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Wednesday, September 30, 2020

हिंदुत्व की व्याख्या

 विपुल लखनवी द्वारा हिंदुत्व की व्याख्या

हिंदू जाग जाओ संभल जाओ

 
 

मूल धर्म मानव का हिंदू,  हिंदू जन्म है लेता।

हिंदू ही बस मूल धर्म है हिंदू जग का प्रेणता।।


मानव बनो सभी है तेरे, हिंदू है सिखलाया।

कभी किसी पर हिंसा न हो, यही है बतलाया।।


हिंदू मतलब सत्य मार्ग है खुद अपने को जानो।

सभी तुम्हारे जग में भाई, सबको अपना मानो।।


पहले भूखे को रोटी दो फिर तुम रोटी खाओ।

श्वान गाय कौवा या चींटी सब की भूख मिटाओ।।


सब में तुम अपने को देखो, अपने में दूजे को।

सभी जीव में देव बसे हैं, कहीं नहीं तीजे को।।


सभी धर्म का आदर करना, हमको ये सिखाया है।

मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा, सब में शीश झुकाया है।।


किंतु कुछ ऐसे भी होते, दानवता सिखलाते।

उनकी शिक्षा ग्रहण करी तो दानव ही बन जाते।।


एकमात्र तुमको है जीना, बाकी सब को मारो।

पूरी धरती तुम ही भोगो,‌ दया दीनता टारो।।


हिंदू धर्म मिटाओ जग से, मतलब मानवता नष्ट करो।

झूठ मक्कारी फरेब करो, उनको तुम सब भ्रष्ट करो।।


एक बार हिंदू हो जाओ फिर इंसां बन जाओ।

तभी शांति इस जग में होगी सुखमय जीवन पाओ।।


जो सीधे सज्जन होते हैं, पेड़ वही काटे जाते।

हिंदू सज्जन धर्म जगत में, सभी इसे है बांटे।।


दुश्मन को तड़पा कर मारो कौन धर्म यह सिखलाए।

धरती पर आतंक मचाओ, कौन धर्म यह बतलाए।।


आज विपुल यह समय है आया, हिंदू को जगना होगा।

वरना इनकी खैर नहीं है घुट घुट कर मरना होगा।।


कायरता का मतलब गर कोई, अहिंसा बतलाए।

वह न समझे धर्म का मतलब जो न खुद को बचाए।।


विपुल अब जागो हिंदू तुम सब पुनः नई हुंकार भरो।

धर्मो रक्षति धर्म को जानो, दुश्मन का प्रतिकार करो।।

 

 
 
 
 
 

सर्व देव गायत्री मंत्र (56 गायत्री मंत्र)

 सर्व देव गायत्री मंत्र (56 गायत्री मंत्र)

  संकलनकर्ता : सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी” 

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

 ॐ भूर् भुवः स्वः। तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।

 गणेश गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे वक्र तुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।

 

नवदुर्गा गायत्री 

ऊँ शैलपुत्रायै च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो शैलपुत्री प्रचोदयात्।  
ऊँ ब्रह्मचारिणी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो ब्रह्मचारिणी प्रचोदयात्।  
ऊँ चंद्रघंटाय च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो चंद्रघंटा प्रचोदयात्।  
ऊँ कूष्मांडाय च विद्महे सर्वदेवाय धीमहि, तन्नो कूष्मांडा प्रचोदयात्।  
ऊँ स्कन्दमाताय च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो स्कन्दमाता प्रचोदयात्।  
ऊँ कात्यायनी च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कात्यायनी प्रचोदयात्।  
ऊँ कालरात्रिर् च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो कालरात्रि प्रचोदयात्।  
ऊँ महागौराय  च विद्महे सर्वदेवाय  धीमहि, तन्नो महागौरी प्रचोदयात्।   
ऊँ सिद्धिदात्रै विद्महे सर्वदेवाय धीमहि, तन्नो सिद्धधात्री प्रचोदयात्। 

 

1. गुरु गायत्री मंत्र

ऊँ गुरु देवाय विद्महे पर ब्रह्माय धीमहि, तन्नो गुरु: प्रचोदयात्।

 

2. रूद्र गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

 

3. शिव गायत्री मंत्र

ऊँ महादेवाय विद्महे रुद्र मूर्तये धीमहि, तन्नो शिव: प्रचोदयात्।

 

4. सरस्वती गायत्री मंत्र

ऊँ ऎं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

5. काली गायत्री मंत्र

ऊँ कालिकाये च विद्महे श्मशान वासिन्यै धीमहि, तन्नो अघोरा प्रचोदयात्।

 

6. तारा गायत्री मंत्र

ऊँ ताराय च विद्महे महोग्रायै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

7. त्रिपुर सुन्दरी(षोडशी)

ऊँ त्रिपुरा देव्यै विद्महे क्लीं कामेश्वर्यै धीमहि, सौस्तन्न: क्लिन्नै प्रचोदयात्।

 

8. भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र

ऊँ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

9.भैरवी गायत्री मंत्र

ऊँ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

10. छिन्नमस्तिका गायत्री मंत्र

ऊँ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

11. धूमावती गायत्री मंत्र

ऊँ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि, तन्नो धूमा प्रचोदयात्।


12. बगलामुखी गायत्री मंत्र

ऊँ बगुलामुख्यै च विद्महे स्तंभिन्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

13. मातंगी गायत्री मंत्र

ऊँ मांतग्यै च विद्महे उच्छिष्टचाण्डाल्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

14. महिषासुरमर्दिनी गायत्री मंत्र

ऊँ महिषर्माद्दयै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

15. परमहंस गायत्री मंत्

ऊँ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्।

 

16. ब्रह्मा गायत्री मंत्र

ऊँ वेदात्मने च विद्महे हिरण्य गर्भाय धीमहि, तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

 

17. राम गायत्री मंत्र

ऊँ दशरथये विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि, तन्नो राम: प्रचोदयात्।

 

18. सीता गायत्री मंत्र

ऊँ जनकाय विद्महे राम प्रियाय धीमहि, तन्नो सीता प्रचोदयात्।

 

19. लक्ष्मण गायत्री मंत्र

ऊँ दशरथये विद्महे अलबेलाय धीमहि तन्नो लक्ष्मण प्रचोदयात्।

 

20. हनुमान गायत्री मंत्र

ऊँ अंजनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात्।

 

21. राधिका गायत्री मंत्र

ऊँ वशभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि, तन्नो राधिका प्रचोदयात्।

 

22. कृष्ण गायत्री मंत्र

ऊँ देवकी नन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्।

 

23. गोपाल गायत्री मंत्र

ऊँ गोपालाय विद्महे गोपीजन वल्लभाय धीमहि, तन्नो गोपाल: प्रचोदयात्।

 

24. विष्णु गायत्री मंत्र

ऊँ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

 

25. लक्ष्मी गायत्री मंत्र 

ऊँ महादेव्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी: प्रचोदयात्।

 

26. नारायण गायत्री मंत्र

ऊँ नारायण: विद्महे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो नारायण: प्रचोदयात्।

 

27. त्रिलोक्य मोहन गायत्री मंत्र

ऊँ त्रैलोक्य मोहनाय विद्महे आत्मारामाय धीमहि, तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

 

28. परशुराम गायत्री मंत्र

ऊँ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नो परशुराम: प्रचोदयात्।

 

29. नरसिंह गायत्री मंत्र

ऊँ उग्र नरसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि, तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्।

 

30. गौरी गायत्री मंत्र

ऊँ सुभगायै च विद्महे काम मालार्य धीमहि, तन्नो गौरी प्रचोदयात्।

 

 31. सन्मुख गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि, तन्नो षण्मुख: प्रचोदयात्।

 

31. नन्दी गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे वक्र तुण्डाय धीमहि, तन्नो नन्दी: प्रचोदयात्।


33. सूर्य गायत्री मंत्र

ऊँ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

 

34. चन्द्र गायत्री मंत्र

ऊँ क्षीर पुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात्।

 

35. भौम(मंगल) गायत्री मंत्र

ऊँ अंगारकाय विद्महे शक्ति: हस्तात धीमहि, तन्नो भौम: प्रचोदयात्।

 

36. पृथ्वी गायत्री मंत्र

ऊँ पृथ्वी देव्यै च धीमहि सहस्र मूर्त्यै च धीमहि, तन्नो मही प्रचोदयात्।

 

37. अग्नि गायत्री मंत्र

ऊँ महाज्वालाय विद्महे अग्नि मध्न्याय धीमहि, तन्नो अग्नि प्रचोदयात्।

 

38. जल गायत्री मंत्र

ऊँ जलबिंबाय विद्महे नील पुरुषाय धीमहि, तन्नो अम्बु: प्रचोदयात्।

 

39. आकाश गायत्री मंत्र

ऊँ आकाशाय च विद्महे नभो देवाय धीमहि, तन्नो गगनं प्रचोदयात्।

 

40. इन्द्र गायत्री मंत्र

ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि, तन्नो इन्द्र: प्रचोदयात्।

 

41. काम गायत्री मंत्र

ऊँ मन्मथेशाय विद्महे काम देवाय धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्।

 

42. तुलसी गायत्री मंत्र

ऊँ श्रीत्रिपुराय हृदयाय तुलसीपत्राय धीमहि । तन्नो तुलसी प्रचोदयात्।

 

43. देवी गायत्री मंत्र

ऊँ देव्यै ब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

44. शक्ति गायत्री मंत्र

ऊँ सर्व सम्मोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै धीमहि, तन्नो शक्ति प्रचोदया


45. अन्नपूर्णा गायत्री मंत्र

ऊँ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि, तन्नो अन्नपूर्णा प्रचोदयात्।

 

46. त्वरित गायत्री मंत्र

ऊँ त्वरिता देव्यै च विद्महे महानित्यायै धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात्।

 

47. कामदेव गायत्री मंत्र

ऊँ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि, तन्नो नंग प्रचोदयात्।


मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य  

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साकार से ही ध्यान सर्वोत्तम है। जानिये क्यों ???

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 सनातन पुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

 

 


ईश्वर कभी दण्ड नहीं देता है। वह परम दयालु है

 

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सनातन पुत्र क्यों लगाएं हम

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स्वामी या ब्रह्मचारी क्या होते हैं। यह फैशन नहीं है


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किन मंत्रों का जाप न करें

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मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

Tuesday, September 29, 2020

मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य व अन्य

 मां जग्दम्बे के नव रूप, दश विद्या, पूजन, स्तुति, भजन सहित पूर्ण साहित्य

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👇👇शक्तिशाली महिषासुर मर्दिनी स्त्रोत काव्य‌ रूप 👇👇
 
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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी     🙏🙏    मां काली की गुरू लीला

आरती का पूजा में महत्व     🙏🙏     यज्ञ या हवन: प्रकार और विधि

 दश विद्या 
 
 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      
🙏🙏  

 रावण कृत शिव तांडव स्त्रोत का हिंदी काव्य रूपान्तर

साकार से ही ध्यान सर्वोत्तम है। जानिये क्यों ???     🙏🙏      वसंत पंचमी पर विशेष: माता शारदे

 भजन:



  जय महाकाली जय गुरूदेव 

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Monday, September 28, 2020

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री

 

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति सिद्धिदात्री

  व्याख्याकार: सनातनपुत्र देवीदास विपुल “खोजी”

मां दुर्गा का पहला रूप शैल पुत्री का लिंक 

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।


दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं


    प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

    तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

    पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

    सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

    नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

    उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।

 

   माता सिद्धिदात्री : मध्य कपाल में इनका ध्यान किया जाता है। सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं।

मंत्र- 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्र्यै नम:।'

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।

मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। 

इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। 

नवरात्र में यह अंतिम देवी हैं। हिमाचल के नंदापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है।


माना जाता है कि इनकी पूजा करने से बाकी देवीयों कि उपासना भी स्वंय हो जाती है।

यह देवी सर्व सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव हो जाते हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियां होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासना-आराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।

कहते हैं भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।

विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। 

देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।

मंत्र:

    सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
    सेव्यमाना सदा भूयाात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।


 ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा?

नवरात्रि के नौवें दिन मां दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा होती है. इनकी पूजा और उपासना करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं और व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है. नवमी के दिन अगर इन्हीं देवी की पूजा कर ली जाए तो व्यक्ति को सभी देवियों की पूजा का फल मिल सकता है.

इस दिन कमल के पुष्प पर बैठी हुई देवी सिद्दिदात्री का ध्यान करना चाहिए और विभिन्न प्रकार के सुगंधित पुष्प उनको अर्पित करने चाहिए. साथ ही इस दिन देवी को शहद अर्पित करना चाहिए और "ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः" का जाप करना चाहिए.


- मां के समक्ष दीपक जलाएं.

- मां को नौ कमल के या लाल फूल अर्पित करें.   

- इसके बाद मां को नौ तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें.

- अर्पित किए हुए फूल को लाल वस्त्र में लपेट कर रखें.

- पहले निर्धनों को भोजन कराएं.

- इसके बाद स्वयं भोजन करें.

मां सिद्धिदात्री की पूजा से कैसे वरदान मिल सकते हैं?

- मां सिद्धिदात्री के अंदर सभी देवियां समाहित हैं.  

- अगर नवरात्रि में केवल इन्हीं की पूजा कर ली जाए तो सम्पूर्ण नवरात्रि का फल मिल जाता है.

- इनकी पूजा से अपार वैभव की प्राप्ति होती है.

- साथ ही इनकी उपासना से व्यक्ति को समस्त सिद्धियां भी मिल जाती हैं

 मां के इस स्वरूप की उपासना करने से व्यक्ति ग्रहों के दुष्प्रभाव से बच जाता है.   

इस दिन हवन का विधान क्या है?

- नवमी के दिन नवरात्रि की पूर्णता के लिए हवन भी किया जाता है.

- नवमी के दिन पहले पूजा करें, फिर हवन करें.

- हवन सामग्री में जौ और काला तिल मिलाएं.

- इसके बाद  कन्या पूजन करें.

- कन्या पूजन के बाद सम्पूर्ण भोजन का दान करें. 

 

कर्ज मुक्ति के लिए- राई से हवन करें. 

ग्रह शान्ति के लिए- काले तिल से हवन करें. 

सर्वकल्याण के लिए- काले तिल और जौ से हवन करें. 

 इनका मंत्र इस प्रकार है।

'ॐ सिद्धिदात्र्यै नम:।'

पूजन-अर्चन के पश्चात हवन, कुमारी पूजन, अर्चन, भोजन, ब्राह्मण भोजन करवाकर पूर्ण होता है।

समस्त स्त्रियों में मातृभाव रखने हेतु मां का मंत्र जपा जाता है जिससे देवी अत्यंत प्रसन्न होती हैं। भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। घृत, तिल, भोजपत्र होमद्रव्य हैं।

'विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा:

स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।

त्वयैकया पूरितमम्बयैतत्

का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति:।।'

 

स्वर्ग तथा मोक्ष पाने हेतु निम्न मंत्र का जप करें। पत्र, पुष्प, तिल, घृत होम द्रव्य हैं।

'सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी।

त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः।।'

भूमि, मकान की इच्‍छा रखने वाले निम्न मंत्र को जपें। साधारण द्रव्य होम के लिए प्रयुक्त करें।

मखाने और खीर से हवन करें.

'गृहीतोग्रमहाचक्रे दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

वराहरूपिणि शिवे नारायणि नमोऽस्तुते।।'

संतान प्राप्ति की इच्‍छा रखने वाले व्यक्ति, स्त्री या पुरुष निम्न मंत्र का जप करें।

'नन्दगोप गृहे जाता यशोदा-गर्भ-सम्भवा।

ततस्तौ नाशयिष्यामि, विन्ध्याचल निवासिनी।।'

माखन मिसरी से हवन करें

घृत व मक्खन से आहुति दें। इच्‍छा अवश्य पूर्ण होगी।

देवी के पूजन, अर्चन, जप इत्यादि में समय का अवश्य ध्यान रखें अन्यथा कृपा प्राप्त न होगी। नैवेद्य जरूर चढ़ाएं तथा आर्तभाव से प्रार्थना करें।

 

ऊँ सिद्धिदात्रै विद्महे सर्वदेवाय धीमहि, तन्नो सिद्धधात्री प्रचोदयात्। 

सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।

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नव - आरती : मां महिषासुरमर्दिनी 



 🙏🙏  दसवीं विद्या: कमला   🙏🙏      

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जय मां सिद्धिदात्री

 गुरु की क्या पहचान है? आर्य टीवी से साभार गुरु कैसा हो ! गुरु की क्या पहचान है? यह प्रश्न हर धार्मिक मनुष्य के दिमाग में घूमता रहता है। क...