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Friday, September 11, 2020

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 11 प्रेमाश्रु क्या है?

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 11

 प्रेमाश्रु क्या है?


विपुल सेन उर्फ विपुल लखनवी,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल वैज्ञनिक ISSN 2456-4818
 वेब:   vipkavi.info , वेब चैनल:  vipkavi
 फेस बुक:   vipul luckhnavi “bullet"  
ब्लाग : https://freedhyan.blogspot.com/

पूजा के समय या अपने इष्ट के विषय में सोचते समय यदि आंखों से आंसू गिरते हैं तो यह भक्ति की परिपक्वता को इंगित करता है।

इन आंसुओं को प्रेमाश्रु कहते हैं। इन आंसुओं में बेहद आनंद होता है और सुख का सागर होता है। जगत के आंसुओं में दुख होता है पीड़ा होती है लेकिन प्रेमाश्रु गिरने से मनुष्य की भक्ति में और अधिक प्रगाढ़ता आती है।

मेरा तो यह मानना है जिस मनुष्य ने प्रेमाश्रु का रस नहीं पिया वह प्रेम नहीं समझ सकता और न ही विरह की अनुभूति कर सकता है।

यह केवल भक्ति मार्ग में ही होता है ज्ञान मार्ग एकदम शुष्क और नीरस होता है।

जाकि फटी न पैर बिबाई। बा का जाने पीर पराई।

घायल की गति घायल जाने और न जाने कोय।

ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी मेरो दरद न जाने कोय।।

वह मनुष्य इस विषय पर सब गलत ही टिप्पणी करेगा जिसको प्रेमाश्रु का सुख प्राप्त नहीं हुआ है।

कुंती ने इनके लिए श्री कृष्ण से सदैव दुखी होने का वरदान मांगा था ताकि दुख के कारण वह प्रभु को याद कर सकें।

उद्धव अपनी ज्ञान की गठरी छोड़कर भाग गए थे जब उनके सामने गोपियों ने प्रेमाश्रु की वर्षा की।

क्योंकि जब विरह का और प्रेम का समागम प्राप्त होता है तब प्रेमाश्रुओं में आनंद का रस निकलता है।

मूढ़ जगत इसको समझ नहीं पाता है। वह कुछ भी कयास लगाता रहता है।

गुरु चर्चा। अन्य ग्रुप से।

Bhakt Varun: क्या जब हम ध्यान करते हैं तो हम अपने गुरुदेव से मिलते हैं या उन्हें पता चलता है कि  मेरे शिष्य ने आज साधन किया है ?

Hb 96 A A Dwivedi: प्यारी आत्मा🙏🙏

गुरु तत्व सर्वत्र व्याप्त है और जिस प्रकार से मोबाइल एंटिना से सिग्नल ग्रहण करते हैं ठीक उसी प्रकार से गुरु तत्व से हमें ध्यान में सहायता मिलती है और बड़े महाराज जी ने कहा है कि अपनी परम्परा के स्वामी परमानंद तीर्थ जी महाराज को सभी शिष्यों के हर पल पर नजर रखते हैं।।

मतलब हमारे भीतर जो भी भाव आते हैं उनके बारे में गुरु महाराज जी को पता रहता है।।

जिस समय सशरीर गुरु महाराज अगर ध्यान में है उस समय ध्यान में बैठने पर शक्ति का वेग तीव्र गति से होता है और इसलिए जब भी मौका मिलता है गुरु जी के चरणों में बैठकर साधना करना चाहिए।।

जय गुरुदेव💐🙏😊🌹

Bhakt Varun: Vipul g

यह बिल्कुल आवश्यक नहीं। यह निर्भर करता है आपके स्वयं के ऊपर।

यदि आप पूर्व जन्म के अच्छे साधक हैं और इस जन्म में भी आप दीशा के पश्चात नियमित साधन कर रहे हैं और गुरु भक्ति में लीन है तब गुरु शक्ति आपको ध्यान में गुरु का रूप धरकर संपर्क कर सकती है।

अधिकतर लोग आत्म गुरु को गुरु का रूप मान लेते हैं।

यह हो भी सकता है नहीं भी हो सकता है। हो सकता है मन आपको बहका रहा हो।

आप का समर्पण जितना अधिक होगा आपकी भक्ति जितनी अधिक होगी आपके भाव जितने अधिक सकारात्मक होंगे उतनी अधिक आपकी गुरु शक्ति से सहायता होगी।

अगर आप साधन न करें ध्यान न करें गुरुमंत्र जप न करें तो गुरु महाराज आपको क्यों मिलेंगे।

लेकिन एक बात है क्योंकि अपनी परंपरा में गुरु बहुत उच्च कोटि के होते हैं तो समस्त गुरुओं को यह मालूम पड़ जाता है कौन सा साधक किधर जा रहा है।

कारण यह होता है कि जब उनकी शक्ति आपके अंदर आई तो शक्ति के माध्यम से आपका उनसे संपर्क हो गया तो उस शक्ति के माध्यम से वह आपके शरीर के भावों को जान सकते हैं।

लेकिन यह क्षमता भी हर गुरु में नहीं होती है।

गुरु की कृपा तो सब शिष्यों पर एक समान सी बरसती है। किंतु यह शिष्य पर है कि वह उसको कितना ग्रहण कर सकता है। जो जितना बड़ा पात्र होता है उसमें उतना ही जल समाता है।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏 पुस्तक से भी शक्ति का संचार संभव हैै।

जी लेखन के द्वारा भी शक्ति संचार संभव है।

यह किस्सा बड़े महाराज स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज के साथ घटित हुआ था।

उनके पास लंदन से कोई फोन आया था किसी महिला का।

उस महिला ने बताया आप की लिखी हुई पुस्तक वह वहां की लाइब्रेरी में पढ़ रही थी। उस पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते वह अचानक ध्यान में चली गई और उसको क्रिया आरंभ हो गई।

फिर उसने स्वामी शिवओम तीर्थ जी महाराज को फोन करके बात की और फिर महाराज जी ने उसको दूर दीक्षा के द्वारा शक्तिपात दीक्षा दी थी।

अपने ग्रुप के 1 गुरु भाई है शोभनाथ मिश्र जी।

उनको भी वर्ष 1996 में पुस्तक पढ़ते पढ़ते ध्यान लग गया था और उन्हें निराकार की अनुभूति हुई थी।

वह मेरा एक समाचार पत्र में छपा लेख ईश्वर की खोज उसको पढ़ कर मेरे वाशी स्थित निवास पर आए थे।

बाद में उनकी दीक्षा हो गई और वह मेरे गुरु भाई हो गए।

Bhakt Komal: Wo to is group ke madhyam se bhi sambhav h🙏

नासिक के परम पूजनीय ढेकणे महाराज की वह पत्र से ही लिख कर दिक्षा देते थे।

Bhakt Komal: Is group me sabhi bado ka ashirwad mil jata h

हां कुछ सदस्यों ने ऐसा बोला है कि इस ग्रुप में आने के बाद उनको अचानक आध्यात्मिक जगत में तीव्रता महसूस हुई और उनको कुछ अनुभव भी हुए।

Bhakt Ranjan Sharma Jaipur: 🙏💐

यद्यपि ग्रुप में वीडियो वर्जित है किंतु लोगों को प्रेमाश्रु क्या होते हैं और शक्तिपात में क्रिया क्या होती है वह समझाने के लिए यह वीडियो डाला है।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

इस वीडियो में एक पंक्ति के बाद अपनी झलक देखकर मुझे याद आता है यह वीडियो वर्ष 1994 में देवास में निर्मित हुआ था।

इस वीडियो में महाराज जी के नेत्रों से प्रेमाश्रु और साधकों के बीच में होती हुई क्रिया कई लोगों को कौतूहल लगती है।

लेकिन यह आनंददायक प्रेमाश्रु का बहुत सुंदर उदाहरण है।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

http://freedhyan.blogspot.com/2019/08/blog-post_78.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2019/07/blog-post_85.html?m=1

http://freedhyan.blogspot.com/2018/09/blog-post_16.html?m=1

vashi MeghNath Bhagat: पोलैंड में भगवान कृष्ण के खिलाफ केस -

दुनिया भर में तेजी से बढ़ता हिंदू धर्म का प्रभाव देखिये कि वारसॉ, पोलैंड में एक नन ने इस्कॉन के खिलाफ एक मामला अदालत में दायर किया था !

नन ने अदालत में टिप्पणी की कि इस्कॉन अपनी गतिविधियों को पोलैंड और दुनिया भर में फैला रहा है, और पोलैंड में इस्कॉन ने अपने बहुत से अनुयायी तैयार कर लिए है ! अत: वह इस्कॉन पर प्रतिबन्ध चाहती हैक्योंकि उसके अनुयायियों द्वारा उस 'कृष्णा' को महिमामंडित किया जा रहा है, जो ढीले चरित्र का था और जिसने १६,००० गोपियों से शादी कर रखी थी !

इस्कॉन के वकील ने न्यायाधीश से अनुरोध किया : "आप कृपया इस नन से वह शपथ दोहराने के लिए कहें, जो उसने नन बनते वक्त ली थी"

न्यायाधीश ने नन से कहा कि वह जोर से वह शपथ सुनाये, लेकिन वह ऐसा नहीं करना चाहती थी ! फिर इस्कॉन के वकील ने खुद ही वह शपथ पढ़कर सुनाने की न्यायाधीश से अनुमति माँगी !

न्यायाधीश ने आज्ञादे दी ,

इस्कॉन के वकील ने कहा पुरे विश्व में नन बनते समय लड़कियां यह शपथ लेती है कि "मै जीजस को अपना पति स्वीकार करती हूँ और उनके अलावा किसी अन्य पुरुष से शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाउंगी".

इस्कॉन के वकील ने कहा, "न्यायाधीश महोदय ! तो यह बताइये कि अब से पहले कितने लाख ननों ने जीसस से विवाह किया और भविष्य में कितनी नन जीसस से विवाह और करेंगी.

भगवान् कृष्ण पर तो सिर्फ यह आरोप है कि उन्होंने 16,000 गोपियों से शादी की थी, मगर दुनिया में दस लाख से भी अधिक नने हैं, जिन्होंने यह शपथ ली है कि उन्होंने यीशु मसीहसे शादी कर रखी है!

अब आप ही बताइये कि यीशु मसीह और श्री कृष्ण में से कौन अधिक लूज कैरेक्टर (निम्न चरित्र) हैं? साथ ही ननो के चरित्र के बारे में आप क्या कहेंगे?

न्यायाधीश ने दलील सुनने के बाद मामले को खारिज कर दिया !

जय श्री कृष्णा ।।

Bhakt Lokeshanand Swami: इधर भरतजी ननिहाल में हैं, उधर अयोध्या में सुमंत्र जी भगवान को वन पहुँचाकर वापिस लौटे। संध्या हो रही है, हल्का प्रकाश है, सुमंत्र जी नगर के बाहर ही रुक गए। जीवनधन लूट गया, अब क्या मुंह लेकर नगर में प्रवेश करूं? अयोध्यावासी बाट देखते होंगे। महाराज पूछेंगे तो क्या उत्तर दूंगा? अभी नगर में प्रवेश करना ठीक नहीं, रात्रि हो जाने पर ही चलूँगा।

अयोध्या में आज पूर्ण अमावस हो गई है। रघुकुल का सूर्य दशरथजी अस्त होने को ही है, चन्द्र रामचन्द्रजी भी नहीं हैं, प्रकाश कैसे हो? सामान्यतः पूर्णिमा चौदह दिन बाद होती है, पर अब तो पूर्णिमा चौदह वर्ष बाद भगवान के आने पर ही होगी।

दशरथजी कौशल्याजी के महल में हैं, जानते हैं कि राम लौटने वालों में से नहीं, पर शायद!!! उम्मीद की किरण अभी मरी नहीं। सुमंत्रजी आए, कौशल्याजी ने देखकर भी नहीं देखा, जो होना था हो चुका, अब देखना क्या रहा?

दशरथजी की दृष्टि में एक प्रश्न है, उत्तर सुमंत्रजी की झुकी गर्दन ने दे दिया। महाराज पथरा गए। बोले-

"कौशल्या देखो वे दोनों आ गए"

-कौन आ गए महाराज ? कोई नहीं आया।

-तुम देखती नहीं हो, वे आ रहे हैं।

इतने में वशिष्ठजी भी पहुँच गए।

-गुरुजी, कौशल्या तो अंधी हो गई है, आप तो देख रहे हैं, वे दोनों आ गए।

-आप किन दो की बात कर रहे हैं, महाराज?

-गुरुजी ये दोनों तपस्वी आ गए, मुझे लेने आए हैं, ये श्रवण के मातापिता आ गए।

महाराज ने आँखें बंद की, लगे राम राम करने और वह शरीर शांत हो गया।

विचार करें, ये चक्रवर्ती नरेश थे, इन्द्र इनके लिए आधा सिंहासन खाली करता था, इनके पास विद्वानों की सभा थी, बड़े बड़े कर्मकाण्डी थे। इनसे जीवन में एकबार कभी भूल हुई थी, इनके हाथों श्रवणकुमार मारा गया था, इतना समय बीत गया, उस कर्म के फल से बचने का कोई उपाय होता तो कर न लेते?

यह जो आप दिन रात, उपाय उपाय करते, दरवाजे दरवाजे माथा पटकते फिरते हैं, आप समझते क्यों नहीं? आप को बुद्धि कब आएगी?

अब विडियो देखें- दशरथ जी का देह त्याग

https://youtu.be/qO3KqNYTVCU

Bhakt Lokeshanand Swami: रामू धोबी अपने गधे के साथ नदी किनारे जा रहा था, कि उसे रेत में एक सुंदर लाल पत्थर दिखाई दिया। वह सूर्य की रोशनी में बड़ा चमक रहा था।

"वाह! इतना सुंदर पत्थर!" कहते हुए रामू ने उसे उठा कर, एक धोगे में लपेट अपने गधे के गले में लटका लिया।

घर लौटते हुए, वे जौहरी बाजार से निकले। जगता नाम का जौहरी उस पत्थर को देखते ही पहचान गया, वह रंग का ही लाल नहीं था, वह तो सचमुच का लाल था। हीरे से भी कीमती लाल। उसने रामू को बुलाया और कहा- ये पत्थर कहाँ से पाया रे? बहुत सुंदर है। बेचेगा?

रामू ने हैरानी से पूछा- ये बिक जाएगा? कितने का?

जगता- एक रुपया दूंगा।

रामू- दो रुपए दे दो।

जगता- तूं पागल है? है क्या यह? पत्थर ही तो है। एक रुपया लेना है तो ले, नहीं तो भाग यहाँ से।

रामू के लिए यूं तो एक रुपया भी कम नहीं था। पर वह भी पूरा सनकी था, आगे चल पड़ा।

इतने में भगता जौहरी ने, जो यह सब कुछ देख सुन रहा था, रामू को आवाज लगाई और सीधे ही उसके हाथ पर दो रुपए रख कर वह लाल ले लिया।

अब जगता, जो पीछे ही दौड़ा आता था, चिल्लाया- मूर्ख! अनपढ़! गंवार! बेवकूफ! हाय हाय! बड़ा पागल है। लाख का लाल दो रुपए में दे रहा है?

रामू की भी आँखें घूम गई। पर सौदा हो चुका था, माल बिक गया था। अचानक वह जोर से हंसा, और बोला- सेठ जी! मूर्ख मैं नहीं हूँ, मूर्ख आप हैं। मैं तो कीमत नहीं जानता था, मैंने तो दो रुपए में भी मंहगा ही बेचा है। पर आप तो जानते हुए भी एक रुपया तक नहीं बढ़ा पाए?

लोकेशानन्द कहता है कि हम भी जगता जौहरी जैसे ही मूर्ख हैं। ऐसा नहीं है कि हम भगवान की कथा की कीमत न जानते हों। जानते हैं। पर बिना किसी प्रयास के, अपनेआप, घर बैठे ही मिल रही इस कथा की असली कीमत, "अपना पूरा जीवन" देना तो दूर रहा, अपने दो मिनट भी देने को तैयार नहीं होते।

फिर हीरा हाथ से निकल जाने पर, पछताने के सिवा हम करेंगे भी क्या?

Hb 87 lokesh k verma bel banglore: 🕉10 05 2020 रविवार🌹

*अपू्र्व: कोपि कोशोयं विद्यते  तव भरति ।*

*व्ययतो वॄद्धिम् आयति क्षयम आयति संचयात्।।*

ज्ञान  का भंडार अन्य खजाने के भंडार से अलग है, ज्ञान बांटने से व दूसरों को देने से  बढ़ता रहता है  तथा इसे संभाल कर रखा गया तो घटने लगता है ।।

Treasures of knowledge is very unlike other treasures. This increases when spent, (given to others) & decreases when protected.( Held to oneself )

*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*

http://freedhyan.blogspot.com/2020/01/blog-post_14.html?m=1

सुमनों के बीच आकार आज मैं इठला गया हूं।

सूंघकर मादक सुगन्ध अकिंचन ही इतरा गया हूं॥

मैं समझने यही लगा था मैं ही खुद हूं बागवां।

तितली की चाह में दौड़ा न मिली बौरा गया हूं॥

और पढ़ना हो तो लिंक पर जाएं।🙏🏻🙏🏻🙏🏻

https://kavidevidasvipul.blogspot.com/2020/03/blog-post_15.html

Swami Pranav Anshuman Jee: मातृ दिवस की सभी को शुभकामनायें ।सभय मिलने पर अवश्य सुनें ।जय श्रीराम ।

Hb 96 A A Dwivedi: वाह बहुत सुंदर बात महाराज जी🌹🙏👏😊

फेसबुक चर्चा।

Meditation ka shi samay kaunsa hai

जब आपका ध्यान लग जाए।

यह समय निर्भर करता है ध्यान की किस स्थिति में आप है और आपके मन में क्या है।

यूं तो सभी ने ब्रह्म मुहूर्त को सही बताया है लेकिन यदि आप किसी भी समय ध्यान कर सकते हैं कभी भी बैठ सकते हैं।

ग्रुप में चर्चा

Bhakt Ashish Tyagi Delhi: आज मेरे मन में फिर एक प्रश्न आया है कि अगर मै ईश्वर की साधना करता हूँ तो क्या मुझे अगला जन्म हिंदू[सनातन] मे मिलेगा या किसी अन्य धर्म (मजहब) मे भी मिल सकता है ।। यदि किसी अन्य धर्म मे मिला तो मेरी आधी अधूरी साधना आगे कैसे बढ़ेगी ।

हो सकता है कि मेरे किसी बडे भाई को इस प्रशन पर हसी आ जाये । पर मुझे नादान और   मंद बुद्धि समझकर जवाब दे।🙏🏻

हसीं मजाक उडा कर क्रपया अपने को भगवान सिद्ध ना करें ।।

धन्यवाद

अशीष त्यागी:

Hb 96 A A Dwivedi: अगला जन्म हमारे वर्तमान में चित्त की दशा पर निर्भर करता है और जब आप ध्यान में बैठते हैं तो भीतर जिस प्रकार के विचार उठ रहे हैं वो हमारा भविष्य में मिलने वाला शरीर है।।

वर्तमान में जो शरीर हमने धारण किया है वो पुर्व जन्म के प्रारब्धों का फल है और जो भी प्रारब्ध शेष है वो शरीर को भोगने होंगे।।

ईश्वर से प्रार्थना करें कि हे ईश्वर हम आपके अज्ञानी संतान है और आपकि शरण में है हमें रास्ता दिखाये।।

इस प्रकार से लगातार ईश्वर का चिन्तन मनन करने से हमारे चित्त में जो बुरे संस्कार संचित है वो नष्ट होने लगते हैं और हमारी ऊर्जा ऊर्ध्व गति को प्राप्त होने लगती है।।

हमारे शरीर में रीढ़ की हड्डी के भीतर चक्र है जो ऊर्जा के क्षेत्र है जैसे जैसे हम ऊर्जा शरीर में साधना के द्वारा बढ़ाते हैं हमारे चक्र जाग्रत होने लगते हैं और मृत्यु के समय जो चक्र जाग्रत हो गया है उसके अनुसार योनि तथा फल व्यवस्था निश्चित होती है।।

किसी समर्थ गुरु की शरण में जाने पर यात्रा तीव्र गति से आगे बढ़ने लगती है।।

जय गुरुदेव🌹🙏👏😊

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जाने-अनजाने में सभी आध्यात्मिक व्यक्ति मृत्यु का अभ्यास कर रहे हैं।

आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा कि सभी लोग मृत्यु का अभ्यास कर रहे हैं।

एक बात यह भी समझ लीजिए जो मनुष्य जीते जी न मर सका वह मरने के बाद क्या मरेगा।

मरना तो केवल शरीर के नूतनीकरण की एक प्रक्रिया है।

अब यह वस्त्र आपका कैसा होगा मतलब नया शरीर क्या मिलेगा यह आप दुकान पर जाकर के पसंद करते हैं।

जी बिल्कुल सही कहा आपने बिल्कुल सही सोचा आपने। मनुष्य उसको उसके पसंद का वस्त्र मिले उचित शरीर मिले इसके लिए आध्यात्मिक अभ्यास करता है।

अब आप सोचें जब आपका शरीर है यानी आप कर्म कर सकते हैं आपको प्यास लगी आपने पानी पी लिया आपको किसी से प्रेम करने की इच्छा ही आपने प्रेम कर लिया।

मन में जो भी संस्कार रूपी कर्म करने की इच्छा हुई आप कर लेते हैं।

अब एक अवस्था की कल्पना कीजिए वह अवस्था मृत्यु के साथ आती है कि जब आपकी शरीर से आत्मा निकल रही हो और आपके मन में कोई इच्छा हो जाए आपके शरीर की इंद्रियों पर आपका बस तो है नहीं लेकिन मन में आपके भाव पैदा हो गया।

अब यह भाव और यह सोच कर्म करने की इच्छा पूरी होने हेतु पुन: कोई इंद्रियां चाहिए।

अब इस वक्त जो भाव है उसको पूर्ण करने हेतु आपके अगले जन्म की इंद्रियां विकसित होंगी।

इसीलिए कहा गया है कि मनुष्य ये अभ्यास करता है की मृत्यु के समय उसके मन में जगत का कोई विचार न हो यदि वह हरि का विचार कर रहा है उसके भाव हरि के चरणों में लीन कर देंगे।

इसीलिए हमारे शास्त्रों में वानप्रस्थ बताया गया है क्योंकि वन में जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो कोई बंधु बांधव सामने नहीं रहता है उसके मन में जगत के प्रति प्रेम पैदा नहीं हो पाता है।

और हो सकता है उसको निर्वाण प्राप्त हो जाए।

चूंकी मृत्यु के समय स्वामी श्री विष्णु तीर्थ जी महाराज ने लिखा है एक करोड़ सुई चुभने की पीड़ा होती है।

इस समय मनुष्य पीड़ा महसूस कर सकता है लेकिन यदि मनुष्य का अभ्यास होगा तो मनुष्य इस समय प्रभु के नाम का ही स्मरण करेगा।

और यदि इस समय मनुष्य प्रभु के नाम का स्मरण कर रहा है तो उसकी सद्गति निश्चित होगी।

जय गुरुदेव जय महाकाली।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

भजन और प्रवचन के माध्यम से जानिए अहंकार कैसे नष्ट हो और भी गूढ़ जानकारी

https://youtu.be/u14wVDPScU8

Bhakt Pankaj Singh Patiala: Jai ho sir ji 🙏🏻🙏🏻

Bhakt Lalchand Yadav: *मंदिरों के धन का सरकार अपने अधिकार में कर लेती है,जो धन हिंदू धर्म की रक्षा ,प्रचार व प्रसार में लगना चाहिए उसको सरकार हथियाकर अन्याय कर रही है जबकि मस्जिदों , चर्चों व गिरिजाघरों मे ऐसा नही है,सिर्फ मंदिर पर ही अधिकार क्यों?*

सभी मातृ भक्तों को समर्पित।🙏🏻🙏🏻😃

तंत्र का संजाल अजब है गजब है।

दिखता है रंगीन कितना सबज है॥

पिता  ने मांगा गिलास में पानी।

ऐसा लगा लुट गई है जवानी॥

माँ की दवाई आज भी भूले।

पर उपदेश की दुनिया अलग है॥

तंत्र का संजाल अजब है गजब है।।

मुख पे कालिख रिश्वत की मॉलिश।

काला धन कितना धन की वारिश।।

ईमानदार खुद दिखाना जगत को।

उपदेश की यह खुजली खलक है।।

तंत्र का संजाल अजब है गजब है।।

और पढ़ना हो तो लिंक पर जाए।👇👇

https://kavivipulluk.blogspot.com/2020/02/blog-post_25.html

http://freedhyan.blogspot.com/2019/02/blog-post_22.html?m=1

 हे प्रभु। हम अज्ञानी नहीं जानते कि हम एक फोटो पोस्ट करने से तेरी बनाई प्रकृति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं।

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

Hb 96 A A Dwivedi: अध्यात्म के अतिरिक्त दुसरे विषय जैसे हिन्दू समाज को पुनर्जीवित करने का यह जरूरी है लेकिन यह समुह सिर्फ और सिर्फ अध्यात्म की चर्चा के लिए हैं इसलिए दुसरे विषयों पर पोस्ट न भेजें।।

🙏🙏

फेसबुक चर्चा।

कर्म विज्ञान अत्यंत गूढ़ है ,

वह कौन से कर्म हैं जिनके फलस्वरूप संस्कार सृजन नही होते।

🙏

कर्तापन की भावना यह मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।

जब हम करतापन की भावना से निकल जाते हैं तब हमारे कर्म स्वत: निष्काम होने लगते हैं।

भगवान श्री कृष्ण भगवत गीता में यह योगी का लक्षण बताया है।

कर्मसु कौशलम् अपने कर्म को कौशल के साथ करते हुए उसमें  लिप्त न होना और अकर्तापन का भाव। फल की इच्छा बिल्कुल न करना यह निष्काम कर्म है।

यह कर्म करने से हमारे चित्त्त में वृत्ति का निर्माण नहीं होता। अतः संस्कार पैदा नहीं होते।

विपुल लखनवी।

"MMSTM सवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।"  देवीदास विपुल 

आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 12

 

 जय गुरूदेव । जय महाकाली

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