशा कार्यशील रहते है।
सतयुग भी साउथ से आ रहा है।
एक मन्वंतर में कितने कल्प होते हैं
यार अब पकाओ मत। गूगल गुरु की शरण मे जाओ।
आत्मा उसी ऊर्जा का अंश है। तभी तुम उस ऊर्जा की शक्ति से सब करते हो। मरने पर वह निकल जाती है।
मैंने वह बताया जो अनुभव था। खुद मेरे स्थूल शरीर का।
सनातन ही अंत है ज्ञान का बाकी सब धर्म बच्चे है। जो स्वर्ग नरक से ऊपर सोंच ही नही पाते।
नोट: यह सब परमगुरु श्री योगेंद्र विज्ञानी रचित “महायोग विज्ञान” से है।
एक पलक झपकना यानी एक निमेष
15 निमेष 1 काष्टॉ
30 काष्टॉ यानी एक कला।
30 कला एक मुहूर्त
30 मुहूर्त एक दिन
15 दिन 1 पक्ष
6 महीने 1 अयन
मनुष्य का 1 वर्ष देवताओ का 1 दिन। यह समय की गति बताते है।
मनष्य के 360 वर्ष यानी देव का 1 दिव्याष वर्ष
400 दिव्य वर्ष का सतयुग
400 दिव्य वर्ष आगे और पीछे
त्रेता 3000 द्वापर 2000 कलियुग 1000 दिव्य वर्षो का।
इनके आगे पीछे के वर्ष
कुल 12000 दिव्य वर्ष 1 चतुर्युग
1000 चतुर्युग 1 कल्प
71 कल्प का एक मन्वन्तर
कल्प ब्रह्मा का 1 दिन
ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष
जिसमे 50 बीत गए
ब्रह्मा के अंत मे ब्रह्मांड का अंत
ऐसे 1000 ब्रह्मा यानी विष्णु की 1 घड़ी
ऐसे 1000 विष्णु तो महेश्वर का 1 पल।
1000 महेश्वर यानी शक्ति का आधा पल
अब समझे शक्ति क्या है  जो निराकार दुर्गा है।
नही यार यह सब कर्मो के हिसाब से नाम है। फिलाहल शिव ही समझो
शांत हुई जिज्ञासा
मनुष्य ध्यान कर के कहा तक पहुँच जाता है।
ध्यान के सात द्वार। 6 द्वार तक देहभान रहता है। ध्यान का 7 द्वार से समाधि का पहला द्वार से 9 द्वार तक जा सकते है  यहाँ फंस गए तो बिना गुरु शक्ति के बाहर आना मुश्किल।
निराकार का कोई नाम नही पर साकार समझाने हेतु यह जरूरी ।

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

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