आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 32 (बोझ या अज्ञानता)
Mk Hariom Dixit Jyotish: यकीनन #मुसलमान आज देश पर #बोझ हैं !
देश में आज मुस्लिमों की #आबादी लगभग 18 % है पर इनके इस्लामिक नजरिये और दर्जन भर #बच्चे पैदा करने के कारण....#प्राईवेट_हॉस्पिटल में तो इनकी भर्ती है मात्र 4% पर #मुफ्त के सरकारी अस्पतालों में मुस्लिम मरीज हैं लगभग 45% !
ये गैर मुस्लिम का खून लेने के लिये तो तुरन्त लेट जाएंगे पर जब देने की बारी आएगी तो #आसमानी_किताब का हवाला देकर अपने सगों को भी देने से पीछे हट जाएंगें !
#रक्तदान_शिविरों में इनकी उपस्थिति लगभग नगण्य ही होती है और अंगदान तो खैर इस्लाम में ही #हराम है !
पुलिस में ये हैं मात्र 6% पर #जेलों में हैं लगभग 32% !
ऑलंपिक और एशियाड के व्यक्तिगत-पदक विजेताओं में ये हैं आज लगभग शून्य....पर #अपराधों में ये हैं लगभग 44% !
#इनकम_टैक्स में इनका योगदान है मात्र 3% पर बिजली-पानी चोरी में ये हैं 61% !
नई कार खरीदी में ये हैं 6% पर #पंचर बनाने जैसे कामों में हैं 67% !
समाजसेवा में इनकी महिलाएं हैं सिर्फ 2% पर कुल #वेश्याओं में इनकी भागीदारी है 41% !
मंहगे मॉलों में ये मिलेंगें 4% पर #सस्ते_सब्सिडाइज्ड चिडियाघर में ये मिलेंगें 47% !
महंगे निजी स्कुलों में तो इनके बच्चे हैं लगभग 4% पर #खैराती_मदरसों मे हैं पूरे 100% !
सिमी जैसे देशविरोधी #आतंकी_संगठनों में तो ये हैं 100% पर इसरो और डीआरडीओ जैसे संस्थाओं में ये हैं महज 2% !
देशहित में नारे लगाने में ये हैं 1% पर #देशद्रोह के कुल आरोपियों में ये हैं 95% !
फिर भी इनके #मस्जिद_और_मदरसों को सरकारी सहायता मिलती है और मंदिरों का चढ़ावा सरकार ले लेती है !!।
#उर्दू_भाषा के ज्ञान की विद्दवता के आधार पर इनको #आईएएस_और_आईपीएस बना दिया जाता है
और संस्कृत का #हिन्दू_विद्वान भिक्षा का कटोरा लेकर दर दर भटकता है।
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🌸 धर्मसंवाद : *श्राद्ध : केवल कर्मकांड नहीं; धर्मविज्ञान है ! (भाग 2)*
🔸क्या श्राद्धविधि करते समय कोई विशिष्ट प्रार्थना आवश्यक हैं ? 🔸विधि के व्यतिरिक्त और पितृपक्ष में क्या करना चाहिए ?
Bhakt Lokeshanand Swami: हनुमान जी ने कहा- भरत जी! किसी को भी मेरे साथ चलने की आवश्यकता नहीं है, बस आप मुझे विदा करें, कि मैं तुरंत भगवान के पास पहुँच जाऊँ।
भरत जी ने बड़ी विचित्र बात कही- हनुमान जी! आप मेरे बाण पर पर्वत सहित बैठ जाएँ, मैं आपको अभी भगवान के चरणों में पहुँचा देता हूँ।
हनुमान जी को अचरज तो हुआ, पर उन्होंने भरत जी की बात मानी। भरत जी ने बाण छोड़ा तो क्षण भर में ही हनुमान जी ने स्वयं को भगवान के पास पाया।
यहाँ सुखैन वैद्य ने तुरंत संजीवनी बूटी खोजी, और उसका रस लक्ष्मण जी को पिलाया, लक्ष्मण जी तत्क्षण उठ बैठे। उठें भी क्यों न, भगवान की भक्ति का रस जिसे मिल जाए, उसको कामना में रस रहे ही कैसे? मूर्छा तो फिर टूट ही जाती है।
भगवान ने लक्ष्मण जी और हनुमान जी को गले से लगा लिया। भगवान हनुमान जी से पूछते हैं- हनुमान! दुनियावाले कहते हैं कि मैं और भरत बिलकुल एक जैसे हैं। तुम्हें क्या लगता है?
हनुमान जी ने उत्तर दिया- हाँ भगवान! पहले मुझे भी यही गलतफहमी हो गई थी। जब मैंने अपने को भरत जी की गोद में पाया, तो मुझे लगा कि मैं आपकी गोद में हूँ। पर बाद में मुझे मालूम पड़ा कि वे तो भरत जी थे।
भगवान! भरत जी देखने में तो बिल्कुल आप जैसे हैं, पर प्रभाव में आप से श्रेष्ठ हैं। आपके पास रहते हुए भी मुझमें कर्तृत्व आ गया, मुझे लगा कि लक्ष्मण जी के लिए बूटी लेने "मैं" जा रहा हूँ, पर भरत जी के पास जाते ही, मेरा अभिमान दूर हो गया।
दूसरी बात यह कि भरत जी के पास ऐसा बाण है, जिसने पलक झपकते ही मुझे आपके चरणों में पहुँचा दिया।
राम जी पूछते हैं कि इसमें कौन सी विशेष बात है, मेरा भी बाण जिसे लग जाता है, वह मेरे चरणों में पहुँच जाता है।
हनुमान जी कहते हैं- हाँ भगवान! पहुँच तो जाता है, पर मरने के बाद। भरत जी का बाण तो जीते जी ही पहुँचा देता है।
विचार करें, भगवान कहाँ नहीं हैं? क्या वे इस समय आपके अंत:करण में द्रष्टा रूप से अवस्थित नहीं हैं? हैं। तो क्या आपके अंत:करण के दोषों का शमन हो गया? नहीं ना। क्यों? क्योंकि वह परमात्मा आपके कृत्यों में दखल नहीं देता। भगवान की कृपा की अनुभूति करवा कर, कर्तृत्वाभिमान से छुड़ा देना तो, भरत जी जैसे किसी संत के ही अधिकार क्षेत्र की वस्तु है।
लोकेशानन्द कहता है कि संत का उपदेश ही बाण है। कितनी चमत्कारी बात है, कि लाख कोई संसार में रचापचा हो, पर इस उपदेश रूपी बाण के लगते ही, मन बिना एक पल की भी देरी किए, भगवान के चरणों में पहुँच जाता है।
क्या इस समय, जब आप यह उपदेश पढ़ रहे हैं, आपका मन भगवान में नहीं लगा हुआ है?
पर कितने ही बाण क्यों न छोड़े जाएँ, यदि कोई बात अपने को लगने ही न दे, तर्क की ढ़ाल से उन्हें दाएँ बाएँ हटाता ही रहे, उसका मन कैसे भगवान में लगे?
बातें तो बहुत चलती हैं, बात बाण रूपी बात चलने की नहीं है, बात तो बात लगने की है। लग जाए बस।
इसीलिए भगवान स्वयं कहते हैं-
"मो ते अधिक संत करि लेखा।"
"मो ते अधिक गुरुहि जियं जानी।
सेवईं सकल भाँति सन्मानी॥"
अब विडियो देखें- भरत जी का बाण
https://youtu.be/gw7SI5b7k9o
*चन्दनं शीतलं लोके चंदनादपि चंद्रमा: |*
*चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधुसंगत: ||*
संसार में चन्दन को शीतल माना जाता है लेकिन चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल होता है | अच्छे मित्रों का साथ चन्द्र और चन्दन दोनों की तुलना में अधिक शीतलता देने वाला होता है |
sandalwood is pleasant (cool), moon (or moon light) is more pleasant than sandal. (but) company of a good person (sAdhu) is pleasant then both moon and sandal.
*शुभोदयम्! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
Jb Ashutosh C: Easily Achieved things do not stay Longer......&....Things which stay Longer are not Easily Achieved.....Good Morning
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Bhakt Komal: श्री योग वशिष्ठ
अध्याय ७
ब) पुरुषार्थ की महत्ता और दैववाद (प्रारब्ध) सर्ग (४-९)
सौम्य श्री राम! समुद्र की जलराशि शान्त हो या तरंग युक्त, दोनों दशाओं में उसकी जल रूपता समान ही है, उसी तरह देह के रहते हुए और उसके न रहते हुए भी मुक्त महात्मा मुनि की स्थिति एक सी होती है। उसमें कोई भेद नहीं होता। सदेह मुक्ति हो या विदेह मुक्ति, उसका विषयों से कोर्इ संबंध नहीं है। जीवनमुक्त और विदेह मुक्त दोनों ही प्रकार के महात्मा बोध स्वरूप हैं। उनमें क्या भेद है?
रघुनंदन! इस संसार में सदा अच्छी तरह पुरुषार्थ करने से सबको सब कुछ मिल जाता है। जहां कहीं किसी को असफल देखा जाता है, वह उसके सम्यक प्रयत्न का अभाव ही कारण है। परमात्मा प्राप्ति रूप आत्यंतिक आनन्द पुरुष के प्रयत्न से ही प्राप्त हो सकता है। अन्य हेतु (प्रारब्ध) से नहीं। इसलिए पुरुष को प्रयत्न पर ही निर्भर रहना चाहिए। शास्त्रज्ञ सत्पुरुषों के बताए हुए मार्ग से चलकर अपने कल्याण के लिए जो मानसिक, वाचिक, और कायिक चेष्टा की जाती है, वही पुरुषार्थ है और वही सफल चेष्टा है। इससे भिन्न जो शास्त्र विपरीत मनमाना आचरण है , वह पागलों की सी चेष्टा है। जो मनुष्य जिस पदार्थ को पाना चाहता है, उसकी प्राप्ति के लिए यदि वह क्रमशः प्रयत्न करता है और बीच में ही उससे मुंह नहीं मोड़ लेता तो अवश्य उसे प्राप्त कर लेता है। शास्त्र के विपरीत किया हुआ प्रयत्न अनर्थ की प्राप्ति कराने वाला होता है।
क्रमशः
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*।। शिक्षक दिवस निमित्त ऑनलाइन प्रवचन ।।*
🌸 विषय - *प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के अनुसार आदर्श अध्यापक और विद्यार्थी कैसे हों !*
🔸आधुनिक शिक्षा से भी भारत की प्राचीन शिक्षा बेहतर कैसे है ?
🔸 स्वामी विवेकानंद, योगी अरविंद और डॉ. एनी बेसेन्ट जी प्राचीन शिक्षा के पक्षधर क्यों थे ?
*भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए आजके कार्यक्रम में जान ले प्राचीन शिक्षा व्यवस्था के रहस्य...*
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*पितरों के समान हैं ये 3 वृक्ष, 3 पक्षी, 3 पशु और 3 जलचर*
*धर्मशास्त्रों अनुसार पितरों का पितृलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। दूसरी ओर अग्निहोत्र कर्म से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है। तीसरी ओर कुछ पितर हमारे वरुणदेव का आश्रय लेते हैं और वरुणदेव जल के देवता हैं। अत: पितरों की स्थिति जल में भी बताई गई है।*
*⚜️तीन वृक्ष:-*
*🚩1. पीपल का वृक्ष :-* पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना या इसे लगाना विशेष शुभ होता है।
*🚩2. बरगद का वृक्ष :-* बरगद के वृक्ष में साक्षात शिव निवास करते हैं। अगर ऐसा लगता है कि पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए।
*🚩3. बेल का वृक्ष :-* यदि पितृ पक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है।...इसके अलावा अशोक, तुलसी, शमी और केल के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।
*⚜️तीन पक्षी:-*
*🚩1. कौआ :-* कौए को अतिथि-आगमन का सूचक और पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।
*🚩2. हंस :-* पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हो सकता है कि आपके पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।
*🚩3. गरुड़ :-* भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गुरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं पितर।... इसके अलावा क्रोंच या सारस का नाम भी लिया जाता है।
*⚜️तीन पशु:-*
*🚩1. कुत्ता :-* कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। कहते हैं कि इसे ईधर माध्यम की वस्तुएं भी नजर आती है। दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्य में होने वाली घटनाओं और ईथर माध्यम (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव महाराज का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
*🚩2. गाय :-* जिस तरह गया में सभी देवी और देवताओं का निवास है उसी तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
*🚩3. हाथी :-* हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात रूप माना गया है। यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है। जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता है। हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं। अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा विधि व्रत रखा जाता है। सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं।.. इसके अलावा वराह, बैल और चींटियों का यहां उल्लेख किया जा सकता है। जो चींटी को आटा देते हैं और छोटी-छोटी चिड़ियों को चावल देते हैं, वे वैकुंठ जाते हैं।
*⚜️तीन जलचर जंतु:-*
*🚩1.मछली :-* भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था। जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है।
*🚩2. कछुआ :-* भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर ही देव और असुरों के लिए मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थापित किया था। हिन्दू धर्म में कछुआ बहुत ही पवित्र उभयचर जंतु है जो जल की सभी गतिविधियों को जानता है।
*🚩3. नाग :-* भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।... इसके अलावा मगरमच्छ भी माना जाता है।
महत्वपूर्ण विषय पर लाइव हैं देश के बड़े विचारक एवं अन्तर्राष्ट्रीय कवि जनार्दन पांडेय प्रचण्ड जी !
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K lko dr kailash nigam: https://youtu.be/nM_BQCX3QVg
Bhakt Lokeshanand Swami: अब पहले भगवान ने कुंभकर्ण को मारा, अहंकार को, "मैं" को मारा। भगवान उसका एक एक अंग काटते चले गए और कटते कटते कुंभकर्ण मर गया। अहंकार आसानी से नहीं मरता। विचार के बाण से, माने भुजा मैं नहीं हूँ, सिर मैं नहीं हूँ, बुद्धि मैं नहीं हूँ, मन मैं नहीं हूँ, यों एक एक अंग से हटते हटते, नेति नेति, तब समझ आता है कि मैं तो आत्मस्वरूप हूँ।
"मैं क्या हूँ" इसके चिंतन से स्वरूप नहीं जाना जाता। "मैं क्या नहीं हूँ" इसके चिंतन की दृढ़ता से जाना जाता है। तब मालूम पड़ता है कि "मैं" है ही नहीं, ज्ञान मात्र है।
यों जब ज्ञान भगवान ने अहंकार कुंभकर्ण को मार दिया, तब वैराग्य लक्ष्मणजी ने काम मेघनाद को समाप्त कर दिया।
अंत में भगवान और रावण में युद्घ हुआ। रामजी ने कितनी ही बार समस्त राक्षसी सेना का संहार किया, कितनी ही बार रावण के सिर काटे, पर हर बार रावण पुनः दसों सिर के साथ, अपार सेना लेकर चढ़ा आता है। मामला क्या है?
रावण मोह है। मोह समस्त मानस रोगों की जड़ है।
"मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला।
तेहिं ते पुनि उपजहिं बहू सूला॥"
लाख पत्ते तोड़ो, जड़ बची है तो पत्ते दोबारा उग आते हैं। तो मोह पुनः पुनः दसों इन्द्रियों से सुख भोगने को, समस्त विकार लेकर अंतःकरण पर चढ़ा आता है।
दूसरे अभी भीतर का कुण्ड सूखा नहीं है। बाहर कितना ही समाधान करो, जब तक भीतर से रस न सूखे, समस्या कैसे मिटे? हमने कितनी बार हाथ काटे, माने संकल्प किया की अब ऐसा या वैसा नहीं करेंगे, पर भीतर संसार के प्रति रस बना है तो फिर फिर वही वही करते हैं या नहीं? सत्संग का तीर चला कि फिर संकल्प उठा, संसार की छाया पड़ी कि फिर वहीं के वहीं।
देखो! भगवान ने युद्ध रोक दिया, रावण कृपाण उठाकर छाती पर चढ़ने दौड़ा। विभीषण ने यह सब देखा। तो जो विभीषण अभी तक मूकदर्शक बना देख मात्र रहा था, अपनी गदा उठाकर रावण पर झपटा। बस कोई किसी को छू पाता, इससे पहले ही, भगवान ने एक तीर चलाया, और रावण धराशायी हो गया।
ध्यान दें! जीव विभीषण जब तक स्वयं "मेरेपन" से नहीं झूझ पड़ता, "मेरा" यह भाव कैसे मिटे? मोह कैसे मिटे? रावण कैसे मरे? तब तक भगवान भी क्या करें? मारते तो भगवान ही हैं, पर झूझना जीव को ही पड़ता है।
Jb Ashutosh C: Happy Teacher's Day to all of us who had wonderful time with our teachers...including, of course, some tough times as well !!!...
But in either case they selflessly helped us grow in the making - period of our life...they weren't counting money for every sincere thought they nurtured for us ; and, skill with witch they handled each one of us amongst so many in each class !
My deep regards and humble salutation to them .
May God bless them all.
I take the opportunity once again to wish all teachers a lovely life full of happiness.🙏🙏💐💐
Vs P Mishra: 🌞सुप्रभातं🌻
_प्रेरकः सूचकश्वैव वाचको दर्शकस्तथा।_
_शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरवः स्मृताः ॥_
*भावार्थ:* प्रेरणा व संदेश देने वाले, सत्य का मार्ग दिखाने वाले, शिक्षा देने वाले और ज्ञान बोध कराने वाले –यह सब गुरु समान है ।
मेरे अब तक के जीवन काल में मुझे इस मंजिल तक पहुंचाने वाले ऐसे सभी सम्माननीय शिक्षक, सम्बन्धी, वरिष्ठों और साथियों का ह्र्दयतल से अविस्मरणीय आभार...शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹 सादर🙏🌹
+91 96374 62211: 🚩 हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा प्रस्तुत
⭕ *वामपंथी प्रचार तंत्र क्या है ?*
⭕ *इस प्रचार तंत्र के बलि कौन ?*
⭕ *क्या यह वामपंथियों का वैचारिक दहशतवाद है ?*
⭕ *वामपंथी विचारधारा और गौरी लंकेश की हत्या का क्या संबंध है ?*
🤔 *क्या है इसके पीछे का सत्य ?*
जानने के लिए अवश्य देखें चर्चा हिन्दू राष्ट्र की...
✒️ *विषय : वामपंथियों का प्रचारतंत्र और गौरी लंकेश की हत्या !*
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*भक्ति में अटूट श्रद्धा का महत्त्व*
🔸एक वैद्य की ईश्वर में अटूट श्रद्धा
🔸राजा सुषेण की गुरुभक्ति
🔸दत्त के नामजप से एक विदेशी भक्त को हुआ लाभ
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*अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।*
*चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥*
जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की आँखें खोली, उन गुरुजनों को सादर नमन् ।
Salute to the guru, who opens eyes of a person blind due to darkness of ignorance, by knowledge (GYAna). Guru is one of the most honorable personalities in Indian (Hindu) tradition.
*शुभोदयम् ! लोकेश कुमार वर्मा (L K Verma)*
😀😀: विपुल का गुरू नमन दोहा।
गुरू ही धन गुरू रतन, गुरू गुणों की खान।
गुरू नाम से बन गये, ध्रुव प्रह्लाद महान।।
यह महाशय अंग्रेजों के पिठ्ठू और महा चाटुकार थे।
भगवत गीता के बंगाली अनुवाद को गीतांजलि के नाम से नोबेल भी अंग्रेजों ने दिला दिया था।
कभी शांतिनिकेतन जाइए तो उनके ठाठ बाट और सूट बूट की फोटो भी देख सकते हैं।
उस जमाने में किसी व्यक्ति के पास कार थी जिनका नाम था रविंद्र नाथ टैगोर।
मेरे हिसाब से इनको जबरदस्ती महान बनाकर थोपा गया।
आत्म अवलोकन और योग: ग्रुप 4 सार्थक ज्ञानमयी चर्चा: भाग 33 (प्रभु सदा भला करता है)
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