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Wednesday, August 14, 2019

कम्बल चोर और बृक्ष त्रिवेणी

 कम्बल चोर और बृक्ष त्रिवेणी

 

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"


 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
पूर्व सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet

तर्क वो करे जो विषय का पूर्ण जानकार हो।

तर्क का विषय चाहे कुछ भी हो भाषा मर्यादित रहे।

जब तर्क चले कोई अन्य सदस्य बीच में रोक टोक न करे।

तर्क में यदि किसी धर्म, संप्रदाय, भाषा, व्यक्ति पर हो तो जानकार ही बोले।

किसी के गुरु को लेकर तर्क करने से बचे जब तक आवश्यक न हो

शब्द और पोस्ट ज्यादा न हो कम से कम शब्द और अनुकरणीय शब्दो का ही प्रयोग करे।

पुस्तक आधारित तर्क और अनुभव आधारित तर्क एक साथ न हो अर्थात या तो तर्क पुस्तक आधारित हो या अनुभव आधारित।

अनुभव आधारित तर्क ही अधिकतम मान्य होंगे,

तर्क का उद्देश्य विद्वत्ता साबित करना न हो अपितु कल्याण की भावना हो।

मित्र स्वामी शिवोम तीर्थ जी महाराज। गूगल में डालो। मिल जाएगा।


मित्रो। कल मेरे एक ग्रुप सदस्य मित्र की पत्नी को विगत चार दिनों से साधना के समय कोई सुंदर सी वृद्ध स्त्री पास आकर बैठ जाती थी। मेरे कथनानुसार बात करने कल रात पर वह स्त्री देवी अष्टभुजा का रूप धारण कर काफी देर तक लीला करती रही। और भी कुछ हुआ। साक्षात प्रसाद का भी प्रदान हुआ।

निराकार वाले ज्ञानी अभी भी कहेंगे। ईश तो निराकार ही है।

उन ज्ञानियों को गीता का यदा यदाहि धर्मस्य श्लोक समझ लेना चाहिए जो साफ साफ कहता है। मैं अनिको शरीर धारण कर सन्तो की रक्षा करता हूँ।

जय माता दी। जय गुरुदेव।

भक्त की श्रद्धा mmstm में विश्वास ने आज एक और मील का खम्भा गाड़ दिया।

जय हो सत्य सनातन

जय हो सनातन शक्ति।

ग्रुप के अन्य सदस्य यदि चाहे तो अपनी अनुभूति शेयर कर सकते है ताकि अन्य को भी प्रेरणा मिले।

निवेदन है अब  कुछ श्रीमद्भगवद्गीता पर भी व्याख्या प्रस्तुत करें।

एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था।

सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था।

सर्द रात, फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।


उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो?

फकीर बोला कि आप आए थे - जीवन में पहली दफा,

यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया!

लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं।

तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया।

 

ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं,

सिसकियां निकल गईं,

क्योंकि घर में कुछ है नहीं।

तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता

दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।

अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।


चोर घबरा गए, उनकी कुछ समझ में नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला नहीं था।

चोरी तो जिंदगी भर की थी,

मगर ऐसे आदमी से पहली बार मिलना हुआ था।


*भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां?*

*शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां?*


पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए।


मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! क्योंकि इस के पास कुछ और है भी नहीं,

कंबल लिया तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना।


लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। फिर तुम आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं।

तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।


चोर तो ऐसे घबरा गए और एकदम निकल कर झोपड़ी से बाहर हो गए।

जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो।

आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा।


कुछ ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।

फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा।

*कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, वही तो ईश्वर है।*


कुछ समय बाद वो चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला,

वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था।

वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था।


जज तत्‍क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है।

तो तुमने उस फकीर के यहां से भी चोरी की है?

फकीर को बुलाया गया। और जज ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है,

तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है।

उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।

फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा।


चोर तो घबरा रहे थे, काँप रहे थे

जब फकीर अदालत में आया।

और फकीर ने आकर जज से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं।

मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था।

और जब धन्यवाद दे दिया,

बात खत्म हो गई।


मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं,

ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।

जज ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।


चोर फकीर के पैरों पर गिर पड़े और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो।

वे संन्यस्त हुए।

और फकीर बाद में खूब हंसा।

और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।

इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थी।


झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया

उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे।

इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था,

गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे।

यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले ही आएगा तुमको

उस दिन चोर की तरह आए थे

आज शिष्य की तरह आए।

मुझे भरोसा था।

क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।

श्रीरामचरितमानस : उत्तर काण्ड

सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ । भूलेहुँ संगति करिअ न काऊ ।।

तिन्ह कर संग सदा दुखदाई । जिमि कपिलहि घालइ हरहाई ।।


अब असंतों दुष्टों का स्वभाव सुनो, कभी भूलकर भी उनकी संगति नहीं करनी चाहिए। उनका संग सदा दुःख देने वाला होता है। जैसे हरहाई (बुरी जाति की) गाय कपिला (सीधी और दुधार) गाय को अपने संग से नष्ट कर डालती है ।।


खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी । जरहिं सदा पर संपति देखी ।।

जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई । हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई ।।


दुष्टों के हृदय में बहुत अधिक संताप रहता है। वे पराई संपत्ति (सुख) देखकर सदा जलते रहते हैं। वे जहाँ कहीं दूसरे की निंदा सुन पाते हैं, वहाँ ऐसे हर्षित होते हैं मानो रास्ते में पड़ी निधि (खजाना) पा ली हो ।।


काम क्रोध मद लोभ परायन । निर्दय कपटी कुटिल मलायन ।।

बयरु अकारन सब काहू सों । जो कर हित अनहित ताहू सों ।।


वे काम, क्रोध, मद और लोभ के परायण तथा निर्दयी, कपटी, कुटिल और पापों के घर होते हैं। वे बिना ही कारण सब किसी से वैर किया करते हैं। जो भलाई करता है उसके साथ बुराई भी करते हैं ।।


झूठइ लेना झूठइ देना । झूठइ भोजन झूठ चबेना ।।

बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा । खाइ महा अहि हृदय कठोरा ।।


उनका झूठा ही लेना और झूठा ही देना होता है। झूठा ही भोजन होता है और झूठा ही चबेना होता है।

(अर्थात्‌ वे लेने-देने के व्यवहार में झूठ का आश्रय लेकर दूसरों का हक मार लेते हैं अथवा झूठी डींग हाँका करते हैं कि हमने लाखों रुपए ले लिए, करोड़ों का दान कर दिया। इसी प्रकार खाते हैं चने की रोटी और कहते हैं कि आज खूब माल खाकर आए, अथवा चबेना चबाकर रह जाते हैं और कहते हैं हमें बढ़िया भोजन से परहेज है, इत्यादि।

मतलब यह कि वे सभी बातों में झूठ ही बोला करते हैं।) जैसे मोर साँपों को भी खा जाता है। वैसे ही वे भी ऊपर से मीठे वचन बोलते हैं। (परंतु हृदय के बड़े ही निर्दयी होते हैं) ।।


पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद । ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद ।।


वे दूसरों से द्रोह करते हैं और पराई स्त्री, पराए धन तथा पराई निंदा में आसक्त रहते हैं। वे पामर और पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही तो हैं ।।


लोभइ ओढ़न लोभइ डासन । सिस्नोदर पर जमपुर त्रास न ।।

काहू की जौं सुनहिं बड़ाई । स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई ।।


लोभ ही उनका ओढ़ना और लोभ ही बिछौना होता है (अर्थात्‌ लोभ ही से वे सदा घिरे हुए रहते हैं)। वे पशुओं के समान आहार और मैथुन के ही परायण होते हैं, उन्हें यमपुर का भय नहीं लगता। यदि किसी की बड़ाई सुन पाते हैं, तो वे ऐसी (दुःखभरी) साँस लेते हैं मानों उन्हें ज्वर आ गया हो ।।


जब काहू कै देखहिं बिपती । सुखी भए मानहुँ जग नृपती ।।

स्वारथ रत परिवार बिरोधी । लंपट काम लोभ अति क्रोधी ।।


और जब किसी की विपत्ति देखते हैं, तब ऐसे सुखी होते हैं मानो जगत्‌भर के राजा हो गए हों। वे स्वार्थपरायण, परिवारवालों के विरोधी, काम और लोभ के कारण लंपट और अत्यंत क्रोधी होते हैं ।।


मातु पिता गुर बिप्र न मानहिं । आपु गए अरु घालहिं आनहिं ।।

करहिं मोह बस द्रोह परावा । संत संग हरि कथा न भावा ।।


वे माता, पिता, गुरु और ब्राह्मण किसी को नहीं मानते। आप तो नष्ट हुए ही रहते हैं, (साथ ही अपनी संगत से) दूसरों को भी नष्ट करते हैं। मोहवश दूसरों से द्रोह करते हैं। उन्हें न संतों का संग अच्छा लगता है, न भगवान्‌ की कथा ही सुहाती है ।।


अवगुन सिंधु मंदमति कामी । बेद बिदूषक परधन स्वामी ।।

बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा । दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा ।।


वे अवगुणों के समुद्र, मन्दबुद्धि, कामी, वेदों के निंदक और जबर्दस्ती पराए धन के स्वामी होते हैं। वे दूसरों से द्रोह तो करते ही हैं, परंतु ब्राह्मण द्रोह विशेषरूप से करते हैं। उनके हृदय में दम्भ और कपट भरा रहता है, परंतु वे ऊपर से सुंदर वेष धारण किए रहते हैं ।।


ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेताँ नाहिं। द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं ।।

ऐसे नीच और दुष्ट मनुष्य सत्ययुग और त्रेता में नहीं होते। द्वापर में थोड़े से होंगे और कलियुग में तो इनके झुंड के झुंड होंगे ।।

(यह प्रसंग है - भरतजी की जिज्ञासा पर भगवान का उपदेश)


देखो तुम जिस मार्ग पर हो। वहाँ दर्शनाभूति किसी भी देव की हो सकती है। पर अपना इष्ट केवल एक बनाओ। मतलब बाइक ग्राउंड देव।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_25.html

मित्र। नाम जप हमें तकलीफ सहने की क्षमता देता है। अतः यह मत सोंचो की प्रभु को याद किया तो सब अच्छा ही अच्छा।

दूसरे बात कि हम बासी भोजन करते है। मतलब पूर्व जन्म के संस्कार जो प्रारब्ध बन जाते है वो भी भोगते है।

आफिस में मुझे सबसे धीरे गति से उन्नति मिली। मेरे कनिष्ठ तक वरिष्ठ हो गए पर मुझे कोई शिकायत या मलाल नही।

क्योकि जीवन का माप दण्ड ये सब कुछ प्रतिशत ही मायने रखता है।

जब भीष्म पितामह शर शैय्या पर पड़े थे तो कृष्ण से पूछा। है मधुसूदन मेरा क्या पाप था जो मैं शर शैय्या पर पड़ा हूँ।

श्रीकृष्ण ने भीष्म को ध्यान के माध्यम से पूर्व जन्मों को देखने को कहा।

भीष्म 72 जन्म देखते गए कही कुछ न मिला। पर 73वे जन्म में उन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठ कर विश्राम करते समय एक छिपकली को यूंही बाण से छेद कर दिया था। छिपकली काफी देर तक तड़प कर मरी।

भीष्म को उस समय का दण्ड भोगना पड़ा क्योकि मात्र मनोरंजन हेतु एक निरीह प्राणी को मारा।

इसी प्रकार हम इस जीवन मे सुख और दुख दोनो भोगते है।

अतः आप निराश न हो। प्रभु के आगे ही रोये अपना दुख व्यक्त करे। जगत मात्र हंसेगा। कोई सहायता न करेगा।

वैसे आप पूजा में क्या करते है किसको जपते है।

आप विष्णु या कृष्ण के मन्त्र का जप करे।

बजरंग बाण दुख निवारण के संकल्प के साथ रोज पाठ करे।

21 दिन तक बजरंग बाण पढ़े। पर विष्णु या कृष्ण का मन्त्र आगे भी करते रहे।

बाकी हरि इच्छा।

देखिये। आप स्वतन्त्र है कि आप मेरी बात न माने।

उचित होगा। आप ब्लाग के कुछ अनुभवित लेख पढ़ ले ताकि कुछ जिज्ञासाएं शांत हो जाये।

लिंक: Freedhyan.blogspot.com

हर रोज की अलग दवा होती है। है समस्या हल का अलग देव।

इस दुनिया मे कुछ अज्ञानी अपूर्ण ज्ञानी कहते है राम सीता हनुमान इत्यादि सब गलत। सब काल्पनिक।

मित्रो पहली बात तो यह कि यही एकमात्र ज्ञानी पैदा हुए है जिनको सरस् ज्ञान है। क्षुद्र नदी भर चल इतराई। वाली बात जरा सा प्रणायाम ध्यान किया पहुँच गए सूर तुलसी के ऊपर मीरा के बाप हो गए हो सब गलत बोलने लगे।

दूसरा सवाल यह है कि तुम अपना कल्याण चाहते कि दुनिया मे बकवास बिखेरने के लिए आये हो। इस जगत में बकवास कर क्या प्राप्त करना चाहते हो क्या दिखाना चाहते हो।

बड़े बड़े मर कर नष्ट होकर विलीन हो गए कुछ कर नही पाए तुम लोगो की आस्था के साथ खिलवाड़ करोगे।

तीसरे तुम्ही एक विद्द्वान पैदा हुए हो बाकी सब मूर्ख। अरे मूर्ख क्यो बकवास में समय नष्ट कर रहे हो। समय को नष्ट करोगे समय तुमको नष्ट कर देगा।

चौथी सबसे बड़ी बात। भले ही यह सब काल्पनिक हो पर इन नामो ने कितनो तारा था तार रहे है और तारते रहेगे।

क्या फर्क पड़ता है कथा सत्य थी या झूठी। सत्य यह है राम कृष्ण हनुमान सदा तारणहार रहे है।

आज भी हनुमान जीवित देव है जो हर व्यक्ति की जो प्रभु प्राप्ति मार्ग पर चलता है उसकी सहायता करते है।

अब प्रश्न यह है कि तुम अपना उद्द्वार करोगे या चांद पर थूकोगे। यदि चांद पर थूकोगए तो वह तुम्हारे ही मुंह पर गिरेगा। यह निश्चित है।अतः बकवास बन्द करो। मत फैलाओ। चुपचाप अपने कल्याण के मार्ग पर चलते रहो।

जय महाकाली गुरूदेव। जय महाकाल।

किसी अन्य ग्रुप में जहाँ मैं सदस्य नही हूँ। वहाँ हनुमान जी का अपमान हो रहा है।

यह गधे जरा सा पढ़ गए। जरा से अनुभव से बौरा गए है| मीन मेख निकालने लगे।

नही। यह जगत है। अल्पज्ञ ज्ञानियों की कमी नही।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_0.html

देखो वाम मार्गी साधना भी सनातन साधना है पर यह मुक्ति नही दे पाती है। ये सिद्ध जल्दी होगी। सिद्धया देगी पर मोक्ष तक यह नही पहुँच पाती है।

प्रायः वाम मार्ग में शक्ति को अपने अधीन करते है। जबकि दक्षिण में शक्ति के अधीन।

इष्ट वह जो आपका कुल देव हो। जो आपको बचपन से लुभाता हो। जिसका नाम संकट में स्वतः निकल आये। जिसके नाम से काम होते हो।

मन के गुलाम होने से अच्छा है बीबी का गुलाम हो जाओ।

जिससे तुम्हे अपनी और अपने पूरे खानदान की कमियां देखने को मिल जाएगी।

कवि बनने को चाहिए| न फूलों का हार।।

कवि बनने को चाहिए। बीबी की फटकार।।

बीबी की फटकार। बनेगी कविता प्यारी।।

तुलसी कालीदास को। जाने दुनिया सारी।।

कह ज्ञानी कविराय। सभी कवि बन जाओ।।

घर जाकर बीबी से। पहले मार खाओ।।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/v-behaviorurldefaultvmlo.html


प्राप्य पुण्य कृतांलोकान् उषीत्वा शास्वतीसमा:। शुचीनाम् श्रीमतां गेहे योग भ्रष्टो अभिजायते।।

अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम्। एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यद्ईदृशम्।।

भावार्थ :- जो भी योगी साधक योगाभ्यास ध्यान साधन करते-करते आत्म स्वरुप को आत्मबोध को उपलब्ध नहीं हो पाते और उनका शरीर बीच में ही  पात हो जाता है।(छूट जाता है) उनको योग भ्रष्ट की संज्ञा से संबोधित किया     जाता है। ऐसे लोग इस लोक में दुर्लभ पावन पवित्र आत्माओं, श्रीमन्तों,योगियों व विद्वानों के कुल में जन्म पाते हैं !!ॐ!!

शाबर मंत्र का निर्माण बाबा गोरखनाथ समय समय पर पूर्वांचल भाषा मे करते रहते थे। कारण यह था कि बीच मे सँस्कृत सिर्फ जन्मने ब्रहामण ही पढ़ सकते थे। अतः अधिकतर भक्त यहॉ तक सन्त ज्ञानेश्वर भी मराठी में आये।

सँस्कृत में निर्माण और अध्य्यन न के बराबर सिर्फ जन्मने ब्राह्मणों द्वारा ही हुआ।

दूसरी बात इस समय तक लगभग सभी मन्त्र तन्त्र इत्यादि कई बार कई सिद्धों द्वारा सभी साकार रूपो में सिद्ध किये जा चुके है। अतः उनको सिद्ध करने में इतनी परेशानी नही होती है।

वैसे भी यह कलियुग है यहाँ भगवान की ओर देखनेवाले भी मुश्किल से मिलते है। सिर्फ भिखारी ही मिलते है जो बस प्रभु को atm कार्ड समझ कर भीख ही मांगते रहते है। मिली तो खुश नही तो मजारों को भी पूजने लगते है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_20.html


http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_91.html

त्रिवेणी का महत्व पर्व मित्तल ने यूं समझाया


वट वृक्ष धीरे-धीरे बहुत बड़े क्षेत्र में अपनी जड़ें फैला लेता है।  उनकी हजारों शाखाएं झुककर पृथ्वी तक आती हैं और पृथ्वी के अंदर नया वट वृक्ष उत्पन्न  कर देती हैं।

वट वृक्ष को शास्त्रों ने ऋषि की संज्ञा दी है। जैसे ऋषियों का जीवन केवल परोपकार के लिये होता है उसी प्रकार वह भी पुरुषार्थ एवं परोपकार का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति की तुलना वट से करना अतिशयोक्ति नहीं होगी। वट वृक्ष को काटने से भी वह बार-बार बढ़ता जाता है। जैसे प्रयाग  के अक्षय वट को जहांगीर ने जिद करके कटवाया था परंतु वह आज भी उतना ही शानदार है। इसी प्रकार भारतीय संस्कृति को भी संसार के अनेक आसुरों, दैत्यों, राक्षसों, यूनानियों, शकों, हूणों, तुर्कों, मुगलों एवं अंग्रेजों आदि ने नष्टï करने का प्रयत्न किया परंतु भारतीय संस्कृति सब प्रहारों को सहकर आज भी पूरी शान के साथ खड़ी है। जैसे वट वृक्ष की हजारों शााखाएं वट वृक्ष का सौंदर्य व बल बढ़ाती हैं उसी प्रकार भारत की हजारों  जातियां, उपजातियां, संप्रदाय, पंथ, भाषाएं व बोलियां उसका उसी प्रकार सौंदर्य व बल बढ़ाती हैं।

वट को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का स्वरूप माना गया है।  वट वृक्ष भारतीय नारियों के लिये दीर्घ जीवन व सुहाग का प्रतीक है।

वट का आयुर्वेदिक महत्व सर्वविदित है। वट का दुग्ध दर्द  निवारक, वर्ण हर एवं नपुंसकता को दूर करता है। वट की दाड़ी की छाल एवं तना अमर-अजर है। इसके सेवन से  बुढ़ापा नहीं आता।


पीपल को भगवान विष्णु का साक्षात रूप माना गया है। भगवान विष्णु जो कि जगत का भरण-पोषण करने वाले हैं, उसी प्रकार पीपल भी दिन-रात प्राण वायु (आक्सीजन) देकर हमें  जीवन प्रदान करता है। पीपल वृक्ष वातावरण के परिष्कारों एवं परिमार्जन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। यह वृक्ष अन्य वृक्षों की अपेक्षा वातावरण में आक्सीजन की मात्रा अधिकतम रूप से अभिवृद्धि करता है तथा प्रदूषित वायु को कम करता है। इसी कारण इस वृक्ष के नीचे ध्यान का विशिष्ट महत्व है। इस तथ्य का श्रीमद्भागवत महापुराण (3/4/8) में बड़े स्पष्ट ढंग से उल्लेख किया गया है। महापुराण के अनुसार द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण इस दिव्य एवं पवित्र वृक्ष के नीचे बैठकर ही ध्यानावस्थित हुए थे। कलियुग में भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति बोधगया में पीपल वृक्ष के  नीचे हुई थी। इसी वजह से इस वृक्ष को बोधिवृक्ष कहा जाता है। आयुर्वेद की दृष्टि में पीपल का बहुत महत्व है। यह 100 अलग-अलग बीमारियों की दवा है। इसकी जड़ें छिलका, पत्ता, दाड़ी एवं फल अलग-अलग रूप से 25-25 बीमारियों को नियंत्रित करते हैं। पीपल का वृक्ष लगाने वाले को ये रोग स्वत: ही नहीं लगते।   यह रक्त शोधन, टीबी, हैजा, पेचिश, कब्ज, अजीर्ण आदि में अचूक दवा है।

‘अश्वत्य: सर्ववृक्षाणां' अर्थात् वृक्षों में पीपल का वृक्ष हूं। भगवान श्री कृष्ण की यह उक्ति पीपल के महत्व  और महत्ता को और  बढ़ाता है। पीपल वानस्पतिक जगत में सर्वश्रेष्ठ है। इसी कारण स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा दी है। नि:संदेह पीपल देववृक्ष है जिससे सात्विक प्रभाव के स्पर्श से अंत:चेतना पुलकित और  प्रफुल्लित होती है, इसलिये पीपल सदा से  ही भारतीय जनजीवन में विशेष रूप से पूजनीय रहा है।


पीपल और वट वृक्ष का जलदान कर पित्तरों को तृप्त करने की दृढ़ मान्यता हिंदुओं में है। जहां पीपल को लगाना इतना पुण्य कार्य है वहीं इस वृक्ष को काटना बड़ा पाप माना जाता है। इसका वैज्ञानिक तर्क भी है। इसकी जड़ों अथवा टहनियों को काटने से यह दूषित वायु छोड़ता है जो कि सीधे हार्ट पर प्रभाव डालती है।


नीम जिसका वैज्ञानिक नाम निम्बिन है, इसके प्रत्येक भाग में मार्गोसीन नामक रसायन पाया जाता है। यह  स्वाद एवं गंध दोनों में कड़वा  पाया जाता है। इसकी पत्तियां, टहनी, छाल,  जड़, फूल और फल सभी औषधीय दृष्टिï से बहुत महत्वपूर्ण हैं।

आयुर्वेद में निम्ब वृक्ष को 100 प्रकार के ज्वर का नाशक बताया है। इसका सेवन सूर्य उदय से सुबह दस बजे तक एवं शाम  3 बजे से सूर्य अस्त तक ही करना चाहिए। यह वात-कफ को हर लेने वाला बताया गया है।

नीम को सृष्टि के संहारक भगवान शिव का रूप माना गया है। अपने औषधीय गुणों के लिये मशहूर नीम के बीज से बने पर्यावरण मित्र और सुरक्षित कीटनाशक के इस्तेमाल के  उत्साहवर्धक नतीजे सामने आये हैं। नीम की छाया ज्यादा शीतलता प्रदान  करती इसलिये गर्मी में चलकर आये व्यक्ति को तुरंत इसकी छाया में विश्राम नहीं करना चाहिए।


अत: बड़, पीपल, नीम का आध्यात्मिक, धार्मिक एवं आयुर्वेद की दृष्टि में महत्वपूर्ण स्थान है। त्रिवेणी  साक्षात  ब्रह्म, विष्णु, शिव का रूप है। त्रिवेणी के जितना सामर्थ्य अन्य की वृक्ष में नही है, जब त्रिवेणी के तीनों वृक्ष एक साथ लगाये जाते है तो इनकी जड़े एक दूसरे में गूँथ जाती है, इनके पत्ते व् टहनियां एक दूसरे में संयुक्त हो जाती है। परिणाम स्वरुप ये वायु का और अधिक परिमार्जन व् परिष्करण कर देते है, केवल त्रिवेणी में ही वो सामर्थ्य है जो आण्विक विकिरणों को अवशोषित कर ले। यदि तीनो वृक्ष अलग अलग लगाये जाये तो वो आण्विक विकिरणों को अवशोषित पूर्णतः नही कर सकते जितने ये संयुक्त रूप से। यदि एक महानगर में चक्रवहुआ आकर में दो दो 5 किलोमीटर के दायरे में त्रिवेणी लगा दी जाये तो वायु प्रदूषण की समस्या स्वतः समाप्त हो जाये, त्रिवेणी भूमि जलस्तर को बढ़ाने में भी मददग़ार है, त्रिवेणी के कारण अकाल की नोबत नही आती।

अत: बच्चे और बूढ़े, स्त्री और पुरुष सभी मनोयोग से एक-एक  त्रिवेणी व पांच अन्य वृक्ष लगायें तो पृथ्वी पुन: सुजलां, सुफलां हो उठेगी।


Tuesday, August 13, 2019

शाबर मंत्र और महत्व

शाबर मंत्र और महत्व

 सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 

पृष्ठ पर जाने हेतु लिंक दबायें: मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य  

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एक समय था कि सँस्कृत मात्र जन्मने ब्राह्मण ही पढ़ सकते थे। उस समय जन्मे गोरखनाथ ने पूर्वी भाषा मे शक्ति देकर कुछ शब्दों को मन्त्र का रूप दे दिया। जो शाबरी मन्त्र कहलाते है। कुछ शिव को इनका जनक मानतें हैं। वैसे शिव का ही रूप गुरू महाराज होते हैं। बाबा गोरखनाथ को शिव का ही रूप मानते हैं।


देखो जब कोई सिद्ध अपनी शक्ति से किसी शब्द को जागृत कर देता है तो वह जागृत ही रहता है।

जैसे आज के समय सारे मन्त्र सारे शब्द नाम जप सब सिद्ध हो चुके है क्योंकि इतने सन्तो ने इनको जपा की ये जागृत ही हो गए है।

शाबर मंत्र आम ग्रामीण बोलचाल की भाषा में ऐसे स्वयंसिद्ध मंत्र हैं जिनका प्रभाव अचूक होता है।


शाबर मंत्र शास्त्रीय मंत्रों की भांति कठिन नहीं होते तथा ये ऐसे हर वर्ग एवं हर व्यक्ति के लिए प्रभावशाली हैं, जो भी इन मंत्रों का लाभ लेना चाहता है।


थोड़े से जाप से भी ये मंत्र सिद्ध हो जाते हैं तथा अत्यधिक प्रभाव दिखाते हैं। इन मंत्रों का प्रभाव स्थायी होता है तथा किसी भी मंत्र से इनकी काट संभव नहीं है।


परंतु ये किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रयोग किए गए अन्य शक्तिशाली मंत्र के दुष्प्रभाव को आसानी से काट सकते हैं। शाबर मंत्र सरल भाषा में होते हैं तथा इनके प्रयोग अत्यंत सुगम होते हैं।


शाबर मंत्र से प्रत्येक समस्या का निराकरण सहज ही हो जाता है। उपयुक्त विधि के अनुसार मंत्र का प्रयोग करके स्वयं, परिवार, अपने मित्रों तथा अन्य लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से कर सकते हैं।


वैदिक, पौराणिक एवम् तांत्रिक मंत्रों के समान ‘शाबर-मंत्र’ भी अनादि हैं। सभी मंत्रों के प्रवर्तक मूल रूप से भगवान शंकर ही हैं, परंतु शाबर मंत्रों के प्रवर्तक भगवान शंकर प्रत्यक्षतया नहीं हैं, फिर भी इन मंत्रों का आविष्कार जिन्होंने किया वे परम शिव भक्त थे।


गुरु गोरखनाथ तथा गुरु मछन्दर नाथ शाबर-तंत्र के जनक हैं। अपने साधन, जप-तप-सिद्धि के प्रभाव से वे भगवान् शिव के समान पूज्य माने जाते हैं। ये अन्य मंत्र प्रवर्तक ऋषियों के समान विश्वास व श्रद्धा के पात्र हैं, पूजनीय व वंदनीय हैं।


शाबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। साधक याचक होता हुआ भी देवता को सब कुछ कहने की सामर्थ्य रखता है और उसी से सब कुछ कराना चाहता है।


विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था।


सामन्तशाही युग में ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले लोग अनाधिकृत कृत्यों के लिए साधारणतया गांव के ठाकुर, गाय या बेटे आदि की सौगन्ध दिलाने पर ही अवैध कार्यों को रोक देते थे।


न्यायालय, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा में आज भी भगवान की ‘शपथ’ लेकर बयान देने की प्रथा है। अधिकांश लोग आज भी अपनी बात का विश्वास दिलाने के लिए सौगन्ध खाया करते हैं।


यह उस समय की स्मृतियां हैं, जब छोटी-छोटी जनजाति तथा उलट-फेर के कार्य करने वाले भी सौगन्ध को नहीं तोड़ते थे। आज परिवर्तन हो गया है- सौगन्ध लोगों के लिए कोई महत्व नहीं रखते, किंतु ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी -देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं।


उन देवों पर जमाने की बेईमानी का कोई असर नहीं हुआ है। शास्त्रीय प्रयोगों में उक्त प्रकार की ‘आन’ नहीं रहती, किंतु शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है।


उसके अंदर छल-कपट नहीं होता, वह तो यही जानता है कि मेरे माता-पिता से मैं जो कुछ कहूंगा, उसे पूरा करेंगे ही। ठीक इसी प्रकार का अटल विश्वास ‘शाबर’ मंत्रों का साधक मंत्र के देवता के प्रति रखता है।


जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।


शाबर मंत्रों में संस्कृत - हिंदी - मलयालम - कन्नड़ - गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं।


प्रत्येक शाबर मंत्र अपने आप में पूर्ण होता है। उपदेष्टा ‘ऋषि’ के रूप में गोरखनाथ, सुलेमान जैसे सिद्ध पुरूष हैं। कई मंत्रों में इनके नाम का प्रवाह प्रत्यक्ष रूप से तो कहीं केवल गुरु नाम से ही कार्य बन जाता है।


शाबर मंत्र शास्त्रीय मान्यता से परे होते हुए भी अशास्त्रीय रूप में अपने लाभ व उपयोगिता की दृष्टि से विशेष महत्व के हैं। शाबर मंत्र ज्ञान की उच्च भूमिका नहीं देता, न ही मुक्ति का माध्यम है। इनमें तो केवल ‘काम्य प्रयोग’ ही हैं।


इन मंत्रों में विनियोग, न्यास, तर्पण, हवन, मार्जन, शोधन आदि जटिल विधियों की कोई आवश्यकता नहीं होती। फिर भी वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि सहकर्मों, रोग-निवारण तथा प्रेत-बाधा शांति हेतु जहां शास्त्रीय प्रयोग कोई फल तुरंत या विश्वसनीय रूप में नहीं दे पाते, वहां ‘शाबर-मंत्र’ तुरंत, विश्वसनीय, अच्छा और पूरा काम करते हैं।


शाबर मंत्र साधना के महत्वपूर्ण बिंदु: इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकते हैं। इन मंत्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयंसिद्ध-साधक रहे हैं।


फिर भी कोई पूर्णत्व को प्राप्त निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए या मिल जाए तो सोने पे सुहागा सिद्ध होगा और उसमें होने वाली किसी भी परेशानी से आसानी से बचा जा सकता है। षट्कर्मों की साधना तो बिना गुरु के न करें।


साधना के समय नित्य-नैमित्तिक कर्मों को पूर्ण करके श्वेत या रक्त वस्त्र या फिर साधना के मंत्र प्रयोग में वर्णित वस्त्र धारण करना चाहिए। आसन ऊन या कंबल का श्वेत, रक्तवर्णी या पंचवर्णी ग्रहण करें तथा एक बार आसन पर सुखासन में बैठकर जप की नियत संख्या पूर्ण कर ही आसन से उठें।


साधना में घी या मीठे तेल का दीपक एक पटल पर नवीन वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर जलाएंगे, जब तक मंत्र जप चले। अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है परंतु शाबर मंत्र साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की महत्ता मानी गयी है।


पुष्प, शुद्ध जल, नैवेद्य यथाशक्ति अर्पण करें। मानस भाव उत्साह व श्रद्धा से पूर्ण हों तो मंत्र शीघ्र ही जागृत हो जाते हैं। जहां दिशा का निर्देश न हो वहां पूर्व तथा उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। इस्लामी साधना में पश्चिम दिशा का महत्व है।


जब तक दिशा निर्देश न हो दक्षिण की ओर मुंह न करें। जहां माला का निर्देश न मिले वहां कोई भी माला प्रयोग में ला सकते हैं। वैसे तुलसी, चंदन, रुद्राक्ष, स्फटिक की माला विशेष फलदायी है। इस्लामी शाबर मंत्र साधना में ‘सीपियों या हकीक’ की माला का विधान है।


यदि माला न हो तो कर रूपी मनोअंक माला का प्रयोग किया जा सकता है। नियमानुसार माला 108 मनकों वाली ही हो। जप की गति मध्यम हो, न तेज न कम। तन्मयता, श्रद्धा, विश्वास मंत्र सिद्धि के अचूक साधन हैं।


अविश्वास, अधूरा विश्वास व अश्रद्धा से फल प्राप्त नहीं होगा। मंत्र बड़ी ही सरलता से सिद्ध हो जाते हैं, परंतु साथ ही विषमता यह है कि इन मंत्रों की साधना करते समय विचित्र प्रकार की भयानक आवाजें सुनायी पड़ती हैं या डरावनी शक्लें दिखने लगती हैं।


इसलिए इन साधनाओं में धैर्य और साहस बहुत ही आवश्यक है। जप के समय किसी भी परिस्थिति में घबराएं नहीं। न ही जप व आसन छोड़ें। साधना-काल में एक समय भोजन करें तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें।


साधना दिन या रात्रि में किसी भी समय कर सकते हैं। शाबर मंत्र साधना सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, दशहरा, गंगा दशहरा, शिवरात्रि, होली, दीपावली, रविवार, मंगलवार, पर्वकाल, सूर्य संक्रांति या नवरात्रियों से प्रारंभ की जा सकती है।


मंत्र का जाप जैसा है वैसा ही करें, अपनी तरफ से कोई परिवर्तन न करें। उच्चारण की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।


मंत्र जप घर के एकांत कमरे में, मंदिर में, नदी-तालाब-गौशाला, पीपल वृक्ष या जप विधि में निर्देशित स्थान पर ही करें। साधना प्रारंभ करने की तिथि-दिन याद रखें।


प्रतिवर्ष उन्हीं तिथियों में मंत्र का पुनः जागरण करें। जागरण में कम से कम एक माला जप के साथ होम (यज्ञ) भी करें। अधिक जप करने पर अधिक फलदायी होता है।

भाई यदि उनका मन होगा तो वह स्वयम आपसे व्यक्तिगत सम्पर्क कर लेंगे। मैं किसी के मान को ठेस नही पहुंचा सकता।

माता जी के सब पुत्र है और आदेश करें सब वयवस्था परमात्मा करेंगे हम लोग निमित्त मात्र है।।

नहीं। यह इशारा है तुम्हारी सोंच में बदलाव का। अब नशा छोड़ो और तैयार हो नए अनुभव के लिए।

वैसे यह किसी मातृ तुल्य रिश्तेदार की मृत्यु का भी संकेत हो सकता है।

आदरणीय विपुल सर जी

महोदय   कई महीनों पहले आप ने   ढोल गवार शुद्ध पशु नारी    पर एक बहुत ही सुंदर लेख लिखा था  जो कि एकदम सटीक था  एक बार वहीं पोस्ट डालने की कुपा करें   धन्यवाद

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_16.html

मित्र। आपका अनुभव उत्तम है पर यह कुछ भी नहीं। शक्तिपात दीक्षा के बाद इस ग्रुप में कुछ सदस्य है जिनको खेचरी उड्डयन और जलन्धर बन्ध जो रामदेव जैसे लोग भी नही कर सकते वह स्वतः लग जाते है। अतः आप भयभीत न हो। आनन्द ले। यह प्रणायाम इत्यादि गौण है जो स्वास्थ्य के साथ प्रारंभिक स्तर की होती है।

आप mmstm चालू रखे। आपकी दीक्षा का समय आ रहा है।

मित्र आप यह लेख अन्य लेखों के साथ मेरे ब्लॉग पर देख ले।

Freedhyan.blogspot.com

कोई अनुभव न अच्छा होता है न बुरा। यह बस शक्ति का खेल होता है।

आप अपने गुरूपर श्रद्धा रखे। हा यदि आपको इसके आगे की दीक्षाये जैसे ब्रह्मचर्य या सन्यास चाहिये तो गुरू बदलना पड़ेगा। क्योंकि आसाराम ग्रहस्थ्य है।

देखिये गुरू के शरीर पर न जाये ये एक शक्ति है। गुरू का शरीर गलती कर सकता है अपने कर्मो का प्रारब्ध का फल भी भोग सकता है। पर उनकी शक्ति निष्कलंक होती है। अतः आप अपने गुरू को ही समर्पित रहे।

जय गुरुदेव।

देखिये। आसाराम जी के शरीर ने जो पूर्व में वर्तमान में गलत कार्य किये है उनका फल तो भोगना ही पड़ेगा।

पर ज्ञान और शक्ति तो निराकार शुद्ध और निष्कलंक होती है।

अतः आप गुरू तत्व को समर्पित हो। एक वार आसाराम के नाम या शरीर को छोड़ सकती है।

अनुभव को पकड़ कर न बैठे। यह सब पड़ाव होते है।

देखिये विज्ञान की डॉक्टर की सीमा है।

यह क्रिया है।

दुनिया के सामने न करे। यह जगत आपको पागल समझेगा।

विपुल सर आप कह रहे थे कि एक बार आनंदमय कोष में पहुंच जाने के बाद आनंदित रहते हुए सांसारिक कार्यों को कर सकते हैं

आनंदमयकोष में पहुंचना मतलब सहस्त्रार का सक्रिय होना? ? ?

जी

आपकी शक्ति कंट्रोल नही है। आप कहाँ रहती है।

लगे रहो मुन्ना भाई

क्या आप दोबारा शक्तिपात दीक्षा लेकर संतुलित होना चाहेगी।

देखिये यह डिग्री होती है। आसाराम जी के भी पिता धरती पर है। मैं समझा रहा हूँ किसी का अपमान नही कर रहा।

हा जो संस्कार जनित प्रारब्ध होते है वह यदि बीमारी के रूप में है तो स्वतः ठीक हो जाते है। बस साधन करते रहो।

आप कहाँ रहते है।

कालपी, जनपद-जालौन, उ.प्र.

ग्रेजुएट हूं..नौकरी कर रहा हूं

व्यक्तिगत आओ

मतलब उनसे भी शक्तिशाली गुरू है जो प्रचार प्रसार से दूर रहते है।

कर ले। नम्बर में जल्दबाजी नही।

सभी नए सदस्यों का स्वागत है। ग्रुप में केवल आध्यात्मिक अनुभव हेतु ही पोस्ट डाले। गुड़ मार्निंग इवनिग और फोटो पोस्ट करने से बचे।

अपने लिखे भजन इत्यादि डाल सकते है।

मित्र आर्यसमाजियों के साथ और अन्य परम्पराओं के साथ पूर्वाग्रहीत सोंच कुछ हद तक झक होती है।

जैसे मैं सभी मन्त्र समान देखता हूँ। महाराज जी शक्तिपात किसी भी शब्द नाम या मनचाहे मन्त्र से कर देते है। पर कुछ लोग है जिनकी बुद्धि विकसित नही होती वह किसी एक के पीछे ही पड़े रहते है।

प्रभु जी, यूं तो हमाऱा परिवार भी आर्य समाजी ही है, मेरे पिता जी आर्य समाजी, मेरी माँ सनातनी, प्रभाव माँ आर्य समाज का आदर करती है पिता जी सनातन का।  मेरे अभिभावक कहते है की कभी भी एक चीज़ को रटो मत, समझो, क्योंकि यदि समझोगे नही तो सामने वाली सोच या वस्तु तुम्हे अपनी गिरफत में ले लेगी। वैसे आर्य समाज बुरा नही यह हर प्रकार के पाखण्ड से बचाता है, धर्म के कारोबार से बचाता है यदि बुरे है तो इसके पैरोकार।

कर्मगति टारे नाही टरे।

दुनिया समझ नही पा रही है। यह भक्ति की अवस्था है।

आप घरवालों के नाम व्यक्तिगत पोस्ट कर दे। मैं एक दो दिन में मन्त्र दे दूंगा।

अतः आप सब ने देखा होगा जितने भी संतों ने ईश्वर के दर्शन किये उन सभी संतों ने जन मानस कि सेवा के लिए परोपकार के श्रेष्ठ और शुभ कर्म भी किये.


अकर्मण्य को कुछ भी हासिल नहीं हो सकता.

इनको लेख का रूप देकर डालो।

कल ध्यान में मन्त्रो का तुलनात्मक अध्ययन किया। मेरी निगाह में सब समान है व्यक्ति विशेष का अंतर है बस। सब सिद्ध हो चुके है। पर मन्त्रो में नवार्ण मन्त्र को श्रेष्ठतम बताया। क्योकि गायत्री और महामृत्युंजय मंत्र नवार्ण मन्त्र में ही समाहित है।

कारण भी समझाया गया। समय मिलने पर लिखूंगा।

मित्र साक्षात्कार हेतु समाधि आवश्यक नही। समाधि पर भी लिख रहा हूँ। लोगो को बहुत भरम है।

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_17.html

आपने मेरे लेख को पढा नही। मैं बार बार कहता हूँ। सब नाम मन्त्र इत्यादि सिद्ध यानि जीवित हो चुके है। आप कुछ भी करो पर करो। बिना जाने बिना बुझे। सतत निरन्तर निर्बाध समर्पण के साथ।

मैंने सिर्फ मजबूरीवश तुलना करने का दुस्साहस किया। जो मेरी क्षमता के बाहर है। परंतु व्यर्थ के छोटे बड़े मन्त्र के विवाद के कारण मुझे इस पर चर्चा करने हेतु ध्यान और मीमांसा करनी पड़ी।

यह मुझे अच्छा नही लगा। किंतु अज्ञानी ज्ञानियों के लिए जो छोटा बड़ा पूवाग्रह लेकर बैठे है अपनी अपनी सीमित सोच को दुनिया मे प्रचारित कर रहे है।

मेरे लिए नवार्ण गायत्री महामृत्यंजय राम नाम बिट्टल सब नाम बराबर। यह सत्य है मेरा आधार मन्त्र नवार्ण है पर मुझे क्रिया या ध्यान हेतु कुछ भी चलता है और बराबर क्रिया भी होती है।

मुझे लगता है मुझे सभी देवों का आशीष है। माँ गायत्री का भी अनुग्रह है।

जय महाकाली गुरुदेब। जय महाकाल।

मेरे विचार से यह उचित भी था ताकि लोग मन्त्रो के रहस्य भी जान सके। दूसरे यह माँ जगदम्बे की कृपा से अचानक ही हो गया और तर्क मीमांसा स्वतः स्पष्ट हो गई।

मैंने तो लिख भी दिया है अंत मे मैं अज्ञानी मूर्ख मुझे कुछ नही पता। सब माँ की कृपा ने लिखवाया।

यही सत्य है। जापक अधिक महत्वपूर्ण है।

जो घड़ा खाली होता है उसमें अधिक द्रव भरत है। जिसमे कचरा हो तो पहले वह खाली होता है। यह स्थिति उनकी है जो शरण मे आते है।

दूसरी बात गीता रामायण चालीसा मन्त्र नाम जप सब स्वतः सिद्ध है जीवित है। अतः बिना अर्थ जाने या न जाने इसमें कोई अंतर नही। बस आवषयक है आपकी एकाग्रता और समर्पण और जप संख्या।

पृष्ठ पर जाने हेतु लिंक दबायें: मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य  

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MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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Monday, July 1, 2019

बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार

बीज मंत्र: क्या, जाप और उपचार

सनातनपुत्र देवीदास विपुल "खोजी"

 विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
मो.  09969680093
  - मेल: vipkavi@gmail.com  वेब:  vipkavi.info वेब चैनलvipkavi
ब्लाग: freedhyan.blogspot.com,  फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet


मित्रो एक प्रश्न है कि क्या हम अलग अलग बीज मंत्रो को मिला सकते है? और अगर यदि मिला सकते है तो कौन कौन सा बीज मंत्र है जिसको हम एक साथ जप सकते है। 

 

बीज मंत्रो की ऊर्जा अनन्त है और रहस्यो से भरी है। परमपिता परमेश्वर की कृपा से इस संसार में हर जीव की उत्पत्ति बीज के द्वारा ही होती है चाहे वह पेड़-पौधे हो या फिर मनुष्य योनी।  बीज को जीवन की उत्पत्ति का कारक माना गया है। बीज मंत्र भी कुछ इस तरह ही कार्य करते है।  हिन्दू धरम में सभी देवी-देवताओं के सम्पूर्ण मन्त्रों के प्रतिनिधित्व करने वाले शब्द को बीज मंत्र कहा गया है।  सभी वैदिक मंत्रो का सार बीज मंत्रो को माना गया है।  हिन्दू धरम में सबसे बड़ा बीज मंत्र ” ॐ ” है।  अन्य शब्दों में बीज मंत्र किसी भी वैदिक मंत्र का वह लघु रूप है जिसे मंत्र के साथ प्रयोग करने पर वह उत्प्रेरक का कार्य करता है। | बीज मंत्रोंको सभी मन्त्रों के प्राण के रूप में जाना जा सकता है जिनके प्रयोग से मन्त्रों में प्रबलता और अधिक हो जाती है। 

 

बीज मंत्रों के जप से देवी-देवता अति शीघ्र प्रसन्न होकर अपने भक्त का उद्धार करते है | बीज मंत्रों का उच्चारण आपके आस-पास एक सकारात्मक उर्जा का संचार करता है | जीवन में आने वाले घोर से घोर संकट भी बीज मंत्रों के उच्चारण से दूर हो जाते है | किसी भी प्रकार के असाध्य रोग की गिरफ्त में आने पर , आर्थिक संकट आने पर, इनके अतिरिक्त समस्या कोई भी हो, बीज मंत्रों के जप से लाभ अवश्य प्राप्त होता है | बीज मंत्रों के नियमित जप से सभी पापों से मुक्ति मिलती है | ऐसा व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीता है व अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है |

 

बीज मंत्र कुछ इस प्रकार होते है :- ॐ, क्रीं, श्रीं, ह्रौं, ह्रीं, ऐं, गं, फ्रौं, दं, भ्रं, धूं, हलीं, त्रीं, क्ष्रौं, धं, हं, रां, यं, क्षं, तं ,  ये दिखने में छोटे से बीज मंत्र अपने अन्दर बहुत से शब्दों को समाये हुए है।  उपरोत्क सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी है जो अलग-अलग देवी-देवताओं के प्रतिनिधत्व करते है। अब यह प्रमाणित हो चुका है कि ध्वनि उत्पन्न करने में नाड़ी संस्थान की अनेक नसें आवश्यक रूप से क्रियाशील रहती हैं। अतः मंत्रों के उच्चारण से सभी नाड़ी संस्थान क्रियाशील रहते हैं। मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं जिन्हें 'धी' ऊर्जा कहते हैं। जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है।

 

आवश्यकतानुसार मंत्रों को चुनकर उनमें स्थित अक्षुण्ण ऊर्जा की तीव्र विस्फोटक एवं प्रभावकारी शक्ति को प्राप्त किया जा सकता है। मंत्र, साधक व ईश्वर को मिलाने में मध्यस्थ का कार्य करता है। मंत्र की साधना करने से पूर्व मंत्र पर पूर्ण श्रद्धा, भाव, विश्वास होना आवश्यक है तथा मंत्र का सही उच्चारण अति आवश्यक है। मंत्र लय, नादयोग के अंतर्गत आता है। मंत्रों के प्रयोग से आर्थिक, सामाजिक, दैहिक, दैनिक, भौतिक तापों से उत्पन्न व्याधियों से छुटकारा पाया जा सकता है। रोग निवारण में मंत्र का प्रयोग रामबाण औषधि का कार्य करता है। मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है। शायद इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है। मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं। मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं


ह्रीं बीज मंत्र: ह्रीं माया बीज है जिसमे की ह से शिव , र से प्रकृति , ईकार से महामाया , नाद से विश्वमाता , बिंदु से दुख हर्ता। अतः इस बीज मंत्र का ऊर्जा विचार और आह्वान हुआ कि हे शिव युक्त प्रकृति रूप में महामाया मेरे दुख का हरण कीजिये। 


श्रीं बीज मंत्र: यह महालक्ष्मी का बीज मंत्र है। यह सौम्य ऊर्जा से सम्बंधित है । इसमें श से महालक्ष्मी र से धन ऐशवर्य ईकार से तुष्टि और बिंदु से दुखहरन की ऊर्जा उत्पन्न होती है। यह बीज मंत्र सिर्फ यही तक सीमित नही है अपितु हमारे लिए एक अत्यंत रहस्यमयी महाविद्या श्री विद्या के द्वार तक ले जाता है । 

 


ह्रौं बीज मंत्र: यह शिव बीज है इसमें ह से शिव का आहवान होता है औ से सदाशिव जो कि शिव का अत्यंत शक्तिशाली रूप है।और  अनुस्वार है दुख हरण । यह बीज मंत्र जितना सामान्य लिखने में है। वास्तव में उतना ही ऊर्जा क्षमता और रेहजयो से भरा भी है। यह बीज मंत्र हमारे लिए बहुत ही उच्च विद्या महामृत्युंजय विद्या के द्वार खोलता है जिसे कहा जाता है मृत संजीवनी महामृत्युंजय विद्या। वह विद्या जिसका अंश भी यदि प्राप्त हो जाये तो साधक को  किसी भी तरह की समस्या से ऊपर ऊथकर किसी भी प्रकार की मृत स्थिति चाहे वह रिश्ता हो या जीवन की कोई और स्थिति, को पुनः स्थापित करने का सामर्थ्य देता है।

 

भं बीज मंत्र: भं बीज भैरव बीज है। भ से भैरव और अनुस्वार से दुख हरण। इसकी ऊर्जा उग्र है और तँत्र में इसका बहुत प्रयोग भी होता है।

 

क्रीं बीज मंत्र:यह बीज काली बीज है। इस बीज मंत्र में क से काली र से ब्रह्म ईकार से महामाया आदिशक्ति और बिंदु से दुखहरन अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ ब्रह्मशक्ति सम्पन्न महामाया काली मेरे दुखो के हरण करें। यह बीज मंत्र अत्यंत ही उग्र ऊर्जा से भरा है इसके प्रयोग भी बहुत है बहुत से मानसिक विकारों को पूर्ण रूपेण डोर करने की क्षमता है इस बीज में। और तँत्र में तो यह बहुत ही उच्च स्थान रखता है। मारण कर्म तक इससे सम्पन्न किये जाते है।

 

ऐं बीज मंत्र:यह सरस्वती बीज मंत्र है। इसमे ए से सरस्वती का आह्वान होता है और अनुस्वार दुख हरण है।  इस बीज मंत्र सृष्टी ज्ञान को समाहित किए हुए है।

क्लीं बीज मंत्र: यह कामदेव बीज है।और वशीकरण सम्मोहन और अनन्त सौंदर्य भोग और उच्चता स्वयम में लिए हुए है। इसमे क से कामदेव ल से इंद्र ईकार से तुष्टि और  अनुस्वार सुख दाता है।

 

गं बीज मंत्र:यह गणेश बीज है इसमे ग से गणपति और बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।

 

हुम् बीज मंत्र:  यह अत्यंत शक्ति शाली अत्यंत ही उग्र प्रभावी बीज है। क्रीम की तरह ही इसका प्रयोग भी तँत्र कर्मो में बहुत होता है और मानसिक विकार दूर करने के लिए भी प्रयोग होता है। ह से शिव उ से भैरव और अनुस्वार से दुखहर्ता का आह्वान होता है।

 

ग्लौं बीज मंत्र: यह भी गणेश बीज है और अत्यंत प्रभावी भी। इसमें ग से गणेश ल से सृष्टी औ से तेज ओज और ऊर्जा बिंदु से दुख हरण का आह्वान होता है।


स्त्रीं बीज मंत्र: स्त्रीं बीज मंत्र को माँ तारा का बीज मंत्र भी कहा जाता है  और इसका प्रयोग कई अन्य प्रयोगों में भी होता है। यह उग्र और सौम्य दोनो प्रकार से प्रयोग होता है। इसका अर्थ है स से मा दुर्गा का आह्वान त से तारन शक्ति  र से मोक्ष या मुक्ति और ईकार से महामाया आदिशक्ति का आह्वान होता है और अनुस्वार दुखहरन। अतः इस बीज मंत्र का अर्थ हुआ है माँ दुर्गा तारिणी रूप में अर्थात माँ तारा के रूप में आदिशक्ति की शक्ति से मेरे कष्टों से मुक्ति हो। और मेरे दुखो का हरण हो। यह मन्त्र तँत्र प्रयोगों में कष्ट मुक्ति के लिए अत्यधिक प्रयोग होता है।


क्ष्रौं बीज मंत्र:यह नरसिंह बीज है वे नृसिंह जो कि विष्णु का उग्र रूप है अतः इसकी ऊर्जा भी अत्यंत शीघ्र प्रभावी है और उग्र प्रभावी है। सौम्य हृदय वालो को बिना गुरु कृपा के उग्र प्रभावी प्रयोग नही करने चाहिए। इस बीज में क्ष से नृसिंह भगवान र से ब्रह्मशक्ति औ से शक्तिशाली और उर्ध्वकेशी भयानक रूप  और बिंदु से दुखहरण का आह्वान है। अर्थ हुआ नरसिंह भगवान जो कि उर्ध्वकेशी और उग्र रूप वाले है वे ब्रह्मशक्ति से युक्त हो मेरे दुखो का नाश करे। सामान्य साधक को इस बीज मंत्र के जाप से दूर रहना चाहिए।

 

शं बीज मंत्र : यह शंकर बीज है  श से शिव के शंकर रूप और बिंदु से  दुखहरन का आह्वान होता है| 


फ्रॉम बीज मंत्र: यह बीज मंत्र कलयुग के प्रत्यक्ष देवता भगवान हनुमान का बीज मंत्र है। इस मंत्र को उनकी कृपा प्राप्ति के लिए ध्यान किया जाता है। परन्तु इसकी विधियां अत्यंत गोपनीय है अतः गुरु कृपा से ही प्राप्त कर के जाप करे।

 


क्रोम बीज मंत्र :  यह भी काली बीज ही है  इसमें क काली  र ब्रह्म और औ  से भैरव रूपी शिव और बिंदु से दुखहरण शक्ति का आह्वान होता है यह मन्त्र बहुत ही ज़्यादा उग्र प्रभावी है अतः इसे तुच्छ कामनाओ या फिर किसी के नुकसान के लिए दुरुपयोग नही करना चाहिए और उत्कीलन कर के शुद्ध विचारो से कष्ट मुक्ति के लिए गुरु कृपा से ही प्रयोग करना चाहिए अन्यथा अर्थ के साथ साथ अनर्थ की भी संभावना प्रबल होती है दुरूपयोगो में।

 

दं बीज मंत्र: यह भी अत्यंत गोपनीय और रहस्यमयी बीज मंत्रो में से एक है अतः इसके बारे में गुरु ही शिष्य को बताने का अधिकारी है।


हं बीज मंत्र: यह आकाश बीज है । हमारे पंचतत्वों में से आकाशतत्व का शक्ति रूप है। इस बीज को हनुमान जी के मंत्रो में भी प्रयोग किया जाता है  और अकेले भी। इसको कई बीमारियो के इलाज मानसिक विकारों के इलाज डर भय आदि के इलाज में भी प्रयोग किया जाता है।

 

यं बीज मंत्र: यह अग्नि बीज है। अभी प्रकार की अग्नि के आह्वान के लिए इस बीज का प्रयोग मान्य है ।  जैसे कि कालाग्नि, जठराग्नि इत्यादि।

 

रं बीज मंत्र: यह जल बीज है।

लं बीज मंत्र:  यह पृथ्वी बीज है।

भ्रं बीज मंत्र: यह भैरव बीज है।

 

सृष्टि-देवी माँ के बीज मंत्रो से उपचार!

खं*– हार्ट-टैक कभी नही होता है | उच्च रक्तचाप (हाई बी.पी.), निम्न रक्तचाप (लो बी.पी.) कभी नही होता | * ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है। 

 

बीज मंत्रो से उपचार! * कां, * गुं, * शं

 कां*– पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आंतों की सूजन में लाभकारी।  *गुं*– मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी। 

*शं*– वाणी दोष, स्वप्न दोष, महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार औेर हर्निया आदि रोगों में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * घं, * ढं

घं* – काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन-उच्चाटन आदि के दुष्प्रभाव के कारण जनित रोग-विकार को शांत करने में सहायक।

ढं*– मानसिक शांति देने में सहायक। अप्राकृतिक विपदाओं जैसे मारण, स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * पं, * बं, * यं, * रं

पं*– फेफड़ों के रोग जैसे टी.बी., अस्थमा, श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी।

बं*– शूगर, वमन, कफ, विकार, जोडों के दर्द आदि में सहायक।

यं*– बच्चों के चंचल मन के एकाग्र करने में अत्यत सहायक।

रं* – उदर विकार, शरीर में पित्त जनित रोग, ज्वर आदि में उपयोगी।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * लं, * मं, * घं, * एं

लं*– महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म, उनके अनेक गुप्त रोग तथा विशेष रूप से आलस्य को दूर करने में उपयोगी।

मं*– महिलाओं में स्तन सम्बन्धी विकारों में सहायक।

धं* – तनाव से मुक्ति के लिए मानसिक संत्रास दूर करने में उपयोगी ।

ऐं*– वात नाशक, रक्त चाप, रक्त में कोलेस्ट्राॅल, मूर्छा आदि असाध्य रोगों में सहायक।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * द्वान्, * ह्रीं, * एं, * वं, * शुं

द्वां*– कान के समस्त रोगों में सहायक।

ह्रीं*– कफ विकार जनित रोगों में सहायक।

ऐं*– पित्त जनित रोगों में उपयोगी।

वं*– वात जनित रोगों में उपयोगी।

शुं*– आंतों के विकार तथा पेट संबंधी अनेक रोगों में सहायक।

 

बीज मंत्रो से उपचार! * हुं, * अं, *

हुं*– यह बीज एक प्रबल एन्टीबॉयटिक सिद्ध होता है। गाल ब्लैडर, अपच, लिकोरिया आदि रोगों में उपयोगी।

अं* – पथरी, बच्चों के कमजोर मसाने, पेट की जलन, मानसिक शान्ति आदि में सहायक इस बीज का सतत जप करने से शरीर में शक्ति का संचार उत्पन्न होता है।

 

सावधानियां...

बीज मंत्रों से अनेक रोगों का निदान सफल है। आवश्यकता केवल अपने अनुकूल प्रभावशाली मंत्र चुनने और उसका शुद्ध उच्चारण करने की है। पौराणिक, वेद, शाबर आदि मंत्रों में बीज मंत्र सर्वाधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं उठते-बैठते, सोते-जागते उस मंत्र का सतत् शुद्ध उच्चारण करते रहें। आपको चमत्कारिक रुप से अपने अन्दर अन्तर दिखाई देने लगेगा। यह बात सदैव ध्यान रखें कि बीज मंत्रों में उसकी शक्ति का सार उसके अर्थ में नहीं बल्कि उसके विशुद्ध उच्चारण को एक निश्चित लय और ताल से करने में है। बीज मंत्र में सर्वाधिक महत्व उसके बिन्दु में है और यह ज्ञान केवल वैदिक व्याकरण के सघन ज्ञान द्वारा ही संभव है। आप स्वयं देखें कि एक बिन्दु के तीन अलग-2 उच्चारण हैं। गंगा शब्द ‘ङ’ प्रधान है। गन्दा शब्द ‘न’ प्रधान है। गंभीर शब्द ‘म’ प्रधान है। अर्थात इनमें क्रमशः ङ, न और म, का उच्चारण हो रहा है।

 

सावधानियां...

कौमुदी सिद्धांत के अनुसार वैदिक व्याकरण को तीन सूत्रों द्वारा स्पष्ट किया गया है-:

1 - मोनुस्वारः

2 - यरोनुनासिकेनुनासिको तथा

3- अनुस्वारस्य ययि पर सवर्णे।

बीज मंत्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अन्तर को स्पष्ट किए बिना शुद्ध जाप असम्भव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता। इसलिए सर्वप्रथम किसी बौद्धिक व्यक्ति से अपने अनुकूल मंत्र को समय-परख कर उसका विशुद्ध उच्चारण अवश्य जान लें। अपने अनुरूप चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते-फिरते उठते-बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है। इसका उद्देश्य केवल शुद्ध उच्चारण एक निश्चित ताल और लय से नाड़ियों में स्पदन करके स्फोट उत्पन्न करना है।

नौ देवियाँ हमारी सर्व रोग रक्षक!

 भय दूर करने बाली शैलपुत्री ।

 स्मरण शक्ति बढ़ाने बाली ब्रह्मचारिणी ।

 हृदय रोग देवी चंद्रघंटा।

 रक्त शोधन देवी कुष्माण्डा।

 कफ रोग-नाशक देवी स्कंदमाता।

 कंठ रोग- शमन देवी कात्यायनी।

 मस्तिष्क विकार-नाशक देवी कालरात्रि।

 रक्त शोधक देवी महागौरी।

 बलबुद्धि बढ़ाने बाली देवी सिद्धिदात्री।

 

MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  सनातन पुत्र देवीदास विपुल खोजी
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