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Friday, March 9, 2018

निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि:



निद्रा, योग निद्रा, ध्यान निद्रा और समाधि


 
 

विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/
 

         प्रकृति ने जो जीवन चक्र बनाया है वह प्रत्येक जीव पर लागू होता है। जैसे जन्म तो मृत्यु, निरमाण तो विनाश, प्रकाश तो अंधकार यहां तक भौतिक शास्त्र के अनुसार मैटर तो अंटी मैटर, ब्लैक होल तो वाहिट होल बस इसी प्रकार का अंतर है निद्रा और तमाम मिलते जुलते अनुभवों में।
प्रकृति यानी हमारी निद्रा जो समस्त थकानों को दूर कर,  समाप्त उर्जा को पुनर्जीवित करती है। तो योग में जाकर विश्रांति कहलाती है योग निद्रा। अब जैसे जागृत योग यानी कर्म योग यानी कर्म में योग की सजावट। सुप्त योग यानी जो ध्यान के माध्यम से प्राप्त। जैसे वेदांत के अनुसार आत्मा में परमात्मा की एकात्मकता का अनुभव योग है। 
ध्यान देने वाली बात है अनुभव,  जो प्रथम बार आपको ध्यान और चैतन्य को भूल जाने पर यानी जगत के प्रति निद्रा में ही अनुभव होता है। फिर मनुष्य योग के अनुभव से बाहर आता है। प्रसन्नचित मन से अपने काम को सहजता पूर्वक करता है। अपने कर्तव्यों को सफलतापूर्वक निभाता है। यानी कर्म में कुशलता (भगवद्गीता) और अकश्न इन रिलैक्शेश्न जिसको अंग्रेजी में तमाम लोगो ने कहा। यह हुआ जागृत योग यानी कर्म योग।
जब मनुष्य यही अनुभव लम्बी अवधि के लिये करता है ध्यान में योग का यानी ईश्वर की सायुज्यता का अनुभव करता है पर समय की गति बदल जाती है। तो मनुष्य वहां भी आनंद लेता है पर वाहिक रूप से सोया हुआ। कुछ भी कर्म जो जगे हुये कर सकता है वह नही कर सकता है । अत: यह हुई योग निद्रा। 
जब मनुष्य खुद कर्ता बन अपनी ओर से ध्यान का प्रयास करता है। जैसे त्राटक या त्राटक का नाटक, विपश्यना या प्रेक्षा ध्यान, कर्ण या ध्वनि सिद्दी या सुगंध सिद्दी मार्ग या खेचरी अथवा वैखरी और मध्यमा में मंत्र जाप। तब आदमी थकने लगता है। एक समय के बाद वह नींद जैसी अवस्था में आ जाता है जिसे ध्यान निद्रा कहते हैं। यहा एक बात गौर करने लायक है कि योग निद्रा के पहले मनुष्य कुछ करता नहीं यह स्वयम होता है पर साधना या ध्यान  निद्रा में यह अपनी ओर से श्रम करने के बाद की निद्रा है। 
यह इस क्रम में हैं।
सामान्य या प्राकृतिक निद्रा – साधना ----  साधना निद्रा --- ध्यान (9 अवस्थाये) --- ध्यान निद्रा --- साधन ------ साधन निद्रा ---- योग(वेदांत) ----- योग निद्रा ---- समाधि (11 अवस्थाये) (यहां फस गये तो चिर समाधि।
यहां पर जो जागृत शक्ति का समर्थ गुरु होता है वह शिष्य को सीधे साधन के स्थान पर पहुंचा देता है। योग शास्त्र की मानो तो शिष्य की कुंडलनी शक्ति को जागृत कर मूलाधार की सुशुम्ना नाडी के द्वार पर ला देता है।
वही बाकी गुरु शिष्य को साधना पर खडा कर देते हैं। 
समर्थ गुरु भी शिष्य को सहस्त्रसार के पहले तमाम चक्रों को भिदवाकर खडा कर देता है। इसके आगे शिव को ही आगे ले जाना पडता है। 
वही पातनजली मार्ग से चलने पर ध्यान से पहले धारणा की साधना फिर ध्यान और फिर यही मार्ग शक्ति जागृत बिना चक्र बेधन के शक्ति जागृत जो समाधि ले जाती है जो भक्तियोग का मार्ग कहलाती है। यानी एक शक्ति वह जो कुंडलनी बनी जिसकी पुनर्व्याख्या कबीर ने की। पर दूसरीवाली शक्ति वो जो तुलसीदास मीरा ने जागृत की। शक्ति एक पर रूप दो। पर अंत सबका एक समाधि। 
मेरा मानना है दोनों ही दुर्लभ हैं महान हैं पर दूसरावाला मार्ग बेहद आसान है जो दोनो में से किसी भी मार्ग पर चल कर समाधि में पहुचा देता है। पहली वाली शिव गुरु की शक्ति दूसरी वाली भक्ति की शक्ति जो शिव की शक्ति नहीं भी हो सकती है पर समय आने पर यह दोनों ही मिल जाती है। सहायता करती हैं पर यह मिलती हैं निराकार कृष्ण में इसी लिये कृष्ण का मानव अवतार सम्भव है पर शिव का मानव योनि में नहीं और न ही शक्ति का। बीच में रहता है निराकार कृष्ण, कृष्ण के बाई तरफ शुद्द शक्ति और दाई तरफ शुद्द शिव।
 
                                         इति कृष्ण मम। ओम हरि ओम। 


"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल  


10 comments:

  1. https://freedhyan.blogspot.in/2018/03/normal-0-false-false-false-en-in-x-none_76.html

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  2. सचल मन वैज्ञानिक ध्यान ( Movable Mind Scientific Meditation- MMST)
    (ध्यान की आधुनिक वैज्ञानिक विधि)

    मित्रों इस विधि में आप मंत्र जप और शरीर के विभिन्न अंगों का साथ लेकर ध्यान की गहरी अवस्था में जा सकते हैं। प्रत्येक मनुष्य के ध्यान की विधि अलग अलग उसके कर्म के हिसाब से होगी। कुछ की कुंडलनी भी जागृत हो सकती है। कुछ विशेष भयानक अनुभव भी हो सकते हैं। पर आप डरें मत। हर समस्या का समाधान होगा। हर हाल में आपकी धार्मिकता बढेगी।
    यह विधियां हर जाति धर्म समुदाय चाहे मुस्लिम हो ईसाई हो जैन हो बौद्द हो कोई भी हो सबके लिये कारगर है। जो जिस धर्म का होगा उसको उसी के धर्म के हिसाब से ध्यान बताया जायेगा।
    मैं गुरु नहीं हूं और न अपने को कहलाना पसंद करुंगा। मैं दास हूं प्रभु का वोही कहलाना पसंद करुंगा। जैसे प्रभुदास, सर, विपुल जी या विपुल भी चलेगा।

    विपुल सेन। नवी मुम्बई\ 09969680093






    विपुल सेन
    शिक्षा : बी.एस.सी. (भौतिक शास्त्र, रसा.शास्त्र, गणित) लखनऊ विश्वविद्यालय
    बी. टेक. (रसा. प्रौ.), एम. टेक. (रसा. प्रौ.) एच. बी. टी. आई, कानपुर
    व्यवसाय : वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी, भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र, ट्राम्बे, मुम्बई
    गुरु दीक्षा : वर्ष 1993, शक्तिपात दीक्षा, स्वामी नित्यबोधानंद तीर्थ जी महाराज, स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज।
    प्रकाशन : 3 भक्ति, 5 काव्य संग्रह, 500 से अधिक वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, लेख कवितायें प्रकाशित्।
    सम्पादक : 50 वर्षों से प्रकाशित वैज्ञानिक त्रैमासिक पत्रिका “वैज्ञानिक” ।
    सम्पर्क : vipkavi@gmail.com,
    वेब : vipkavi.com

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  3. जी विकीपीदिया ने मितार दिया। चन्दा नहीं दिया।

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  4. जी, धन्यवाद्। अन्य लेख भी देखें

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  5. Ees vishay mei adhik jaankari chahiye. .. .krepya aur jaankari dee.

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आप अन्य लेख भी पढ़े और अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

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  6. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आप अन्य लेख भी पढ़े और अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

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