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Monday, December 31, 2018

उत्तर प्रदेश से पैदा अक्षरधाम। बना गुजरात की शान



उत्तर प्रदेश से पैदा अक्षरधाम। बना गुजरात की शान 
सनातन पुत्र देवीदास विपुल

भगवान स्वामीनारायण का जन्म 3 अप्रैल 17 उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था । उन का असली नाम घनश्याम पांडे था तथा इनके पिता का नाम श्री हरि प्रसाद राय माता का नाम भक्ति देवी था ।
इनके माता-पिता ने ही इनका नाम घनश्याम रखा था । बालक के हाथ और पद और पैरों से ब्रज उधर्व रेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने यह कह दिया कि यह बालक लाखों लोगों को जीवन की सही दिशा देगा । 5 वर्ष में बालक को अक्षर ज्ञान दिया गया तथा 8 वर्ष में जनेऊ संस्कार हुआ |
वे केवल 11 वर्ष का थे तब ही इस छोटी अवस्था में उसने अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया । बचपन में ही माता और पिताजी का देहांत हो गया तथा कुछ समय बाद अपने भाई से किसी बात पर विवाद होने पर उन्होंने घर छोड़ दिया और अगले 7 साल तक पूरे देश की परिक्रमा की |
अब लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे | इस दौरान उन्होंने गोपाल योगी से अष्टांग योग सिखा व उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची श्रीरंग पुरम रामेश्वरम तक गए । इसके बाद पंढरपुर वह नासिक होते हुए गुजरात आ गए ।
एक दिन यह नीलकंठ मांगरोल के पास ‘लोज’ गांव में पहुंचे । उनका परिचय स्वामी मुक्तानंद से हुआ जो स्वामी रामानंद के शिष्य थे । नीलकंठवर्णी स्वामीनारायण, रामानंद के दर्शन को उत्सुक थे | उधर रामानंद जी भी प्राय भक्तों से कहते थे कि असली नट तो तब आएगा, मैं तो उसके आगमन से पूर्व डुगडुगी बजा रहा हूं, भेंट के बाद रामानंद जी ने उन्हें स्वामी मुक्तानंद के साथ ही रहने को कहा । नीलकंठ वर्णी ने उनका आदेश शिरोधार्य किया |
उन दिनों स्वामी मुक्तानंद कथा करते थे । उसमें स्त्री तथा पुरुष दोनों हीं आते थे । नीलकंठ वर्णी ने देखा की अनेक श्रोता और साधुओं का ध्यान कथा की ओर ना होकर महिलाओं की ओर होता है । उन्होंने पुरुष तथा स्त्रियों के लिए अलग कथा की व्यवस्था की तथा प्रयास पूर्वक महिला कथावाचकों को भी तैयार किया।
उनका मत था कि सन्यासी को उसके लिए बनाए गए सभी नियमों का कठोरता पूर्वक पालन करना चाहिए | कुछ समय बाद स्वामी रामानंद ने नीलकंठ वर्णी को पीपल आना गांव में शिक्षा देकर उनका नाम सहजानंद रख दिया ।
एक साल बाद जयपुर में उन्होंने सहजानंद को अपने संप्रदाय का आचार्य पदवी दे दिया । इसके कुछ समय बाद स्वामी रामानंद जी का स्वर्गवास हो गया, अब स्वामी सहजानंद ने गांव-गांव घूमकर कथा-प्रचार किया | उन्होंने निर्धन सेवा का लक्ष्य बनाकर सब वर्गों को अपने साथ जोड़ा इससे उनकी ख्याति सब और फैल गई |
वह अपने शिष्यों को 5 व्रत लेने को कहते थे, इनसे मांस, मदिरा, चोरी, व्याभिचार का त्याग तथा सर्व धर्म को पालन की बात होती थी । भगवान स्वामीनारायण ने अजय नियम बनाए तथा सभी उनका कठोरता से पालन करते थे ।
उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बली प्रथा, सती प्रथा, कन्या हत्या, भूतबाधा जैसी कृतियों को बंद कराया । उनका कार्यक्षेत्र मुख्यता गुजरात रहा ।प्राकृतिक आपदा आने पर वह बिना भेदभाव के सब की सहायता करते थे । इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान के अवतारी मानने लगे |
भगवान स्वामीनारायण जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया तथा इनके निर्माण के समय में स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे । भगवान स्वामीनारायण अपने कार्यकाल में अहमदाबाद मूली भुज जेतलपुर धोलका वडताल बड़ा धोलेरा तथा जूनागढ़ में भव्य मंदिर का निर्माण किया, जो मंदिरों की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है ।
धर्म के प्रति इस प्रकार श्रद्धा भाव जगाते हुए भगवान स्वामीनारायण 1 जून 1831 में अपने देह छोड़ दी आज उनके अनुयायी विश्व भर में फैले हैं वह मंदिरों को सेवा विज्ञान का केंद्र बना कर काम करते हैं ।
उत्तर प्रदेश में छप्पैया के घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय की ऐसी दुनिया रची कि साल 2000 तक केवल अमरीका में स्वामीनारायण के 30 मंदिर हो गए. अमरीका के साथ दक्षिण अफ़्रीका, पूर्वी अफ़्रीका और ब्रिटेन में भी स्वामीनारायण के बहुत से मंदिर हैं.
अहमदाबाद के वरिष्ठ गांधीवादी राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश शाह कटाक्ष करते हुए कहते हैं, ''6 दिसंबर 1992 के पहले भी गुजरात का अयोध्या कनेक्शन था और इसके लिए हमें घनश्याम पांडे का शुक्रगुज़ार होना चाहिए. घनश्याम पांडे द्वारका आए थे. यहां आने के बाद सहजानंद स्वामी बने और आगे चलकर स्वामीनारायण बन गए. उन्हें श्री जी महाराज भी कहते थे.''
घनश्याम पांडे जवानी के दिनों में अयोध्या के छप्पैया से सौराष्ट्र में द्वारका पहुंचे थे. द्वारका के बाद वो अहमदाबाद पहुंचे. लोगों का कहना है कि पांडे जी ने अपने करिश्माई व्यक्तित्व की ऐसी छाप छोड़ी कि वो जल्द ही घनश्याम से सहजानंद स्वामी बन गए.
प्रकाश शाह कहते हैं कि जब 200 साल पहले घनश्याम पांडे ने स्वामीनारायण संप्रदाय की नींव रखी तो कुछ अच्छी चीज़ें भी हुईं.
उन्होंने ग़ैर-ब्राह्मण और ग़ैर-बनिया जातियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की. प्रकाश शाह मानते हैं कि ''हर संगठन ख़ुद को स्थापित करने के लिए पहले कुछ ऐसा करता है ताकि उसके साथ ज़्यादा से ज़्यादा लोग जुड़ सकें लेकिन, जैसे ही चीज़ें संगठित हो जाती हैं तो असली चेहरा सामने आता है.''
गौरांग जानी कहते हैं कि सहजानंद स्वामी ने जीते जी अपना मंदिर बनवाया था.
सेंटर फोर सोशल नॉलेज एंड एक्शन अहमदाबाद के अच्युत याग्निक बताते हैं कि 19वीं सदी में ही स्वामीनारायण ने अपने दो भतीजों को यूपी से बुलाया. एक को कालूपुर मंदिर की गद्दी दी और दूसरे भतीजे को वडताल मंदिर की.
लेकिन उनका दोनों भतीजों को गद्दी देना लोगों को रास नहीं आया. इसे लेकर विरोध शुरू हुआ. विरोध के बाद स्वामीनारयण संप्रदाय दो खेमों में बंट गया. घनश्याम पांडे के खेमे ने वंश परंपरा को स्वीकार किया और दूसरे खेमे ने साधु परंपरा को अपनाया.
20वीं शताब्दी में साधु परंपरा के शास्त्री महाराज ने नई गद्दी चलाई. इस गद्दी को नाम दिया गया बोचासनवासी अक्षय पुरुषोत्तम संप्रदाय. यह संप्रदाय आधुनिक समय में बाप्स नाम से लोकप्रिय है. बाप्स परंपरा के लोगों को ही साधु परंपरा वाला कहा जाता है.
स्वामीनारायण संप्रदाय वैष्णव परंपरा का हिस्सा है और कहा जाता है कि यह ब्राह्मणों और जैनों के प्रभुत्व को चुनौती देते हुए सामने आया. इसने वल्लभाचार्य परंपरा को भी कटघरे में खड़ा किया.
अच्युत याग्निक बताते हैं कि बाप्स परंपरा वालों में पाटीदारों का प्रभुत्व रहा है. बाप्स परंपरा के सामने वंश परंपरा वाले स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त कमतर होती गई. अक्षर पुरुषोत्तम पाटीदार थे.
याग्निक कहते हैं, ''19वीं शताब्दी के आख़िर में पाटीदारों की आर्थिक हैसियत काफ़ी मजबूत हुई. इसी दौरान पाटीदार समुदाय से ही ताल्लुक रखने वाले वल्लभभाई पटेल का भी दायरा बढ़ रहा था.''
दरअसल, 19वीं सदी के अंत और बीसवीं सदी के आख़िर में यहां अकाल पड़ा था. याग्निक कहते हैं कि ''अकाल से बचने के लिए पाटीदार बड़ी संख्या में पूर्वी अफ़्रीका और इंग्लैंड गए. इसके साथ ही वल्लभभाई पटेल के कारण बड़ी संख्या में लोगो कांग्रेस में भी शामिल हुए. पाटीदारों ने छोटे, मझोले उद्योग-धंधों में भी पांव पसारना शुरू कर दिया था.
अक्षर पुरुषोत्तम के बाद योगी महाराज को गद्दी मिली और इनके बाद प्रमुख स्वामी आए. प्रमुख स्वामी भी पाटीदार ही थे. दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में प्रमुख स्वामी की ही मूर्ति है.
याग्निक बताते हैं कि गुजरात में दो तरह के बनिया होते हैं- एक वैष्णव बनिया और दूसरे जैन बनिया. इन दोनों की ताक़त को पाटीदारों ने ही चुनौती दी. गुजरात यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस के प्रोफ़ेसर गौरांग जानी बताते हैं कि गुजरात में पाटीदारों का उभार ही स्वामीनारायण का उभार है.
स्वामीनारायण संप्रदाय की ताक़त का अंदाज़ा इसी से लगा सकते हैं कि 1987 में गुजरात के जाने-माने इतिहासकार मकरंद मेहता ने स्वामीनारायण के ख़िलाफ़ एक लेख लिखा तो मुक़दमा कर दिया गया. वो मुक़़दमा आज भी चल रहा है. तब कांग्रेस की सरकार थी और अमर सिंह चौधरी मुख्यमंत्री थे.
याग्निक कहते हैं वल्लभाचार्य और विट्ठलाचार्य के महिलाओं को लेकर स्कैंडल के कारण स्वामीनारयण को और बल मिला. इसी स्कैंडल को ध्यान रखते हुए यह नियम बनाया गया कि स्वामीनारायण संप्रदाय के साधु महिलाओं को देख भी नहीं सकते. यह नियम आज भी उतना ही सख्त है.
गौरांग जानी ने बताया, ''वल्लभभाई पटेल के पिताजी स्वामीनारायण मंदिर में ही बैठे रहते थे. राजमोहन गांधी ने पटेल पर लिखी अपनी किताब में एक दिलचस्प वाक़ये का ज़िक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि स्वामीनारायण का एक साधु एक मुक़दमे में फंस गया तो वल्लभभाई पटेल के पिता ने अपने बेटे से उस साधु को बचाने के लिए कहा था. इस पर सरदार पटेल ने अपने पिता को कहा था कि उसने जो किया उसे वो ख़ुद भुगतेगा.''
प्रकाश शाह के अनुसार, ''स्वामीनारायण संप्रदाय और ब्रिटिश शासकों के बीच समझौता था. ये एक दूसरे की मदद करते थे. गांधी जी को लगता था कि यह संप्रदाय धर्म के नाम पर पागलपन को बढ़ावा दे रहा है.''
आख़िर मकरंद मेहता के उस लेख में क्या था कि उन पर मुक़दमा किया गया?
प्रकाश शाह कहते हैं कि मकरंद मेहता ने जो लिखा उसका ठोस आधार था. उन्होंने लिखा था कि सहजनानंद स्वामी ने अपने शिष्यों से कहा कि ''आप मेरी इतनी प्रशंसा कीजिए कि मेरी महिमा हर जगह हो.'' उन्होंने चमत्कारों के बारे में लोगों से बताने के लिए कहा था.
प्रकाश शाह बताते हैं कि पिछले 25 सालों में स्वामीनारायण संप्रदाय का राजनीति से संपर्क गहरा हुआ है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी से इनके संबंध काफ़ी अच्छे रहे हैं.
शाह कहते हैं, ''जैसे बीजेपी के हिन्दू धर्म के अन्य संप्रदायों और शक्ति के केंद्रों से अच्छे संबंध हैं वैसे ही यहां स्वामीनारायण से भी है. चाहे बाबा रामदेश हों या श्री श्री रविशंकर. सबसे बीजेपी के अच्छे संबंध हैं. बीजेपी का स्वामीनारायण के साथ रिश्ता काफ़ी अहम है. स्वामीनारायण का ही एक संगठन है अनुपम मिशन जो यूनिवर्सिटी में वीसी की नियुक्ति करता है.''
प्रकाश शाह कहते हैं स्वामीनारायण मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए कांग्रेस ने गुजरात में सत्याग्रह शुरू किया था. मंदिरों में पहले दलितों को प्रवेश नहीं था. शाह कहते हैं कि स्वामीनारायण में मंदिर में भी साधुओं के बीच जाति को लेकर भेदभाव है. उन्होंने कहा कि भगवा ऊंची जाति वाले पहनते हैं और सफ़ेद नीची जाति वाले.
गौरांग जानी कहते हैं, ''बीजेपी के लिए स्वामीनारायण संप्रदाय ऊर्वर ज़मीन की तरह रहा है. बीजेपी ने गांधी को पीछे रख दिया और स्वामीनारायण को आत्मसात कर लिया''۔
अहमदाबाद के वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई के मुताबिक स्वामीनारायण मंदिर से राजनीतिक पार्टियों को चंदा भी मिलता है.

900 वर्ष के गोरक्षक: देवरहा बाबा



900 वर्ष के गोरक्षक: देवरहा बाबा

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"




एक व्यक्ति का जीवन यानी कि उसकी आयु कितनी लंबी होती है? 50 वर्ष? 60 वर्ष? 70 वर्ष या फिर यदि वह हमेशा से काफी हष्ट-पुष्ट रहा हो तो 100 वर्ष के आसपास की उम्र को छू लेता है और दुनिया के सामने एक मिसाल बनता है। क्योंकि आज के जमाने में यदि कोई व्यक्ति 100 वर्ष से ज्यादा उम्र काट लेता है तो उसे रिकार्ड माना जाता है।
दुनिया भर में उसकी प्रशंसा की जाती है तथा उसे विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जाता है। लोग उनसे उनकी लंबी आयु के राज पूछते हैं तथा वैज्ञानिक भी उनके ऊपर विभिन्न शोध करके यह पता लगाते हैं कि वे आखिरकार इतना लंबा जीवन काटने में कैसे सफल हुए?
लेकिन इन रिकार्डों से बहुत ऊपर हैं एक योगी। दरअसल उन्हें ‘महायोगी’ कहकर बुलाया जाता था। कहते हैं उनकी आयु 900 वर्ष से भी ज्यादा की थी। जी हां, 100 या 200 नहीं बल्कि 900 वर्ष से भी अधिक।
पहली बार में यह जानकर कोई भी विश्वास नहीं कर सकता है लेकिन लोक प्रचलित कहानियों के आधार पर ही यह बात सामने आई है। भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी रहते थे जिनका नाम था ‘देवरहा बाबा’। कहते हैं कि देवरहा बाबा एक सिद्ध महापुरुष एवं संत पुरुष थे।
दुनिया के कोने-कोने से महान एवं प्रसिद्ध लोग उनके दर्शन करने आते थे। उनके चेहरे पर एक अलग किस्म की चमक थी और लोगों का यह तक मानना था कि बाबा के पास चमत्कारी शक्तियां भी थीं।
लेकिन इन सभी तथ्यों से हटकर जो एक बात हर किसी के मन में आती है कि ‘क्या सच में बाबा की आयु 900 वर्ष से भी अधिक थी’? बाबा की उम्र को लेकर लोगों में अलग-अलग मत प्रसिद्ध हैं। कुछ लोग उनका जीवन 250 वर्ष का मानते हैं तो कुछ का कहना है कि बाबा की उम्र 500 वर्ष की थी।
लेकिन हैरानी तब होती है जब लोग कहते हैं कि उनकी उम्र तो 900 वर्ष से भी अधिक थी। परन्तु बाबा कहां से आए थे, उनका जन्म, उनका जीवन आज तक लोगों के बीच पहेली बना हुआ है। कहते हैं यह कोई नहीं जानता था कि देवरहा बाबा का जन्म कब हुआ।
उनके जन्म की तारीख, जन्म स्थान तथा वे कब और कहां से आए यह सभी तथ्य अज्ञात हैं। यहां तक कि उनकी सही उम्र का आंकलन भी नहीं है। बस लोग इतना जानते हैं कि वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। और उन्होंने अपने आखिरी श्वास मंगलवार, 19 जून सन् 1990 को योगिनी एकादशी के दिन लिए थे। बाबा के संदर्भ में लोग अलग-अलग कहानियां सुनाते हैं, जिसमें से एक कहानी काफी दिलचस्प है।
बाबा की करीब 10 सालों तक सेवा करने वाले मार्कण्डेय महाराज के मुताबिक बाबा निर्वस्त्र रहते थे। वे धरती से 12 फुट उंचे लकड़ी से बने बॉक्स में रहते थे और केवल तभी नीचे आते थे जब सुबह के समय उन्हें स्नान करना होता था।
ऐसा माना जाता है कि बाबा ने कई वर्षों तक हिमालय में साधना की थी। लेकिन कितने वर्ष, यह कोई नहीं जानता। क्योंकि हिमालय में उनकी उपस्थिति अज्ञात थी। हिमालय की गोद में जप-तप करने के पश्चात ही बाबा ने उत्तर प्रदेश के देवरिया क्षेत्र की ओर प्रस्थान किया।
यहां बाबा ने वर्षों निवास किया और अपने धर्म-कर्म से लोगों के बीच प्रचलित हुए। देवरिया में बाबा सलेमपुर तहसील से कुल दूरी पर ही स्थित सरयू नदी के किनारे रहते थे। यह वही स्थान है जहां भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार श्रीराम को त्याग कर वापस वैकुण्ठ लौटे थे।
इस नदी के किनारे बाबा ने वर्षों तक अपना डेरा जमाए रखा और इसी क्षेत्र से बाबा को ‘देवरहा बाबा’ का नाम प्राप्त हुआ। कहते हैं बाबा बहुत बड़े रामभक्त थे। उनके भक्तों को हमेशा ही उनके मुख पर ‘राम नाम’ सुनाई देता था।
वह अपने भक्तों को भी श्रीराम के जीवन से जुड़े तथ्य बताते तथा उन्हें जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करते। बाबा अपने भक्तों के जीवन के कष्टों को कम करने के लिए श्रीराम तथा श्रीकृष्ण मंत्र देते थे। वे श्रीराम तथा श्रीकृष्ण को एक ही मानते थे। इन दो अवतारों के अलावा बाबा गोसेवा में भी पूर्ण विश्वास रखते थे।
उनके लिए जनसेवा तथा गोसेवा एक सर्वोपरि-धर्म था। वे अपने पास आए प्रत्येक भक्त को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। वे हमेशा ही लोगों को गोहत्या के विरुद्ध में खड़े होने की प्रेरणा देते थे।
प्रयागराज में सन् 1989 में महाकुंभ के पावन पर्व पर विश्व हिन्दू परिषद् के मंच से बाबा ने अपना पावन संदेश देते हुए कहा था – “दिव्यभूमि भारत की समृद्धि गोरक्षा, गोसेवा के बिना संभव नहीं होगी। गोहत्या का कलंक मिटाना अत्यावश्यक है।“
लेकिन उम्र के संदर्भ में जिस प्रकार के तथ्य लोग बताते हैं वह काफी आश्चर्यजनक हैं। लोग कहते हैं कि बाबा की शारीरिक अवस्था वर्षों तक एक जैसी ही रहती थी। जिस किसी इंसान ने वर्षों पहले उन्हें देखा था वह यदि कितने ही सालों बाद भी उनके दर्शन करता था तो उसे उनमें कोई बदलाव नज़र नहीं आता था।
बाबा के दर्शन करने आए लोग उनसे मिलकर काफी प्रसन्न भी होते थे। बाबा हमेशा कुछ ऊंचाई पर बैठकर अपने भक्तों से मिलते थे तथा सभी की बात ध्यान से सुनते थे। लोग बताते हैं कि बाबा अपने भक्तों से मिलकर काफी खुश होते थे और उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते थे।
उनका अपने भक्तों को प्रसाद देने का तरीका भी काफी अचंभित करने वाला था जिस पर विश्वास कर सकना भी मुश्किल है। कहते हैं जब कोई भक्त उनसे प्रसाद की कामना करता तो बाबा उस ऊंचे मचान पर बैठे ही अपना हाथ मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मिठाइयां या अन्य खाद्य पदार्थ अपने आप ही आ जाते थे।
यह देख लोगों को अचंभा होता था कि आखिरकार खाली पड़े मचान में से बाबा के हाथ में प्रसाद कैसे आया। कुछ लोगों का मानना था कि बाबा अपनी अदृश्य शक्तियों की सहायता से कहीं भी चले जाते थे तथा अपने भक्तों के लिए प्रसाद ले आते थे।
लोगों का यह भी मानना है कि बाबा ने वर्षों तक अपने सूक्ष्म शरीर में भी तपस्या की इसलिए उनकी उम्र का सही अनुमान लगाना लोगों के लिए और भी मुश्किल हो गया। अक्सर उनकी इतनी अधिक उम्र को जानकर लोग यह सोचते हैं कि बाबा काफी पौष्टिक आहार लेते होंगे।
लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जन श्रुतियों के मुताबिक बाबा ने अपने पूरे जीवन में कभी कुछ नहीं खाया। वे केवल दूध और शहद पीकर जीते थे। इसके अलावा श्रीफल का रस भी उन्हें बेहद पसंद था।
देवरहा बाबा की चमत्कारी शक्तियों से आकर्षित होकर देश की कई नामी हस्तियां भी उनके दर्शन करने आती थीं। इस लिस्ट में राजेंद्र प्रसाद, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और कमलापति त्रिपाठी जैसे राजनेताओं का नाम शामिल है।
कहते हैं कि देश में आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी हार गई थीं तो वे देवरहा बाबा के पास अपनी समस्या का हल मांगने आई थीं। तब बाबा ने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया और तभी से कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा है। मान्यतानुसार, बाबा से मिलने के बाद हुए चुनावों में इंदिरा गांधी जीत भी गई थीं।

बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना।

भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं, तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की थी।
कोई 1987 के जून महीने की बात है। देवरहा बाबा का वृंदावन में यमुना पार पर डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने के आतुर थे। अधिकारियों में उनकी सुरक्षा को लेकर हलचल मची हुई थी। प्रधानमंत्री के आगमन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर बाबा आग-बबूला हो गये।
उन्होंने साफ शब्दों में अधिकारियों को बोलाः
तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
अफसरों ने अपनी दुविधा प्रकट की बाबा ने ही उन्हें सांत्वना दी और कहा कि फिक्र मत करो, अब तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैन्सिल करा देता हूं। दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां स्वयं बाबा के दर्शन करने के लिए आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग?
बाबा देवरहा 30 मिनट तक पानी में बिना सांस लिए रह सकते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा।


मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते।
बाबा ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। जन स्वास्‍थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे!

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...