महाराष्ट्र के संत: गजानन महाराज
सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"
मो. 09969680093
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक
एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल
“वैज्ञनिक” ISSN
2456-4818
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॥ अनंत कोटी ब्रम्हाण्ड नायक महाराजाधिराज योगीराज परब्रम्ह सच्चिँतानंद
भक्त प्रतिपालक शेगाँव निवासी समर्थ सदगुरु श्री संत गजानन महाराज की जय॥
भक्त प्रतिपालक शेगाँव निवासी समर्थ सदगुरु श्री संत गजानन महाराज की जय॥
गण गण गणात बोते!!
गजानन महाराज का यह मंत्र भक्तो को आनन्दित कर देता है। प.पू. श्री गजानन महाराजजी को कोई रामावतार
कहता, कोई कृष्णावतार, तो कोई भगवान शिवशंकर शेगाव में प्रकट हुए हैं, ऐसा मानते थे।
गजानन महाराज का जन्म कब हुआ, उनके माता-पिता कौन थे, इस बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। पहली बार गजानन महाराज को वरहाड क्षेत्र के शेगाव (शिवगाव, महाराष्ट्र में) में 23 फरवरी 1878 में बनकट लाला और दामोदर नमक दो व्यक्तियों ने देखा। उन्होने देखा एक श्वेत वर्ण सुंदर बालक झूठी पत्तल में से चावल खाते हुए 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण कर रहा था। 'गं गं गणात बूते' का उच्चारण करने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा।
उस
समय प.पू.
श्री गजानन महाराज, वहां के साधु देविदास पातुरकजी के मठ
के बाहर पडे भोजनपत्र के जूठे कण खा
रहे थे। जानवरों के लिए
रखे पानी को पीकर वे वहां से चले
गये।
गजानन महाराज के कई चमत्कारों को भक्तों ने प्रत्यक्ष देखा है।
उन दिनों ब्रह्मनिष्ठ गोविंद महाराज टाकळीकरजी का शेगाव के श्री महादेव मंदिर में कीर्तन हुआ। टाकळीकर महाराजजी के घोडे के चार पैरों के बीच प.पू. श्री गजानन महाराज ब्रह्मानंद में लीन होकर सोए थे। वह अनियंत्रित घोडा उस समय शांत होकर खडा था। कीर्तन समाप्त होनेपर गोविंद महाराज मंदिर में सोए परंतु उनका ध्यान उस घोडेपर गया। सदैव अशांत रहनेवाला घोडा आज शांत कैसे खडा है? इस बात का उन्हें आश्चर्य हुआ। वहां जाकर देखनेपर श्री गजानन महाराजजी घोडे के चारों पैरों के बीच सोए हुए दिखे।
दूसरे दिन कीर्तन में श्री टाकळीकर महाराजजीने बताया,”प.पू. श्री गजानन महाराज साक्षात् शिवअवतार हैं,उनकी उपेक्षा न करें”। श्री टाकळीकर महाराजजी
ने श्री गजानन महाराज
जी की पूजा की। अब लोग उन्हें ‘श्री गजानन महाराज’ संबोधित करने लगे। वे कुछ भी खा लेते, कहींपर भी पडे रहते थे। कहीं भी घूमते थे। लोग उन्हें अनमोल वस्त्र, अलंकार, पैसे, खाद्यपदार्थ अर्पण करते परंतु वे उसे वहींपर छोडकर चले जाते। लोगों को उनके दर्शन से मनःशांति मिलती थी।
एक बार
जब
महाराज
दिगंबर
होकर
तपस्या
कर रहे
थे
तब
एक
स्त्री
उन
पर
मोहित
होकर
उनके
पास
गई, लेकिन
उसने
देखा
कि महाराज
के
तेज
से
नीचे
रखी
घास
भस्म
हो
गई
है।
उस
स्त्री
को
महाराज
के प्रति
गलत
भाव
रखने
का
बहुत
पछतावा
हुआ
और
उसने
उनसे
क्षमा
मांगी।
गजानन महाराज के चित्र में उन्हें चिलम पीते हुए दिखाया जाता है। गजानन महाराज नियमित चिलम पिया करते थे, लेकिन उन्हें चिलम पीने की लत नहीं थी। माना जाता है कि वे अपने बनारस के भक्तों को खुश करने के लिए चिलम पीया करते थे।
उस समय गांवों मे आज की तरह
माचिस नहीं होती थी। अत: लोग अग्नि लगातार प्रज्ज्वलित रखते थे नहीं तो किसी से
मांग लेते थे। एक बार बच्चों ने गजानन महाराजजी को चिलम भरकर दी और अग्नि लाने के लिये बंकटलालने उन्हें गली में रहनेवाले जानकीराम सोनार के पास भेजा उसका सोना-चांदी का बडा धंधा था। वह नली फूंकते हुए अपना काम रहा था। बच्चोंने उससे अग्नि मांगी। उसने बच्चों से कहा,”अग्नि नहीं दूंगा”, और महाराजजी की निंदाकर बच्चों को भगा दिया। बच्चोंने महाराजजी को सोनार के विषय में बतानेपर उन्होंने कहा, “अरे! चिलिमपर लकडी रखो, अग्नि प्रज्वलित होगी”
। बंकटलालने प.पू. श्री गजानन महाराजजी के चिलमपर लकडी रखते ही चिलम में तत्काल अग्नि प्रज्वलित हो गई। प.पू. महाराजजी के श्रीमुख से धुआं निकलने लगा।
एक बार शेगाव के खंडू पाटील महाराजजी के पास आए। उन्हें कोई संतान नहीं थी। उसने महाराजजी के चरण पकडकर याचना की,”स्वामी, मुझे एक पुत्र दें”
। महाराजजी ने कहा, “अरे! तू धनवान पाटील होकर मुझसे भीख मांगता है? जा, तुझे संतान होगी
पर उसका नाम भिक्या रखना!”
कुछ समय पश्चात खंडू पाटील को पुत्र हुआ। उसका नाम भिक्या रखा गया। खंडू पाटीलने प्रसन्न होकर पूरे गांव को आम रस-पूरी का भोजन खिलाया।
एक बार
महाराज
आंगन
कोट
में
भ्रमण
कर
रहे थे।
तेज
गर्मी
के
कारण
उन्हें
प्यास
लगी।
उन्होंने
वहां
से
गुजर
रहे
भास्कर पाटिल
से
पानी
मांगा, लेकिन
उसने
पानी
देने
से
मना
कर
दिया।
तभी
महाराज
को वहां
कुआं
दिखा, जो 12 वर्षों
से
सूखा
पड़ा
था।
महाराज
कुएं
के
पास
जाकर बैठ
गए
और
ईश्वर
का
जाप
करने
लगे।
जाप
के
तप
से
कुआं
पानी
से
भर
गया।
आषाढ शुक्ल एकादशी को श्री.हरी पाटील को साथ लेकर प.पू.
गजानन महाराजजी पंढरपूर में
भगवान विठ्ठलजी के दर्शन हेतु गए। भक्तगण तथा पचास अन्य शेगाव के निवासी महाराजजी के
साथ थे।
‘जय
जय रामकृष्ण हरी!’
कहते हुए
झांझ-मृदंग की ध्वनि करते हुए
फेरी चली
एवं गजानन महाराजजी के साथ
फेरी पंढरपुर में आई। भगवान विठ्ठलजी के दर्शन की इच्छा महाराजजी ने
पूर्ण की।
महाराजजीने पंढरपुर में बापू काळे को श्रीविठ्ठल स्वरुप में दर्शन दिए। पंढरपुर की यात्रा समाप्तकर श्री विठ्ठल नाम
का नामजप करते हुए
शेगाव के
निवासी लौट
आए।
८ सितम्बर १९१० में महाराज ने समाधी ली। जिस स्थान पर महाराज ने समाधी ली उस जगह पर उनका मंदिर बनवाया गया। संत गजानन महाराज संस्थान सम्पूर्ण विदर्भ सबसे बड़ा संस्थान है और यह संस्थान को “विदर्भ का पंढरपुर” भी माना जाता है। सारे महाराष्ट्र से श्रद्धालु भक्त यहाँ पर आते है।
महाराज के सम्मान हेतु सम्पूर्ण महाराष्ट्र में उनके मंदिर बनवाये गए। उन्होंने अपनी जादातर जिंदगी शेगाव में ही बिताई जो की अकोला जिले (महाराष्ट्र) के काफ़ी नजदीक है जहा पर उन्होंने चिर समाधि ली थी। महाराज के भक्तो के लिए शेगाव के मंदिर का विशेष महत्व है, फिर भी महाराष्ट्र के हर जिले में हमें गजानन महाराज के मंदिर देखने को मिलते है।
.................... क्रमश:
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(तथ्य, कथन गूगल से साभार)
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह
आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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