आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 2 (विशेष” क्या है अलख निरंजन)
विपुल सेन उर्फ विपुल “लखनवी”,
(एम . टेक. केमिकल इंजीनियर) वैज्ञानिक एवं कवि
सम्पादक : विज्ञान त्रैमासिक हिन्दी जर्नल “वैज्ञनिक” ISSN 2456-4818
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कोरोना ने जीवन का सार समझा दिया: एक कथा (लेखक अज्ञात)
राम गोपाल सिंह एक सेवानिवृत अध्यापक हैं ।
सुबह दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे । शाम के सात बजते- बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे, जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।
परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था ।
उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी, जिसमें इनके पालतू कुत्ते "मार्शल" का बसेरा है ।
राम गोपाल जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया "मार्शल"।
इस कमरे में अब राम गोपाल जी, उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं ।
दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये l
सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन कर के सूचना दे दी गयी ।
खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी, लेकिन मिलने कोई नहीं आया ।
साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और राम गोपाल जी की पत्नी से बोली - "अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के ।"
अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें के लिये कौन जाए ?
बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया l
अब राम गोपाल जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों ।
इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली- "अरी तेरा तो पति है, तू भी ........। मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे, वो अपने आप उठाकर खा लेगा ।"
सारा वार्तालाप राम गोपाल जी चुपचाप सुन रहे थे, उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से उन्होंने कहा कि-
"कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है, मुझे भूख भी नहीं है ।"
इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और राम गोपाल जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है ।
राम गोपाल जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं ।
पोती -पोते प्रथम तल की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं ।
घर के दरवाजे से हटकर बरामदे पर, दोनों बेटे काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे।
विचारों का तूफान राम गोपाल जी के अंदर उमड़ रहा था।
उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए टाटा एवं बाई बाई कहा ।
एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने अलविदा कह दिया ।'
राम गोपाल जी की आँखें लबलबा उठी ।
उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये ।
उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उलेड दी, जिसको राम गोपाल चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे।
इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया, जो राम गोपाल जी को अस्पताल लेकर जा रही थी।
राम गोपाल जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में रहे ।
उनकी सभी जाँच सामान्य थी । उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी ।
जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया ।
दोनों एक दूसरे से लिपट गये । एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी ।
जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती, तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे ।
उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये ।
आज उनके फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर छपी है l
*अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा ।*
40 हजार - हाँ पढ़कर ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी, जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।
एक बार रामगोपाल जी के जगह पर स्वयं को खड़ा करो l
कल्पना करो कि इस कहानी में किरदार आप हो ।
आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया खत्म हो जाएगा।
इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि कुछ पुण्य कर्म कर लिया कीजिए l
जीवन में कुछ नहीं है l
कोई अपना नहीं है l
*जब तक स्वार्थ है, तभी तक आपके सब हैं।*
जीवन एक सफ़र है, मौत उसकी मंजिल है l
मोक्ष का द्वार कर्म है।
यही सत्य है ।
शिक्षा:
हे कोरोना, तूं पूरी दुनिया में मौत का तांडव कर रहा है पर सचमुच में, तूने जीवन का सार समझा दिया है:
" अमीर-गरीब, छोटा-बड़ा, स्त्री-पुरुष, धर्म-जाति, श्रेत्र-देश, राज़ा-रंक, कोई भेदभाव नहीं, सब एक समान हैं!
असली धर्म इंसानियत है! निस्वार्थ भाव से, निष्काम कर्म, सच्चाई, ईमानदारी, निर्मल प्रेम, मधुर वाणी, सद्भाव, भाईचारा, परोपकार करना ही सर्वश्रेष्ठ है! "
अलख निरंजन' क्या है?
दत्तात्रेय भगवान का एक प्रचलित जयघोष है ‘अलख निरंजन’।अलख निरंजन का भावार्थ क्या है!
अंजन से तात्पर्य अज्ञान से लिया जाता है। अज्ञान का नष्ट होना यानी निरंजन होना इसलिए निरंजन का अर्थ है अज्ञान की कालिमा से मुक्त होकर ज्ञान में प्रवेश करना।
लक्ष का तात्पर्य देख पाने की शक्ति से है। अलक्ष यानी ऐसा जिसे हम सामान्य नेत्रों से देख ही न पाएं। सामान्य बुद्धि जिसे समझ ही न पाए। वह इतना चमकीला इतना तेजस्वी है कि उसे देख पाना सहज संभव नहीं।
‘अलक्ष’ शब्द का अपभ्रंश है ‘अलख’। तो ‘अलख निरंजन’ का भाव हुआ, ज्ञान का ऐसा प्रकाशमान तेज, जिसे देख पाना संभव न होते हुए भी उसका प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता है।
इसका एक अर्थ और भी बताया जाता है-
अघोरपंथियों के अनुसार अलख का अर्थ होता है जगाना (या पुकारना) और निरंजन का अर्थ होता है अनंत काल का स्वामी…
अलख निरंजन का घोष करके वे कहते हैं- हे! अनंतकाल के स्वामी जागो, देखो हम पुकार रहे हैं।
अलख का अर्थ है अगोचर; जो देखा न जा सके।
निरंजन परमात्मा को कहते हैं। 'अलख निरंजन' का अर्थ यह भी हुआ- "परमात्मा जिन्हें देखा न जा सके पर सब जगह व्याप्त हैं।"
"अलख-निरंजन" गुरू गोरखनाथ द्वारा प्रचारित ईश्वर को स्मरण करने के शब्द हैं।
वैसे अलख निरंजन गोरखनाथ महाराज के गुरुदेव मछिंद्रनाथ वह इसका जाप करते थे इस कारण यह गोरखनाथ परंपरा का मंत्र बन गया।
अलख निरंजन यह भगवान शिव का भी एक सिद्ध प्रचलित मंत्र है जिसे नागा साधु प्राया जो नाथ संप्रदाय के होते हैं वह जाप करते हैं।
इसके अर्थ तो ऊपर की पोस्ट में दिए हुए हैं।
कोई भी अगर आपको अर्थ मालूम कर ले हो यह अन्य वस्तु के विषय में जानना हो तो पहले आप नेट पर जाकर उसको सर्च करें उसको पढ़ें और यदि वहां पर भी समझ में ना आए या नेट पर ना मिले तब आप पटल पर प्रश्र रखें।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
Sundram Shukla:
*श्री "गुरुचरित्र" अध्याय : 1 (श्लोक 47-56)
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श्री गुरुदेव जी के चरणो में जो निरंतर समर्पित भाव पूर्ण श्रद्धा रखते थे ऐसे गंगाधर जी मुझे पिता स्वरूप मिले ।। ४७ ।।
मैं, श्री गंगाधर के पुत्र, सरस्वती गंगाधर एक निश्चल बालक के समान सभी संतो को और श्रोताओं को नमस्कार करता हूँ ।। ४८ ।।
जो शाश्वत गुरुध्यान में लीन है उन वेदांभ्यास रत सन्यासी, यती, योगेश्वर, तपस्वीयोंको मेरा सादर प्रणाम ।। ४९ ।।
आप सब से सविनय विंनती करता हूँ कि आप मेरे अल्प मति शिशु गीत सहृदय स्वीकार करना ।। ५० ।।
मैं छोटा बालक अपनी अल्प मति से काव्य निर्मिती नहीं कर सकता । मुझे निमित्त बना कर श्री गुरुदेव जी ने ही इसकी निर्मिती की है ।। ५१ ।।
हमारे पूर्वजों के असीम भक्ति से प्रसन्न होकर श्री गुरूदेव जी ने गुरुचरित्र विस्तार से उद्धृत करने की आज्ञा मुझे दी ।। ५२ ।।
श्री गुरुदेव जी ने कहा, "अमृतमय गुरुचरित्र का निर्माण करो । गुरु महिमा कथन करो । मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे पूरे वंश को चारों पुरुषार्थ प्रदान होंगे " ।। ५३ ।।
मेरे लिए गुरुदेव जी का हर वाक्य किसी कामधेनु के समान है । मैं सौंभाग्य शाली हूँ कि मुझे श्री नृसिंह सरस्वती गुरुदेव जी के आशीष मिले ।। ५४ ।।
श्री दत्तात्रेय जी के पूर्ण अवतार श्री नृसिंह सरस्वती मनुष्य देह में अवतरित हुवे । साक्षात उस ब्रह्म तत्व की महिमा कौन वर्णन कर पाएगा ।। ५५ ।।
साक्षात ब्रह्म स्वरूप श्री गुरुदेव जी का चरित्र मैं अल्पमती कैसे वर्णित कर पाऊंगा लेकिन श्री गुरुदेव जी की आज्ञा है इसी कारण ये प्रयास कर रहा हूँ ।। ५६ ।।
क्रमशः ...
Bhakt Lokeshanand Swami: रामजी संकोच करते हैं, इन्हें कुछ दिया नहीं। लक्षमणजी बोले, इन्हें तो इतना दे दिया, जितना बड़ों बड़ों को भी नहीं दिया। रामजी आँख से चुप ही रहने का इशारा करते हैं, कि ऐसा मत बोलो, उतराई तो देने को है नहीं, कहीं चरण धुलाई और न देनी पड़ जाए।
केवट भगवान से कुछ लेता नहीं तो सीताजी कहती हैं, आप भगवान से नहीं लेते हैं तो मुझसे ही ले लें, अंगूठी उतारने लगीं।
केवट ने सिर झुका लिया, कहते हैं, मैंने जनकजी जैसे ही इनके चरण धोए हैं, अब आप मेरी बिटिया हो गई हैं, आप पहली बार आई हैं, विदा हो रही हैं, मैं बेटी को कुछ दे तो नहीं पाया, ले कैसे लूं?
सीताजी को लगा मेरे पिताजी ही सामने खड़े हैं।
केवट कहता है- आपके चरणों की सेवा मिल गई, मेरा जन्म जन्म का भिखारीपना मिट गया, मुझे और क्या चाहिए? फिर भी आप जब वापसी आएँगे, तब पुनः सेवा का मौका मुझे ही देना, मैं यहीं प्रतीक्षा करता बैठा मिलूंगा। आज कुछ नहीं लूंगा।
"राम जी उतराई नहीं लूंगा॥
आप जगत के मात पिता हो, सेवा फिर मैं करूंगा।
चरणकमल धो, जल अमृत कर, चरणोदक पिऊँगा॥
मेरी बारी, राम घाट पर, जो देंगे ले लूंगा।
कहे लोकेशानन्द राम तरु छाया ही में रहूँगा॥"
रामजी कहते हैं, केवट! जो एक बार मेरे चरण धो लेता है, फिर उसे दोबारा मेरे चरण धोने नहीं मिलते। फिर तो उसी के चरण मैं धोता हूँ।
कदाचित् ये केवट ही जाकर सुदामा हो गए-
"देखी सुदामा की दीन दशा,
करुणा करके करुणानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुओ नहीं,
नैनन के जल से पग धोए॥"
बड़ी दुख भरी कहानी है। पर कहानी दूसरे की है तो दुख भी दूसरे का है। और दूसरे के दुख से सीखने को मिल जाए तो अपने जीवन में दुख न हो।
एक तीन बच्चों का पिता एक रात थका हुआ घर आया। आज घर में बड़ी चुप्पी है। न बच्चे दिखाई दे रहे हैं, न उनकी आवाज ही आ रही है। रोज तो दौड़े आते थे, चिपके जाते थे। पत्नी भी महकती हुई आगे पीछे घूमती थी, आज वह भी मालूम नहीं पड़ती।
"बाबू!" उसने अपने बड़े पुत्र को आवाज लगाई। कोई उत्तर नहीं मिला, पर सामने के कमरे का दरवाजा खोल, पत्नी बाहर आई। एक दम शांत, गंभीर। नकली मुस्कान दिखा कर बोली- "आ गए आप?" और पानी का गिलास लाई।
"आज बच्चे दिखाई नहीं दे रहे? कहाँ हैं?" पिता ने पूछा।
पत्नी ने कहा- "वे जल्दी सो गए हैं। आप पानी पी लें। कपड़े बदल लें। आपसे कुछ बात पूछनी है।"
पिता- "पूछो! ऐसी क्या बात है? आज बड़ा विचित्र लग रहा है। क्या हो रहा है?"
"मैं पूछना चाहती हूँ कि अगर बहुत समय पहले कोई, अपनी कोई वस्तु दे गया हो, और इतने समय बाद आज वह, अपनी वह वस्तु वापिस ले जाए, तो क्या करना चाहिए?" पत्नी ने पूछा।
पिता- "हाँ तो वापिस दे दो, इसमें पूछना क्या है?"
पत्नी- "दुख नहीं होगा?"
पिता- "तूं मूर्ख है क्या? इसमें दुख की क्या बात है? जिसकी वस्तु है, वह कभी तो ले ही जाएगा। आज नहीं तो कल ले जाता। कौन क्या ले गया?"
पत्नी ने एक कमरे का दरवाजा खोला, धीरे से बोली- "आज शाम।"
बाबू, बब्बू और बेबी, तीनों फर्श पर पड़े थे। निष्प्राण।
पिता- "तूं तो कह रही थी, ये सो गए हैं?"
पत्नी- "हाँ! हमेशा हमेशा के लिए।"
शाम को बेबी को करंट लग गया था, बब्बू और बाबू भी उसे बचाते हुए चिपक गए थे।
लोकेशानन्द कहता है कि इस जगत के सभी व्यक्ति और वस्तु, अपने को मिले हुए हैं, अपने हैं नहीं। या तो इनके होते हुए ही हम इन्हें छोड़ चलेंगे, या हमारे देखते हुए ये हमें छोड़ जाएँगे।
किसी को अपना न मानें, सब कुछ भगवान का ही मानें, तो दुख का काम तमाम हो जाए।
Bhakt Baliram Yadav: माफ़ कीजियेगा
परिवार में तो एक दूसरे के लिए तड़प होगी ही मां पिता भाई बहन से मोह रहेगा ही हमे पता है ये हमारे नहीं फिर फिकर नहीं जैसा नहीं कर सकते कुछ बंदिशे कुछ कर्म जो हमे करने होंगे अगर सभी यही समझे की परिवार भी मोह है तो संसार में घर ही ना होंगे
और कलयुग में गृहस्थ जीवन जीना भी तप है 🙏🙏🙏
lokesh k verma bel banglore:
*यदाचराति कल्याणीशुभम वा अशुभम् ।*
*तदैव लभते भद्रे कर्ता कर्म जमात्मन: ।।*
जैसा कर्म करेंगे वैसा ही परिणाम प्राप्त होगा ।अच्छे कर्म का अच्छा और बुरे कर्म का बुरा।
यह एक अद्वैत सत्य है।
Whatever one does good or bad ;one gets the same as a result of actions.
Newtons 3rd Law of motion - To every action there is an equal and opposite reaction .
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा Lokesh Kumar Verma*
Bhakt Lokeshanand Swami: बात तो सही है भाईसाहब। मेरे आदर्श गुरू गोविंद सिंह जी महाराज हैं। प्रेम, शौर्य और बलिदान, तीनों का पालन एक साथ करने वाले ही दुनिया में याद किए जाते हैं।
Swami Pranav Anshuman Jee: https://www.facebook.com/372279763585667/posts/671641256982848/
ऐसा माना जाता है कि महा अवतार बाबा ने नृसिंह सरस्वती महाराज से दीक्षा ली थी।
अति आनंददायक स्तुति।
Bhakt Pallavi: सभी गुरूजनो को मेरा प्रणाम🙇🏻♀️🙏🏻,
मेरा प्रश्न है कि अपने नाम का क्या महत्व है, या किसी ने इस शरीर को जो नाम दिया है हमे उसको कितना महत्व देना चाहिए? कृपया मार्गदर्शन करें🙏🏻
Bhakt Shyam Sunder Mishra: *धन्यवाद लॉकडाउन !*
*01 . हजारों बाल विवाह पर लगा ब्रेक !!*
*02 . युवा पीढी में बढती हुई नशे की लत को छोड़ने की मजबूरियां देखने को मिली !!*
*03 . मृत्युभोज पर हुआ अनावश्यक खर्च बन्द !!*
*04 . लाखों रुपयों की शादी हुई हजारों में !!*
*05 . रिश्वतखोरों की धुस की मिली धांस !!*
*06 . इंसानों की असलियत आई सामने !!*
*07 . मेडिकल का अनावश्यक खर्च हुआ बन्द !!*
*08 . घरवालों के साथ बिताया पूरा समय👌👌!!*
*09. बड़े बड़े पैसे वाले लोगों को पता चल गया है कि इंसानों को अतिआवशक व रोजमर्रा के लिए किया किया सामग्री जरूरी होती है!!*
*10. बेफालतू के खर्चो पर अंकुश लगाने में कारगर सिद्ध हुआ है !!*
*11. किसानों लोगों को ज्यादा से ज्यादा खेती के करने के लिए मजबूर करने में अहम भूमिका निभाने वाला !!*
*12. धेर्यवान,आपसी तालमेल,संतोषपूर्वक जिंदगी जीने के लिये प्रेरणा देने वाला !!*
*13. प्रकृति का वातावरण शुद्धता के लिये कारगार सिद्ध हुआ !!*
*14. जिंदगी पैसा को सब कुछ मानने लोगों को भी पता चला है !!*
*"तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान ।*
*काबां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।"*
*#🔐लॉकडाउन अभी ज़िंदा है👻*
Bhakt Shyam Sunder Mishra: सभी गुरुजनों से निवेदन है की इसमें *"काबां लूटी गोपियाँ "*का भावार्थ स्पष्ट करें।
Bhakt Brijesh Singer: पुरुष बली नहि होत है
समय होत बलवान
भीलन लूटी गोपिया
वही अर्जुन वही बाण
प्रभु जी क्या आपने इंटरनेट पर इसके अर्थ देखें।
कृपया पहले वहां पर सर्च करके देख ले उसके बाद चर्चा करते हैं।
जय हो गूगल गुरु। भौतिक जगत का सर्वश्रेष्ठ गुरु।
http://freedhyan.blogspot.com/2018/03/blog-post_28.html?m=0
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Bhakt Shyam Sunder Mishra: गुरुदेव वहाँ कुछ नही मिला।
और हमें तो मात्र ३ शब्दों के भावार्थ ही समझना है।
🌹*भीलन लूटी गोपियाँ *🌹
हमें तो यह उम्मीद थी कि यहाँ मेरी जिज्ञासा शांत हो जाएगी।इस लिए मैने यह प्रश्न इस पटल पर रखा। जो आज्ञा प्रभु। कोई बात नहीं। 🌹🙏🌹
ठीक है उत्तर मिल जाएगा।
Bhakt Shyam Sunder Mishra: आभार🌹🙏🌹
यहां पर कहने का तात्पर्य है कि मनुष्य अंदर अहंकार करता है और यह सोचता है कि मैं ही बलवान हूं या मैं ही करता हूं और भरता हूं।जो की पूर्णता गलत है ईश्वर की कृपा से ही मनुष्य सामर्थ शाली बनता है।
अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण की सहायता से महाभारत जीती थी लेकिन उनको अहंकार था कि मैं शक्तिशाली हूं उनके अहंकार को कई बार तोड़ा गया एक बार तो हनुमान जी के रूप में और दूसरी बात महाभारत के युद्ध के बाद। अहंकार युधिष्ठिर का भी तोड़ गया था नेवले के द्वारा। तो यहां पर इस कहावत में यह समझाया गया है कि मनुष्य कभी यह न सोचें कि वह सर्वशक्तिमान हो गया है क्योंकि जब समय होता है तभी उसको ईश्वरीय कृपा प्राप्त होती है और ईश्वरीय कृपा सदैव प्राप्त नहीं होती है। हालांकि सारी कर्म फल और हमारे कर्म ईश्वर की प्रेरणा से ही होते हैं।
और देखो महाभारत वाला धनुष बाण था अर्जुन के पास लेकिन भीलीनी भी उन्हें धनुष बाण के द्वारा परास्त नहीं हुई।
यह सब समय समय की बात है इसलिए समय को बलवान बोला गया।
अब आप मेरी बात देख लीजिए मैं कम से कम 25 बार गिरा हूं चोट बिल्कुल नहीं आई। लेकिन जरा सी स्लीप होने में पैर की तीन हड्डियां टूटी एक क्रेक हो गई।
मैं मित्रों इसीलिए आग्रह करता हूं कि आप लोग नेट देखने का अभ्यास करें।
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
"MMSTM समवैध्यावि ध्यान की वह आधुनिक विधि है। कोई
चाहे नास्तिक हो आस्तिक हो, साकार, निराकार कुछ भी हो बस
पागल और हठी न हो तो उसको ईश अनुभव होकर रहेगा बस समयावधि कुछ बढ सकती है। आपको
प्रतिदिन लगभग 40 मिनट देने होंगे और आपको 1 दिन से लेकर 10 वर्ष का समय लग सकता
है। 1 दिन उनके लिये जो सत्वगुणी और ईश भक्त हैं। 10 साल बगदादी जैसे हत्यारे के
लिये। वैसे 6 महीने बहुत है किसी आम आदमी के लिये।" देवीदास विपुल
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